तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

रविवार, जुलाई 24, 2016

क्या अर्जुनराम मेघवाल आगे चल कर वसुंधरा के लिए परेशानी बनेंगे?

राज्य विधानसभा में तगड़े बहुमत और विपक्षी कांग्रेस के पस्त होने के नाते बहुत मजबूत मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे यूं तो बहुत मजबूत मुख्यमंत्री हैं, मगर हाल ही जिस प्रकार केन्द्र में मंत्रीमंडल विस्तार में राजस्थान के चार सांसदों को मंत्री बनाया गया है, उससे यह संकेत मिलते हैं कि उनके और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बीच ट्यूनिंग और बिगड़ गई है। ज्ञातव्य है कि मोदी ने वसुंधरा राजे की पसंद के अब तक मंत्री रहे निहाल चंद मेघवाल और प्रो. सांवर लाल जाट को हटा कर उनके विरोधी माने जाने वाले अर्जुन राम मेघवाल, पी पी चौधरी, सी आर चौधरी और विजय गोयल को मंत्री बना दिया है। इस बड़े परिवर्तन की सियासी गलियारे में बहुत अधिक चर्चा है। चर्चा इस वजह से भी वसुंधरा की सिफारिश के बाद भी उनके पुत्र दुष्यंत को मंत्रीमंडल में स्थान नहीं दिया गया है।
हालांकि अर्जुन राम मेघवाल को सियासी मैदान में लाने वाली वसुंधरा राजे ही हैं, मगर अब उनको विरोधी लॉबी में गिना जाने लगा है। कुछ लोगों का मानना है कि वसुंधरा राजे को घेरने के लिए मेघवाल को आगे चल कर और मजबूत किया जाएगा। मेघवाल के जातीय समर्थक तो उन्हें अभी से आगामी मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करने में लग गए हैं।
राजनीति जानकारों का मानना है कि इस बार बहुत अधिक विधायकों के साथ सत्ता पर काबिज होने के बाद भी वे उतनी मजबूत नहीं हैं, जितनी कि पिछली बार कम विधायकों के बाद भी रहीं। पिछले कार्यकाल में उन्होंने जिस प्रकार एक दमदार मुख्यमंत्री के रूप में काम किया, वैसा इस बार नजर नहीं आ रहा। उनकी हालत ये है कि जिन कैलाश मेघवाल ने उन पर आरोप लगाए, उन्हीं को राजी करने के लिए विधानसभा अध्यक्ष बनाना पड़ा। इसी प्रकार घनश्याम तिवाड़ी खुल कर विरोध में खड़े हैं और उन्होंने कथित रूप गैर राजनीतिक संगठन खड़ा कर दिया है, फिर भी उनके खिलाफ कार्यवाही नहीं हो पा रही। केन्द्रीय संगठन में लिए ओम माथुर का भी उनसे कितना छत्तीस का आंकड़ा है, इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि हाल ही जब वे अजमेर आए तो वसुंधरा के डर से केवल उनकी ही लॉबी के नेताओं ने उनकी आवभगत की। कुल मिला कर राज्य में विरोधी लॉबी के सक्रिय रहते और मोदी की तनिक टेढ़ी नजर के कारण वसुंधरा पहले जैसी सहज नहीं हैं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
8094767000

