तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

मंगलवार, सितंबर 10, 2019

चंद्रयान : कौन कहा रहा है कि मोदी फेल हो गए?

चंद्रयान 2 से संपर्क टूटने के बाद इसरो प्रमुख सीवन की पीठ पर हाथ रख कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का यह कहना कि विज्ञान में कभी असफलतायें नहीं होती, विज्ञान में सिर्फ प्रयोग और प्रयास किये जाते हैं, बिलकुल सही है। ऐसा करके उन्होंने न केवल इसरो के वैज्ञानिकों को निराश न होने की सीख दी है, अपितु हौसला अफजाई का काम किया है। प्रधानमंत्री रूप में उनका यह रुख बेशक सराहनीय है। मगर दुर्भाग्य से हम ऐसे दौर से गुजर रहे हैं, जहां हर चीज को राजनीति से जोड़ कर देखा जाने लगा है। हर सफलता-अफलता के साथ मोदी का नाम जोड़ा जा रहा है। चूक तकनीकी की है, मगर उसे मोदी भक्तों ने अपने दिल पर ले लिया है। अरे भाई, मोदी को असफल कह कौन रहा है? समझ नहीं आता कि वे आखिर किस मानसिकता से गुजर रहे हैं?
सीधी से बात है कि हमारे वैज्ञानिकों ने पूरी ईमानदारी व मेहनत से काम किया, उसमें वे तनिक विफल हो गए तो इसमें मोदी का क्या दोष है? इसे मोदी से जोड़ कर देखना ही बेवकूफी है। अगर जिम्मेदार ठहराया जाना जरूरी हो तो वो हैं, हमारे वैज्ञानिकों की टीम, जिससे कहीं चूक रह गई होगी। या ऐसा भी हो सकता है कि कोई अपरिहार्य गड़बड़ी हो गई होगी। जानबूझ कर तो किसी ने लापरवाही की नहीं होगी। कम से कम इस मामले में प्रधानमंत्री तो कत्तई जिम्मेदार नहीं हैं। यह एक वैज्ञानिक प्रयोग था, जो कि किसी चूक की वजह से कोई और प्रधानमंत्री होता तो भी विफल हो सकता था। इसमें मोदी है तो मुमकिन है, वाला राजनीतिक जुमला लागू नहीं होता।
तेजवानी गिरधर
चूंकि यह मामला ऐसा था ही नहीं कि मोदी की आलोचना की जाती, लिहाजा विपक्ष की ओर से कोई प्रतिक्रिया आई भी नहीं। सोशल मीडिया पर किसी इक्का-दुक्का ने मसखरापन किया हो अलग बात है। शायद उसी पर एक वाट्स ऐपिये ने प्रतिक्रिया दी कि भारत में कुछ लोग मोदीजी की गलती का इंतजार ऐसे करते हैं, जैसे ढ़ाबे के बाहर बैठा कुत्ता जूठी प्लेट का इंतजार करता है। मगर सवाल उठता है कि इस मामले में मोदी जी गलती है ही कहां?
पता नहीं ये नेरेटिव कैसे हो गया है कि देश के हर मसले के केन्द्र में मोदी को रख दिया जाता है। एक प्रतिक्रिया देखिए:-
चंद्रयान 2 से संपर्क टूटने के बाद जहां पूरा देश इसरो के साथ खड़ा है, वहीं कुछ टुच्चे कांग्रेसी इसमें मोदी जी को कोसने का मौका ढूंढ़ रहे हैं। ये लोग वही हैं, जो अपने भाई की भी मौत पर सिर्फ इसलिए खुश होते है कि चलो भाई मरा तो गम नहीं, कम से कम भाभी तो विधवा हुई।
दूसरी प्रतिक्रिया देखिए:- चंद्रयान की सफलता या असफलता को मोदी से जोड़ कर देखने वाले लोग मात्र मनोरोगी ही हो सकते हैं। इसरो के लिए केंद्र में बैठी सरकार मात्र इतने ही मतलब की है कि वो उनके किसी प्रोजेक्ट के लिए फंडिंग करने में दिलचस्पी दिखाती है या नहीं। इससे ज्यादा कुछ नहीं। यह प्रतिक्रिया सटीक व सही है। मगर सवाल उठता है कि चंद्रयान की असफलता को मोदी से जोड़ कर देख कौन रहा है?
कुछ ऐसी प्रतिक्रियाएं भी आई हैं, जो इसरो की हौसला अफजाई करती हैं। यदि ये भी किसी साइलेंट प्रोजेक्ट के तहत एक मुहिम की तरह चलाई जा रही हैं तो भी कोई गिला नहीं।
यथा-
चंद्रयान 2 की कुल लागत लगभग 900 करोड़। देश मे 100 करोड़ देशभक्त हैं। सिर्फ 9-9 रुपये हिस्से में आये। इसरो हम आपके साथ हैं। फिर से जुट जाओ और फिर से चंद्रयान को तैयार करो। देशभक्त धन की कमी नहीं होने देंगे। भारतमाता की जय।
नासा ने ग्यारहवीं बार में सफलता हासिल की थी। ओर इसरो सिर्फ 2 बार में ही 99.99 प्रतिशत सफलता हासिल की है। बधाई हो इसरो।
जिस मिशन पर अमेरिका ने 100 बिलियन डॉलर्स खर्च किये, वही काम हमारे वैज्ञानिकों ने महज 140 मिलियन में कर दिखाया।
मोदी जी से अनुरोध। इसरो के नाम पर एक अकाउंट खुलवा दो। 978 करोड़ तो बहुत छोटी रकम पड़ जाएगी। हमारे देश वासी उस अकाउंट को भर देंगे।
लाखों किलोमीटर का सफर तय करके मैं अपनी गाड़ी से गंतव्य तक तो पहुंचा, लेकिन मुझे पार्किंग नहीं मिली और मैं गाड़ी को पार्क नहीं कर सका तो क्या मेरा सफर अधूरा रह गया? तो क्या मैं गंतव्य तक नहीं पहुंचा? तो क्या मैं फेल हो गया? नहीं, बिलकुल नहीं।
आपकी बेटी या बेटा परीक्षा की कड़ी तैयारी कर 98 प्रतिशत अंक लाए और 2 प्रतिशत अंक नहीं ला पाए तो आप उसे सफल कहेंगे या असफल? बधाई हो। ये वैज्ञानिकों के साथ हर भारतवासी की सफलता है। यात्रा जारी रखिए।
इसरो के मिशन की असफलता अपनी जगह है, मगर उसमें भी मोदी के महिमामंडन को कैसे तलाशा जा रहा है, ये प्रतिक्रियाएं देखिए:-
आज से पहले कभी आपने देखा या सुना था कि कोई प्रधानमंत्री देर रात को अपने वैज्ञानिकों के प्रोत्साहन के लिए उनके साथ बैठा हो?
36 घंटे की रूस यात्रा के बाद। जब चन्द्रयान का संपर्क टूटा, तो कोई और नेता होता तो वहां से चला जाता, पर मोदी जी वहीं रहे, बच्चों से बात की, वैज्ञानिकों का हौसला बढ़ाया। ये भारत में एक अप्रत्याशित बात है। और ये सिर्फ मोदीजी ही कर सकते हैं।
चन्द्रयान-2 ने आज एक चमत्कारिक दृश्य दिखाया है। शीर्ष राजनीतिक और शीर्ष वैज्ञानिक पदों पर आसीन व्यक्ति के बीच हमने तीव्र भावनात्मक सम्बन्ध देखा। दोनों ऐसे गले मिले, मानो एकाकार हो गए हों। सत्ता ने विज्ञान की पीठ थपथपाई। सत्ता ने विज्ञान के कंधे सहलाए। सत्ता ने विज्ञान को भरोसा दिया।
सफलता के सौ बाप होते हैं, असफलता अनाथ होती है। प्रधानमंत्री मोदी भारत के रॉकस्टार हैं। रात भर खुद कंट्रोल रूम में बैठ मिशन देखा और मिशन के अंतिम फेस के असफल होने पर वह सारा दोष वैज्ञानिकों पर छोड़ भाग नहीं गए। उनका साथ दिया।
आज मोदी जी का इसरो को भाषण सुन के बहुत गर्व हुआ है, अपने आप पर कि मैंने देश की कमान एक अच्छे लीडर के हाथ मे दी है क्योंकि अच्छा लीडर वही होता है, जो अपनी टीम का मनोबल टूटने नहीं देता। अगर इसकी जगह कोई कांग्रेसी होता तो मुंह छुपाते घूमता। हमे आप पर गर्व है मोदी जी।
किसी कांग्रेसी ने प्रतिक्रिया दी हो या नहीं, मगर फिर भी कांग्रेस पर हमले जारी रहे। देखिए:-
70 साल हरामखोर अलगाववादियों, पत्थरबाजों, अब्दुल्ला-मुफ्ती फैमिली को मुफ्तखोरी कराने से तो चंद्रयान पर कम ही खर्च आया है।
आज असफल हुआ तो एक दिन सफल भी होगा। ये चंद्रयान-2 है यार कोई राहुल गांधी नहीं।
अगर कांग्रेस की सरकार होती तो विक्रम कभी क्रैश नहीं करता, क्योंकि तब विक्रम के प्रक्षेपण से पहले ही 2-4 वैज्ञानिकों को जहन्नुम प्रक्षेपित कर दिया जाता और मिशन का डब्बा बन्द हो जाता। फिर न विक्रम उड़ता, न क्रैश करता।
चंद्रयान लैंडर के संपर्क टूटने से वही लोग खुश हो रहे हैं, जो गलती से इस धरती पर पड़ोसियों की मदद से लैंड कर गए हैं।
चंद्रयान सफल नहीं हो पाया तो मोदी विरोधी हंस रहे हैं।  अब इनको देख कर ये समझ नहीं आता है कि ये मोदी विरोधी हैं या देश विरोधी?
असल में मोदी मौके पर वैज्ञानिकों का उत्साह बढ़ाने के लिए गए थे। प्रतीत ये भी होता है कि अगर मिशन कामयाब हो जाता तो पूरे देश में मोदी के जयकारे से आसमान सिर पर उठा लिया जाता। दुर्भाग्य से ऐसा हो नहीं। विपक्ष ने कुछ कहा ही नहीं फिर भी मोदी भक्तों को लगा कि कहीं मोदी को ट्रोल न कर दिया जाए, लिहाजा उन्होंने उन्हें डिफेंड करने की मुहिम छेड़ दी, जिसकी कत्तई जरूरत नहीं थी।
चूंकि इस संदर्भ में एक प्रतिक्रिया किसी मोदी विरोधी भी नजर आई, तो उसे भी शेयर किए देते हैं, ताकि सनद रहे:-
चन्द्रयान के जिन महत्वपूर्ण और संवेदनशील क्षणों में इसरो विज्ञानियों का सारा ध्यान अपने मिशन पर केंद्रित होना चाहिए था, तभी वहां मोदी द अंडरटेकर जा धमके। इसरो प्रमुख उनकी आगवानी को लपके। निष्ठावान वैज्ञानियों का ध्यान बंटा। बाहर से आए सुरक्षाकर्मियों ने सुरक्षा की दृष्टि से प्रत्येक वैज्ञानिकों की चेकिंग करनी शुरू कर दी। जरा सोचिए, अपने काम में व्यस्त वैज्ञानिकों के ऊपर क्या प्रभाव पड़ा होगा। भोंपू चैनल पहले ही भीषण मनोवैज्ञानिक दबाव क्रिएट कर चुके थे। तोपों की तरह कैमरे तने थे। अन्यथा मिशन सफल था। यान अपने अंतिम गन्तव्य को छू चुका था। उसे प्रचार प्रियता के हल्केपन ने असफल किया। जटिल ऑपरेशन कर रहे किसी सर्जन की बगल में कोई सेल्फी बाज जा खड़ा हो जाये, तो परिणाम क्या होगा?
-तेजवानी गिरधर
7742067000

गुरुवार, सितंबर 05, 2019

क्या संघ प्रमुख मोहन भागवत दरगाह जियारत करेंगे?

