तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

शुक्रवार, नवंबर 21, 2025

क्या गायब हुआ जा सकता है?

गायब या अंतर्ध्यान शब्द के मायने है, अदृश्य होना। इसका उल्लेख आपने शास्त्रों, पुराणों आदि में सुना होगा। अनेक देवी-देवताओं, महामानवों व ऋषि-मुनियों से जुड़े प्रसंगों में इसका विवरण है कि वे आह्वान करने पर प्रकट भी होते हैं, साक्षात दिखाई देते हैं और अंतर्ध्यान भी हो जाते हैं। मौजूदा वैज्ञानिक युग में यह वाकई अविश्वनीय है। विज्ञान आज तक भी इस पुरातन कला को समझ नहीं पाया है। हालांकि कुछ वैज्ञानिकों ने इस पर काम किया है और सिद्धांततः यह मानते हैं कि ऐसा संभव है, मगर कोई भी ऐसा कर नहीं पाया है। बताते हैं कि ओशो ने दुनिया के चंद शीर्ष वैज्ञानिकों की टीम बना कर इस पर काम किया था और उन्हें पूरी उम्मीद थी कि कामयाबी मिल जाएगी।

इस बारे में उपलब्ध जानकारी के अनुसार वैज्ञानिक नैनो किरणों पर काम कर रहे हैं। इस सिलसिले में एक लबादा बनाने की कोशिश की जा रही है, जिसे पहनने के बाद उस पर नैनो किरणें डालने पर दिखाई देना बंद हो जाता है। कुछ वैज्ञानिक इस पर भी काम कर रहे हैं कि विशेष तापमान व दबाव यदि मनुष्य के आसपास क्रियेट किया जाए तो वह अदृश्य हो सकता है। कुछ प्रयोग कनाडा, जापान और अमेरिका में चल रहे हैं। जापान के वैज्ञानिक डॉ. सुसुमु ताची ने ऐसा “इनविजिबिलिटी क्लोक” बनाया था, जो कैमरा और प्रोजेक्टर से पीछे की पृष्ठभूमि को आगे दिखा देता है। यानी पहनने वाला लगभग गायब सा दिखाई देता है। यह तकनीक कुछ सैन्य वाहनों और ड्रोन में प्रयोग की जा रही है। यह परिवेश के रंग और प्रकाश को नकल कर आंखों को भ्रमित करती है।

जानकारी के अनुसार एक उपकरण बनाया जा चुका है, जिसके भीतर रखी वस्तु एक दिशा से तो दिखाई देती है, मगर दूसरी दिशा से नहीं दिखाई देती। एक उपकरण, जिसका नाम फोटोनिक क्रिस्टल बताया गया है, वह वस्तुओं को दिखाई देने में बाधक बनता है, अर्थात अदृश्य कर देता है। प्रसंगवश एक शब्द ख्याल में आता है- मृग मरीचिका। कहते हैं न कि रेगिस्तान में तेज धूप में किरणों की तरंगों में दूर से हिरण को ऐसा आभास होता है कि वहां समुद्र है या पानी है, जबकि वास्तव में ऐसा होता नहीं है। अर्थात हिरण को दृष्टि भ्रम होता है। हो सकता है कि कल इसी प्रकार का दृष्टि भ्रम बना कर आदमी को अदृश्य किया जा सके। 

एक जानकारी ये भी है कि देवी देवता सशरीर प्रकट हो सकते हैं, जो कि पंचमहाभूत से बने हैं, मगर अन्य आत्माएं वायु अथवा प्रकाश के रूप में विचरण करती हैं और उसका आभास भी करवा सकती हैं। भारतीय ग्रंथों में कई पात्रों के अदृश्य होने का उल्लेख मिलता है। जैसे हनुमानजी, जो इच्छा से आकार बदल सकते थे (सूक्ष्म रूप धारण करना)। 

बताते हैं कि हिमालयों की पहाडियों में एक जड़ी पाई जाती है, जिसे मुंह में रखने पर आदमी दिखाई देना बंद हो जाता है। मगर इसके भी प्रमाणिक उदाहरण हमारे संज्ञान में नहीं हैं। इसी प्रकार जनश्रुति है कि एक पक्षी विशेष का पंख अपने पास रखने वाला व्यक्ति दूसरों को दिखाई नहीं देता, मगर इसके भी पुख्ता सबूत नहीं मिले हैं।

