तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

शुक्रवार, अक्टूबर 06, 2017

वसुंधरा को अब समझ आया कि पांच दिन का हफ्ता गलत है

मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे को अपने दूसरे कार्यकाल के आखीर में समझ में आया है कि राज्य सरकार के दफ्तरों में पांच दिन का हफ्ता ठीक नहीं है और छह दिन का हफ्ता किया जाना चाहिए। अजमेर के निकटवर्ती कस्बे में सर्व समाज के प्रतिनिधियों से संवाद करते हुए मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने कहा कि सरकारी दफ्तरों में अब जल्द ही सिक्स डे वीक शुरू होगा। उनका कहना था कि मौजूदा समय में पांच दिन का सप्ताह महज चार दिन का रह गया है। हालत ये है कि दफ्तरों में शुक्रवार दोपहर से सोमवार दोपहर तक ज्यादातर कर्मचारी नहीं मिलते। इससे जनता को परेशानी का सामना करना पड़ता है।
यहां उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे ने अपने पिछले कार्यकाल में सरकार के जाते-जाते कर्मचारियों के वोट हासिल करने के लिए पांच दिन का हफ्ता किया था। सच्चाई ये है कि पांच दिन के सप्ताह का फैसला न तो आम जन की राय ले कर किया गया था और न ही इस तरह की मांग कर्मचारी कर रहे थे। बिना किसी मांग के निर्णय को लागू करने से ही स्पष्ट था कि यह एक राजनीतिक फैसला था, जिसका फायदा तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे जल्द ही होने जा रहे विधानसभा चुनाव में उठाना चाहती थीं। उन्हें इल्म था कि कर्मचारियों की नाराजगी की वजह से ही पिछली गहलोत सरकार बेहतरीन काम करने के बावजूद धराशायी हो गई थी, इस कारण कर्मचारियों को खुश करके भारी मतों से जीता जा सकता है। हालांकि दुर्भाग्य से ऐसा हो नहीं पाया। असल बात तो ये है कि जब वसुंधरा ने यह फैसला किया, तब खुद कर्मचारी वर्ग भी अचंभित था, क्योंकि उसकी मांग तो थी नहीं। वह समझ ही नहीं पाया कि यह फैसला अच्छा है या बुरा। हालांकि अधिकतर कर्मचारी सैद्धांतिक रूप से इस फैसले से कोई खास प्रसन्न नहीं हुए, मगर कोई भी कर्मचारी संगठन इसका विरोध नहीं कर पाया।
अब जब कि पांच दिन के सप्ताह की व्यवस्था को काफी साल हो गए हैं, यह स्पष्ट हो गया है कि इससे आम लोगों की परेशानी बढ़ी है। पांच दिन का हफ्ता करने की एवज में प्रतिदिन के काम के घंटे बढ़ाने का कोई लाभ नहीं हुआ है। कर्मचारी वही पुराने ढर्ऱे पर ही दफ्तर आते हैं और शाम को भी जल्द ही बस्ता बांध लेते हैं। कलेक्ट्रेट को छोड़ कर अधिकतर विभागों में वही पुराना ढर्ऱा चल रहा है। कलेक्ट्रेट में जरूर कुछ समय की पाबंदी नजर आती है, क्योंकि वहां पर राजनीतिज्ञों, सामाजिक संगठनों व मीडिया की नजर रहती है। आम जनता के मानस में भी आज तक सुबह दस से पांच बजे का समय ही अंकित है और वह दफ्तरों में इसी दौरान पहुंचती है। कोई इक्का-दुक्का ही होता है, जो कि सुबह साढ़े नौ बजे या शाम पांच के बाद छह बजे के दरम्यान पहुंचता है। यानि कि काम के जो घंटे बढ़ाए गए, उसका तो कोई मतलब ही नहीं निकला। बहुत जल्द ही उच्च अधिकारियों को यह समझ में आ गया था कि छह दिन का हफ्ता ही ठीक था। इस बात को जानते हुए उच्च स्तर पर कवायद शुरू तो हुई और कर्मचारी नेताओं से भी चर्चा की गई, मगर यह सब अंदर ही अंदर चलता रहा। मगर हुआ कुछ नहीं।
बहरहाल, यदि तुलनात्मक रूप से देखा जाए तो केन्द्र सरकार के दफ्तरों में बेहतर काम हो ही रहा है। पांच दिन डट कर काम होता है और दो दिन मौज-मस्ती। मगर केन्द्र व राज्य सरकार के दफ्तरों के कर्मचारियों का मिजाज अलग है। केन्द्रीय कर्मचारी लंबे अरसे से उसी हिसाब ढले हुए हैं, जबकि राज्य कर्मचारी अपने आपको उस हिसाब से ढाल नहीं पाए। वे दो दिन तो पूरी मौज-मस्ती करते हैं, मगर बाकी पांच दिन डट कर काम नहीं करते। कई कर्मचारी तो ऐसे भी हैं कि लगातार दो दिन तक छुट्टी के कारण बोर हो जाते हैं। दूसरा अहम सवाल ये भी है कि राज्य सरकार के अधीन जो विभाग हैं, उनसे आम लोगों का सीधा वास्ता ज्यादा पड़ता है। इस कारण हफ्ते में दो दिन छुट्टी होने पर परेशानी होती है। यह परेशानी इस कारण भी बढ़ जाती है कि कई कर्मचारी छुट्टी के इन दो दिनों के साथ अन्य किसी सरकारी छुट्टी को मिला कर आगे-पीछे एक-दो दिन की छुट्टी ले लेते हैं और नतीजा ये रहता है कि उनके पास जिस सीट का चार्ज होता है, उसका काम ठप हो जाता है। अन्य कर्मचारी यह कह कर जनता को टरका देते हैं कि इस सीट का कर्मचारी जब आए तो उससे मिल लेना। यानि कि काम की रफ्तार काफी प्रभावित होती है।
खैर, अपने दूसरे कार्यकाल में चुनाव से करीब एक साल पहले वसुंधरा को समझ आ गया है कि सिक्स डे वीक किया जाना चाहिए। देखते हैं, वे ये निर्णय कर लेती हैं और इसकी प्रतिध्वनि क्या होती है?
-तेजवानी गिरधर
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गुरुवार, अक्टूबर 05, 2017

