तेजवानी गिरधर |
खबर में दम भरने के लिए बाकायदा तर्क भी दिया गया है। वो यह कि पिछले विधानसभा चुनाव में रसातल में पहुंच चुकी कांग्रेस को सजीव करने के लिए सचिन ने एडी से चोटी का जोर लगा रखा है। यह सच भी है। वाकई सचिन की मेहनत के बाद आज स्थिति ये है कि इस धारणा को बल मिलने लगा है कि अगली सरकार कांग्रेस की ही होगी। दूसरी ओर पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के समर्थक लगातार गहलोत-गहलोत की रट लगाए हुए हैं। अर्थात रोटी तो पकाएं सचिन व खाएं गहलोत। भाजपा सचिन व गहलोत के बीच की कथित नाइत्तफाकी का लाभ लेना चाहती है। वह सचिन के दिमाग में बैठाना चाहती है कि कांग्रेस के लिए दिन रात एक करने के बाद भी ऐन वक्त पर कांग्रेस गहलोत को मुख्यमंत्री बना सकती है। ऐसे में बेहतर ये है कि भाजपा में चले आओ।
राजस्थान वासियों के लिए यह खबर हजम करने के लायक नहीं है, मगर भाजपा ने उत्तर प्रदेश सहित अन्य राज्यों में जो प्रयोग किया, उससे लगता है कि वह सत्ता की खातिर किसी भी हद तक जा सकती है। वैसे भी उसे अब कांग्रेसियों से कोई परहेज नहीं है। भाजपा व मोदी को पानी पी पी कर कोसने वालों से भी नहीं। ज्ञातव्य है कि चुनाव से कुछ समय पूर्व ही उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रीता बहुगुणा भाजपा में शामिल हो गई थीं। उसके सकारात्मक परिणाम भी आए। उन्हें बाकायदा ईनाम भी दिया गया। संभव है भाजपा ऐसा ही प्रयोग राजस्थान में दोहराना चाहती हो। वह जानती है कि सचिन इस वक्त राजस्थान में कांग्रेस के यूथ आइकन हैं। ऊर्जा से लबरेज हैं। उनके नेतृत्व में कांग्रेस सत्ता पर काबिज भी हो सकती है। अगर वह उन्हें तोडऩे में कामयाब हो गई तो राजस्थान में कांग्रेस की कमर टूट जाएगी। वे गुर्जर समाज के दिग्गज नेता भी हैं। उनके जरिए परंपरागत कांग्रेसी गुर्जर वोटों में भी सेंध मारी जा सकती है। हालांकि इस बात की संभावना कम ही है कि सचिन भाजपा का ऑफर स्वीकार करें, मगर इस खबर से यह संकेत तो मिलता ही है कि भाजपा राजस्थान में जीत हासिल करने के लिए कांग्रेस में तोडफ़ोड़ के मूड में है।
-तेजवानी गिरधर
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