तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

रविवार, अप्रैल 24, 2022

अजान को लेकर अजीबोगरीब असमंजस

तेजवानी गिरधर

इन दिनों नमाज से पहले दी जाने वाली अजान को लेकर अजीबोगरीब असंमजस बनी हुई है। कई जगह अजान को लाउड स्पीकर पर नहीं किए जाने पर जोर दिया जा रहा है तो कई जगह विरोध में मस्जिद के सामने हनुमान चालीसा का पाठ किया जा रहा है। कुछ स्थानों पर सभी धर्मों के प्रति समान व्यवहार करते हुए धर्म स्थलों में लाउड स्पीकर की आवाज स्थल परिसर से बाहर नहीं आने के लिए पाबंद किया गया है। उसकी पालना भी होने लगी है।

असल बात ये है कि अनेक लोगों को ये पता ही नहीं है कि अजान व नमाज में अंतर क्या है। वे अजान को ही नमाज समझ रहे हैं। यह सही है कि अजान नमाज का ही आरंभिक हिस्सा है, लेकिन वस्तुस्थिति ये है कि अजान सिर्फ नमाज के लिए आमंत्रण मात्र है। वह मूल नमाज नहीं है। और उसे लाउड स्पीकर पर दिया ही इसलिए जाता है, ताकि मस्जिद के आसपास के लोगों को पता लग जाए कि नमाज षुरू होने वाली है। अब सवाल उठता है कि अगर अजान लाउडस्पीकर पर नहीं दिए जाने पर जोर दिया जा रहा है तो अजान का अर्थ ही क्या रह जाएगा। इससे भी अधिक दिलचस्प बात यह है कि जहां अजान को लाउडस्पीकर पर देने की तो छूट दी जा रही है, लेकिन साथ ही कहा जा रहा है कि लाउड स्पीकर की आवाज मस्जिद परिसर से बाहर नहीं जानी चाहिए। यदि लाउड स्पीकर की आवाज मस्जिद से बाहर नहीं जाएगी तो उसका जो मूल मकसद है, लोगोें को नमाज के लिए आमंत्रित करने का, वही पूरा ही नहीं होगा। और मस्जिद परिसर के भीतर के लोगों को तो लाउड स्पीकर की जरूरत ही नहीं। उन्हें तो मौलवी की आवाज वैसे ही आ जा जाएगी।

इस सिलसिले में कबीर दास जी का एक दोहा आपको ख्याल में होगा, जिसमें कहा गया है कि कांकर पाथर जोरि के मस्जिद लई चुनाय, ता चढि मुल्ला बांघ दे, क्या बहरा हुआ खुदाय। हालांकि यह दोहा अनेक अन्य अर्थों में संदर्भ में है, लेकिन जिसे कबीरदास जी बांघ देना कह रहे हैं, वह मात्र अजान ही तो है, जो कि लोगों को संबोधित है, न कि खुदा को। खुदा के बहरे होने का तो सवाल ही नहीं है, क्योंकि नमाज कोई जोर जोर से थोडे ही पढी जाती है।

 खैर, वस्तुतः जिन दिनों लाउड स्पीकर नहीं हुआ करते थे, तब मौलवी मस्जिद की छत पर चढ कर अजान दिया करते थे। जब लाउड स्पीकर का इजाद हो गया तो ज्यादा से ज्यादा लोगों को नमाज का समय हो जाने की जानकारी देने के लिए उसका उपयोग किया जाने लगा। यह वह दौर था, जब हर एक के हाथ में घडी नहीं थी। यदि थी भी तो नमाज के टाइम की जानकारी उनको मौलवी की ओर दी जा रही अजान से होती थी।

इन दिनों, जबकि अजान को लेकर विवाद हो रहा है तो कुछ बुद्धिजीवियों का कहना है कि एक तो आज हर आदमी के पास घडी या मोबाइल है। अगर उसे नमाज के वक्त की जानकारी है तो वह अपनी घडी व मोबाइल पर टाइम देख कर नमाज पढने के लिए मस्जिद जा सकता है या अपने घर पर भी नमाज पढ सकता है। इसके अतिरिक्त अब तो मोबाइल पर ऐसे ऐप आ गए हैं, जिनसे पता लग जाता है कि उनके इलाके में पांचों वक्त की नमाज का समय क्या क्या है। ऐसे में अब लाउड स्पीकर पर अजान देने की बहुत जरूरत नहीं रह गई है।

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