गायब हो जाने के संबंध में कुछ रहस्यमयी किस्से जानकारी में आए हैं। बताते हैं कि एक महिला क्रिस्टीन जांसटन और उनके पति एलन जांसटन 1975 की गर्मियों में उत्तरी ध्रुव की यात्रा पर गए थे। वहां एलन अचानक गायब हो गए। बाद में पुलिस तेज घ्रांण शक्ति वाले कुत्ते ले कर खोजने गई तो जिस स्थान से एलन गायब हुए थे, वहां पर आ कर कुत्ते रुक गए। 

एक किस्सा ये भी है। अमेरिका के टेनेसी स्थित गैलेटिन के निवासी डेविड लांग 23 सितम्बर, 1808 को दोपहर में घर से बाहर निकले। उनकी मुलाकात उनके एक न्यायाधीश मित्र आगस्टस पीक से हुई। शिष्टाचार के बाद जैसे ही डेविड लांग आगे बढ़ा तो वह अचानक गायब हो गया।

इसी प्रकार पूरी बस्ती ही गायब होने का भी किस्सा है। घटना अगस्त 1930 की बताई जाती है। कनाडा के चर्चिल थाने के पास अंजिकुनी नामक एस्किमो की बस्ती थी। एक दिन अचानक पूरी बस्ती के लोग न जाने कहां गायब हो गए। 

इसी प्रकार 1885 में वियतनाम में सैनिकों की छह सौ सैनिकों की एक टुकड़ी ने सेगॉन शहर की ओर कूच किया। कोई एक मील दूर जाने पर वह पूरी टुकड़ी गायब हो गई। आज तक उस रहस्य से पर्दा नहीं उठ पाया है। अनुमान यही लगाया गया कि धरती से इतर कोई और ग्रह है, जहां के प्राणी लोगों को पकड़ कर ले जाते हैं।

वस्तुओं के गायब हो जाने के किस्से भी आम हैं। आप के साथ भी ऐसा हो चुका होगा। जैसे किसी स्थान विशेष पर रखी वस्तु आप लेने जाते हैं तो वह वहां नहीं मिलती। आपको अचरज होता है कि वह कहां गायब हो गई। कुछ समय बाद जब फिर देखते हैं तो वह वहीं मिल जाती है। ऐसा प्रतीत होता है कि वह कुछ समय के लिए गायब हो जाती है। ऐसा भ्रम की वजह से भी हो सकता है।

आपने ऐसे मदारियों को भी करतब दिखाते हुए देखा होगा कि वे गुलाब जामुन या कोई मिठाई मांगने पर हवा में हाथ धुमा कर वह वस्तु पेश कर देते हैं। हालांकि यह ऐसे जादू के रूप में माना जाता है, जिसके पीछे कोई तकनीक काम करती है, जबकि आम मान्यता है कि मदारी कुछ समय के लिए मांगी गई वस्तु किसी दुकान या ठेले से मंगवाते हैं और कुछ समय बाद वह वस्तु वापस वहीं पहुंच जाती है, जहां से मंगाई गई है।

मंगलवार, नवंबर 11, 2025

क्या गायब हुआ जा सकता है?

गायब या अंतर्ध्यान शब्द के मायने है, अदृश्य होना। इसका उल्लेख आपने शास्त्रों, पुराणों आदि में सुना होगा। अनेक देवी-देवताओं, महामानवों व ऋषि-मुनियों से जुड़े प्रसंगों में इसका विवरण है कि वे आह्वान करने पर प्रकट भी होते हैं, साक्षात दिखाई देते हैं और अंतर्ध्यान भी हो जाते हैं। मौजूदा वैज्ञानिक युग में यह वाकई अविश्वनीय है। विज्ञान आज तक भी इस पुरातन कला को समझ नहीं पाया है। हालांकि कुछ वैज्ञानिकों ने इस पर काम किया है और सिद्धांततः यह मानते हैं कि ऐसा संभव है, मगर कोई भी ऐसा कर नहीं पाया है। बताते हैं कि ओशो ने दुनिया के चंद शीर्ष वैज्ञानिकों की टीम बना कर इस पर काम किया था और उन्हें पूरी उम्मीद थी कि कामयाबी मिल जाएगी।

इस बारे में उपलब्ध जानकारी के अनुसार वैज्ञानिक नैनो किरणों पर काम कर रहे हैं। इस सिलसिले में एक लबादा बनाने की कोशिश की जा रही है, जिसे पहनने के बाद उस पर नैनो किरणें डालने पर दिखाई देना बंद हो जाता है। कुछ वैज्ञानिक इस पर भी काम कर रहे हैं कि विशेष तापमान व दबाव यदि मनुष्य के आसपास क्रियेट किया जाए तो वह अदृश्य हो सकता है। कुछ प्रयोग कनाडा, जापान और अमेरिका में चल रहे हैं। जापान के वैज्ञानिक डॉ. सुसुमु ताची ने ऐसा “इनविजिबिलिटी क्लोक” बनाया था, जो कैमरा और प्रोजेक्टर से पीछे की पृष्ठभूमि को आगे दिखा देता है। यानी पहनने वाला लगभग गायब सा दिखाई देता है। यह तकनीक कुछ सैन्य वाहनों और ड्रोन में प्रयोग की जा रही है। यह परिवेश के रंग और प्रकाश को नकल कर आंखों को भ्रमित करती है।

जानकारी के अनुसार एक उपकरण बनाया जा चुका है, जिसके भीतर रखी वस्तु एक दिशा से तो दिखाई देती है, मगर दूसरी दिशा से नहीं दिखाई देती। एक उपकरण, जिसका नाम फोटोनिक क्रिस्टल बताया गया है, वह वस्तुओं को दिखाई देने में बाधक बनता है, अर्थात अदृश्य कर देता है। प्रसंगवश एक शब्द ख्याल में आता है- मृग मरीचिका। कहते हैं न कि रेगिस्तान में तेज धूप में किरणों की तरंगों में दूर से हिरण को ऐसा आभास होता है कि वहां समुद्र है या पानी है, जबकि वास्तव में ऐसा होता नहीं है। अर्थात हिरण को दृष्टि भ्रम होता है। हो सकता है कि कल इसी प्रकार का दृष्टि भ्रम बना कर आदमी को अदृश्य किया जा सके। 

एक जानकारी ये भी है कि देवी देवता सशरीर प्रकट हो सकते हैं, जो कि पंचमहाभूत से बने हैं, मगर अन्य आत्माएं वायु अथवा प्रकाश के रूप में विचरण करती हैं और उसका आभास भी करवा सकती हैं। भारतीय ग्रंथों में कई पात्रों के अदृश्य होने का उल्लेख मिलता है। जैसे हनुमानजी, जो इच्छा से आकार बदल सकते थे (सूक्ष्म रूप धारण करना)। 

बताते हैं कि हिमालयों की पहाडियों में एक जड़ी पाई जाती है, जिसे मुंह में रखने पर आदमी दिखाई देना बंद हो जाता है। मगर इसके भी प्रमाणिक उदाहरण हमारे संज्ञान में नहीं हैं। इसी प्रकार जनश्रुति है कि एक पक्षी विशेष का पंख अपने पास रखने वाला व्यक्ति दूसरों को दिखाई नहीं देता, मगर इसके भी पुख्ता सबूत नहीं मिले हैं।

गायब हो जाने के संबंध में कुछ रहस्यमयी किस्से जानकारी में आए हैं। बताते हैं कि एक महिला क्रिस्टीन जांसटन और उनके पति एलन जांसटन 1975 की गर्मियों में उत्तरी ध्रुव की यात्रा पर गए थे। वहां एलन अचानक गायब हो गए। बाद में पुलिस तेज घ्रांण शक्ति वाले कुत्ते ले कर खोजने गई तो जिस स्थान से एलन गायब हुए थे, वहां पर आ कर कुत्ते रुक गए। 

एक किस्सा ये भी है। अमेरिका के टेनेसी स्थित गैलेटिन के निवासी डेविड लांग 23 सितम्बर, 1808 को दोपहर में घर से बाहर निकले। उनकी मुलाकात उनके एक न्यायाधीश मित्र आगस्टस पीक से हुई। शिष्टाचार के बाद जैसे ही डेविड लांग आगे बढ़ा तो वह अचानक गायब हो गया।

इसी प्रकार पूरी बस्ती ही गायब होने का भी किस्सा है। घटना अगस्त 1930 की बताई जाती है। कनाडा के चर्चिल थाने के पास अंजिकुनी नामक एस्किमो की बस्ती थी। एक दिन अचानक पूरी बस्ती के लोग न जाने कहां गायब हो गए। 

