हालांकि लंबे इंतजार व जद्दोजहद के बाद राज्य की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे अपने मंत्रीमंडल का विस्तार तो कर पाईं और इसके साथ ही उनके तख्तापटल की आशंकाएं टल गईं, मगर राजनीतिक हलकों में अब भी यही राय है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उन्हें ज्यादा समय तक मुख्यमंत्री बने नहीं रहने देंगे। पिं्रट व इलैक्ट्रॉनिक मीडिया पर हालांकि बहुत कुछ खुल कर सामने नहीं आ पाया, मगर इन दिनों सर्वाधिक सक्रिय सोशल मीडिया पर तो साफ तौर पर ये खबरें चल रही थीं कि जल्द ही पूर्व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ओम प्रकाश माथुर राज्य के मुख्यमंत्री बना दिए जाएंगे।
असल में जिस प्रकार राज्य मंत्रीमंडल के विस्तार में बाधाएं आईं, जिसकी वजह से भाजपा को उपचुनाव में झटका भी झेलना पड़ा, उसी से लग गया था कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व वसुंधरा राजे के बीच सब कुछ ठीकठाक नहीं है। मंत्रीमंडल विस्तार के लिए वसुंधरा राजे को कई बार दिल्ली जाना पड़ा, मगर तकरीबन दस माह बाद जा कर उन्हें सफलता हासिल हो पाई। हालांकि मंत्रीमंडल को संतुलित किया गया है, मगर अब भी माना जाता है कि संघ लॉबी के घनश्याम तिवाड़ी व नरपत सिंह राजवी सरीखे कुछ प्रमुख नेता समायोजित नहीं हो पाए हैं, इस कारण मनमुटाव की फांस बरकरार है। यह तब और अधिक दुखदायी हो गई, जब पिछले दिनों वसुंधरा ने यह कह दिया कि इतना प्रचंड बहुमत किसी एक व्यक्ति का कमाल नहीं, बल्कि कार्यकर्ताओं की मेहनत व जनता का आशीर्वाद है। इसको लेकर खूब खबरबाजी हुई। बताया जाता है कि इसको लेकर मोदी की नाराजगी और बढ़ गई है। वसुंधरा के इस बयान को सीधे तौर पर मोदी पर निशाना करने के रूप में देखा गया। जाहिर तौर पर वसुंधरा विरोधी लॉबी ने इसका फायदा उठाने की कोशिश की होगी। ऐसे में माना यही जा रहा है कि वसुंधरा राजे सुरक्षित तो कत्तई नहीं है। आम धारणा यही बनती जा रही है कि मोदी को जैसे ही मौका मिलेगा, वे वसुंधरा को निपटा देंगे। कुछ लोग मानते हैं कि ऐसा वे दो-तीन माह में कर लेंगे, जबकि कुछ का मानना है कि स्थानीय निकाय चुनाव में उनको परफोरमेंस दिखाने के लिए कम से कम एक साल और मौका दिया जाएगा। बताया जाता है कि ओम प्रकाश माथुर को उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाए जाने के बाद वसुंधरा को कुछ राहत मिली है। वैसे भी ये माना जा रहा था कि माथुर को भले ही ऊपर से थोपने की कोशिश की जाए, मगर विधायकों की आमराय उनके पक्ष में बनाना कठिन होगा। माना जाता है कि वे एक अच्छे रणनीतिकार व संगठनकर्ता तो हैं, प्रशासनिक तौर पर उतने कुशल नहीं, जितना एक मुख्यमंत्री को होना चाहिए। इसी वजह से बीच में गृहमंत्री गुलाब चंद कटारिया का भी नाम सामने आया था।
कुल मिला कर माना यही जा रहा है कि वसुंधरा विरोधी लॉबी अभी तक सक्रिय है और वह घात लगा कर बैठी है कि कब उन्हें कमजोर साबित किया जाए। हाईकमान की भी उन पर पैनी नजर है। ऐसे में वसुंधरा को बहुत सुरक्षित नहीं माना जा सकता।
-तेजवानी गिरधर
असल में जिस प्रकार राज्य मंत्रीमंडल के विस्तार में बाधाएं आईं, जिसकी वजह से भाजपा को उपचुनाव में झटका भी झेलना पड़ा, उसी से लग गया था कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व वसुंधरा राजे के बीच सब कुछ ठीकठाक नहीं है। मंत्रीमंडल विस्तार के लिए वसुंधरा राजे को कई बार दिल्ली जाना पड़ा, मगर तकरीबन दस माह बाद जा कर उन्हें सफलता हासिल हो पाई। हालांकि मंत्रीमंडल को संतुलित किया गया है, मगर अब भी माना जाता है कि संघ लॉबी के घनश्याम तिवाड़ी व नरपत सिंह राजवी सरीखे कुछ प्रमुख नेता समायोजित नहीं हो पाए हैं, इस कारण मनमुटाव की फांस बरकरार है। यह तब और अधिक दुखदायी हो गई, जब पिछले दिनों वसुंधरा ने यह कह दिया कि इतना प्रचंड बहुमत किसी एक व्यक्ति का कमाल नहीं, बल्कि कार्यकर्ताओं की मेहनत व जनता का आशीर्वाद है। इसको लेकर खूब खबरबाजी हुई। बताया जाता है कि इसको लेकर मोदी की नाराजगी और बढ़ गई है। वसुंधरा के इस बयान को सीधे तौर पर मोदी पर निशाना करने के रूप में देखा गया। जाहिर तौर पर वसुंधरा विरोधी लॉबी ने इसका फायदा उठाने की कोशिश की होगी। ऐसे में माना यही जा रहा है कि वसुंधरा राजे सुरक्षित तो कत्तई नहीं है। आम धारणा यही बनती जा रही है कि मोदी को जैसे ही मौका मिलेगा, वे वसुंधरा को निपटा देंगे। कुछ लोग मानते हैं कि ऐसा वे दो-तीन माह में कर लेंगे, जबकि कुछ का मानना है कि स्थानीय निकाय चुनाव में उनको परफोरमेंस दिखाने के लिए कम से कम एक साल और मौका दिया जाएगा। बताया जाता है कि ओम प्रकाश माथुर को उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाए जाने के बाद वसुंधरा को कुछ राहत मिली है। वैसे भी ये माना जा रहा था कि माथुर को भले ही ऊपर से थोपने की कोशिश की जाए, मगर विधायकों की आमराय उनके पक्ष में बनाना कठिन होगा। माना जाता है कि वे एक अच्छे रणनीतिकार व संगठनकर्ता तो हैं, प्रशासनिक तौर पर उतने कुशल नहीं, जितना एक मुख्यमंत्री को होना चाहिए। इसी वजह से बीच में गृहमंत्री गुलाब चंद कटारिया का भी नाम सामने आया था।
कुल मिला कर माना यही जा रहा है कि वसुंधरा विरोधी लॉबी अभी तक सक्रिय है और वह घात लगा कर बैठी है कि कब उन्हें कमजोर साबित किया जाए। हाईकमान की भी उन पर पैनी नजर है। ऐसे में वसुंधरा को बहुत सुरक्षित नहीं माना जा सकता।
-तेजवानी गिरधर
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