तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

रविवार, नवंबर 02, 2025

क्या वास्तव में नागमणि का अस्तित्व है?

आपने नागमणि का नाम सुना होगा, जिसे सर्पमणि भी कहा जाता है। इसका अस्तित्व वास्तव में है या नहीं, पता नहीं, मगर भारतीय लोककथाओं, पुराणों और लोकविश्वासों में इसे एक अत्यंत रहस्यमयी वस्तु माना जाता है। कहा जाता है कि कुछ विशेष नागों के पास एक चमकती हुई मणि या रत्न होती है। इस मणि से तेज प्रकाश निकलता है, जो अंधेरे में भी चारों ओर रोशनी फैला देता है। मान्यता है कि यह मणि नाग को अलौकिक शक्ति, दीर्घायु और तेज प्रदान करती है। 

कहा जाता है, जब नाग अपनी मणि जमीन पर रखता है तो उसका प्रकाश दीपक से भी अधिक तेज होता है। कई पौराणिक ग्रंथों (जैसे गरुड़ पुराण, स्कंद पुराण) में मणिधारी नाग का उल्लेख मिलता है।

भारतीय लोककथाओं में नागमणि को लेकर अनेक दंतकथाएं प्रसिद्ध हैं। जैसे अगर कोई व्यक्ति नागमणि प्राप्त कर ले, तो वह धनवान, बलवान और अमर हो जाता है। नाग अपनी मणि को छिपाकर रखते हैं, और जिसे यह मिल जाती है, उसके पीछे वे प्रतिशोध लेने आते हैं। लेकिन ये सब लोककथाएं हैं, प्रमाण नहीं। विज्ञान के अनुसार अब तक ऐसी कोई वास्तविक नागमणि नहीं मिली है, जो किसी सर्प के सिर से निकलती हो या चमक उत्पन्न करती हो। सांपों के पास कोई रत्न या जैविक मणि नहीं होती। उनकी चमकदार आंखें या कुछ विशेष सरीसृपों की त्वचा प्रकाश परावर्तित करती हैं, जिससे दूर से चमक दिखाई देती है, और यही भ्रम मणि का बन गया। जंगलों में पाए जाने वाले फॉस्फोरस युक्त कवक या जुगनू जैसे बायोल्यूमिनस जीव भी मणि की तरह चमकते दिखते हैं, जिन्हें लोग नागमणि समझ लेते हैं।

ऐसा प्रतीत होता है कि षनि ग्रह के रत्न नीलम को ही नागमणि मान लिया गया है, जबकि इनमें फर्क है। संस्कृत में नीलम को इन्द्रनील, तृषाग्रही नीलमणि भी कहा जाता है। जो दो प्रकार के होते हैं- जलनील व इन्द्रनील। जानकारी के अनुसार भारत में नीलमणि पर्वत भी है। भारत के जम्मू-कश्मीर राज्य में नीलम पाया जाता है। कश्मीर में पहले नागवंशियों का राज था। नीलम विशुद्ध रंग मोर की गर्दन के रंग का होता है। कहते हैं कि नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर में असली नीलमणि रखी हुई है। धार्मिक मान्यता है कि नागमणि को भगवान शेषनाग धारण करते हैं। भारतीय पौराणिक और लोक कथाओं में नागमणि के किस्से आम लोगों के बीच प्रचलित हैं। वह यह कि नागमणि सिर्फ नागों के पास ही होती है। नाग इसे अपने पास इसलिए रखते हैं ताकि उसकी रोशनी के आसपास एकत्र हो गए कीड़े-मकोड़ों को वह खाता रहे। हालांकि इसके अलावा भी नागों द्वारा मणि को रखने के और भी कारण हैं। कुल मिला कर नागमणि का रहस्य आज भी अनसुलझा हुआ है। आम जनता में यह बात प्रचलित है कि कई लोगों ने ऐसे नाग देखे हैं, जिसके सिर पर मणि थी। हालांकि पुराणों में मणिधर नाग के कई किस्से हैं। भगवान कृष्ण का भी इसी तरह के एक नाग से सामना हुआ था। छत्तीसगढ़ी साहित्य और लोककथाओं में नाग, नागमणि और नागकन्या की कथाएं मिलती हैं। मनुज नागमणि के माध्यम से जल में उतरते हैं। नागमणि की यह विशेषता है कि जल उसे मार्ग देता है। इसके बाद साहसी मनुज महल में प्रस्थित होकर नाग को परास्त कर नागकन्या प्राप्त करता है। कहते हैं कि नागमणि में अलौकिक शक्तियां होती हैं। उसकी चमक के आगे हीरा भी फीका पड़ जाता है। मान्यता अनुसार नागमणि जिसके भी पास होती है उसमें भी अलौकिक शक्तियां आ जाती हैं और वह आदमी भी दौलतमंद हो जाता है। मणि का होना उसी तरह है जिस तरह की अलादीन के चिराग का होना। हालांकि इसमें कितनी सच्चाई है, यह कोई नहीं जानता। किंवदती के अनुसार अजमेर में एक संपन्न परिवार के पास नागमणि मौजूद है, हालांकि इसकी पुष्टि आज तक नहीं हुई है।


कालबेलिया युवतियों की आंखें नशीली क्यों होती हैं?