इसी प्रकार 1885 में वियतनाम में सैनिकों की छह सौ सैनिकों की एक टुकड़ी ने सेगॉन शहर की ओर कूच किया। कोई एक मील दूर जाने पर वह पूरी टुकड़ी गायब हो गई। आज तक उस रहस्य से पर्दा नहीं उठ पाया है। अनुमान यही लगाया गया कि धरती से इतर कोई और ग्रह है, जहां के प्राणी लोगों को पकड़ कर ले जाते हैं।

वस्तुओं के गायब हो जाने के किस्से भी आम हैं। आप के साथ भी ऐसा हो चुका होगा। जैसे किसी स्थान विशेष पर रखी वस्तु आप लेने जाते हैं तो वह वहां नहीं मिलती। आपको अचरज होता है कि वह कहां गायब हो गई। कुछ समय बाद जब फिर देखते हैं तो वह वहीं मिल जाती है। ऐसा प्रतीत होता है कि वह कुछ समय के लिए गायब हो जाती है। ऐसा भ्रम की वजह से भी हो सकता है।

आपने ऐसे मदारियों को भी करतब दिखाते हुए देखा होगा कि वे गुलाब जामुन या कोई मिठाई मांगने पर हवा में हाथ धुमा कर वह वस्तु पेश कर देते हैं। हालांकि यह ऐसे जादू के रूप में माना जाता है, जिसके पीछे कोई तकनीक काम करती है, जबकि आम मान्यता है कि मदारी कुछ समय के लिए मांगी गई वस्तु किसी दुकान या ठेले से मंगवाते हैं और कुछ समय बाद वह वस्तु वापस वहीं पहुंच जाती है, जहां से मंगाई गई है।


शुक्रवार, नवंबर 07, 2025

घर की चौखट पर बैठने से दरिद्रता आती है?

भारतीय परंपरा में माना जाता है कि घर की चौखट पर बैठने से दरिद्रता आती है। इसलिए जब भी कोई चौखट पर बैठता है तो परिवार के अन्य सदस्य उसे टोक कर वहां से उठ जाने की सलाह देते हैं। वस्तुतः चौखट पर बैठना केवल अंधविष्वास नहीं है, बल्कि इसके प्रतीकात्मक अर्थ है और व्यावहारिक पहलु भी हैं। चौखट घर की चौखट अर्थात देहरी का सीमांत स्थान होता है। यह भीतर और बाहर की ऊर्जा और सकारात्मक व नकारात्मक उर्जा का संगम बिंदु मानी जाती है। इसलिए वहां बैठना ऊर्जा के प्रवाह को रोकना माना गया है, जिससे घर में लक्ष्मी प्रवेश नहीं करती और यही बात दरिद्रता आने के रूप में कही जाती है। देवी लक्ष्मी को चौखट से घर में प्रवेश करने वाली शक्ति माना गया है। लोकमान्यता है कि चौखट पर बैठना उनके मार्ग में अवरोध डालता है, इसलिए यह अशुभ समझा गया।

व्यावहारिक दृष्टि से देखा जाए तो चौखट दरवाजे का चलन क्षेत्र होता है। वहां बैठने से आने-जाने वालों को असुविधा होती है या चोट लग सकती है। इसलिए लोगों को ऐसा न करने के लिए डराने हेतु दरिद्रता आएगी जैसी चेतावनी दी गई। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से, यह अनुशासन और मर्यादा सिखाने का तरीका है, यानी जो व्यक्ति मर्यादा रखते हुए चौखट पर पर नहीं बैठता, उसके घर में स्थिरता और समृद्धि रहती है।

जहां तक वैज्ञानिक नजरिये का सवाल है विज्ञान के अनुसार चौखट पर बैठने और दरिद्रता के बीच कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं है, परंतु स्वच्छता, आवागमन और ऊर्जा-प्रवाह की दृष्टि से चौखट को साफ, खाली और खुला रखना उचित है।

बुधवार, नवंबर 05, 2025

उपयोग में ली हुई पूजन सामग्री का विसर्जन कहां करना चाहिए?

