राजस्थान में भाजपा के जिन दिग्गज गुलाब चंद कटारिया की मेवाड़ यात्रा को लेकर पार्टी में बड़ा भूचाल आ चुका है, जिसकी प्रतिध्वनि आज तक गूंज रही है, वे ही अपनी स्थगित यात्रा को फिर से आरंभ कर चुके हैं तो सभी का चौंकना स्वाभाविक ही है। जो भाजपा कार्यकर्ता यह मान कर चल चुके हैं कि भारी विरोध के बाद भी चुनाव की कमान वसुंधरा के हाथों में होगी, इस नए पैंतरे को देख कर समझ ही नहीं पा रहे हैं कि पार्टी में आखिर ये हो क्या रहा है?
ज्ञातव्य है कि पिछली बार जब उन्होंने यात्रा निकालने का ऐलान किया था तो राजसमंद की विधायक श्रीमती किरण माहेश्वरी ने क्षेत्रीय वर्चस्व को लेकर उसका कड़ा विरोध किया और मामला इतना गरमाया कि उसे पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे ने अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ लिया। अपने बहुसंख्यक विधायकों के इस्तीफे एकत्रित कर उन्होंने हाईकमान को सकते में ला दिया था। इस पर पार्टी हित की दुहाई देते हुए कटारिया ने यात्रा स्थगित करने की घोषणा कर दी, तब जा कर मामला कुछ ठंडा पड़ा। अब जब कि वे फिर से पार्टी हित के नाम पर निजी स्तर पर यात्रा पर निकल चुके हैं तो इसका अर्थ यही लगाया जा रहा है कि पार्टी का एक धड़ा वसुंधरा के एकछत्र प्रभुत्व को स्वीकार करने को तैयार नहीं है। यह वही धड़ा है, जो बार-बार यह कह कर वसुंधरा खेमे के साथ छेडख़ानी करता है कि अगला चुनाव किसी एक व्यक्ति के नेतृत्व में नहीं लड़ा जाएगा। दूसरी ओर वसुंधरा खेमे का पूरा जोर इसी बात पर है कि वसुंधरा को ही भावी मुख्यमंत्री घोषित करके चुनाव लड़ा जाएगा। वसुंधरा के खासमखास सिपहसालार राजेन्द्र सिंह राठौड़ ने तो यहां तक कह दिया कि राजस्थान में वसुंधरा ही भाजपा हैं और भाजपा ही वसुंधरा है। इसको लेकर बड़ी बहस छिड़ गई थी। इसी टकराव के बीच कटारिया की यात्रा सीधे-सीधे वसुंधरा को मुंह चिढ़ाने जैसा है। अजमेर के भाजपा विधायक व पूर्व शिक्षा राज्य मंत्री प्रो.वासुदेव देवनानी ने भी उनकी यात्रा को सही ठहरा कर संकेत दे दिया कि वसुंधरा खेमा आगामी चुनाव के मद्देनजर लामबंद होने लगा है। उसी का परिणाम है कि पिछले दिनों इस बात पर बड़ा विवाद हुआ था कि वसुंधरा अपने महल में टिकट के दावेदारों का फीड बैक कैसे ले रही हैं। यह काम तो पार्टी के स्तर पर होना चाहिए। कटारिया ने तो चलो सीधी टक्कर सी ली है, मगर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी व ललित किशोर चतुर्वेदी तक भी कई बार दुहरा चुके हैं कि आगामी चुनाव सामूहिक नेतृत्व में लड़ा जाएगा। उन्हीं के सुर में सुर मिलाते हुए हाल ही वरिष्ठ नेता रामदास अग्रवाल ने भी वी से वी तक का जुमला इस्तेमाल कर साफ किया था कि कोई भी व्यक्ति पार्टी से ऊपर नहीं है। इन सारी गतिविधियों से यह जाहिर होता कि कि संघपृष्ठभूमि के नेता वसुंधरा को फ्री हैंड नहीं लेने देंगे। वे पूरा दबाव बना कर अपने धड़े के लिए अधिक से अधिक टिकटें झटकना चाहते हैं। कदाचित वे अपने खेमे के एक नेता को उपमुख्यमंत्री बनाने की शर्त रख दें।
