राजस्थान में नए जिले बनाने को लेकर सरकार कितनी गंभीर है, इसका अंदाजा इसी बात से लग रहा है कि इसके लिए गठित समिति ने अपनी रिपोर्ट देने के लिए तीन माह का और समय मांग लिया है। यानि कि फिलहाल सब्र करना होगा और आगामी विधानसभा चुनाव से पहले होने वाले बजट सत्र तक आशा को मन में संजो कर रखना होगा।
इस मुद्दे पर एचबीसी न्यूज चैनल के डीडवाना संवाददाता हनु तंवर निशब्द ने फेसबुक पर लिखा है कि राज्य सरकार नए जिलों की घोषणा के लिए श्री जीएस संधू की अध्यक्षता में बनाई गई विशेष समिति ने जिलों की घोषणा से सम्बंधित रिपोर्ट के लिए तीन माह का समय और मांगा है । अभी तक इस समिति के पास 31 दिसंबर तक का समय था जिसमें समिति को नए जिलों के प्रस्ताव सरकार को देने थे । गत बजट में राज्य सरकार ने नए जिले बनाने के लिए एक समिति गठन करने की घोषणा की थी बजट में इस समिति को सितम्बर में रिपोर्ट देनी थी लेकिन इस अवधि को बढाकर बाद में दिसंबर कर दिया गया लेकिन दिसंबर में भी समिति अपनी रिपोर्ट नहीं दे पायेगी । एक तरफ जहाँ राज्य सरकार ने नए जिलों की मांग कर रहे कस्बो को और आम नागरिकों को इस घोषणा के बाद बड़े बड़े आयोजन करके शक्ति प्रदर्शनों के लिए मजबूर कर दिया वहीँ अब सरकार इन घोषणाओं को रोक कर जनता की भावनाओं के साथ कुठारघात कर रही है । मिडिया के जरिये बार बार सरकार जनता को भ्रमित भी करने की कोशिश कर रही है । जिले बनाने की क़तार में खड़े शहरों की आम जनता सरकार के चार वर्ष पूर्ण करने के समारोह को बड़ी आशा की नज़रों से देख रहे थे लेकिन 13 तारिख निकलते ही इन शहरों की जनता की भावनाओ के साथ एक बार और कुठारघात हुआ और जिलों की घोषणा नहीं हुई । लेकिन लोगों को आशा अभी भी है की चुनाव से पूर्व आने वाले बजट में सरकार इन जिलों की घोषणा अवश्य करेगी । लेकिन अगर ऐसा नहीं हुआ तो यह अवश्य ही जनता की भावनाओ के साथ खिलवाड़ होगा और इसमे कोई अतिस्योक्ति नहीं होगी की जनता इसका हिसाब चुनावों में अवश्य चुकाएगी।
निशब्द की इस टिप्पणी पर प्रतिटिप्पणी करते हुए केकड़ी के पत्रकार पीयूष राठी ये विचार जाहिर किए हैं:- चाहे ये शहर जिले बने न बने मगर जनता को तो क्षेत्रीय राजनेताओ और सरकार ने एक झुनझुना पकड़ा ही दिया है और इस झुनझुने को पत्रकारों द्वारा भी बड़े जोश फरोश के साथ हिलाया जा रहा है...और जैसे एक मदारी अपना खेल दिखाने से पूर्व झुनझुना हिला कर लोगो का आकर्षण प्राप्त करता है ठीक वैसे ही हालात इन शहरों में निवास कर रही जनता के है...जिला बने न बने मगर ये अपनी डफली बजा कर एक मांग जर्रूर कर लेंगे की भाई इस बार तो तकनीकी खामिया रह गयी एक बार और जीता दो तो जिला बनने से इस क्षेत्र को कोई नहीं रोक सकता...मगर ये पब्लिक है सब जानती है....
एक समाचार पत्र के सर्वे के अनुसार राजस्थान में मौजूदा क्षेत्रीय विधायकों से उनकी क्षेत्रीय जनता काफी नाखुश है....अब देखो आखिर क्या होता है जिलों का....या फिर ये जिल्जिला ही रह जाता है....
कुल मिला कर यह माना जा सकता है कि सरकार कभी अपना स्टैंड साफ नहीं करती और लोगों को झुनझुना पकड़ा देती है। ब्यावर को जिला बनाने की मांग को ही लीजिए। यह मांग पिछले बीस साल से हो रही है। कांग्रेस व भाजपा, दोनों के ही नेताओं स्वर्गीय भैरोंसिंह शेखावत व अशोक गहलोत ने आश्वासन दे कर वोट हासिल किए और बाद में चुप्पी साध ली। ब्यावर अभी जिला बना नहीं और उससे पहले ही केकड़ी के विधायक व सरकारी मुख्य सचेतक डॉ. रघु शर्मा ने अगला चुनाव जीतने के लिए केकड़ी को जिला बनवाने का वादा कर दिया। अब देखना ये है कि क्या आगामी बजट सत्र में इस पर कुछ होता है या नहीं।
-तेजवानी गिरधर
इस मुद्दे पर एचबीसी न्यूज चैनल के डीडवाना संवाददाता हनु तंवर निशब्द ने फेसबुक पर लिखा है कि राज्य सरकार नए जिलों की घोषणा के लिए श्री जीएस संधू की अध्यक्षता में बनाई गई विशेष समिति ने जिलों की घोषणा से सम्बंधित रिपोर्ट के लिए तीन माह का समय और मांगा है । अभी तक इस समिति के पास 31 दिसंबर तक का समय था जिसमें समिति को नए जिलों के प्रस्ताव सरकार को देने थे । गत बजट में राज्य सरकार ने नए जिले बनाने के लिए एक समिति गठन करने की घोषणा की थी बजट में इस समिति को सितम्बर में रिपोर्ट देनी थी लेकिन इस अवधि को बढाकर बाद में दिसंबर कर दिया गया लेकिन दिसंबर में भी समिति अपनी रिपोर्ट नहीं दे पायेगी । एक तरफ जहाँ राज्य सरकार ने नए जिलों की मांग कर रहे कस्बो को और आम नागरिकों को इस घोषणा के बाद बड़े बड़े आयोजन करके शक्ति प्रदर्शनों के लिए मजबूर कर दिया वहीँ अब सरकार इन घोषणाओं को रोक कर जनता की भावनाओं के साथ कुठारघात कर रही है । मिडिया के जरिये बार बार सरकार जनता को भ्रमित भी करने की कोशिश कर रही है । जिले बनाने की क़तार में खड़े शहरों की आम जनता सरकार के चार वर्ष पूर्ण करने के समारोह को बड़ी आशा की नज़रों से देख रहे थे लेकिन 13 तारिख निकलते ही इन शहरों की जनता की भावनाओ के साथ एक बार और कुठारघात हुआ और जिलों की घोषणा नहीं हुई । लेकिन लोगों को आशा अभी भी है की चुनाव से पूर्व आने वाले बजट में सरकार इन जिलों की घोषणा अवश्य करेगी । लेकिन अगर ऐसा नहीं हुआ तो यह अवश्य ही जनता की भावनाओ के साथ खिलवाड़ होगा और इसमे कोई अतिस्योक्ति नहीं होगी की जनता इसका हिसाब चुनावों में अवश्य चुकाएगी।
निशब्द की इस टिप्पणी पर प्रतिटिप्पणी करते हुए केकड़ी के पत्रकार पीयूष राठी ये विचार जाहिर किए हैं:- चाहे ये शहर जिले बने न बने मगर जनता को तो क्षेत्रीय राजनेताओ और सरकार ने एक झुनझुना पकड़ा ही दिया है और इस झुनझुने को पत्रकारों द्वारा भी बड़े जोश फरोश के साथ हिलाया जा रहा है...और जैसे एक मदारी अपना खेल दिखाने से पूर्व झुनझुना हिला कर लोगो का आकर्षण प्राप्त करता है ठीक वैसे ही हालात इन शहरों में निवास कर रही जनता के है...जिला बने न बने मगर ये अपनी डफली बजा कर एक मांग जर्रूर कर लेंगे की भाई इस बार तो तकनीकी खामिया रह गयी एक बार और जीता दो तो जिला बनने से इस क्षेत्र को कोई नहीं रोक सकता...मगर ये पब्लिक है सब जानती है....
एक समाचार पत्र के सर्वे के अनुसार राजस्थान में मौजूदा क्षेत्रीय विधायकों से उनकी क्षेत्रीय जनता काफी नाखुश है....अब देखो आखिर क्या होता है जिलों का....या फिर ये जिल्जिला ही रह जाता है....
कुल मिला कर यह माना जा सकता है कि सरकार कभी अपना स्टैंड साफ नहीं करती और लोगों को झुनझुना पकड़ा देती है। ब्यावर को जिला बनाने की मांग को ही लीजिए। यह मांग पिछले बीस साल से हो रही है। कांग्रेस व भाजपा, दोनों के ही नेताओं स्वर्गीय भैरोंसिंह शेखावत व अशोक गहलोत ने आश्वासन दे कर वोट हासिल किए और बाद में चुप्पी साध ली। ब्यावर अभी जिला बना नहीं और उससे पहले ही केकड़ी के विधायक व सरकारी मुख्य सचेतक डॉ. रघु शर्मा ने अगला चुनाव जीतने के लिए केकड़ी को जिला बनवाने का वादा कर दिया। अब देखना ये है कि क्या आगामी बजट सत्र में इस पर कुछ होता है या नहीं।
-तेजवानी गिरधर
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