पिछले दिनो पाया गया कि अनेक स्थानों पर पूजन सामग्री फैंकी हुई है, विशेष रूप से आनासागर में, पीपल के पेडों के पास और हैंडपंपों के निकट। क्या आपको ख्याल में है कि लोग इन स्थानों पर पूजन सामग्री क्यों डालते हैं? असल में हमारी धार्मिक मान्यता है कि पूजा के बाद सामग्री अथवा खंडित मूर्ति व देवी-देवताओं के फटे हुए चित्रों को नदी में विसर्जन करना चाहिए। जहां नदी नहीं है, वहां लोग पानी के कुंड, कुएं या तालाब में पूजन सामग्री विसर्जित करते हैं। इसी प्रकार हैंड पंप को भी जल का स्थान मानते हुए उसके पास पूजन सामग्री डाली जाती है। एक धार्मिक मान्यता यह भी है कि पूजन सामग्री पीपल अथवा किसी पेड के नीचे डाली जा सकती है। इसी वजह से लोग पूजन सामग्री का विसर्जन इन जगहों पर करते हैं। हालांकि आनासागर में पूजन सामग्री अथवा मूर्तियों का विसर्जन करने की मनाही है, मगर लोग चुपके से विसर्जित कर ही देते हैं, जिससे आनासागर प्रदूषित होता है। आप देखिए कि जिस पूजा सामग्री को हम बहुत श्रद्धा से उपयोग करते हैं, उपयोग के बाद उसे हैंडपंप व पीपल के पेड के नीचे फैंक आते हैं। अब सवाल उठता है कि उपयोग में ली गई पूजन सामग्री का विसर्जन कैसे की जाए?

प्राकृतिक रूप से नष्ट होने वाली सामग्री जैसे फूल, पत्ते, माला, बेलपत्र, दूर्वा, आदि अपने घर के बगीचे या पौधों की जड़ में दबा सकते हैं। या किसी कम्पोस्ट पिट यादि खाद गड्ढे में डालें। इससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और प्रदूषण नहीं होता। अविघटनीय या हानिकारक वस्तुएं जैसे प्लास्टिक, थर्मोकोल, पॉलिथीन, कपड़ा, रंगीन मूर्तियां आदि को झील व तालाब में नहीं डालना चाहिए। उन्हें नगर निगम के सूखे कचरे वाले पात्र में डालना चाहिए। मिट्टी या गोबर की मूर्तियां घर के पौधों के पास या बगीचे की मिट्टी में विसर्जित कर सकते हैं। रासायनिक रंगों वाली मूर्तियां नगर निगम द्वारा तय निर्धारित विसर्जन टैंक या कृत्रिम कुंड में ही डालनी चाहिए। घी, तेल, अगरबत्ती, कपड़ा, राख, रौली, सिंदूर, चावल आदि जैविक हैं, इन्हें मिट्टी में दबाया जा सकता है। राख को पेड़ की जड़ में विसर्जित किया जा सकता है।


रविवार, नवंबर 02, 2025

क्या वास्तव में नागमणि का अस्तित्व है?

आपने नागमणि का नाम सुना होगा, जिसे सर्पमणि भी कहा जाता है। इसका अस्तित्व वास्तव में है या नहीं, पता नहीं, मगर भारतीय लोककथाओं, पुराणों और लोकविश्वासों में इसे एक अत्यंत रहस्यमयी वस्तु माना जाता है। कहा जाता है कि कुछ विशेष नागों के पास एक चमकती हुई मणि या रत्न होती है। इस मणि से तेज प्रकाश निकलता है, जो अंधेरे में भी चारों ओर रोशनी फैला देता है। मान्यता है कि यह मणि नाग को अलौकिक शक्ति, दीर्घायु और तेज प्रदान करती है। 

कहा जाता है, जब नाग अपनी मणि जमीन पर रखता है तो उसका प्रकाश दीपक से भी अधिक तेज होता है। कई पौराणिक ग्रंथों (जैसे गरुड़ पुराण, स्कंद पुराण) में मणिधारी नाग का उल्लेख मिलता है।