-तेजवानी गिरधर
ज्ञातव्य है कि पिछली बार जब उन्होंने यात्रा निकालने का ऐलान किया था तो राजसमंद की विधायक श्रीमती किरण माहेश्वरी ने क्षेत्रीय वर्चस्व को लेकर उसका कड़ा विरोध किया और मामला इतना गरमाया कि उसे पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे ने अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ लिया। अपने बहुसंख्यक विधायकों के इस्तीफे एकत्रित कर उन्होंने हाईकमान को सकते में ला दिया था। इस पर पार्टी हित की दुहाई देते हुए कटारिया ने यात्रा स्थगित करने की घोषणा कर दी, तब जा कर मामला कुछ ठंडा पड़ा। अब जब कि वे फिर से पार्टी हित के नाम पर निजी स्तर पर यात्रा पर निकल चुके हैं तो इसका अर्थ यही लगाया जा रहा है कि पार्टी का एक धड़ा वसुंधरा के एकछत्र प्रभुत्व को स्वीकार करने को तैयार नहीं है। यह वही धड़ा है, जो बार-बार यह कह कर वसुंधरा खेमे के साथ छेडख़ानी करता है कि अगला चुनाव किसी एक व्यक्ति के नेतृत्व में नहीं लड़ा जाएगा। दूसरी ओर वसुंधरा खेमे का पूरा जोर इसी बात पर है कि वसुंधरा को ही भावी मुख्यमंत्री घोषित करके चुनाव लड़ा जाएगा। वसुंधरा के खासमखास सिपहसालार राजेन्द्र सिंह राठौड़ ने तो यहां तक कह दिया कि राजस्थान में वसुंधरा ही भाजपा हैं और भाजपा ही वसुंधरा है। इसको लेकर बड़ी बहस छिड़ गई थी। इसी टकराव के बीच कटारिया की यात्रा सीधे-सीधे वसुंधरा को मुंह चिढ़ाने जैसा है। अजमेर के भाजपा विधायक व पूर्व शिक्षा राज्य मंत्री प्रो.वासुदेव देवनानी ने भी उनकी यात्रा को सही ठहरा कर संकेत दे दिया कि वसुंधरा खेमा आगामी चुनाव के मद्देनजर लामबंद होने लगा है। उसी का परिणाम है कि पिछले दिनों इस बात पर बड़ा विवाद हुआ था कि वसुंधरा अपने महल में टिकट के दावेदारों का फीड बैक कैसे ले रही हैं। यह काम तो पार्टी के स्तर पर होना चाहिए। कटारिया ने तो चलो सीधी टक्कर सी ली है, मगर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी व ललित किशोर चतुर्वेदी तक भी कई बार दुहरा चुके हैं कि आगामी चुनाव सामूहिक नेतृत्व में लड़ा जाएगा। उन्हीं के सुर में सुर मिलाते हुए हाल ही वरिष्ठ नेता रामदास अग्रवाल ने भी वी से वी तक का जुमला इस्तेमाल कर साफ किया था कि कोई भी व्यक्ति पार्टी से ऊपर नहीं है। इन सारी गतिविधियों से यह जाहिर होता कि कि संघपृष्ठभूमि के नेता वसुंधरा को फ्री हैंड नहीं लेने देंगे। वे पूरा दबाव बना कर अपने धड़े के लिए अधिक से अधिक टिकटें झटकना चाहते हैं। कदाचित वे अपने खेमे के एक नेता को उपमुख्यमंत्री बनाने की शर्त रख दें।
-तेजवानी गिरधर