भले ही वर्चस्व की लड़ाई को लेकर संघ पृष्ठभूमि के कुछ दिग्गजों ने पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को घेर रखा हो, मगर पूरे राजस्थान की बात करें तो वसुंधरा का खौफ ज्यादा ही नजर आता है। यही वजह है कि जब संघ लॉबी के नेताओं पूर्व प्रदेशाध्यक्ष ललित किशोर चतुर्वेदी, गुलाबचंद कटारिया, ओमप्रकाश माथुर, घनश्याम तिवाड़ी और रामदास अग्रवाल आदि ने राजस्थान प्रभारी कप्तान सिंह सोलंकी के सामने शक्ति प्रदर्शन के लिए प्रदेशभर के नेताओं को जयपुर बुलाया तो 38 में से केवल 4 जिलाध्यक्ष ही पहुंचे। वसुंधरा विरोधी लॉबी में माने जाने वाले कई जिला अध्यक्ष सहित अन्य नेता चुनावी साल में विवाद से बचने के लिए नहीं आए। यहां तक कि जयपुर जिलाध्यक्ष भी कन्नी काट गए। ऐसे में वसुंधरा लॉबी को यह कहने का मौका मिल गया है कि विरोधी लॉबी अपने आप को जितनी ताकतवर जता रही है, उतनी है नहीं। मात्र चार जिलाध्यक्षों सहित कुल डेढ़ दर्जन नेता ही वसुंधरा का विरोध कर रहे हैं।
असल में ताजा परिदृश्य ये है कि फिलवक्त वसुंधरा कुछ घिरी हुई हैं, मगर राजस्थान के सारे भाजपा नेता जानते हैं कि वसुंधरा को भले ही फ्री हैंड न मिले, लेकिन पलड़ा तो उनका ही भारी रहने वाला है। ऐसे में दिग्गज तो फिर भी टिकट हासिल कर लेंगे, मगर वे खुल कर वसुंधरा के विरोध में आ गए तो उन्हें टिकट मिलने में परेशानी आएगी। अधिसंख्य विधायक भी वसुंधरा के साथ इसी कारण हैं क्योंकि उन्हें फिर से टिकट चाहिए व टिकट वितरण में वसुंधरा की ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका होगी। इसके अतिरिक्त वे नेता भी वसुंधरा के साथ खड़े हैं, जो उनके राज में उपकृत हो चुके हैं।
उधर संघ लॉबी के दिग्गजों को अनुमान हो गया है कि वे वसुंधरा को तो कत्तई नहीं निपटा सकते, लिहाजा उन्होंने अपना रुख कुछ नरम कर लिया है और ये नया राग अलाप रहे हैं कि उन्हें नेता प्रतिपक्ष वसुंधरा राजे से नहीं, उनकी मंडली से परेशानी है। राजे अगर इस मंडली से मुक्त होकर सबको साथ लें तो किसी को कोई आपत्ति नहीं है। यानि खेमेबाजी संघनिष्ठ बनाम वसुंधरा राजे नहीं, बल्कि नवभाजपाइयों के बीच है। ज्ञातव्य है कि जहां ललित किशोर चतुर्वेदी, गुलाबचंद कटारिया, रामदास अग्रवाल, घनश्याम तिवाड़ी, महावीर प्रसाद जैन, ओम प्रकाश माथुर, सतीश पूनियां, मदन दिलावर, ओंकार सिंह लखावत आदि एकजुट हैं तो दूसरी तरफ वसुंधरा राजे वाले खेमे में किरण माहेश्वरी, नंदलाल मीणा, राजेंद्र सिंह राठौड़, दिगंबर सिंह, भवानी सिंह राजावत, सांवर लाल जाट आदि प्रमुख हैं। दोनों धड़े जानते हैं कि विधानसभा चुनाव को कम समय बचा है। विवाद जारी रहा तो कांग्रेस सरकार के खिलाफ बने माहौल का फायदा उठाने का मौका भाजपा के हाथ से निकल जाएगा, ऐसे में उन्हें किसी न किसी तरह एकजुट होना ही होगा। अब देखना ये है कि इस नूरा कुश्ती के बाद ऊंट किस करवत बैठता है।
-तेजवानी गिरधर
असल में ताजा परिदृश्य ये है कि फिलवक्त वसुंधरा कुछ घिरी हुई हैं, मगर राजस्थान के सारे भाजपा नेता जानते हैं कि वसुंधरा को भले ही फ्री हैंड न मिले, लेकिन पलड़ा तो उनका ही भारी रहने वाला है। ऐसे में दिग्गज तो फिर भी टिकट हासिल कर लेंगे, मगर वे खुल कर वसुंधरा के विरोध में आ गए तो उन्हें टिकट मिलने में परेशानी आएगी। अधिसंख्य विधायक भी वसुंधरा के साथ इसी कारण हैं क्योंकि उन्हें फिर से टिकट चाहिए व टिकट वितरण में वसुंधरा की ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका होगी। इसके अतिरिक्त वे नेता भी वसुंधरा के साथ खड़े हैं, जो उनके राज में उपकृत हो चुके हैं।
उधर संघ लॉबी के दिग्गजों को अनुमान हो गया है कि वे वसुंधरा को तो कत्तई नहीं निपटा सकते, लिहाजा उन्होंने अपना रुख कुछ नरम कर लिया है और ये नया राग अलाप रहे हैं कि उन्हें नेता प्रतिपक्ष वसुंधरा राजे से नहीं, उनकी मंडली से परेशानी है। राजे अगर इस मंडली से मुक्त होकर सबको साथ लें तो किसी को कोई आपत्ति नहीं है। यानि खेमेबाजी संघनिष्ठ बनाम वसुंधरा राजे नहीं, बल्कि नवभाजपाइयों के बीच है। ज्ञातव्य है कि जहां ललित किशोर चतुर्वेदी, गुलाबचंद कटारिया, रामदास अग्रवाल, घनश्याम तिवाड़ी, महावीर प्रसाद जैन, ओम प्रकाश माथुर, सतीश पूनियां, मदन दिलावर, ओंकार सिंह लखावत आदि एकजुट हैं तो दूसरी तरफ वसुंधरा राजे वाले खेमे में किरण माहेश्वरी, नंदलाल मीणा, राजेंद्र सिंह राठौड़, दिगंबर सिंह, भवानी सिंह राजावत, सांवर लाल जाट आदि प्रमुख हैं। दोनों धड़े जानते हैं कि विधानसभा चुनाव को कम समय बचा है। विवाद जारी रहा तो कांग्रेस सरकार के खिलाफ बने माहौल का फायदा उठाने का मौका भाजपा के हाथ से निकल जाएगा, ऐसे में उन्हें किसी न किसी तरह एकजुट होना ही होगा। अब देखना ये है कि इस नूरा कुश्ती के बाद ऊंट किस करवत बैठता है।
-तेजवानी गिरधर
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