भारतीय लोककथाओं में नागमणि को लेकर अनेक दंतकथाएं प्रसिद्ध हैं। जैसे अगर कोई व्यक्ति नागमणि प्राप्त कर ले, तो वह धनवान, बलवान और अमर हो जाता है। नाग अपनी मणि को छिपाकर रखते हैं, और जिसे यह मिल जाती है, उसके पीछे वे प्रतिशोध लेने आते हैं। लेकिन ये सब लोककथाएं हैं, प्रमाण नहीं। विज्ञान के अनुसार अब तक ऐसी कोई वास्तविक नागमणि नहीं मिली है, जो किसी सर्प के सिर से निकलती हो या चमक उत्पन्न करती हो। सांपों के पास कोई रत्न या जैविक मणि नहीं होती। उनकी चमकदार आंखें या कुछ विशेष सरीसृपों की त्वचा प्रकाश परावर्तित करती हैं, जिससे दूर से चमक दिखाई देती है, और यही भ्रम मणि का बन गया। जंगलों में पाए जाने वाले फॉस्फोरस युक्त कवक या जुगनू जैसे बायोल्यूमिनस जीव भी मणि की तरह चमकते दिखते हैं, जिन्हें लोग नागमणि समझ लेते हैं।

ऐसा प्रतीत होता है कि षनि ग्रह के रत्न नीलम को ही नागमणि मान लिया गया है, जबकि इनमें फर्क है। संस्कृत में नीलम को इन्द्रनील, तृषाग्रही नीलमणि भी कहा जाता है। जो दो प्रकार के होते हैं- जलनील व इन्द्रनील। जानकारी के अनुसार भारत में नीलमणि पर्वत भी है। भारत के जम्मू-कश्मीर राज्य में नीलम पाया जाता है। कश्मीर में पहले नागवंशियों का राज था। नीलम विशुद्ध रंग मोर की गर्दन के रंग का होता है। कहते हैं कि नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर में असली नीलमणि रखी हुई है। धार्मिक मान्यता है कि नागमणि को भगवान शेषनाग धारण करते हैं। भारतीय पौराणिक और लोक कथाओं में नागमणि के किस्से आम लोगों के बीच प्रचलित हैं। वह यह कि नागमणि सिर्फ नागों के पास ही होती है। नाग इसे अपने पास इसलिए रखते हैं ताकि उसकी रोशनी के आसपास एकत्र हो गए कीड़े-मकोड़ों को वह खाता रहे। हालांकि इसके अलावा भी नागों द्वारा मणि को रखने के और भी कारण हैं। कुल मिला कर नागमणि का रहस्य आज भी अनसुलझा हुआ है। आम जनता में यह बात प्रचलित है कि कई लोगों ने ऐसे नाग देखे हैं, जिसके सिर पर मणि थी। हालांकि पुराणों में मणिधर नाग के कई किस्से हैं। भगवान कृष्ण का भी इसी तरह के एक नाग से सामना हुआ था। छत्तीसगढ़ी साहित्य और लोककथाओं में नाग, नागमणि और नागकन्या की कथाएं मिलती हैं। मनुज नागमणि के माध्यम से जल में उतरते हैं। नागमणि की यह विशेषता है कि जल उसे मार्ग देता है। इसके बाद साहसी मनुज महल में प्रस्थित होकर नाग को परास्त कर नागकन्या प्राप्त करता है। कहते हैं कि नागमणि में अलौकिक शक्तियां होती हैं। उसकी चमक के आगे हीरा भी फीका पड़ जाता है। मान्यता अनुसार नागमणि जिसके भी पास होती है उसमें भी अलौकिक शक्तियां आ जाती हैं और वह आदमी भी दौलतमंद हो जाता है। मणि का होना उसी तरह है जिस तरह की अलादीन के चिराग का होना। हालांकि इसमें कितनी सच्चाई है, यह कोई नहीं जानता। किंवदती के अनुसार अजमेर में एक संपन्न परिवार के पास नागमणि मौजूद है, हालांकि इसकी पुष्टि आज तक नहीं हुई है।


कालबेलिया युवतियों की आंखें नशीली क्यों होती हैं?

राजस्थान की तपती रेत पर जब पुष्कर का मेला सजता है, तब भीड़ में सुमन कालबेलिया जैसी नर्तकियां सबका ध्यान अपनी ओर खींच लेती हैं। उनके लचकते हुए शरीर से अधिक लोग उनकी आंखों को देखते हैं। वे आंखें, जो सर्प की तरह सम्मोहक हैं, जिनमें आकर्षण भी है और रहस्य भी। यह वही आकर्षण है, जिसने पहले “कालबेलिया मोनालिसा” को प्रसिद्धि दी थी, और अब सुमन कालबेलिया को लोकनृत्य की नई पहचान बना दिया है। सवाल उठता है, आखिर इस समाज की स्त्रियों की आंखें इतनी नशीली क्यों होती हैं?

