तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

शुक्रवार, अक्तूबर 19, 2012

खुद अंजलि का घर शीशे का, पत्थर मारने चली


एक कहावत है कि जिनके खुद के घर शीशे के होते हैं, वे दूसरों के शीशे के घरों पर पत्थर नहीं मारा करते। लगता है ये कहावत बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी पर किसानों की जमीन हड़पने का आरोप लगाने वाली अंजलि दमानिया ने नहीं सुनी है। तभी तो केजरीवाल को बेवकूफ बना कर किए गए हवन उनके हाथों पर भी आंच आने लगी है। ये बात दीगर है कि अंजलि ये कह कर अपना पिंड छुड़वा रही हैं कि भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद करने की वजह से उन्हें निशाना बनाया जा रहा है।
आपको याद होगा कि जब केजरवाली व दमानिया प्रेस कांफ्रेंस कर रहे थे तो टीम अन्ना की एक महिला कार्यकर्ता ने दमानिया पर सवाल उठाया था, मगर शोरगुल में वह खो गया। उस वक्त भले ही मामला दब गया हो, मगर बात चली तो दूर तक जाएगी। केजरीवाल भी सोच रहे होंगे कि बिना मामले की जांच किए दमानिया के चक्कर में अपनी क्रेडिट खराब करवा ली।
बताते हैं कि दमानिया ने खेती की जमीन खरीदने के लिए खुद को गलत तरीके से किसान साबित किया और बाद में जमीन का लैंड यूज बदलवा कर उसे प्लॉट में तब्दील कर बेच दिया। रायगढ़ प्रशासन ने जांच में पाया कि अंजलि दमानिया का किसान होने का दाव गलत है। बताते हैं कि दमानिया एसवीवी डेवलपर्स की डायरेक्टर भी हैं। जिस जगह उन्होंने गडकरी पर जमीन हड़पने का आरोप लगाया है, उसी के आसपास दमानिया की भी 30 एकड़ जमीन है। दमानिया ने 2007 में करजत तालुका के कोंडिवाडे गांव में आदिवासी किसानों से उल्हास नदी के पास जमीनें खरीदीं। आदिवासियों से जमीन खरीदने की शर्त पूरी करने के लिए उन्होंने नजदीक के कलसे गांव में पहले से किसानी करने का सर्टिफिकेट जमा किया। अपनी 30 एकड़ की जमीन के पास ही दमानिया ने 2007 में खेती की 7 एकड़ जमीन और खरीदी थी, जिसका लैंड यूज बदल कर उन्होंने बेच दिया। करजत के दो किसानों से उन्होंने जमीन लेते वक्त खेती करने का वादा किया था, लेकिन बाद में उस जमीन पर प्लॉट काटकर बेच दिए। बताते हैं कि पहले दमानिया और गडकरी के बीच अच्छे ताल्लुकात थे, लेकिन प्रस्तावित कोंधवाने डैम में पड़ रही 30 एकड़ जमीन बचाने में गडकरी से भरपूर मदद न मिलने की वजह से वह बीजेपी अध्यक्ष के खिलाफ मोर्चा खोल बैठीं। सवाल ये है कि जो दमानिया गडकरी के विकिट उड़ाने तक तो उतारू हो गई, लेकिन उनकी नैतिकता उस समय कहां थी जब उन्होंने अपनी जमीन बचाने के लिए आदिवासियों की जमीनें अधिग्रहित करने की मांग की।

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