कांग्रेस के हमले तेज, मोदी का बचाव करने में जुटे समर्थक

-तेजवानी गिरधर-
ऐसा देखा जा रहा है कि पिछले कुछ समय से सोशल मीडिया में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर कांग्रेस के हमले काफी तेज हो गए हैं। बेशक ये आईटी सेल का ही काम होगा। इसके अतिरिक्त भद्दी टिप्पणियां भी खूब शेयर की जा रही हैं। इन हमलों की तीव्रता ठीक उतनी ही है, जितनी पहले भाजपाइयों के सोनिया गांधी व राहुल गांधी पर हमलों में हुआ करती थी। मोदी की एक-एक हरकत का छिद्रान्वेषण किया जा रहा है। ऐसे में मोदी समर्थक यकायक रक्षात्मक मुद्रा में आने लगे हैं। हालांकि मोदी का आईटी सेल भी कांग्रेस पर हमले जारी रखे हुए हैं, मगर अब मोदी का बचाव करने पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि मोदी समर्थक तनिक चिंतित हैं कि कांग्रेस की रणनीति ठीक उसी तरह से काम न कर जाए, जैसी उन्होंने मोदी की ब्रांडिंग करते वक्त अपनाई थी। मोदी का बचाव करते वक्त कई बार तर्कविहीन बातें भी कही जा रही हैं।
पेट्रोल के भावों में आई ताजा तेजी को ही लीजिए। मीडिया में यह स्पष्ट हो चुका है कि विश्व बाजार में क्रूड ऑइल की कीमत काफी घटी है, फिर भी भारत वासियों को बहुत महंगा पेट्रोल लेना पड़ रहा है। इसके लिए पेट्रोल को जीएसटी से बाहर रखने का तर्क दिया जा रहा है। हालांकि इसकी सटीक काट नहीं है, फिर भी जो तर्क दिया जा रहा है, उससे समझा जा सकता है कि उसमें कितना दम है। एक बानगी देखिए:-
तीस रुपए का पेट्रोल सरकार सत्तर में क्यों बेच रही है, ऐसा पूछने वाले एक बार ये भी तो पूछें कि 16 रुपए में गेहूं खरीद कर सरकार दो रुपए में क्यो बेचती है? पचास रुपए का केरोसिन पंद्रह में क्यों बेचती है? चालीस की शक्कर छब्बीस में क्यों बेचती है? पच्चीस का चावल खरीद कर एक रुपए में क्यों बेचती है? लाखों रुपये टीचरों को तनख्वाह देकर बच्चों को मुफ्त क्यों पढ़वाती है? 6 करोड़ शौचालय मुफ्त में क्यों बनवाती है? 3 करोड़ गैस चूल्हे मुफ्त में क्यों बाटती है?
सवाल ये उठता है कि इस प्रकार की सारी सुविधाएं पहले भी थीं, तब पेट्रोल के भाव तनिक बढऩे पर आसमान सिर पर क्यों उठाया जाता था?
मोदी के प्रति हमदर्दी लिए एक टिप्पण देखिए:-
गुजरात के मोहनदास करमचन्द गांधी राष्ट्र के पिता हो सकते हैं...! जवाहर लाल नेहरू सबके चाचा हो सकते हैं...! मायावती सबकी बहन हो सकती है...! ममता बनर्जी सबकी दीदी हो सकती हैं...! जयललिता सबकी अम्मा हो सकती हैं...! सोनिया गांधी देश की बहू हो सकती है...! केवल नरेंद्र मोदी इस देश का बेटा नहीं हो सकता...!! इतनी नफरत क्यों है भाई?
