पिछले कुछ माह में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की ओर से की गई मशक्कत के बाद बदले माहौल से कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को अब जा कर उम्मीद जागी है कि इस बार राजस्थान में फिर से कांग्रेस की सरकार बनाई जा सकती है, इसी कारण उन्होंने यहां पर विशेष ध्यान देना शुरू कर दिया है। इसी सिलसिले में उनके निर्देशन में बनी चुनाव अभियान समिति और घोषणा पत्र समिति को पूरी तरह से संतुलित बनाया गया और उसके बाद प्रदेश के सभी बड़े नेताओं की बैठक भी ली। इस बैठक में उनका सारा जोर इसी बात पर था कि राजस्थान में कांग्रेस की जीत सुनिश्चित है, मगर उसके लिए सभी कांग्रेस नेताओं को एकजुट होना होगा। हालांकि सच्चाई यह भी है कि ऊपर भले ही वे गुटबाजी पर कुछ अंकुश लगाने में कामयाब हो जाएं, मगर निचले स्तर यदि खींचतान जारी रही तो परिणाम सुखद नहीं आ पाएंगे।
असल में आज से छह माह पहले तक जनता को ऐसा लग रहा था कि भाजपा बढ़त की स्थिति में हैं और आगामी सरकार भाजपा की ही बनेगी। भाजपाइयों को भी पूरा यकीन था कि अब वे सत्ता का काबिज होने ही जा रहे हैं। वस्तुत: इसकी एक वजह ये भी थी कि भ्रष्टाचार और महंगाई के कारण देशभर में यह माहौल बना कि कांग्रेस तो गई रसातल में। उसका प्रतिबिंब राजस्थान में भी दिखाई देने लगा। भाजपाई भी अति उत्साहित थी कि अब तो हम आ ही रहे हैं। रहा सवाल राज्य सरकार के कामकाज का तो वह था तो ठीकठाक, मगर उसका प्रोजेक्शन कमजोर था। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को भी उम्मीद थी कि उन्होंने पिछले चार साल में जो जनहितकारी काम किए हैं, उसकी वजह से जनता उनके साथ रहेगी, मगर सर्वे से यह सामने आया कि आम जन तक कांग्रेस सरकार के कामकाज का प्रचार ठीक से नहीं हुआ है। इस पर खुद गहलोत ने कांग्रेस संदेश यात्रा निकालने का जिम्मा उठाया। प्रदेशभर के दौरे पर निकले गहलोत ने जनता को बताया कि सरकार ने उनके लिए कांग्रेस घोषणा पत्र के अनुरूप कितने काम किए हैं। साथ ही कुछ और लोकलुभावन योजनाओं पर भी अमल शुरू कर दिया। हालाकि इसी दौरान प्रदेश भाजपा अध्यक्ष श्रीमती वसुंधरा राजे भी सुराज संकल्प यात्रा ले कर निकलीं, मगर वे जिस तरह से गहलोत पर निजी व झूठे आरोप लगाने लगी तो जनता में यह धारणा बनती गई कि पूरे चार साल राज्य से बाहर रहने के बाद अब वे फिर से सत्ता में आने के लिए ही ऐसे आरोप लगा रही हैं। उनके आरोपों की धार तो तेज रही, मगर उसकी मार उतनी नजर नहीं आई। जुमले उनके तगड़े थे, मगर वे केवल भाषणों में ही सुहावने नजर आए, धरातल पर उसकी गंभीरता कम रही। खुद भाजपाई भी मानने लगे हैं कि इस बार वसुंधरा की यात्रा पहले जैसी कामयाब नहीं रही है। एक और उल्लेखनीय पहलू ये रहा कि पिछले छह में जब सरकार के कार्यक्रमों की क्रियान्विति के परिणाम सामने आने लगे तो जनता को समझ में आ गया कि सरकार उनके लिए गंभीरता से उनके लिए काम कर रही है। स्वाभाविक रूप से विभिन्न वर्गों को मिल रहे आर्थिक लाभ से माहौल बदला है। हालांकि इससे चिढ़ कर वसुंधरा ने यह आरोप लगाना शुरू किया कि सरकार खजाना लुटा रही है, मगर उनके पास इसका कोई जवाब नहीं है कि यह खजाना आखिरकार गरीब जनता के लिए ही तो उपयोग में आ रहा है। कुछ मिला कर अब माहौल साफ होने लगा है कि कांग्रेस सरकार से जनता उतनी नाखुश नहीं है, जितना की प्रचार किया गया था। अब तो मीडिया के सर्वे भी कहने लगे हैं कि राजस्थान में कांग्रेस व भाजपा टक्कर में हैं। यानि कि कुछ माह में कांग्रेस ने अपने ग्राफ में कुछ सुधार किया है। भाजपा को भी समझ में आ गया है कि उनके बहकावे में जनता नहीं आ रही है। अब वह कुछ नए हथकंडे खेलने पर विचार कर रही है, जिनकी कल्पना करना कम से कम कांग्रेस के बस की तो बात नहीं।
बहरहाल, राहुल गांधी को यह फीडबैक मिल चुका है कि सरकार का परफोरमेंस तो ठीक है और राज्य में माहौल भी प्रतिकूल नहीं है, मगर गुटबाजी जारी रही तो सरकार का लौटना मुश्किल होगा। इस कारण वे अब सारा जोर गुटबाजी समाप्त करने और सभी गुटों को संतुष्ट करने में जुट गए हैं। हाल ही घोषित चुनाव संचालन समिति और घोषणा पत्र समिति में जिस प्रकार मुख्य धारा से हट कर चल रहे नेताओं को शामिल गया है, उनको भी शामिल किए जाने से यह संदेश गया है कि राहुल किसी भी सूरत में केवल गुटबाजी के कारण सरकार गंवाना नहीं चाहते। डेमेज कंट्रोल में कुछ कामयाबी भी हासिल हुई है, इसका एक संकेत देखिए कि जेल में बंद पूर्व जलदाय मंत्री महिपाल मदेरणा की पुत्री दिव्या मदेरणा तक का सुर बदल गया है, जो कि अब तक सरकार को लगातार घेरती रही थीं। समझा जाता है कि आने वाले दिनों में गुटबाजी समाप्त करने के कुछ और कदम सामने आ सकते हैं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