शनिवार, जुलाई 23, 2016

खुद भाजपाई ही खुश नहीं अपनी सरकार के कामकाज से

केन्द्रीय जलदाय राज्य मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट को मंत्रीमंडल से हटाने का गुस्सा तो अपनी जगह है ही, मगर जन समस्याओं को लेकर जिस प्रकार भाजपा कार्यकर्ताओं ने असंतोष जाहिर किया है, वह साफ इंगित करता है कि खुद भाजपाई ही अपनी सरकार के कामकाज से खुश नहीं हैं। सच तो ये है कि वे मन ही मन जान रहे हैं कि यदि यही हालात रहे तो आगामी विधानसभा चुनाव में सत्ता पर कब्जा बरकरार रखना बहुत मुश्किल हो जाएगा।
भले ही पार्टी की अधिकृत विज्ञप्ति में यह कहा गया है कि संगठन व सरकार के कार्यों की समीक्षा सहित जिलों की बूथ समितियों के सम्मेलन सम्पन्न कराकर बूथ इकाइयों के सुदृढ़ीकरण के लिए अजमेर आये मंत्रियों व प्रदेष पदाधिकारियों के समूह के निर्धारित सभी कार्यक्रम सफल व उद्देश्यपूर्ण रहे, मगर सच्चाई ये है कि इस दौरान कार्यकर्ताओं का गुस्सा जिस तरह फूटा, वह स्वत: साबित करता है कि वे पूरी तरह से असंतुष्ट हैं। भले ही चिकित्सा मंत्री राजेंद्र सिंह राठौड़ कहें कि कार्यकर्ता सरकार से नाराज नहीं हैं, वे तो सहज भाव से अपनी बात रख रहे हैं, मगर भाजपा जैसी अनुशासित पार्टी में जिस तरीके से कार्यकर्ताओं ने अपनी बात रखी है, वह पार्टी हाईकमान के लिए चिंता का विषय है।
उन्होंने कहा कि अजमेर में कार्यकर्ताओं में भारी उत्साह देखा गया। दो दिन में दस हजार से अधिक कार्यकर्ता सम्मेलन में शामिल हुए। उन्हें सरकार की योजनाओं की जानकारी के बारे में बताया गया। साथ ही इन से संबंधित कमियों अन्य समस्याओं के बारे में सुना गया। बैठक के दौरान जो भी सुझाव आए हैं, उनसे मुख्यमंत्री राजे को अवगत कराएंगे। दो दिन के भीतर उन्हें स्थानीय स्तर पर व्यावहारिक कठिनाइयों की जानकारी मिली है, जिन्हें दूर किया जाएगा। सरकार का यह अभियान 13 अगस्त को समाप्त हो जाएगा।
कार्यकर्ताओं के गिले-शिकवे, समस्याओं और उनके मन की बात जानने के साथ भाजपा का दो दिवसीय बूथ स्तरीय कार्यकर्ता सम्मेलन शुक्रवार को संपन्न हुआ। इसमें संदेश दिया गया कि कार्यकर्ता और पदाधिकारियों से हुए सीधे संवाद में समस्या और सुझाव समझ लिए गए हैं, अब यह सब मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को बताएंगे। मंत्रियों ने वैशाली नगर स्थित होटल में जनसंघ के पूर्व कार्यकर्ता, पूर्व विधायक, सांसद, पूर्व वर्तमान पदाधिकारियों की बैठक ली। जनसंघ के पूर्व पदाधिकारियों का सम्मान किया गया। संगठन पदाधिकारियों से फीडबैक लिया। बैठक में प्रदेश मंत्री अशोक लोहाटी, शहर जिलाध्यक्ष अरविंद यादव, देहात जिलाध्यक्ष बीपी सारस्वत, महामंत्री जयकिशन पारवानी, महामंत्री रमेश सोनी, उपाध्यक्ष सोमरत्न आर्य सतीश बंसल, रविंद्र जसोरिया, संजय खंडेलवाल सहित वरिष्ठ कार्यकर्ता उपस्थित थे।
लब्बोलुआब पार्टी नेताओं व कार्यकर्ताओं का एक कविता के माध्यम से ये कहना कि सरकार की अधिकारियों को परवाह नहीं, क्योंकि कार्यकर्ता की हिम्मत नहीं.., संगठन को फुर्सत नहीं, जनप्रतिनिधियों को जरूरत नहीं.., इसलिए अधिकारियों को सरकार की परवाह नहीं..., इस बात का पुख्ता प्रमाण है कि सत्ता और संगठन में तालमेल का पूरी तरह से अभाव है। किसी सत्तारूढ़ पार्टी का कार्यकर्ता ही ये कहने लगे कि मंत्रियों और विधायकों के पास समय नहीं है, जनता को सरकार की योजनाओं का फायदा नहीं मिल पा रहा है और अधिकारी ही सरकार की जन कल्याणकारी योजनाओं को विफल करने में लगे हैं, तो समझा जा सकता है कि वे अंदर से कितने दुखी हैं। जाहिर सी बात है कि आम जनता के बीच तो इन्हीं कार्यकर्ताओं को वोट मांगने जाना होता है। भला वे जनता को क्या जवाब दें।
यह कम अफसोसनाक नहीं भाजपा नेता कार्यकर्ताओं से यह कह कर पल्लू झाड़ रहे हैं कि राष्ट्रहित सर्वोपरि होना चाहिए, पहले राष्ट्र के बारे में, फिर संगठन और उसके बाद स्वयं के बारे में सोचना चाहिए। कार्यकर्ताओं ने तो अपना सिर ही धुन लिया होगा कि क्या हमने पार्टी के लिए इसलिए खून पसीना बहाया कि हमें खुद को भूल कर राष्ट्रहित की चिंता की सीख दी जाएगी।
बहरहाल, पार्टी की इस कवायद का क्या लाभ होगा, क्या कदम उठाए जाएंगे, मगर इतना तय है कि पार्टी के लिए खतरे की घंटी बज चुकी है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
8094767000

