न्यूयॉर्क में अखिल भारतीय राजस्थानी मान्यता संघर्ष समिति ने विश्व भाषा दिवस पर गत दिवस गोष्ठी कर राजस्थानी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल किए जाने की मांग करते हुए कहा कि ऐसा नहीं होने तक समिति चुप नहीं बैठेगी। समिति के अंतरराष्ट्रीय संयोजक प्रेम भंडारी, न्यूयॉर्क में समिति के संयोजक सुशील गोयल तथा सह संयोजक चंद्र प्रकाश सुखवाल ने अपने मुंह पर राजस्थानी बिना गूंगो राजस्थान लिखी पट्टी बांधकर अपनी मांग रखी। इस मौके पर न्यूयॉर्क के काउंसिल जनरल ऑफ इंडिया प्रभु दयाल के सम्मान में भंडारी ने भोज भी दिया। इस कार्यक्रम से साफ नजर आ रहा था कि यह मात्र एक रस्म थी, जिसे हर साल भाषा दिवस अथवा अन्य मौकों पर गाहे-बगाहे निभाया जाता है, बाकी इस मांग को वाकई मनवाने के प्रति न तो जज्बा है और न ही समर्पण। आज जब किसी भी मांग के लिए लंबा और तेज आंदोलन देखे बिना उसे पूरा करने की सरकारों की प्रवृत्ति सी बन गई है, भला इस प्रकार के रस्मी आयोजनों से क्या होने वाला है?
कुछ इसी तरह की रस्म अजमेर में राजस्थानी भाषा मोट्यार परिषद के बैनर तले निभाई गई, जिसमें राजस्थानी भाषा में उच्च योग्यता हासिल कर चुके छात्रों ने कलेक्टर को मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन दिया। इस मौके पर अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति अजमेर संभाग के संभागीय अध्यक्ष नवीन सोगानी के नेतृत्व में कलेक्ट्रेट कार्यालय पर रस्मी धरना दिया गया, जिस में चंद लोगों ने शिरकत की।
कुछ इसी तरह का प्रहसन राजस्थान लोक सेवा आयोग की प्रतियोगी परीक्षाओं में राजस्थानी भाषा का अलग प्रश्न पत्र रखने की मांग करने वाली अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति ने आरटेट में भी राजस्थानी भाषा को शामिल करने की अलख तो जगाने की कोशिश की थी, मगर उसका असर कहीं नजर नहीं आया। समिति ने परीक्षा वाले दिन को दिन काला दिवस के रूप में मनाया। इस मौके पर पदाधिकारियों ने आरटेट अभ्यर्थियों व शहरवासियों को पेम्फलेट्स वितरित कर अभ्यर्थियों से काली पट्टी बांध कर परीक्षा देने का आग्रह किया, मगर एक भी अभ्यर्थी ने काली पट्टी बांध कर परीक्षा नहीं दी। अनेक केंद्रों पर तो अभ्यर्थियों को यह भी नहीं पता था कि आज कोई काला दिवस मनाया गया है। अजमेर ही नहीं, राज्य स्तर पर यह मुहिम चलाई गई। यहां तक कि न्यूयॉर्क से अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति के अंतरराष्ट्रीय संयोजक तथा राना के मीडिया चेयरमैन प्रेम भंडारी ने भी राज्य सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए काली पट्टी नत्थी कर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पत्र प्रेषित किया।
सवाल ये उठता है कि आखिर क्या वजह है कि राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव केन्द्र सरकार के पास पिछले दस साल से पड़ा है और उस पर कोई कार्यवाही नहीं हो रही? कहीं ऐसा तो नहीं कि हम राजनेताओं में इस मांग को पूरा करवाने के लिए इच्छा शक्ति ही नहीं जगा पाए? राजनेताओं की छोडिय़े क्या वजह है किराजस्थानी संस्कृति की अस्मिता से जुड़ा यह विषय आम राजस्थानी को आंदोलित क्यों नहीं कर रहा? कहीं ऐसा तो नहीं कि समिति की ओर उठाई गई मांग केवल चंद राजस्थानी भाषा प्रेमियों की मांग है, आम राजस्थानी को उससे कोई सरोकार नहीं? या आम राजस्थानी को समझ में ही नहीं आ रहा कि उनके हित की बात की जा रही है? कहीं ऐसा तो नहीं कि इस मुहिम को चलाने वाले नेता हवाई हैं, उनकी आम लोगों में न तो कोई खास पकड़ है और न ही उनकी आवाज में दम है? कहीं ऐसा तो नहीं कि ये नेता कहने भर को जाने-पहचाने चेहरे हैं, उनके पीछे आम आदमी नहीं जुड़ा हुआ है? कहीं ऐसा तो नहीं कि समिति लाख कोशिश के बाद भी राजनीतिक नेताओं का समर्थन हासिल नहीं कर पाई है? कहीं ऐसा तो नहीं कि यह पूरी मुहिम केवल मीडिया के सहयोग की देन है, इस कारण धरातल पर इसका कोई असर नहीं नजर आता? जरूर कहीं न कहीं गड़बड़ है। इस पर समिति के सभी पदाधिकारियों को गंभीर चिंतन करना होगा। उन्हें इस पर विचार करना होगा कि जनजागृति लाने के लिए कौन सा तरीका अपनाया जाए। आम राजस्थानी को भी समझना होगा कि ये मुहिम उसकी मातृभाषा की अस्मिता की खातिर है, अत: इसे सहयोग देना उसका परम कर्तव्य है।
