भाजपा ने अध्यक्ष नितिन गडकरी से इस्तीफे की मांग सार्वजनिक रूप से करके अनुशासन तोडऩे को लेकर निलंबित किए गए राज्यसभा सांसद और जाने-माने वकील राम जेठमलानी को निष्कासित करने की बजाय फिलहाल कारण बताओ नोटिस ही जारी किया है। ऐसा तब हुआ है, जबकि जेठमलानी खुल कर कह चुके हैं कि उन्हें पार्टी से निकालने का दम किसी में नहीं है। हालांकि माना यही जा रहा था कि संसदीय बोर्ड की बैठक में उन्हें पार्टी से बाहर करने का निर्णय किया जाएगा, मगर समझा जाता है कि पार्टी इसकी हिम्मत नहीं जुटा पाई। कदाचित ऐसा कानूनी पेचीदगी से बचने के लिए भी किया गया है। कहने की जरूरत नहीं है कि जेठमलानी कानून के कीड़े हैं।
गौरतलब है कि जेठमलानी एक ओर जहां पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी के इस्तीफे की मांग पर अड़े हुए हैं, वहीं सीबीआई के नए डायरेक्टर की नियुक्ति पर पार्टी से अलग राय जाहिर करके पार्टी नेताओं की किरकिरी कर चुके हैं। इतना ही नहीं जब उनसे पूछा गया कि उनके इस रवैये पर पार्टी उन्हें बाहर का रास्ता दिखा सकती है तो उन्होंने अपने तेवर और तीखे करते हुए पार्टी हाईकमान को चुनौती देते हुए कहा था कि उन्हें पार्टी से निकालने का दम किसी में नहीं है। इस चुनौती के बाद भी यदि पार्टी का रुख कुछ नरम दिखा तो यही माना गया कि जरूर उनके पास पार्टी के नेताओं की कोई नस दबी हुई है। गडकरी के खिलाफ तो वे कह भी चुके हैं कि उनके पास सबूत हैं।
ऐसा नहीं है कि जेठमलानी ने पहली बार पार्टी को मुसीबत में डाला है। इससे पहले भी वे कई बार पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोल चुके हैं। उन्होंने भाजपाइयों के आदर्श वीर सावरकर की तुलना पाकिस्तान के संस्थापक जिन्ना से की थी। इतना ही नहीं उन्होंने उन्हीं जिन्ना को इंच-इंच धर्मनिरपेक्ष तक करार दे दिया था, जिनकी मजार शरीफ पर उन्हें धर्मनिरपेक्ष कहने पर लाल कृष्ण आडवाणी को अध्यक्ष पद छोडऩा पड़ गया था। असल में जेठमलानी पार्टी के अनुशासन में कभी नहीं बंधे। पार्टी की मनाही के बाद भी उन्होंने इंदिरा गांधी के हत्यारों का केस लड़ा। इतना ही नहीं उन्होंने संसद पर हमला करने वाले अफजल गुरु को फांसी नहीं देने की वकालत की, जबकि भाजपा अफजल को फांसी देने के लिए आंदोलन चला रही है। वे भाजपा के खिलाफ किस सीमा तक चले गए, इसका सबसे बड़ा उदाहरण ये रहा कि वे पार्टी के शीर्ष नेता अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ ही चुनाव मैदान में उतर गए। ऐसा व्यक्ति जब राज्यसभा चुनाव में भाजपा के बैनर पर राजस्थान से जितवा कर भेजा गया तो सभी अचंभे में थे। अब जब कि वे फिर से बगावती तेवर दिखा रहे हैं तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनके पास जरूर कोई न कोई तगड़ा हथियार है, जिसका मुकाबला करने में पार्टी को जोर आ रहा है।
-तेजवानी गिरधर
गौरतलब है कि जेठमलानी एक ओर जहां पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी के इस्तीफे की मांग पर अड़े हुए हैं, वहीं सीबीआई के नए डायरेक्टर की नियुक्ति पर पार्टी से अलग राय जाहिर करके पार्टी नेताओं की किरकिरी कर चुके हैं। इतना ही नहीं जब उनसे पूछा गया कि उनके इस रवैये पर पार्टी उन्हें बाहर का रास्ता दिखा सकती है तो उन्होंने अपने तेवर और तीखे करते हुए पार्टी हाईकमान को चुनौती देते हुए कहा था कि उन्हें पार्टी से निकालने का दम किसी में नहीं है। इस चुनौती के बाद भी यदि पार्टी का रुख कुछ नरम दिखा तो यही माना गया कि जरूर उनके पास पार्टी के नेताओं की कोई नस दबी हुई है। गडकरी के खिलाफ तो वे कह भी चुके हैं कि उनके पास सबूत हैं।
ऐसा नहीं है कि जेठमलानी ने पहली बार पार्टी को मुसीबत में डाला है। इससे पहले भी वे कई बार पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोल चुके हैं। उन्होंने भाजपाइयों के आदर्श वीर सावरकर की तुलना पाकिस्तान के संस्थापक जिन्ना से की थी। इतना ही नहीं उन्होंने उन्हीं जिन्ना को इंच-इंच धर्मनिरपेक्ष तक करार दे दिया था, जिनकी मजार शरीफ पर उन्हें धर्मनिरपेक्ष कहने पर लाल कृष्ण आडवाणी को अध्यक्ष पद छोडऩा पड़ गया था। असल में जेठमलानी पार्टी के अनुशासन में कभी नहीं बंधे। पार्टी की मनाही के बाद भी उन्होंने इंदिरा गांधी के हत्यारों का केस लड़ा। इतना ही नहीं उन्होंने संसद पर हमला करने वाले अफजल गुरु को फांसी नहीं देने की वकालत की, जबकि भाजपा अफजल को फांसी देने के लिए आंदोलन चला रही है। वे भाजपा के खिलाफ किस सीमा तक चले गए, इसका सबसे बड़ा उदाहरण ये रहा कि वे पार्टी के शीर्ष नेता अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ ही चुनाव मैदान में उतर गए। ऐसा व्यक्ति जब राज्यसभा चुनाव में भाजपा के बैनर पर राजस्थान से जितवा कर भेजा गया तो सभी अचंभे में थे। अब जब कि वे फिर से बगावती तेवर दिखा रहे हैं तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनके पास जरूर कोई न कोई तगड़ा हथियार है, जिसका मुकाबला करने में पार्टी को जोर आ रहा है।
-तेजवानी गिरधर
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