तीसरी आंख

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मंगलवार, अगस्त 05, 2025

जन्म के बाद नामकरण तक पूजा वर्जित क्यों?

जन्म के बाद नामकरण संस्कार तक पूजा-पाठ को वर्जित माना जाता है? इसके पीछे धार्मिक, शास्त्रीय और व्यवहारिक कारण होते हैं, जो भारतीय सनातन परंपरा और संस्कृति से जुड़े हैं। वस्तुतः बच्चे के जन्म के बाद लगभग 10 दिन तक का समय सूतक काल कहलाता है। इस अवधि में घर में पूजा-पाठ, यज्ञ, हवन, मंदिर प्रवेश आदि वर्जित माने जाते हैं। यह समय मां और नवजात के लिए शुद्धिकरण और विश्राम का होता है। प्रसव के दौरान शरीर से रक्त और अन्य तरल पदार्थ निकलते हैं, जिसे धार्मिक दृष्टि से अशुद्ध माना जाता है। मां का शरीर और घर का वातावरण संक्रमण की दृष्टि से संवेदनशील होता है, अतः विश्राम और शुद्धि जरूरी मानी गई है। नवजात शिशु को इस दौरान संस्कारों और पूजा के योग्य नहीं माना जाता, क्योंकि वह अभी सामाजिक और धार्मिक जीवन का हिस्सा नहीं बना होता।

नामकरण संस्कार के साथ ही उसे एक धार्मिक पहचान और सामाजिक स्थान प्राप्त होता है। नामकरण संस्कार केवल नाम देने की प्रक्रिया नहीं, बल्कि यह एक धार्मिक अनुष्ठान है, संस्कार है, जिसमें शिशु को पहली बार उसका नाम सुनाया जाता है।

इसके बाद ही शिशु को धार्मिक अनुष्ठानों में सम्मिलित किया जाता है। मनुस्मृति, गृह्यसूत्र, धर्मशास्त्रों में स्पष्ट निर्देश है कि सूतक काल में कोई भी पवित्र कर्म जैसे पूजा, यज्ञ, श्राद्ध आदि नहीं करने चाहिए।

एक सवाल यह भी कि क्या जन्म के बाद नामकरण संस्कार तक पूजा करने से वह नकारात्मक शक्तियों को मिलती है? शास्त्रों में बताया गया है कि शिशु के जन्म के बाद सूतक काल में की गई पूजा को देवताओं तक नहीं पहुंचने योग्य बताया गया है। इससे उल्टा प्रभाव हो सकता है, यानी आत्मिक शुद्धि की जगह मानसिक व्याकुलता। यदि धार्मिक कार्य अशुद्ध शरीर, वस्त्र या भाव से किए जाएं, तो वे फलदायी नहीं होते, बल्कि कुछ शास्त्रों में इसे अपवित्र यज्ञ कहा गया है, जो पितरों या अन्य अदृश्य शक्तियों को अप्रसन्न कर सकता है। सूतक काल में शरीर की ऊर्जा कमजोर होती है। पूजा-पाठ एक उच्चतर ऊर्जा स्तर की क्रिया है, यदि वह अशुद्ध या कमजोर ऊर्जा से की जाए तो आसपास की सूक्ष्म नकारात्मक शक्तियां आकर्षित हो सकती हैं।

परंपराएं बताती हैं कि नवजात शिशु के आसपास की रक्षा करने वाले तंत्र बहुत कोमल होते हैं। कोई भी असंतुलन जैसे शास्त्रविरुद्ध पूजा उस सुरक्षा कवच को भेद सकता है, जिससे नकारात्मक ऊर्जाओं का प्रभाव संभव है।

 

https://youtu.be/93Wkzhy9qdg

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शुक्रवार, अगस्त 01, 2025

क्या ब्रह्मा जी के और मंदिर भी हैं?