मनोवैज्ञानिक व सामुद्रिक शास्त्र के जानकारों का मानना है कि प्राकृतिक परिस्थितियों और सांपों से लगातार संपर्क में रहने के कारण शनैः शनैः उनकी आंखें भी सांपों जैसी हो गईं। फिर आनुवांषिक गुणों की वजह से हर आने वाली पीढी की युवतियों की आंखें भी वैसी ही होने लगीं। इसके भेद का खुद कालबेलियां युवतियों तक को भान नहीं। उनसे पूछो तो वे यही बता पाती हैं कि यह सब भगवान की देन है। 

वस्तुतः कालबेलिया समाज पीढ़ियों से सांपों के साथ जीता आया है। वे सर्पों को पकड़ते, उनके विष को पहचानते और उन्हें सुरक्षित छोड़ने का काम करते रहे हैं। सर्प उनके जीवन का साथी है, डर का नहीं। सांप की तरह वे भी स्थिर दृष्टि से दुनिया को देखते हैं। सर्प की निगाह में जो रहस्य और गहराई होती है, वही वर्षों के सह-अस्तित्व से इन स्त्रियों की आंखों में उतर आई है। उनके नृत्य में, उनके चेहरे के भावों में और उनकी दृष्टि में वह स्थिरता झलकती है, जो सर्प अपने शिकार को देखते समय दिखाता है।

रेगिस्तान की तेज धूप, खुला आसमान और धूलभरा जीवन उनकी आंखों को गहरी और चमकदार बनाता है। निरंतर खुले वातावरण में रहने से आंखों की मांसपेशियां मजबूत होती हैं, और उनमें स्वाभाविक तीक्ष्णता आती है। इसके साथ ही, कालबेलिया स्त्रियां बचपन से नृत्य सीखती हैं। उनके नृत्य में शरीर के हर अंग की भूमिका होती है, पर सबसे प्रभावशाली भूमिका निभाती हैं उनकी आंखें। वे नृत्य नहीं करतीं, बल्कि अपनी नजरों से कहानी कहती हैं। दर्शक को बांधने की यह कला उनके भीतर पीढ़ियों से उतरी है। यह भी सच है कि कभी यह समाज उपेक्षित था। सांप पकड़ने वाला समुदाय अछूत माना जाता था। लेकिन आज वही स्त्रियां कैमरे की रोशनी में लोकनृत्य का चेहरा बन चुकी हैं। यह परिवर्तन सिर्फ बाहरी नहीं है, यह उनकी आंखों की चमक में भी झलकता है। वह चमक सौंदर्य की नहीं, आत्मसम्मान की है। वे आंखें कहती हैं, “हम वही हैं जिन्हें जंगलों में भुला दिया गया था, पर अब सभ्यता हमारे पांवों की थाप पर नाचती है।”

कालबेलिया स्त्रियों की आंखों का नशा किसी सजावट का परिणाम नहीं, बल्कि उनकी जीवनगाथा का प्रतिबिंब है। उनके भीतर सर्प का प्रतीक बसता है। लहराता हुआ, स्थिर आकर्षक, पर खतरनाक। उनके काजल से घिरी आंखें लोककथा बन चुकी हैं। राजस्थान के लोकगीतों में भी कहा गया है “नागिन नैना मत मिला, नजर से चुभे डंस ज्यूं।” यह पंक्ति उनके सौंदर्य और रहस्य दोनों को एक साथ बयान करती है।

आज जब सुमन कालबेलिया मंच पर नाचती हैं, तो वह केवल एक नर्तकी नहीं होतीं। वह अपने समाज की परंपरा, अपनी दादी-नानियों की मेहनत, और रेगिस्तान की आत्मा को लेकर नाचती हैं। उनकी आंखों में जो नशा है, वह रूप का नहीं, बल्कि संघर्ष और पहचान का है।

इसलिए कहा जा सकता है- कालबेलिया स्त्रियों की आंखें नशा नहीं, इतिहास हैं। वे उस समाज की कहानी कहती हैं, जिसने विष के बीच भी नृत्य करना सीखा और नजरों को कविता बना दिया।