जानकार लोग बताते हैं कि असल में मुसलमानों के तीन बार गले मिलने की परंपरा इस्लामी शिक्षाओं में सीधे अनिवार्य नहीं है, लेकिन यह एक सामाजिक और सांस्कृतिक परंपरा बन गई है, विशेषकर ईद जैसे त्योहारों पर। इसके पीछे कुछ मानवीय, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक कारण होते हैं। पहली बार गले मिलना एक-दूसरे से मिलने की खुशी व्यक्त करना। दूसरी बार दिलों में आपसी रंजिश मिटाना। तीसरी बार आपसी संबंध को मजबूत करना और दुआ देना। यह मानवीय भावनाओं को दर्शाता है कि हम सिर्फ औपचारिकता नहीं, बल्कि दिल से एक-दूसरे से जुड़े हैं। हालाँकि तीन बार गले मिलना कुरान या हदीस में अनिवार्य नहीं बताया गया, लेकिन भारतीय उपमहाद्वीप और कुछ अन्य जगहों पर यह रिवाज के तौर पर विकसित हो गया है। यह व्यक्ति को यह अनुभव कराता है कि सामने वाला उसे सचमुच अहमियत दे रहा है। कुल जमा यह इस्लाम का धार्मिक आदेश नहीं है, बल्कि एक सामाजिक रिवाज है, जो खासकर भारतीय, पाकिस्तानी, बांग्लादेशी मुसलमानों में ज्यादा प्रचलित है। दुनिया के कई मुस्लिम देशों में लोग एक ही बार गले मिलते हैं या सिर्फ सलाम करके मुबारकबाद दे देते हैं।
चर्चा के दौरान अंजुमन दरगाह तारागढ के सचिव सैयद रब नवाज ने जानकारी दी कि कोई नियम नहीं है, मगर षीया समुदाय में परंपरागत रूप से दो बार गले मिलने की परंपरा है।
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