जैसी कि आशंका थी, वही होने जा रहा प्रतीत होता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मंत्रियों को काम करने की सीमित छूट देंगे और सारे फैसलों पर खुद ही नजर रखेंगे, इसका आभास तब हुआ था, जब उन्होंने प्रधानमंत्री बनने के कुछ दिन बाद ही सारे मंत्रालयों के सचिवों की संयुक्त बैठक बुला ली। बेशक उनके इस कदम को इस अर्थ में लिया गया कि वे स्वयं बहुत मेहनत कर रहे हैं, ताकि कहीं कोई गड़बड़ न हो, मगर दूसरी ओर इसे इस अर्थ में लिया गया कि क्या वे मंत्रियों को ठीक से काम करने भी देंगे या नहीं। उनका अब तक का ट्रेक रिकार्ड भी यही बताया जाता है कि गुजरात में भी उन्होंने सरकार को अपने में ही अंतर्निहित कर रखा था। सारे मंत्री को नाम मात्र के थे, बाकी सरकार तो वे खुद ही चला रहे थे। इस कारण उनके व्यक्तित्व में मौजूद डिक्टेटरशिप के तत्व को जानने वाले यही मान रहे थे कि वे केन्द्र में कुछ ऐसा ही करने वाले हैं।
मोदी की इस प्रवृत्ति की पुष्टि हाल ही तब हो गई, जब उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह सहित आठ मंत्रियों के निजी सचिवों की नियुक्ति पर कार्मिक मंत्रालय के एक सर्कूलर के माध्यम से अड़ंगा लगा दिया। इस सर्कूलर में कहा गया है कि मंत्रियों के निजी स्टाफ में नियुक्ति के लिए कैबिनेट की नियुक्ति समिति से मंजूरी जरूरी है। इसमें नियुक्ति में तय प्रक्रिया का सख्ती से पालन करने को कहा गया। ज्ञातव्य है कि राजनाथ सिंह के निजी सचिव के लिए 1995 बैच के आईपीएस अफसर आलोक सिंह का नाम भेजा गया है। इसी प्रकार गृह राज्यमंत्री किरेन रिजीजू के निजी सचिव अभिनव कुमार की नियुक्ति को भी हरी झंडी नहीं मिली। विदेश राज्य मंत्री वी के सिंह के निजी सचिव राजेश कुमार की नियुक्ति भी अटकी है। कुछ अन्य मंत्रियों के निजी स्टाफ की नियुक्ति भी रुकी हुई है। यानि कि उन्होंने अपने मंत्रियों के फैसलों पर भी लगाम लगा कर रखने की ठान रखी है। उनकी तानाशाही प्रवृत्ति की सीमा इस हद तक है कि खुद उनकी पार्टी के अध्यक्ष और केंद्र में नंबर दो की हैसियत रखने वाले राजनाथ सिंह को भी राहत नहीं दी गई।
गुड गवर्नेंस के लिहाज से मोदी की यह कार्यशैली बेहतर जरूर मानी जा सकती है, मगर समझा जाता है कि इससे कुछ दिन बाद मंत्रियों में असंतोष पनपेगा। जब वे कोई भी निर्णय करने के लिए स्वतंत्र नहीं होंगे और हर फैसले पर अंतिम मुहर के लिए पीएमओ का मुंह ताकेंगे तो उनके मंत्री होने - न होने के कोई मायने ही नहीं रह जाएंगे। असल में यह स्थिति इस कारण उत्पन्न हुई है क्योंकि इस बार भाजपा ने मोदी को बाकायदा प्रधानमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट किया और उसमें सफलता भी हाथ लगी। यानि कि भाजपा को मिले बहुमत का सारा श्रेय मोदी के खाते में दर्ज है। ऐसे में अगर वे तानाशाह की तरह काम करते हैं तो उसमें कोई अचरज नहीं होना चाहिए।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
मोदी की इस प्रवृत्ति की पुष्टि हाल ही तब हो गई, जब उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह सहित आठ मंत्रियों के निजी सचिवों की नियुक्ति पर कार्मिक मंत्रालय के एक सर्कूलर के माध्यम से अड़ंगा लगा दिया। इस सर्कूलर में कहा गया है कि मंत्रियों के निजी स्टाफ में नियुक्ति के लिए कैबिनेट की नियुक्ति समिति से मंजूरी जरूरी है। इसमें नियुक्ति में तय प्रक्रिया का सख्ती से पालन करने को कहा गया। ज्ञातव्य है कि राजनाथ सिंह के निजी सचिव के लिए 1995 बैच के आईपीएस अफसर आलोक सिंह का नाम भेजा गया है। इसी प्रकार गृह राज्यमंत्री किरेन रिजीजू के निजी सचिव अभिनव कुमार की नियुक्ति को भी हरी झंडी नहीं मिली। विदेश राज्य मंत्री वी के सिंह के निजी सचिव राजेश कुमार की नियुक्ति भी अटकी है। कुछ अन्य मंत्रियों के निजी स्टाफ की नियुक्ति भी रुकी हुई है। यानि कि उन्होंने अपने मंत्रियों के फैसलों पर भी लगाम लगा कर रखने की ठान रखी है। उनकी तानाशाही प्रवृत्ति की सीमा इस हद तक है कि खुद उनकी पार्टी के अध्यक्ष और केंद्र में नंबर दो की हैसियत रखने वाले राजनाथ सिंह को भी राहत नहीं दी गई।
गुड गवर्नेंस के लिहाज से मोदी की यह कार्यशैली बेहतर जरूर मानी जा सकती है, मगर समझा जाता है कि इससे कुछ दिन बाद मंत्रियों में असंतोष पनपेगा। जब वे कोई भी निर्णय करने के लिए स्वतंत्र नहीं होंगे और हर फैसले पर अंतिम मुहर के लिए पीएमओ का मुंह ताकेंगे तो उनके मंत्री होने - न होने के कोई मायने ही नहीं रह जाएंगे। असल में यह स्थिति इस कारण उत्पन्न हुई है क्योंकि इस बार भाजपा ने मोदी को बाकायदा प्रधानमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट किया और उसमें सफलता भी हाथ लगी। यानि कि भाजपा को मिले बहुमत का सारा श्रेय मोदी के खाते में दर्ज है। ऐसे में अगर वे तानाशाह की तरह काम करते हैं तो उसमें कोई अचरज नहीं होना चाहिए।
-तेजवानी गिरधर
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