यह एक विंडबना ही कही जाएगी कि जहां एक ओर हिंदू समाज में भगवान श्रीकृष्ण को सर्वगुण संपन्न, चौसठ कला प्रवीण और योगीराज माना जाता है, वहीं दूसरी ओर उनकी जन्माष्ठमी के मौके पर कई छिछोरे उनके बारे में अनर्गल टिप्पणियां और चुटकलेबाजी करते हैं। इसको लेकर धर्मप्रमियों कड़ा को ऐतराज है। एक तरफ मनचले सोशल मीडिया पर उनको लेकर चुटकले शाया कर रहे हैं, तो दूसरी ओर कुछ लोग प्रतिकार में चेतावनी और सुझाव दे रहे हैं कि भगवान श्रीकृष्ण के बारे में अनर्गल टिप्पणियां न करें।
ये बात समझ से बाहर है कि हिंदू समाज में अपने ही आदर्शों व देवी-देवताओं की खिल्ली कैसे उड़ाई जाती है? एक ओर अपने आपको महान सनातन संस्कृति के वाहक मानते हैं तो दूसरी और संस्कारविहीन होते जा रहे हैं। एक ओर देवी-देवताओं के विशेष दिनों, यथा गणेश चतुर्थी, नवरात्री, महाशिवरात्री, श्रीकृष्ण जन्माष्ठमी इत्यादि पर आयोजनों की संख्या निरंतर बढ़ रही है। ऐसा प्रतीत होता है कि लोगों में धार्मिक भावना बढ़ती जा रही है। हर साल गरबों की संख्या बढ़ती जा रही है, नवरात्री पर मूर्ति विसर्जन के आयोजन दिन प्रति दिन बढ़ते जा रहे हैं, गणपति उत्सव के समापन पर गली गली से गणपति विसर्जन की यात्राएं निकलती हैं, शिव रात्री पर शिव मंदिरों पर भीड़ बढ़ती जा रही है। दूसरी ओर धर्म व नैतिकता का निरंतर हृास होता जा रहा है। साथ ही धार्मिक आयोजनों के नाम पर उद्दंडता का तांडव भी देखा जा सकता है। कानफोड़ डीजे की धुन पर नशे में मचलते युवकों को गुलाल में भूत बना देख कर अफसोस होता है। ये कैसा विरोधाभास है? ये कैसी धार्मिकता है? ये कैसी आस्था है? आखिर ऐसा हो क्यों रहा है? समझ से परे है। स्वाभाविक रूप से इसकी पीड़ा हर धार्मिक व्यक्ति को है, जिसका इजहार दिन दिनों सोशल मीडिया में खूब हो रहा है।
एक बानगी देखिए:-
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी आने वाली है...
एक मैसेज अभी सोशल मीडिया में चल रहा है, जिसमें प्रभु श्रीकृष्ण को टपोरी, लफड़ेबाज, मर्डरर, तड़ीपार इत्यादि कहा गया है।
अपने देवताओं को टपोरी बिलकुल भी ना कहें।
कृष्ण जी ने नाग देवता को नहीं बल्कि लोगों के प्राण लेने वाले उस दुष्ट हत्यारे कालिया नाग का मर्दन किया था, जिसके भय से लोगों ने यमुना नदी में जाना बन्द कर दिया था।
कंकड़ मार कर लड़कियां नहीं छेड़ते थे, अपितु दुष्ट कंस के यहां होने वाली मक्खन की जबरन वसूली को अपने तरीके से रोकते थे और स्थानीय निवासियों का पोषण करते थे। और दुष्ट चाहे अपना सगा ही क्यों न हो, पर यदि वो समाज को कष्ट पहुंचाने वाला हो तो उसको भी समाप्त करने में संकोच नहीं करना चाहिए, यह भगवान कृष्ण से सीखा है।
उनके 16000 लफड़े नहीं थे, नरकासुर की कैद से छुड़ाई गई स्त्रियां थीं, जिन्हें सम्भवत: समाज स्वीकार नहीं कर रहा था, उन्हें पत्नी का सम्मानजनक दर्जा दिया। वो भोगी नहीं योगी थे।
