तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

गुरुवार, जनवरी 02, 2025

क्या इंशा अल्लाह कहना जरूरी है?

आम तौर पर जब भी हम कोई काम करने का इरादा करते हैं तो उसका जिक्र करते वक्त कहते हैं कि अगर भगवान ने चाहा तो। मुस्लिम लोग इंशा अल्लाह कह कर ही काम करने का ऐलान करते हैं। इसके मायने ये हैं कि हम ने तो इरादा किया है, मगर वह तभी संभव होगा, जब भगवान की, प्रकृति की या अल्लाह की सहमति होगी। यह इस जुमले की स्वीकारोक्ति से जुडा हुआ तथ्य है कि वही होता है जो मंजूरे खुदा होता है। अब सवाल ये उठता है कि क्या कोई भी काम करने का निर्णय करने पर इंशा अल्लाह कहना जरूरी है। इस बारे में पाकिस्तान के जाने माने मुफ्ती तारीक मसूद इस्लाम के हवाले से बताते हैं कि यह बहुत जरूरी है, वरना काम बिगड जाता है या बिगड सकता है। उन्होंने एक वाकया बयान किया है कि एक बार किसी कौम के कुछ लोगों ने एक बाग की परवरिश की। जब फल पक गए तो इतराने लगे और उन्होंने कहा कि अब कल हम इसकी फसल काटेंगे और खूब फायदा उठाएंगे। उन्होंने ऐसा कहते वक्त यह नहीं कहा कि इंशा अल्लाह। नतीजा ये हुआ के दूसरे ही दिन बाग पर आसमानी आफत व मुसीबत आई और बाग तबाह हो गया, चौपट हो गया। सनातन धर्म को मानने वाले भी आवश्यक रूप से भगवान को ही श्रेय देते हुए काम आरंभ करते हैं। इतना ही नहीं, हर शुभ काम के आरंभ में विघ्न विनायक गणेश जी की स्तुति भी करते हैं, ताकि उसमें कोई बाधा न आए। इसके प्रति इतनी गहरी आस्था है कि काम के आरंभ को ही श्रीगणेश कहा जाने लगा है। विवाह के कार्ड में सबसे उपर श्री गणेश का चित्र अथवा स्वस्तिक का चिन्ह लगाते हैं और न्यौते का आरंभ करते हुए सबसे पहले कार्ड गणेश जी व साथ ही कुल देव अथवा कुल देवी को समर्पित करते हैं। इंशा अल्लाह कहने को दार्शनिक दृष्टिकोण से देखें तो ऐसा प्रतीत होता है कि प्रकृति में यह व्यवस्था है कि जहां भी अहम भाव जागता है, प्रकृति उसे तिरोहित करने में लग जाती है। यही जान कर हम अपने आगे भगवान या अल्लाह को कर देते हैं, उसकी मर्जी होगी तो ही काम पूरा होगा, वरना जय राम जी की।

https://www-youtube-com/watch\v¾nKZZDgyvzAE&t¾4s


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