बुरी नजर व नकारात्मक शक्तियां असर न करें, इसके लिए मकान व दुकान के बाहर शनिवार को नीबू-मिर्ची टांगने की भी परंपरा हैं। इसका वैज्ञानिक आधार क्या है, पता नहीं, मगर वास्तुविद बताते हैं कि नीबू-मिर्ची नकारात्मक ऊर्जा को मकान व दुकान में प्रवेश करने से रोकते हैं और खुद जज्ब कर लेते हैं। इसके लिए शनिवार को उपयुक्त वार माना जाता है। दूसरे शनिवार को पहले से बंधे नीबू-मिर्ची को हटा कर सड़क पर फैंक दिया जाता है। टोटकों के जानकार बताते हैं कि शनिवार को उनके ऊपर से नहीं गुजरना चाहिए, अन्यथा उनमें मौजूद नकारात्मक शक्तियां हमें प्रभावित कर सकती हैं।
नजर लगने पर उतारने के लिए कई तरह के उपाय भी प्रचलन में हैं। बताते हैं कि अगर आपको ऐसा प्रतीत हो कि अमुक व्यक्ति की आपको नजर लग सकती है तो उसका झूठा पानी पी लो, उसका असर खत्म हो जाएगा। खैर, किसी और की क्या, मान्यता तो ये भी है कि खुद हम पर ही हमारी नजर लग जाती है। यही वजह है कि आम तौर हमारे साथ कुछ अच्छा होने के बारे में बताते वक्त हम कहते हैं कि भगवान की कृपा है। हालांकि ऐसा कहने से यही प्रतीत होता है कि हम भगवान का शुक्र अदा कर रहे होते हैं, मगर साथ ही इसका निहितार्थ ये भी है कि नजर न लग जाए। किसी की तारीफ करते वक्त थुथकार करने की भी परंपरा है। इसी कड़ी में कई पढ़े-लिखे लोग टच वुड शब्द का इस्तेमाल करते हुए आस-पास रखी लकड़ी की वस्तु को छूते हैं। टच वुड अर्थात लकड़ी को छूना। यह शब्द पाश्चात्य संस्कृति से आया है। अर्थात पाश्चात्य संस्कृति के लोग भले ही नजर लगने की हमारी मान्यता को दकियानूसी करार दें, मगर वे भी मानते तो हैं ही।
टच वुड शब्द का प्रयोग कब से हो रहा है, इस विषय में कोई तथ्यात्मक जानकारी नहीं है। बताया जाता है कि इसका प्रयोग ईसा पूर्व से चला आ रहा है। टच वुड कहते हुए लकड़ी को छूने से होता क्या है, इस बारे में भी कोई पुख्ता वैज्ञानिक प्रमाण मौजूद नहीं है, लेकिन आम धारणा है कि वृक्षों पर आत्माओं का निवास होता है। उनकी नजर आपकी खुशियों को नहीं लगे, इसलिए कोई अच्छी बात कहते वक्त लकड़ी छूते हैं, ताकि आत्माएं खुशियों में रुकावट न डालें। एक जानकारी ये भी है कि टच वुड बोलने के वक्त पवित्र माने जाने वाले चंदन, रुद्राक्ष, तुलसी आदि का स्पर्श करना अधिक शुभ फलदायी है। मुझे लगता है कि कुछ अच्छा बोलते वक्त सकारात्मक शक्तियों के साथ नकारात्मक शक्तियां भी प्रवाहित होती हैं और पेड को छूने से वह नकारात्मक एनर्जी को हजम कर जमीन को भेज देता है। चूंकि हर जगह पेड संभव नहीं है, इस कारण उसकी अनुपस्थिति में लकडी को छूने का चलन हो गया होगा।
https://www.youtube.com/watch?v=xlB2LpNo2NI
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