इसलिए उन्हें भगवान मानते हैं।
कृपया भविष्य में कभी भी किसी हिन्दू देवी देवता के लिये कोई अपमानजनक बात न तो प्रसारित करें और न ही करने दें। यदि यह संदेश किसी और ने आपको भेजा है तो उसे भी रोकें।
एक और बानगी देखिए, जिसमें एक कविता के माध्यम से श्रीकृष्ण के बारे में भद्दे संदेशों पर अफसोस जताया गया है:-
योगेश्वर श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर कुछ बेहद भद्दे सन्देश प्राप्त हुए, कृष्ण भगवान को लेकर, उन संदेशों को जवाब देती ये कविता
द्वारका के राजा सुनो , हम आज बड़े शर्मिंदा हैं,
भेड़चाल की रीत देखो आज तलक भी जिन्दा हैं
व्हाट्स एप के नाम पे देखो मची कैसी नौटंकी है,
मजाक आपका बनता है, ये बात बड़ी कलंकी है
दो कोड़ी के लोग यहां तुम्हें तड़ीपार बतलाते हैं,
अनजाने में ही सही, पर कितना पाप कर जाते हैं
जिनके मन में भरी हवस हो, महारास क्या जानेंगे,
कांटें भरे हो जिनके दिल, नरम घास क्या जानेंगे
जिनको खुद का पता नहीं, वो तेरा कैरेक्टर ढीला बोलेंगे,
जो खुद मन के काले हैं, वो तुझे रंगीला बोलेंगे
कालिया नाग भी ले अवतार तुझसे तरने आते थे,
तेरे जन्म पे स्वत: ही जेल के ताले खुल जाते थे
तूने प्रेम का बीज बोया गोकुल की हर गलियों में,
मुस्कान बिखेरी तूने कान्हा, सृष्टि की हर कलियों में
दुनिया का मालिक है तू, तुझे डॉन ये कहते हैं,
जाने क्यों तेरे भक्त सब सुन कर भी चुप रहते हैं
गोकुल की मुरली को छोड़, द्वारकाधीश का रूप धरो,
हुई शिशुपाल की सौ गाली पूरी, अब उसका संहार करो
ये बात समझ से बाहर है कि हिंदू समाज में अपने ही आदर्शों व देवी-देवताओं की खिल्ली कैसे उड़ाई जाती है? एक ओर अपने आपको महान सनातन संस्कृति के वाहक मानते हैं तो दूसरी और संस्कारविहीन होते जा रहे हैं। एक ओर देवी-देवताओं के विशेष दिनों, यथा गणेश चतुर्थी, नवरात्री, महाशिवरात्री, श्रीकृष्ण जन्माष्ठमी इत्यादि पर आयोजनों की संख्या निरंतर बढ़ रही है। ऐसा प्रतीत होता है कि लोगों में धार्मिक भावना बढ़ती जा रही है। हर साल गरबों की संख्या बढ़ती जा रही है, नवरात्री पर मूर्ति विसर्जन के आयोजन दिन प्रति दिन बढ़ते जा रहे हैं, गणपति उत्सव के समापन पर गली गली से गणपति विसर्जन की यात्राएं निकलती हैं, शिव रात्री पर शिव मंदिरों पर भीड़ बढ़ती जा रही है। दूसरी ओर धर्म व नैतिकता का निरंतर हृास होता जा रहा है। साथ ही धार्मिक आयोजनों के नाम पर उद्दंडता का तांडव भी देखा जा सकता है। कानफोड़ डीजे की धुन पर नशे में मचलते युवकों को गुलाल में भूत बना देख कर अफसोस होता है। ये कैसा विरोधाभास है? ये कैसी धार्मिकता है? ये कैसी आस्था है? आखिर ऐसा हो क्यों रहा है? समझ से परे है। स्वाभाविक रूप से इसकी पीड़ा हर धार्मिक व्यक्ति को है, जिसका इजहार दिन दिनों सोशल मीडिया में खूब हो रहा है।
एक बानगी देखिए:-
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी आने वाली है...