दोस्तो, नमस्कार। यह आम धारणा है कि जगतपिता ब्रह्मा जी का एक मात्र मंदिर तीर्थराज पुश्कर में ही है। लेकिन कुछ तथ्य व दावे ऐसे में भी समाने आए हैं कि ब्रह्माजी के और मंदिर भी हैं। जहां तक तीर्थराज पुश्कर के ब्रह्माजी मंदिर का सवाल है तो यह सबसे प्रसिद्ध और पुराना मंदिर है। इसके जुडी कथा के अनुसार उन्हें उनकी पत्नी सावित्री ने श्राप दिया था। श्राप से जुड़ी कथा पद्म पुराण, स्कंद पुराण और कुछ अन्य पुराणों में मिलती है। वो यह कि जब ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की, तब ब्रह्माजी पुष्कर में यज्ञ कर रहे थे। यज्ञ में पत्नी का उपस्थिति होना अनिवार्य था। सावित्री यज्ञ में देर से पहुंचीं। यज्ञ का शुभ मुहूर्त निकलता जा रहा था। तब ब्रह्माजी ने तत्काल एक स्थानीय गायत्री नामक कन्या से विवाह कर लिया और उनके साथ यज्ञ आरंभ कर दिया। जब सावित्री वहां पहुंचीं और यह देखा, तो उन्हें अत्यंत क्रोध हुआ। उन्होंने ब्रह्माजी को यह श्राप दिया कि तुम्हारी पूजा संसार में पुश्कर के अतिरिकत कहीं भी विशेष रूप से नहीं होगी। यही कारण माना जाता है कि ब्रह्माजी के मंदिर अत्यंत विरले हैं।

राजस्थान सरकार के पर्यटन दस्तावेज में उल्लेख है कि बांसवाड़ा के निकट स्थित बेणेश्वर धाम (जिसे वागड़ प्रयाग के नाम से भी जाना जाता है), त्रिवेणी संगम यानी सोम, माही और जाखम नदियों के मिलन स्थल पर मावजी महाराज की तपोस्थली स्थित है, जहां ब्रह्मा जी का भी मंदिर मौजूद है। आदिवासी यहां बड़ी संख्या में आते हैं, खासकर माघ पूर्णिमा को।

हरियाणा के फरीदबाद गांव असोटी में भी ब्रह्मा जी मंदिर है।

इसी प्रकार तमिलनाडू के तिरूपत्तूर में भी ब्रह्मा जी का मंदिर है, जहां लोग भाग्य सुधारने के लिए पूजा करते हैं। मान्यता है कि यहां ब्रह्मा ने पुनः सृजन कार्य किया था।

इसी प्रकार तमिलनाडू के थंजावुर जिले में कंबहम में ब्रह्माजी का मंदिर है। बांसवाडा जिले के त्रिवेणी संगम पर भी मावजी महाराज की तपोस्थली पर एक ब्रह्मा मंदिर स्थित है। यह क्षेत्र आदिवासी संस्कृति और संत परंपरा से जुड़ा है।

पौराणिक कथा के अनुसार, ब्रह्मा जी ने झूठ बोलकर यज्ञ में स्थान पाने की कोशिश की थी और भगवान शिव ने उन्हें शाप दिया कि उनकी पूजा धरती पर नहीं होगी। इसी कारण उनके मंदिर दुर्लभ हैं।

नसीराबाद के वरिश्ठ पत्रकार श्री सुधीर मित्तल ने बताया कि लोहरवाडा स्थित रामपुरा तेजाजी धाम पर भी ब्रह्माजी का मंदिर है। धाम के उपासक श्री रतन जी प्रजापति का कहना है कि ऐसी धारणा है कि जो भी ब्रह्माजी का मंदिर बनवाता है, वह मर जाता है। लेकिन बारह साल से भी अधिक हो चुके हैं, उन्हें बुखार तक नहीं आया।

https://youtu.be/-VU3Pv-rdX4
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