-तेजवानी गिरधर
कुछ इसी तरह की रस्म अजमेर में राजस्थानी भाषा मोट्यार परिषद के बैनर तले निभाई गई, जिसमें राजस्थानी भाषा में उच्च योग्यता हासिल कर चुके छात्रों ने कलेक्टर को मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन दिया। इस मौके पर अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति अजमेर संभाग के संभागीय अध्यक्ष नवीन सोगानी के नेतृत्व में कलेक्ट्रेट कार्यालय पर रस्मी धरना दिया गया, जिस में चंद लोगों ने शिरकत की।
कुछ इसी तरह का प्रहसन राजस्थान लोक सेवा आयोग की प्रतियोगी परीक्षाओं में राजस्थानी भाषा का अलग प्रश्न पत्र रखने की मांग करने वाली अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति ने आरटेट में भी राजस्थानी भाषा को शामिल करने की अलख तो जगाने की कोशिश की थी, मगर उसका असर कहीं नजर नहीं आया। समिति ने परीक्षा वाले दिन को दिन काला दिवस के रूप में मनाया। इस मौके पर पदाधिकारियों ने आरटेट अभ्यर्थियों व शहरवासियों को पेम्फलेट्स वितरित कर अभ्यर्थियों से काली पट्टी बांध कर परीक्षा देने का आग्रह किया, मगर एक भी अभ्यर्थी ने काली पट्टी बांध कर परीक्षा नहीं दी। अनेक केंद्रों पर तो अभ्यर्थियों को यह भी नहीं पता था कि आज कोई काला दिवस मनाया गया है। अजमेर ही नहीं, राज्य स्तर पर यह मुहिम चलाई गई। यहां तक कि न्यूयॉर्क से अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति के अंतरराष्ट्रीय संयोजक तथा राना के मीडिया चेयरमैन प्रेम भंडारी ने भी राज्य सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए काली पट्टी नत्थी कर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पत्र प्रेषित किया।
सवाल ये उठता है कि आखिर क्या वजह है कि राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव केन्द्र सरकार के पास पिछले दस साल से पड़ा है और उस पर कोई कार्यवाही नहीं हो रही? कहीं ऐसा तो नहीं कि हम राजनेताओं में इस मांग को पूरा करवाने के लिए इच्छा शक्ति ही नहीं जगा पाए? राजनेताओं की छोडिय़े क्या वजह है किराजस्थानी संस्कृति की अस्मिता से जुड़ा यह विषय आम राजस्थानी को आंदोलित क्यों नहीं कर रहा? कहीं ऐसा तो नहीं कि समिति की ओर उठाई गई मांग केवल चंद राजस्थानी भाषा प्रेमियों की मांग है, आम राजस्थानी को उससे कोई सरोकार नहीं? या आम राजस्थानी को समझ में ही नहीं आ रहा कि उनके हित की बात की जा रही है? कहीं ऐसा तो नहीं कि इस मुहिम को चलाने वाले नेता हवाई हैं, उनकी आम लोगों में न तो कोई खास पकड़ है और न ही उनकी आवाज में दम है? कहीं ऐसा तो नहीं कि ये नेता कहने भर को जाने-पहचाने चेहरे हैं, उनके पीछे आम आदमी नहीं जुड़ा हुआ है? कहीं ऐसा तो नहीं कि समिति लाख कोशिश के बाद भी राजनीतिक नेताओं का समर्थन हासिल नहीं कर पाई है? कहीं ऐसा तो नहीं कि यह पूरी मुहिम केवल मीडिया के सहयोग की देन है, इस कारण धरातल पर इसका कोई असर नहीं नजर आता? जरूर कहीं न कहीं गड़बड़ है। इस पर समिति के सभी पदाधिकारियों को गंभीर चिंतन करना होगा। उन्हें इस पर विचार करना होगा कि जनजागृति लाने के लिए कौन सा तरीका अपनाया जाए। आम राजस्थानी को भी समझना होगा कि ये मुहिम उसकी मातृभाषा की अस्मिता की खातिर है, अत: इसे सहयोग देना उसका परम कर्तव्य है।
-तेजवानी गिरधर
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