गुरुवार, जुलाई 14, 2016

कामयाबी मिलेगी या नहीं, मगर शीला का पत्ता चल कर कांग्रेस ने बाजी मारी

कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले पहल करते हुए जिस प्रकार अपने मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को घोषित किया है और प्रदेश अध्यक्ष पद राज बब्बर को सौंपा है, वह दाव कामयाब होगा या नहीं, ये तो चुनाव परिणाम ही बताएंगे, मगर इतना जरूर तय है कि ये कदम उठा कर उसने राजनीतिक चाल चलने में बाजी जरूर मार ली है। हालांकि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का जनाधार कितना रह गया है, वह सबको पता है, मगर ताजा कदम उठा कर उसने हार नहीं मानने व अपने आत्मविश्वास का इजहार कर दिया है। सत्ता से बाहर हो चुकी एक राष्ट्रीय पार्टी के लिए यह आत्मविश्वास रखना व जताना जरूरी भी है। इसके अतिरिक्त चुनाव के काफी पहले अपना नेता घोषित करने का भी लाभ मिलेगा। स्वाभाविक रूप से उसी के अनुरूप चुनाव की चौसर बिछाई जाएगी। शीला के दिल्ली के विकास में अहम भूमिका निभा चुकने का भी कांग्रेस को फायदा मिल सकता है।
हालांकि दिल्ली में लगातार तीन बार मुख्यमंत्री रह चुकी वयोवृद्ध शीला को उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री पद का दावेदार बताना चौंकाने वाला जरूर है, मगर समझा जाता है कि कांग्रेस के पास मौजूदा हालात में इससे बेहतर विकल्प था भी नहीं। ज्ञातव्य है कि उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों की आबादी  करीब दस प्रतिशत है, जो कि परंपरागत रूप से कांग्रेस के साथ ही रही है। हालांकि बाद में अन्य दलों ने भी उसमें सेंध मारी। विशेष रूप से बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद यह वर्ग कांग्रेस से दूर हो गया। ऐसे में कांग्रेस की ओर से ब्राह्मण चेहरे के रूप में एक स्थापित शख्सियत को मैदान में उतार कर फिर से ब्राह्मणों को जोडऩे की कोशिश की गई है।
जहां तक शीला की शख्सियत का सवाल है, बेशक वे एक अनुभवी राजनीतिज्ञ हैं। देश की राजधानी जैसे राज्य में लगातार पंद्रह साल तक मुख्यमंत्री रहना अपने आप में एक उपलब्धि है। स्पष्ट है कि उन्हें राजनीति के सब दावपेच आते हैं। कांग्रेस हाईकमान से पारीवारिक नजदीकी भी किसी से छिपी हुई नहीं है। इसी वजह से वे कांग्रेस में एक प्रभावशाली नेता के रूप में स्थापित हैं। हालांकि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस में जबरदस्त गुटबाजी है, मगर शीला दीक्षित इतना बड़ा नाम है कि किसी को उन पर ऐतराज करना उतना आसान नहीं रहेगा। इसे यूं भी कहा जा सकता है कि उनके नाम पर सर्वसम्मति बनाना बहुत कठिन नहीं होगा।
शीला दीक्षित का उत्तर प्रदेश से पूर्व का कनैक्शन होना भी उन्हें दावेदार बनाने का एक कारण है। शीला का जन्म पंजाब के कपूरथला  में हुआ है, मगर उनकी शादी उत्तर प्रदेश में हुई। उन्होंने बंगाल के राज्यपाल रहे उमा शंकर दीक्षित के पुत्र आईएएस विनोद दीक्षित से शादी की। विनोद जब वे आगरा के कलेक्टर थे, तब शीला समाजसेवा में जुट गईं और बाद में  राजनीति में आ गईं। 1984-89 के दरम्यान कन्नौज से सांसद भी रही।
जहां तक राज बब्बर को प्रदेश अध्यक्ष बनाने का सवाल है, वह भी एक नया प्रयोग है। कांग्रेस उनके ग्लैमर का लाभ उठाना चाहती है। लाभ मिलेगा या नहीं, ये तो वक्त ही बताएगा। अन्य दलों में बंटे जातीय समूहों के कारण उत्तर प्रदेश का जातीय समीकरण ऐसा है कि किसी चमत्कार की उम्मीद करना  ठीक नहीं होगा, मगर परफोरमेंस जरूर बेहतर हो सकती है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
8094767000