भाजपा के प्रमुख नेता हरिशंकर भाभड़ा ने दैनिक भास्कर के वरिष्ठ पत्रकार त्रिभुवन से की खुली बात में अपने आकलन में एक सच को उद्घाटित करते हुए भले ही यह कह दिया हो कि जनता का कांग्रेस व भाजपा से मोहभंग हो गया है और वह अब नेगेटिव वोटिंग करने लगी है, मगर उनके इस साक्षात्कार से ये भी इशारा मिलता है कि भाजपा में ऊंचाई छूने के बाद हाशिये पर जाने पर खुद उनका भी भाजपा से मोहभंग हो गया है। उन्होंने भाजपा के अंदरूनी स्थिति पर जिस प्रकार बेबाक बयानी की है, उससे यह साफ है कि पार्टी में बहुत कुछ खो चुकने के बाद उन्हें अब और कुछ खोने का डर नहीं रहा।
सबसे बड़ी बात ये है कि उन्होंने अपनी पूरी बात में कांग्रेस व भाजपा को बराबर ला कर खड़ा कर दिया है, तभी तो बोले कि लोग अब भाजपा को भी कांग्रेस की तरह समझने लगे हैं। दोनों का अंतर कम हो गया। लोग भ्रमित हैं कि किसे वोट दें! अर्थात भाजपा की ताजा स्थिति से पूरी तरह से असंतुष्ठ हैं और इसके लिए कहीं न कहीं पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के प्रभाव वाली भाजपा को जिम्मेदार मान रहे हैं। अपनी ही पार्टी से वितृष्णा का आलम देखिए कि वे इस हद तक कह गए कि जनता अपराधियों और भ्रष्टाचारियों को जिता रही है। वहीं से कांग्रेस में लोग आते हैं और वहीं से भाजपा में। पहले राजाओं का वर्चस्व था। अब पैसे और सत्ता के बल पर नए जागीरदार पैदा हो गए। उन्हीं की घणी-खम्मां हो रही है। अघोषित राजतंत्र है। अपने कुटुंब को आगे बढ़ाते हैं। टिकट भी उनको, पद भी उनको। सब पार्टियों में यही हाल है।
जिस वसुंधरा के कारण आज वे खंडहर की माफिक हो गए हैं, उनके बारे में उनकी क्या धारणा है, इसका खुलासा होता है उनके इस बयान से कि जनता ने राजा-रानियों को एक मौका तो दिया, लेकिन कुछ नहीं किया तो दूसरा मौका नहीं दिया। उनकी धारणा का अंदाजा उनके इस जवाब से भी मिलता है कि वसुंधरा बहुत काबिल हैं। उनकी हर विषय पर पकड़ है। उन्हें भाषा की कठिनाई नहीं है। वसुंधरा की प्रशासन पर पकड़ अच्छी थी, लेकिन कुछ एलीमेंट तो ऐसे होते ही हैं, जिन पर कोई कंट्रोल नहीं कर सकता!
जिस भाजपा के इस बार सत्ता पर काबिज होने की आम धारणा है, उसी पार्टी का एक वरिष्ठ नेता अगर ये कहे कि भाजपा और कांग्रेस को खतरा एक-दूसरे से नहीं, अपने आपके भीतर पैदा हो चुके विरोधियों से है, तो समझा जा सकता है कि भाजपा की अंदरूनी स्थिति क्या है। जाहिर है वे गुटबाजी से बेहद त्रस्त हैं। इसी कारण बोलते हैं कि भाजपा के दोनों गुटों की अपनी महत्वाकांक्षाएं हैं। एक गुटबाजी करेगा तो दूसरा भी करेगा। एक गुटबाजी के लिए जिम्मेदार होता है, दूसरा तो प्रतिक्रिया करता है। जब उनसे पूछा गया कि इसके लिए जिम्मेदार कौन है तो यह कह कर मन की बात छिपाने की कोशिश करते हैं कि जिसने गुटबाजी शुरू की। जब पूछा जाता है कि किसने शुरुआत की तो यह कह कर बचने की कोशिश भी करते हैं कि यह खोज का विषय है।
पार्टी में मर्यादा कम होने से हुई पीड़ा का ही नतीजा है कि वे यह कहने से नहीं चूकते कि हम मर्यादा रखते थे। शेखावत को नेता माना तो माना। उनसे हम आपत्ति रखते थे तो वे जायज चीजें तुरंत मान लेते थे। वे जिद्दी नहीं थे। इससे झगड़ा नहीं होता था।
वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री पद का दावेदार मान कर चुनाव लडऩे के मुद्दे पर उनके क्या विचार हैं, ये उनके इस जवाब से स्पष्ट हो जाता है:-जरूरी नहीं कि किसी को लोकतंत्र में चुनाव से पहले नेता घोषित किया जाए। किसी एक आदमी को नेता तब घोषित किया जाता है, जब उसका नाम घोषित होने से लाभ होता हो। यह गंभीर प्रश्न है कि नेता घोषित हो कि नहीं! यह विषय केंद्रीय चुनाव समिति तय करती है। वह फायदे और नुकसान देखे। . .भैरोसिंह शेखावत मुख्यमंत्री रहे, लेकिन उन्हें कभी मुख्यमंत्री घोषित थोड़े किया गया था। आज यह तो तय है कि मुख्यमंत्री कौन बनेगा?
इससे भी एक कदम आगे बढ़ कर बोलते हैं कि आप बात तो लोकतंत्र की करते हैं तो किसी को मुख्यमंत्री पहले कैसे घोषित कर सकते हैं! आप चुने हुए विधायकों के अधिकार की अवहेलना कैसे कर सकते हैं! कई बार नेता घोषित करने के दुष्परिणाम भी होते हैं। महत्वाकांक्षाएं जब सीमा पार कर जाती हैं तो वे पार्टी के लिए घातक होती हैं।
जब वसुंधरा की लोकप्रियता का पार्टी को लाभ मिलने का सवाल किया गया तो बोलते हैं कि भाजपा में टीम वर्क रहा है। कभी उन्होंने किसी व्यक्ति पर अपने आपको आश्रित नहीं किया।
कुल मिला कर भाभड़ा के इस साक्षात्कार से चुके हुए भाजपा नेताओं की धारणा का खुल कर आभास होता है।
-तेजवानी गिरधर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें