गुजरात के मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण समारोह में मौजूद विभिन्न पार्टियों के दिग्गज नेताओं को देख कर मीडिया को लग रहा है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जेडीयू को छोड का पूरा एनडीए मोदी के साथ है और उसे मोदी के भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद की दावेदारी किए जाने पर ऐतराज नहीं करेगा। हालांकि इस प्रकार के कार्यक्रमों में आने को औपचारिकता ही माना जाता है, मगर समारोह में मौजूद नेताओं की लिस्ट पर नजर डालने के बाद मीडिया को उसमें 2014 के एनडीए की तस्वीर नजर आ रही है। नीतीश कुमार की गैर मौजूदगी का यह अर्थ निकाला गया है कि एनडीए की ओर से मोदी को प्रधानमंत्री के संभावित उम्मीदवार के रूप में प्रॉजेक्ट करने को लेकर उनके रुख में कोई बदलाव नहीं आया है।
उल्लेखनीय है कि समारोह में लालकृष्ण आडवाणी समेत बीजेपी के सभी दिग्गज नेता नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज, राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली, बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी, राजनाथ सिंह और वैंकेया नायडू, पार्टी शासित सभी राज्यों के मुख्यमंत्री मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमण सिंह, गोवा के सीएम मनोहर पार्रिकर, कर्नाटक के मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार और झारखंड के मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा के अलावा पंजाब के सीएम प्रकाश सिंह बादल तो मौजूद थे ही, आईएनएलडी के सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाल, तमिलनाडु की मुख्यमंत्री और एआईएडीएमके की नेता जे. जयललिता और एमएनएस नेता राज ठाकरे ने भी पहुंचकर भविष्य की राजनीति के संकेत दे दिए। सबसे चौंकाने वाली रही शिवसेना के कार्यकारी अध्यक्ष उद्धव ठाकरे, आरपीआई नेता रामदास अठावले और एमएनएस के मुखिया राज ठाकरे की एक साथ मौजूदगी। बुलाए गए लोगों में उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटानयक नहीं पहुंचे, पर जानकारी ये है कि वे मोदी के विरोध में नहीं हैं क्योंकि उन्होंने गुजरात की जीत के बाद मोदी को सबसे पहले बधाई दी थी। अलबत्ता मोदी के साथ खड़े होने से पहले नफा-नुकसान आकलन कर लेना चाहते हैं।
जहां पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का सवाल है, माना ये जा रहा है कि अपने मुस्लिम वोटों के जनाधार को ध्यान में रखते हुए उन्होंने आना मुनासिब नहीं समझा। वैसे अभी ये भी पता नहीं लग पाया है कि मोदी ने उन्हें निमंत्रण दिया भी था कि नहीं। हां, नीतीश के बारे में यही कहा जा रहा है कि उनके पूर्व के रवैये और जीत पर बधाई न देने के रुख को देखते हुए उन्हें शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने का आमंत्रण ही नहीं भेजा था।
कुल मिला कर मीडिया का आकलन है कि मोदी के इस शपथग्रहण समारोह ने उन्हें प्रधानमंत्री पद की दावेदारी करने की दिशा में कदम रखने का मार्ग प्रशस्त कर दिया है। अब भाजपा पर निर्भर है कि वह मोदी पर एकमत होती या नहीं।
-तेजवानी गिरधर
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