एक मैसेज अभी सोशल मीडिया में चल रहा है, जिसमें प्रभु श्रीकृष्ण को टपोरी, लफड़ेबाज, मर्डरर, तड़ीपार इत्यादि कहा गया है।
अपने देवताओं को टपोरी बिलकुल भी ना कहें।
कृष्ण जी ने नाग देवता को नहीं बल्कि लोगों के प्राण लेने वाले उस दुष्ट हत्यारे कालिया नाग का मर्दन किया था, जिसके भय से लोगों ने यमुना नदी में जाना बन्द कर दिया था।
कंकड़ मार कर लड़कियां नहीं छेड़ते थे, अपितु दुष्ट कंस के यहां होने वाली मक्खन की जबरन वसूली को अपने तरीके से रोकते थे और स्थानीय निवासियों का पोषण करते थे। और दुष्ट चाहे अपना सगा ही क्यों न हो, पर यदि वो समाज को कष्ट पहुंचाने वाला हो तो उसको भी समाप्त करने में संकोच नहीं करना चाहिए, यह भगवान कृष्ण से सीखा है।
उनके 16000 लफड़े नहीं थे, नरकासुर की कैद से छुड़ाई गई स्त्रियां थीं, जिन्हें सम्भवत: समाज स्वीकार नहीं कर रहा था, उन्हें पत्नी का सम्मानजनक दर्जा दिया। वो भोगी नहीं योगी थे।
इसलिए उन्हें भगवान मानते हैं।
कृपया भविष्य में कभी भी किसी हिन्दू देवी देवता के लिये कोई अपमानजनक बात न तो प्रसारित करें और न ही करने दें। यदि यह संदेश किसी और ने आपको भेजा है तो उसे भी रोकें।
एक और बानगी देखिए, जिसमें एक कविता के माध्यम से श्रीकृष्ण के बारे में भद्दे संदेशों पर अफसोस जताया गया है:-
योगेश्वर श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर कुछ बेहद भद्दे सन्देश प्राप्त हुए, कृष्ण भगवान को लेकर, उन संदेशों को जवाब देती ये कविता
द्वारका के राजा सुनो , हम आज बड़े शर्मिंदा हैं,
भेड़चाल की रीत देखो आज तलक भी जिन्दा हैं
व्हाट्स एप के नाम पे देखो मची कैसी नौटंकी है,
मजाक आपका बनता है, ये बात बड़ी कलंकी है
दो कोड़ी के लोग यहां तुम्हें तड़ीपार बतलाते हैं,
अनजाने में ही सही, पर कितना पाप कर जाते हैं
जिनके मन में भरी हवस हो, महारास क्या जानेंगे,
कांटें भरे हो जिनके दिल, नरम घास क्या जानेंगे
जिनको खुद का पता नहीं, वो तेरा कैरेक्टर ढीला बोलेंगे,
जो खुद मन के काले हैं, वो तुझे रंगीला बोलेंगे
कालिया नाग भी ले अवतार तुझसे तरने आते थे,
तेरे जन्म पे स्वत: ही जेल के ताले खुल जाते थे
तूने प्रेम का बीज बोया गोकुल की हर गलियों में,
मुस्कान बिखेरी तूने कान्हा, सृष्टि की हर कलियों में
दुनिया का मालिक है तू, तुझे डॉन ये कहते हैं,
जाने क्यों तेरे भक्त सब सुन कर भी चुप रहते हैं
गोकुल की मुरली को छोड़, द्वारकाधीश का रूप धरो,
हुई शिशुपाल की सौ गाली पूरी, अब उसका संहार करो
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें