किसी भी सरकार के कामकाज की समीक्षा के लिए उसका तीन साल का कार्यकाल पर्याप्त होता है। केन्द्र में स्पष्ट बहुमत व राज्य में बंपर बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज भाजपा सरकारों के तीन-तीन साल पर खुफिया व मीडिया में आ रही रिपोर्टों में इस बात के साफ संकेत सामने आ रहे हैं कि भाजपा का ग्राफ काफी नीचे गिरा है। हालात इतने बदले बताए जा रहे हैं कि दोनों जगह भाजपा का सत्ता में लौटना कठिन हो जाएगा। इतना ही नहीं खुद भाजपा के ही मातृ संगठन आरएसएस के फीडबैक व इंटरनल सर्वे तक में कहा जा रहा है कि 2019 के आम चुनाव में भाजपा की हालत खस्ता हो सकती है।
अंग्रेजी अखबार द टेलीग्राफ में छपी रिपोर्ट के अनुसार संघ ने ज्वलंत मुद्दों पर जो फीडबैक लिया है, उससे जाहिर होता है कि आम लोगों में घोर निराशा है। विशेष रूप से नोटबंदी और उसके बाद जीएसटी की वजह से माहौल खराब हुआ है। यहां तक कि भाजपा मानसिकता का व्यापारी वर्ग भी त्रस्त है और अपनी पीड़ा कानाफूसी के जरिए व्यक्त कर रहा है। जिस काले धन को लेकर नरेन्द्र मोदी ने हल्ला मचा कर सत्ता पर कब्जा किया, उसको लेकर जनता में गहरा रोष है। नोटबंदी के बाद भी जब काला धन सामने नहीं आया तो जनता ठगा सा महसूस कर रही है। सोशल मीडिया पर कांग्रेस के हमले तेज हो गए हैं। जितनी तीखी व तल्ख टिप्पणियां पहले सोनिया गांधी, राहुल गांधी व मनमोहन सिंह के बारे में देखने को मिलती थीं, ठीक वैसी ही अब मोदी के बारे में आ रही हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि कांग्रेस ने भी भाजपा की तरह अपना आईटी सेल काफी मजबूत कर लिया है। ऐसा कोई मुद्दा नहीं होता, जिस पर कांग्रेस हमला करने से चुकती हो। यहां तक कि आम तौर पर भाजपा के पक्ष में लिखने वाले ब्लागरों का सुर भी अब बदलने लगा है। ऐसे में जनता के बीच जाने वाले निचले स्तर के भाजपा नेताओं को बहुत परेशानी होती है। उनसे सवालों के जवाब देते नहीं बनता।
अब तो मीडिया रिपोर्टें भी इस बात की ताईद कर रही हैं कि भाजपा की लोकप्रियता कम हुई है। राजस्थान के संदर्भ में बात करें तो जितनी अपेक्षा के साथ जनता के भाजपा को सत्ता सौंपी, उसके अनुरूप कुछ भी नहीं हुआ है। धरातल पर न तो भ्रष्टाचार कम हुआ है और न ही जनता को कोई राहत मिली है। भाजपा हाईकमान के साये में काम रही मुख्यमंत्री वसुंधरा का चेहरा भी चमक खोने लगा है। उनके खाते में एक भी बड़ी उपलब्धि नहीं है। खुफिया रिपोर्टों के अनुसार भाजपा के 163 विधायकों मेें से करीब एक सौ विधायकों का परफोरमेंस खराब है, जिसका भाजपा को नुकसान उठाना पड़ेगा। कानून-व्यवस्था तो बिगड़ी ही है, मगर जनता पर ज्यादा असर महंगाई का है। मोदी के सत्ता में आने पर जनता को जो उम्मीद थी, वह तो पूरी हुई नहीं, बल्कि उसके विपरीत महंगाई और बढ़ रही है। पेट्रोल के दाम अस्सी रुपए प्रति लीटर तक पहुंचने के बाद तो आम जन की कमर ही टूट गई है। ऐसा माना जा रहा है कि इन सब केलिए जनता केन्द्र सरकार की आर्थिक नीतियों को जिम्मेदार मान रही है।
ऐसा प्रतीत होता है कि जिस प्रकार पिछली बार केन्द्र की कांग्रेस नीत सरकार के खिलाफ अन्ना हजारे द्वारा बनाए गए माहौल के चलते राज्य में कांग्रेस की सरकार गई, ठीक वैसे ही मोदी की नीतियां राज्य में भाजपा के लिए मुश्किल पैदा करने वाली हैं। पहले भाजपा के पास राज्य में वसुंधरा का चेहरा था, मगर अब वह कामयाब होता नहीं दिखाई दे रहा है। अब केवल मोदी ब्रांड पर ही भाजपा की आस टिकी है, वह भी पहले की तुलना काफी फीका हो गया है। जो कुछ भी हो, इतना तो तय है कि पहले की तरह इस बार मोदी लहर की कोई उम्मीद नहीं है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
अंग्रेजी अखबार द टेलीग्राफ में छपी रिपोर्ट के अनुसार संघ ने ज्वलंत मुद्दों पर जो फीडबैक लिया है, उससे जाहिर होता है कि आम लोगों में घोर निराशा है। विशेष रूप से नोटबंदी और उसके बाद जीएसटी की वजह से माहौल खराब हुआ है। यहां तक कि भाजपा मानसिकता का व्यापारी वर्ग भी त्रस्त है और अपनी पीड़ा कानाफूसी के जरिए व्यक्त कर रहा है। जिस काले धन को लेकर नरेन्द्र मोदी ने हल्ला मचा कर सत्ता पर कब्जा किया, उसको लेकर जनता में गहरा रोष है। नोटबंदी के बाद भी जब काला धन सामने नहीं आया तो जनता ठगा सा महसूस कर रही है। सोशल मीडिया पर कांग्रेस के हमले तेज हो गए हैं। जितनी तीखी व तल्ख टिप्पणियां पहले सोनिया गांधी, राहुल गांधी व मनमोहन सिंह के बारे में देखने को मिलती थीं, ठीक वैसी ही अब मोदी के बारे में आ रही हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि कांग्रेस ने भी भाजपा की तरह अपना आईटी सेल काफी मजबूत कर लिया है। ऐसा कोई मुद्दा नहीं होता, जिस पर कांग्रेस हमला करने से चुकती हो। यहां तक कि आम तौर पर भाजपा के पक्ष में लिखने वाले ब्लागरों का सुर भी अब बदलने लगा है। ऐसे में जनता के बीच जाने वाले निचले स्तर के भाजपा नेताओं को बहुत परेशानी होती है। उनसे सवालों के जवाब देते नहीं बनता।
अब तो मीडिया रिपोर्टें भी इस बात की ताईद कर रही हैं कि भाजपा की लोकप्रियता कम हुई है। राजस्थान के संदर्भ में बात करें तो जितनी अपेक्षा के साथ जनता के भाजपा को सत्ता सौंपी, उसके अनुरूप कुछ भी नहीं हुआ है। धरातल पर न तो भ्रष्टाचार कम हुआ है और न ही जनता को कोई राहत मिली है। भाजपा हाईकमान के साये में काम रही मुख्यमंत्री वसुंधरा का चेहरा भी चमक खोने लगा है। उनके खाते में एक भी बड़ी उपलब्धि नहीं है। खुफिया रिपोर्टों के अनुसार भाजपा के 163 विधायकों मेें से करीब एक सौ विधायकों का परफोरमेंस खराब है, जिसका भाजपा को नुकसान उठाना पड़ेगा। कानून-व्यवस्था तो बिगड़ी ही है, मगर जनता पर ज्यादा असर महंगाई का है। मोदी के सत्ता में आने पर जनता को जो उम्मीद थी, वह तो पूरी हुई नहीं, बल्कि उसके विपरीत महंगाई और बढ़ रही है। पेट्रोल के दाम अस्सी रुपए प्रति लीटर तक पहुंचने के बाद तो आम जन की कमर ही टूट गई है। ऐसा माना जा रहा है कि इन सब केलिए जनता केन्द्र सरकार की आर्थिक नीतियों को जिम्मेदार मान रही है।
ऐसा प्रतीत होता है कि जिस प्रकार पिछली बार केन्द्र की कांग्रेस नीत सरकार के खिलाफ अन्ना हजारे द्वारा बनाए गए माहौल के चलते राज्य में कांग्रेस की सरकार गई, ठीक वैसे ही मोदी की नीतियां राज्य में भाजपा के लिए मुश्किल पैदा करने वाली हैं। पहले भाजपा के पास राज्य में वसुंधरा का चेहरा था, मगर अब वह कामयाब होता नहीं दिखाई दे रहा है। अब केवल मोदी ब्रांड पर ही भाजपा की आस टिकी है, वह भी पहले की तुलना काफी फीका हो गया है। जो कुछ भी हो, इतना तो तय है कि पहले की तरह इस बार मोदी लहर की कोई उम्मीद नहीं है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
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