तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

बुधवार, जुलाई 10, 2019

मीडिया अब भी हमलावर है कांग्रेस पर

हमने पत्रकारिता में देखा है कि आमतौर पर मीडिया व्यवस्था में व्याप्त खामियों को ही टारगेट करता था। सरकार चाहे कांग्रेस व कांग्रेस नीत गठबंधन की या भाजपा नीत गठबंधन की, खबरें सरकार के खिलाफ ही बनती थीं। वह उचित भी था। यहां तक कि यदि विपक्ष कहीं कमजोर होता था तो भी मीडिया लोकतंत्र में चौथे स्तम्भ के नाते अपनी भूमिका अदा करता था। आपको ख्याल होगा कि जेपी आंदोलन व वीपी सिंह की मुहिम में भी मीडिया सरकार के खिलाफ साथ दे रहा था। जब मनमोहन सिंह का दूसरा कार्यकाल अंतिम चरण में था, और भाजपा विपक्ष की भूमिका ठीक से नहीं निभा पाया तो अन्ना आंदोलन को मीडिया ने भरपूर समर्थन दिया। मगर लगता है कि अब सारा परिदृश्य बदल गया है।
नरेन्द्र मोदी के पिछले कार्यकाल में लगभग सारा मीडिया उनका पिछलग्गू हो गया था। विपक्ष में होते हुए भी जब-तब कांग्रेस ही निशाने पर रहती थी। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले और चुनाव प्रचार के दौरान तो मीडिया बाकायदा विपक्ष में बैठी कांग्रेस पर प्रयोजनार्थ हमलावर था ही, नरेन्द्र मोदी को दूसरी बार मिली प्रचंड जीत के बाद भी उसका निशाना कांग्रेस ही है। न तो उसे तब पुरानी मोदी सरकार के कामकाज की फिक्र थी और न ही नई मोदी सरकार की दिशा व दशा की परवाह है। उसे चिंता है तो इस बात की कि कांग्रेस का क्या हो रहा है? राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा क्यों दिया? पहले कहा कि सब नौटंकी है, मान-मुनव्वल के बाद मान जाएंगे, अब जब यह साफ हो गया है कि उन्होंने पक्के तौर पर इस्तीफा दे दिया है तो कहा जा रहा कि वे कायर हैं और कांग्रेस को मझदार में छोड़ रहे हैं। या फिर ये कि अगर पद पर नहीं रहे तो भी रिमोट तो उनके ही हाथ में रहेगा। रहेगा तो रहेगा। कोई क्या कर सकता है? अगर कांग्रेसी अप्रत्यक्ष रूप से कमान उनके ही हाथों में रखना चाहते हैं तो इसमें किसी का क्या लेना-देना होना चाहिए। कुल मिला कर बार-बार राहुल गांधी का पोस्टमार्टम किए जा रहा है। कभी कभी तो ऐसा प्रतीत होता है कि वह राहुल को हर दम के लिए कुचल देना चाहता है। मोदी तो कांग्रेस मुक्त भारत की बात करते रहे हैं, जबकि टीवी एंकरों का सारा जोर इसी बात है कि कांग्रेस गांधी-नेहरू परिवार मुक्त हो जाए। एक यू ट्यूब चैनल के प्रतिष्ठित एंकर तो कल्पना की पराकाष्ठा पर जा कर इस पर बहस करते दिखाई दिए कि अगर वाकई राहुल ने पूरी तौर से कमान छोड़ दी तो कांग्रेस नष्ट हो जाएगी।
मीडिया के रवैये को देखना हो तो खोल लीजिए न्यूज चैनल। अधिसंख्य टीवी एंकर कांग्रेसी प्रवक्ताओं अथवा कांग्रेसी पक्षधरों के कपड़े ऐसे फाड़ते हैं, मानो घर में लड़ कर आए हों। साफ दिखाई देता है कि वे भाजपा के प्रति सॉफ्ट हैं, जबकि कांग्रेस के प्रति सख्त। कई टीवी एंकर कांग्रेस प्रवक्ताओं पर ऐसे झपटते हैं, मानो भाजपा प्रवक्ताओं की भूमिका में हों। और ढ़ीठ भी इतने हैं कि कांग्रेस प्रवक्ता उन पर बहस के दौरान खुला आरोप लगाते हैं कि आप ही काफी हो, भाजपा वालों को काहे बुलाते हो।
इलैक्ट्रॉनिक मीडिया भाजपा के प्रति कितना नरम है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पर्दे के पीछे भाजपा की भूमिका की चर्चा करने की बजाय कांग्रेस की रणनीति कमजोरी को ज्यादा उभार रहा है। भाजपा के अश्वमेघ यज्ञ के प्रति उसकी स्वीकारोक्ति इतनी है कि उसे बड़ी सहजता से यह कहने में कत्तई संकोच नहीं होता कि भाजपा का अगला निशाना मध्यप्रदेश व राजस्थान की सरकारें होंगी। वस्तुत: इलैक्ट्रॉनिक मीडिया की यह हालत इस वजह से है कि एक तो इसका संचालन करने वालों में अधिसंख्य मोदी से प्रभावित हैं और दूसरा ये कि चैनल चलाना इतना महंगा है कि बिना सत्ता के आशीर्वाद के उसे चलाया ही नहीं जा सकता। बस संतोष की बात ये है कि हमारे लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आजादी पूरी तरह से खत्म नहीं हुई है और सत्ता से प्रताडि़त कुछ दिग्गज पत्रकार जरूर अपने-अपने यू ट्यूब चैनल्स के जरिए दूसरा पक्ष भी खुल कर पेश कर पा रहे हैं।
लब्बोलुआब, मीडिया के इस रूप के आज हम गवाह मात्र हैं, कर कुछ नहीं सकते।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

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