भीलवाड़ा जिले की मांडल विधानसभा सीट सहित अजमेर व अलवर की सभी विधानसभा सीटों को मिला कर कुल सभी 17 सीटों पर भाजपी की करारी हार से बेशक भाजपा को तगड़ा झटका लगा है और उसका मोदी फोबिया उतर गया है, मगर राजनीति के जानकार मानते हैं कि इस उपचुनाव से भाजपा को फायदा ही हुआ है।
जानकारों का मानना है कि दो लोकसभा सीटों व एक विधानसभा सीट के हारने से सीटों की गिनती के लिहाज से केन्द्र व राज्य की सरकारों को कुछ खास नुकसान नहीं हुआ है, मगर इससे ये खुलासा हो गया है कि न तो अब मोदी लहर कायम है और न ही वसुंधरा राजे की लोकप्रियता शेष रही है। एंटी इन्कंबेंसी के फैक्टर ने भी तगड़ा काम किया है। कांग्रेस मुक्त भारत के जुमले की जुगाली करने वाले भाजपाइयों का दंभ भी टूटा है। सब कुछ मिला कर भाजपा को विधानसभा चुनाव से दस माह पहले ही अपनी जमीन खिसकने की जानकारी मिल गई है। अगर ये उपचुनाव नहीं होते तो कदाचित भाजपा भ्रम में ही रहती और सीधे विधानसभा चुनाव हुए होते तो शर्तिया तौर पर सत्ता से बेदखल हो जाती। अब जबकि उसे जमीनी हकीकत पता लग गई है तो उसे संभलने का पूरा मौका मिल गया है। अब वह न केवल अपने पहले से मौजूद सांगठनिक ढ़ांचे को और मजबूत बनाएगी, अपितु चुनाव परिणामों को प्रभावित करने वाले सभी पहलुओं पर गंभीरता से विचार कर लेगी। अब बाकायदा नए सिरे से जाजम बिछाएगी। जातीय समीकरण भी साधेगी और मौजूदा विधायकों की गंभीरता से स्क्रीनिंग करेगी।
उधर कांग्रेस को बड़ा फायदा ये हुआ है कि वह अब पूरी तरह से उत्साह से लबरेज हो गई है। मगर साथ ही यह भी आशंका है कि कहीं सत्ता आने की संभावना में उसका कार्यकर्ता सुस्त न हो जाए। वैसे पहली बार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट ने मेरा बूथ मेरा गौरव अभियान चला कर पार्टी का चुनावी ढ़ांचा मजबूत कर लिया है। इसका लाभ निश्चित रूप से विधानसभा चुनाव में होगा, मगर संदेह ये भी उत्पन्न होता है कि कहीं अति उत्साह में कार्यकर्ता ढ़ीला न पड़ जाए।
जानकारों का मानना है कि दो लोकसभा सीटों व एक विधानसभा सीट के हारने से सीटों की गिनती के लिहाज से केन्द्र व राज्य की सरकारों को कुछ खास नुकसान नहीं हुआ है, मगर इससे ये खुलासा हो गया है कि न तो अब मोदी लहर कायम है और न ही वसुंधरा राजे की लोकप्रियता शेष रही है। एंटी इन्कंबेंसी के फैक्टर ने भी तगड़ा काम किया है। कांग्रेस मुक्त भारत के जुमले की जुगाली करने वाले भाजपाइयों का दंभ भी टूटा है। सब कुछ मिला कर भाजपा को विधानसभा चुनाव से दस माह पहले ही अपनी जमीन खिसकने की जानकारी मिल गई है। अगर ये उपचुनाव नहीं होते तो कदाचित भाजपा भ्रम में ही रहती और सीधे विधानसभा चुनाव हुए होते तो शर्तिया तौर पर सत्ता से बेदखल हो जाती। अब जबकि उसे जमीनी हकीकत पता लग गई है तो उसे संभलने का पूरा मौका मिल गया है। अब वह न केवल अपने पहले से मौजूद सांगठनिक ढ़ांचे को और मजबूत बनाएगी, अपितु चुनाव परिणामों को प्रभावित करने वाले सभी पहलुओं पर गंभीरता से विचार कर लेगी। अब बाकायदा नए सिरे से जाजम बिछाएगी। जातीय समीकरण भी साधेगी और मौजूदा विधायकों की गंभीरता से स्क्रीनिंग करेगी।
उधर कांग्रेस को बड़ा फायदा ये हुआ है कि वह अब पूरी तरह से उत्साह से लबरेज हो गई है। मगर साथ ही यह भी आशंका है कि कहीं सत्ता आने की संभावना में उसका कार्यकर्ता सुस्त न हो जाए। वैसे पहली बार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट ने मेरा बूथ मेरा गौरव अभियान चला कर पार्टी का चुनावी ढ़ांचा मजबूत कर लिया है। इसका लाभ निश्चित रूप से विधानसभा चुनाव में होगा, मगर संदेह ये भी उत्पन्न होता है कि कहीं अति उत्साह में कार्यकर्ता ढ़ीला न पड़ जाए।
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