राजस्थान की तपती रेत पर जब पुष्कर का मेला सजता है, तब भीड़ में सुमन कालबेलिया जैसी नर्तकियां सबका ध्यान अपनी ओर खींच लेती हैं। उनके लचकते हुए शरीर से अधिक लोग उनकी आंखों को देखते हैं। वे आंखें, जो सर्प की तरह सम्मोहक हैं, जिनमें आकर्षण भी है और रहस्य भी। यह वही आकर्षण है, जिसने पहले “कालबेलिया मोनालिसा” को प्रसिद्धि दी थी, और अब सुमन कालबेलिया को लोकनृत्य की नई पहचान बना दिया है। सवाल उठता है, आखिर इस समाज की स्त्रियों की आंखें इतनी नशीली क्यों होती हैं?

मनोवैज्ञानिक व सामुद्रिक शास्त्र के जानकारों का मानना है कि प्राकृतिक परिस्थितियों और सांपों से लगातार संपर्क में रहने के कारण शनैः शनैः उनकी आंखें भी सांपों जैसी हो गईं। फिर आनुवांषिक गुणों की वजह से हर आने वाली पीढी की युवतियों की आंखें भी वैसी ही होने लगीं। इसके भेद का खुद कालबेलियां युवतियों तक को भान नहीं। उनसे पूछो तो वे यही बता पाती हैं कि यह सब भगवान की देन है। 

वस्तुतः कालबेलिया समाज पीढ़ियों से सांपों के साथ जीता आया है। वे सर्पों को पकड़ते, उनके विष को पहचानते और उन्हें सुरक्षित छोड़ने का काम करते रहे हैं। सर्प उनके जीवन का साथी है, डर का नहीं। सांप की तरह वे भी स्थिर दृष्टि से दुनिया को देखते हैं। सर्प की निगाह में जो रहस्य और गहराई होती है, वही वर्षों के सह-अस्तित्व से इन स्त्रियों की आंखों में उतर आई है। उनके नृत्य में, उनके चेहरे के भावों में और उनकी दृष्टि में वह स्थिरता झलकती है, जो सर्प अपने शिकार को देखते समय दिखाता है।

रेगिस्तान की तेज धूप, खुला आसमान और धूलभरा जीवन उनकी आंखों को गहरी और चमकदार बनाता है। निरंतर खुले वातावरण में रहने से आंखों की मांसपेशियां मजबूत होती हैं, और उनमें स्वाभाविक तीक्ष्णता आती है। इसके साथ ही, कालबेलिया स्त्रियां बचपन से नृत्य सीखती हैं। उनके नृत्य में शरीर के हर अंग की भूमिका होती है, पर सबसे प्रभावशाली भूमिका निभाती हैं उनकी आंखें। वे नृत्य नहीं करतीं, बल्कि अपनी नजरों से कहानी कहती हैं। दर्शक को बांधने की यह कला उनके भीतर पीढ़ियों से उतरी है। यह भी सच है कि कभी यह समाज उपेक्षित था। सांप पकड़ने वाला समुदाय अछूत माना जाता था। लेकिन आज वही स्त्रियां कैमरे की रोशनी में लोकनृत्य का चेहरा बन चुकी हैं। यह परिवर्तन सिर्फ बाहरी नहीं है, यह उनकी आंखों की चमक में भी झलकता है। वह चमक सौंदर्य की नहीं, आत्मसम्मान की है। वे आंखें कहती हैं, “हम वही हैं जिन्हें जंगलों में भुला दिया गया था, पर अब सभ्यता हमारे पांवों की थाप पर नाचती है।”

कालबेलिया स्त्रियों की आंखों का नशा किसी सजावट का परिणाम नहीं, बल्कि उनकी जीवनगाथा का प्रतिबिंब है। उनके भीतर सर्प का प्रतीक बसता है। लहराता हुआ, स्थिर आकर्षक, पर खतरनाक। उनके काजल से घिरी आंखें लोककथा बन चुकी हैं। राजस्थान के लोकगीतों में भी कहा गया है “नागिन नैना मत मिला, नजर से चुभे डंस ज्यूं।” यह पंक्ति उनके सौंदर्य और रहस्य दोनों को एक साथ बयान करती है।

आज जब सुमन कालबेलिया मंच पर नाचती हैं, तो वह केवल एक नर्तकी नहीं होतीं। वह अपने समाज की परंपरा, अपनी दादी-नानियों की मेहनत, और रेगिस्तान की आत्मा को लेकर नाचती हैं। उनकी आंखों में जो नशा है, वह रूप का नहीं, बल्कि संघर्ष और पहचान का है।

इसलिए कहा जा सकता है- कालबेलिया स्त्रियों की आंखें नशा नहीं, इतिहास हैं। वे उस समाज की कहानी कहती हैं, जिसने विष के बीच भी नृत्य करना सीखा और नजरों को कविता बना दिया।