हाल ही देश के प्रमुख मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत से मुलाकात हुई। बताया जाता है कि इस दौरान दोनों के बीच हिन्दू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा देने और भीड़ द्वारा हत्या की घटनाओं (मॉब लिंचिंग) सहित कई मुद्दों पर बातचीत हुई। जानकारी के अनुसार दोनों की मुलाकात की भूमिका लंबे से तैयार हो रही थी और इसके लिए भाजपा के पूर्व संगठन महासचिव राम लाल मुख्य रूप से प्रयासरत थे। मौलाना मदनी ने आरएसएस प्रमुख से कहा कि हिंदू-मुस्लिम एकता और सांप्रदायिक सद्भाव के बिना हमारा देश बड़ी ताकत नहीं बन सकता। उन्होंने भीड़ द्वारा हत्या, घृणा अपराधों की घटनाओं को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत पर भी जोर दिया। एनआरसी और कुछ अन्य मुद्दों पर भी बात हुई।
 दोनों की मुलाकात ने मीडिया में खासी सुर्खियां बटोरीं। मीडिया में इस पर भी बहस हुई कि क्या इस मुलाकात के मायने ये निकाले जाएं कि संघ अब मुस्लिमों के प्रति कुछ उदार होने की दिशा में कदम उठा रहा है, वरना उन्हें मुस्लिम नेता कर क्या हासिल करना था। ज्ञातव्य है कि इससे पूर्व भागवत इस आशय का बयान भी दे चुके हैं कि इस हिंदुस्तान का हर नागरिक हिंदू है, अर्थात वे मुस्लिमों को अलग कर के नहीं देखते। इसके पीछे उनके अपने तर्क हैं। संघ की मूल अवधारणा भी है कि हिंदू कोई धर्म नहीं, अपितु एक संस्कृति है, जीवन पद्धति है, जिसमें यहां पल रहे सभी धर्मावलम्बी शामिल हैं।
इसे इस संदर्भ में भी देखा जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में सबका साथ, सबका विकास नारा दिया था, जिसे दूसरे कार्यकाल में बदल कर उसके साथ सबका विश्वास भी जोड़ दिया गया। इसका अर्थ यही निकाला जा रहा है कि वे सभी धर्मों के लोगों का विश्वास भी जीतना चाहते हैं। आपको ख्याल होगा कि किसी जमाने में जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो मंच पर एक मुस्लिम नेता के हाथों टोपी पहनने से इंकार कर दिए जाने के कारण उन्हें कट्टरवादी करार दिया गया। बाद में प्रधानमंत्री बनने पर इस्लामिक देशों की यात्रा के दौरान उनका नरम हुआ रुख सबके सामने है।
हमें यह बात भी ख्याल में रखनी होगी कि मुस्लिमों को मुख्य हिंदूवादी धारा या राष्ट्रवाद से जोडऩे के लिए संघ के ही प्रमुख नेता इन्द्रेश कुमार पिछले कई साल से सतत प्रयास कर रहे हैं। मुस्लिम आत्मिक रूप से कितने जुड़ पाए हैं, इसका तो पता नहीं, मगर उनके सम्मेलनों में भारी तादाद में मुस्लिमों को शिरकत करते देखा गया है।
इसी संदर्भ में संघ के ही एक प्रमुख विचारक ने लिखा है कि आजादी से पूर्व संघ के संस्थापक डॉ0 केशवराव बलिराम हेडगेवार की सबसे बड़ी पीड़ा यह थी कि इस देश का सबसे प्राचीन समाज यानि हिन्दू समाज राष्ट्रीय स्वाभिमान से शून्यप्राय:, आत्म विस्मृति में डूबा था। इसी परिप्रेक्ष्य में संघ का उद्देश्य हिन्दू संगठन यानि इस देश के प्राचीन समाज में राष्ट्रीय स्वाभिमान, नि:स्वार्थ भावना व एकजुटता का भाव निर्माण करना बना। डॉ. हेडगेवार का यह विचार सकारात्मक सोच का परिणाम था। किसी के विरोध में या किसी क्षणिक विषय की प्रतिक्रिया में से यह कार्य नहीं खड़ा हुआ। अत: इस कार्य को मुस्लिम विरोधी या ईसाई विरोधी कहना संगठन की मूल भावना के ही विरुद्ध हो जायेगा।