असल में आज से छह माह पहले तक जनता को ऐसा लग रहा था कि भाजपा बढ़त की स्थिति में हैं और आगामी सरकार भाजपा की ही बनेगी। भाजपाइयों को भी पूरा यकीन था कि अब वे सत्ता का काबिज होने ही जा रहे हैं। वस्तुत: इसकी एक वजह ये भी थी कि भ्रष्टाचार और महंगाई के कारण देशभर में यह माहौल बना कि कांग्रेस तो गई रसातल में। उसका प्रतिबिंब राजस्थान में भी दिखाई देने लगा। भाजपाई भी अति उत्साहित थी कि अब तो हम आ ही रहे हैं। रहा सवाल राज्य सरकार के कामकाज का तो वह था तो ठीकठाक, मगर उसका प्रोजेक्शन कमजोर था। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को भी उम्मीद थी कि उन्होंने पिछले चार साल में जो जनहितकारी काम किए हैं, उसकी वजह से जनता उनके साथ रहेगी, मगर सर्वे से यह सामने आया कि आम जन तक कांग्रेस सरकार के कामकाज का प्रचार ठीक से नहीं हुआ है। इस पर खुद गहलोत ने कांग्रेस संदेश यात्रा निकालने का जिम्मा उठाया। प्रदेशभर के दौरे पर निकले गहलोत ने जनता को बताया कि सरकार ने उनके लिए कांग्रेस घोषणा पत्र के अनुरूप कितने काम किए हैं। साथ ही कुछ और लोकलुभावन योजनाओं पर भी अमल शुरू कर दिया। हालाकि इसी दौरान प्रदेश भाजपा अध्यक्ष श्रीमती वसुंधरा राजे भी सुराज संकल्प यात्रा ले कर निकलीं, मगर वे जिस तरह से गहलोत पर निजी व झूठे आरोप लगाने लगी तो जनता में यह धारणा बनती गई कि पूरे चार साल राज्य से बाहर रहने के बाद अब वे फिर से सत्ता में आने के लिए ही ऐसे आरोप लगा रही हैं। उनके आरोपों की धार तो तेज रही, मगर उसकी मार उतनी नजर नहीं आई। जुमले उनके तगड़े थे, मगर वे केवल भाषणों में ही सुहावने नजर आए, धरातल पर उसकी गंभीरता कम रही। खुद भाजपाई भी मानने लगे हैं कि इस बार वसुंधरा की यात्रा पहले जैसी कामयाब नहीं रही है। एक और उल्लेखनीय पहलू ये रहा कि पिछले छह में जब सरकार के कार्यक्रमों की क्रियान्विति के परिणाम सामने आने लगे तो जनता को समझ में आ गया कि सरकार उनके लिए गंभीरता से उनके लिए काम कर रही है। स्वाभाविक रूप से विभिन्न वर्गों को मिल रहे आर्थिक लाभ से माहौल बदला है। हालांकि इससे चिढ़ कर वसुंधरा ने यह आरोप लगाना शुरू किया कि सरकार खजाना लुटा रही है, मगर उनके पास इसका कोई जवाब नहीं है कि यह खजाना आखिरकार गरीब जनता के लिए ही तो उपयोग में आ रहा है। कुछ मिला कर अब माहौल साफ होने लगा है कि कांग्रेस सरकार से जनता उतनी नाखुश नहीं है, जितना की प्रचार किया गया था। अब तो मीडिया के सर्वे भी कहने लगे हैं कि राजस्थान में कांग्रेस व भाजपा टक्कर में हैं। यानि कि कुछ माह में कांग्रेस ने अपने ग्राफ में कुछ सुधार किया है। भाजपा को भी समझ में आ गया है कि उनके बहकावे में जनता नहीं आ रही है। अब वह कुछ नए हथकंडे खेलने पर विचार कर रही है, जिनकी कल्पना करना कम से कम कांग्रेस के बस की तो बात नहीं।
बहरहाल, राहुल गांधी को यह फीडबैक मिल चुका है कि सरकार का परफोरमेंस तो ठीक है और राज्य में माहौल भी प्रतिकूल नहीं है, मगर गुटबाजी जारी रही तो सरकार का लौटना मुश्किल होगा। इस कारण वे अब सारा जोर गुटबाजी समाप्त करने और सभी गुटों को संतुष्ट करने में जुट गए हैं। हाल ही घोषित चुनाव संचालन समिति और घोषणा पत्र समिति में जिस प्रकार मुख्य धारा से हट कर चल रहे नेताओं को शामिल गया है, उनको भी शामिल किए जाने से यह संदेश गया है कि राहुल किसी भी सूरत में केवल गुटबाजी के कारण सरकार गंवाना नहीं चाहते। डेमेज कंट्रोल में कुछ कामयाबी भी हासिल हुई है, इसका एक संकेत देखिए कि जेल में बंद पूर्व जलदाय मंत्री महिपाल मदेरणा की पुत्री दिव्या मदेरणा तक का सुर बदल गया है, जो कि अब तक सरकार को लगातार घेरती रही थीं। समझा जाता है कि आने वाले दिनों में गुटबाजी समाप्त करने के कुछ और कदम सामने आ सकते हैं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
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