बढ़ती महंगाई के जवाब में तल्खी देखिए-दिक्कत यह नहीं है कि दाल महंगी हो गयी है...! दिक्कत यह है कि किसी की गल नहीं रही है।
मोदी के बचाव का एक और नमूना देखिए:-
आजकल सोशल मीडिया पर अनेक मैसेज चल रहे हैं कि मोदी ने महंगाई बढ़ा रखी है, व्यापार में दिक्कत है, इन्कम रिटर्न भरने में दिक्कत है वगैरह वगैरह। मित्रों, ये सब कांग्रेस द्वारा फैलाए जा रहे हैं। रही मोदी की दुकान बंद कराने की बात, तो आपको यह पता है कि मोदी जी की उम्र अब 67 वर्ष है और उनके पीछे न परिवार है और न ही  बीवी-बच्चे। उन्होंने जिंदगी में जो पाना था वो पा लिया है। अब अगर आप वोट नहीं भी देंगे और वो हार भी जाएंगे, तब भी वो पूर्व प्रधानमंत्री कहलाएंगे, आजीवन दिल्ली में घर, गाड़ी, पेंशन, एसपीजी सुरक्षा, कार्यालय मिलता रहेगा। दस-पंद्रह साल जीकर चले जाएंगे। लेकिन आप क्या करेंगे जब कांग्रेस और आम आदमी पार्टी  इस देश का इस्लामीकरण और ईसाईकरण करने में लगी हुई हैं। रोहिंग्याओं को बसाएगी, अंधी लूट करेगी, हर साल लाखों करोड़ों के  घोटाले करेंगी, हिंदुओं के खिलाफ कानून बनेंगे और आतंकवादी सरकारी मेहमान बनेंगे?
मोदी जी तो संतोष के साथ मरेंगे कि मैंने एक कोशिश तो की अपना देश बचाने की, लेकिन आप लोग तो हर दिन मरेंगे, और अंतिम सांस कैसे लेंगे? जो गलती आपने अटल जी को हरा कर करी थी, वो गलती आप दोबारा न करें।
मोदी के बचाव में कट्टर हिंदूवाद का सहारा भी लिया जा रहा है। देखिए- अटल सरकार की तरह मोदी सरकार का पेट मत चीरो मेरे हिन्दू भाइयों। एक बात गांठ बांध के रख लो कि मोदी ही हम हिन्दुओं की आखिरी उम्मीद  बच गए हैं। बात थोड़ी कड़वी है पर कहावत है कि कुत्तों को घी हजम नहीं होता और सूअरों को बढिय़ा पकवान अच्छे नहीं लगते। अगली बार मोदी नहीं आए तो ये सारे सेक्युलर की खाल में बैठे जेहादी मिल के हम हिन्दुओं का ऐसा हश्र करेंगे कि आने वाले पीढिय़ां अपनी बर्बादी पर आंसू बहायेंगी। फिर किसी मोदी जैसे हिन्दुवादी देश-भक्त को दिल्ली तक पहुंचने का सपना देखने में भी डर लगेगा। याद रहे जब तक मुर्गी जिंदा रहेगी तब तक ही अंडे देगी। अटल जी की तरह उसका भी पेट चीर दोगे तो फिर लड़ते रहना इन टोपी वालों से जिंदगी भर।
हे मोदी का विरोध करने वाले हिन्दुओं, आपके असहयोग और अंधविरोध की वजह से अगर सच में मोदी जी का कुछ अनिष्ट हो गया तो आप सभी खून के आंसू रोओगे। हिन्दू घरों की बहन-बेटियां लव-जिहाद की भेंट चढ़ जाएंगी और भारत को पाकिस्तान और अफगानिस्तान बनते देर नहीं लगेगी। 
कुल मिला कर ऐसी टिप्पणियां ये आभास करवाती हैं कि काला धन, महंगाई, बेराजगारी आदि को लेकर किए गए वादे पूरे न होने से फीके हो रहे मोदी ब्रांड का बचाव करने के लिए ही इस तरह के तर्क काम में लिए जा रहे हैं।