विषय के विस्तार में जाएं तो हिन्दू के मूल स्वभाव - उदारता व सहिष्णुता के कारण दुनिया के सभी मत-पंथों को भारत में प्रवेश व प्रश्रय मिला। संघ की प्रार्थना में प्रार्थना में मातृभूमि की वंदना, प्रभु का आशीर्वाद, संगठन के कार्य के लिए गुण, राष्ट्र के परम वैभव (सुख, शांति, समृद्धि) की कल्पना की गई है। प्रार्थना में हिन्दुओं का परम वैभव नहीं कहा है, राष्ट्र का परम वैभव कहा है। अर्थात संघ मुसलमानों को अपने से अलग करके नहीं मान रहा, भले ही उनकी पूजा पद्धति भिन्न है।
तेजवानी गिरधर  
तस्वीर का दूसरा रुख ये है कि आज तक अधिकतर मुस्लिमों ने संघ से दूरी बना रखी है। ऐसे में संघ के समक्ष यह चुनौती है कि मोहन भागवत अजमेर की सरजमीं से यह संदेश दें कि संघ मुस्लिमों अथवा उनके धर्मस्थलों के प्रति घृणा का भाव नहीं रखता। विशेष रूप से सूफी मत की इस कदीमी दरगाह के प्रति, जो कट्टरवादी इस्लाम से अलग हट कर सभी धर्मों में भाईचारे का संदेश दे रही है।
प्रचंड बहुमत से सत्ता पर काबिज भाजपा के मातृ संगठन के प्रमुख के नाते उनकी ऐतिहासिक व पौराणिक पुष्कर में गरिमामय मौजूदगी विशेष अर्थ रखती है। तीर्थराज पुष्कर व सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह को अपने आचंल में समेटे ऐतिहासिक अजमेर दुनिया भर को सांप्रदायिक सौहाद्र्र का संदेश देता है। यह शहर इस बात का भी गवाह रहा है कि राजा हो या रंक, हर कोई दोनों अंतर्राष्ट्रीय धर्मस्थलों पर हाजिरी जरूर देता है। ऐसे में आमजन में यह सवाल कुलबुला रहा है कि क्या आप भी पुष्कर के अतिरिक्त दरगाह के प्रति भी अपनी श्रद्धा व्यक्त करेंगे। अजमेर में अपनी मौजूदगी का लाभ उठाएंगे? क्या दरगाह जियारत करके अथवा दरगाह में सिर्फ औपचारिकता मात्र के लिए श्रद्धा सुमन अर्पित करके कोई उदाहरण पेश करेंगे? क्या भाजपा से जुड़े मुस्लिमों को अपनी जमात में गर्व से सिर उठाने का मौका देंगे? या फिर इस सवाल को अनुत्तरित ही छोड़ देंगे?
उल्लेखनीय है कि तकरीबन दस साल बाद भागवत अजमेर की सरजमीं  पर उपस्थित हुए हैं। पूर्व में वे अजयनगर के अविनाश माहेश्वरी पब्लिक स्कूल परिसर में ठहरे थे। तीन दिन के अजमेर प्रवास और अंत में आजाद बाग में उन्होंने संघ कार्यकर्ताओं को संबोधित किया था। ठीक दस साल बाद मोहन भागवत अजमेर की धरती पर आए हैं और इस बार ब्रह्मा की नगरी तीर्थराज पुष्कर की धरा पर प्रवास कर रहे हैं। दस साल पूर्व भी अजमेर आगमन पर ये सवाल उठा था कि क्या वे दरगाह जियारत को जाएंगे? आज भी यह सवाल मौजूं है। विशेष रूप से मौलाना अरशद मदनी से हुई मुलाकात से तनिक उदार होने का संकेत मिलने के बाद।
-तेजवानी गिरधर 
7742067000