तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

शुक्रवार, नवंबर 18, 2016

क्या मोदी अकेले पड़ रहे हैं?

क्या नोटबंदी के मामले में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अकेले पडऩे वाले हैं? यह सवाल चौंकाने वाला है। निहायत काल्पनिक और हास्यास्पद भी। इसे बेतुका व तुक्का भी कहा जा सकता है। सोशल मीडिया पर गंदी गालियों  और बेशर्म दलीलों के बीच जब मैने भी इससे संबंधित पोस्ट पढ़ी तो चौंक उठा। जहां तक मेरी जानकारी है, इस आशय का विचार पहली बार नजर आया है। मगर विचार तो विचार है। चाहे किसी एक के मन में आया हो। जरूर उसका भी कोई दर्द होगा। उसकी भी कोई सोच होगी। यह विचार शेयर करने वाले शख्स का नाम लेना व्यर्थ है, मगर इतना जरूर तय है कि वे हैं मोदी के परम भक्त। फेसबुक पर उसकी अब तक की सभी पोस्ट नोटबंदी के पक्ष में और सवाल उठाने वालों पर तंज कसने वाली ही नजर आई हैं। कॉपी-पेस्ट के जमाने में हो सकता है कि ये उन्होंने भी कहीं से चुरा कर पोस्ट की हो, मगर है दिलचस्प।
आइये, पहले उनकी पोस्ट पढ़ लें, फिर उस पर थोड़ी चर्चा:-
कोई मुगालते में मत रहिये... मोदी ने संघ और बीजेपी से भी पंगा ले लिया है। शीर्ष पर ये आदमी बहुत अकेला है। कल उनके भाषण में ये बात बहुत उभर कर सामने आई है। ये शख्स बहुत जिद्दी भी है। भले ये बर्बाद हो जायेगा, लेकिन अब यहां से ये लौटेगा नहीं। अब मोदी आर-पार की लड़ाई में है। अब इनको सिर्फ देशवासियों का ही सहारा है। व्यवस्था के खिलाफ एक लड़ाई राजीव गांधी ने भी लड़ी थी, लेकिन वो अभिमन्यु साबित हुये। मारे गये। पहले उनकी ईमानदार छवि को मारा गया, फिर उनके शरीर को।
प्रधानमंत्री तो देश को लगभग सभी अच्छे ही मिले हैं। लेकिन जहां तक विजनरी लीडर का सवाल है, मोदी नेहरू और राजीव गांधी को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। जमीनी नेता होने की वजह से इनमें एक खास किस्म का साहस भी है, जो कभी-कभी दुस्साहस की सीमा को भी छू आता है।
अगर मोदी इन 50 दिनों में फेल होते हैं तो ये खुद तो खत्म हो ही जायेंगे लेकिन देश भी मुसीबत में फंस जायेगा। निजी स्वार्थ में ही सही, लेकिन अगले 50 दिन हमें इस आदमी का साथ देना ही पड़ेगा। अब देश दाव पर है।
आप भी साथ दें, क्योंकि बात अब हमारे वर्तमान की नहीं है, बल्कि हमारे बच्चों के भविष्य की है और हमारे जमीर की है कि क्या हम नये बनते हुये भारत के निर्माण में अपना योगदान देना चाहते हैं या नहीं।
है न बिलकुल अजीब पोस्ट। ऐसा प्रतीत होता है कि लाइनों में खड़े लोगों की गालियों और सोशल मीडिया पर चल रही फोकटी जंग के बीच उन्हें लगा हो कि मामला वाकई गंभीर है। कदाचित भाजपा विधायक भवानी सिंह राजावत के नोटबंदी के प्रतिकूल वायरल हुए वीडियो, जिसका कि राजावत खंडन कर चुके हैं, को सुन कर उन्हें लगा हो कि अब तो भाजपाई भी दबे स्वर में आलोचना करने लगे। संभव है ऐसे और भी हों, जो पार्टी अनुशासन के कारण ही चुप हों। यदि ऐसा है तो फिर धीरे-धीरे मोदी अकेले पड़ते जाएंगे। उनकी सोच कुछ कुछ उचित जान पड़ती है। वो इसलिए कि मुख्य आलोचना नोटबंदी की नहीं है, बल्कि बिना मजबूत योजना के लागू करने से आम जनता को हो रही परेशानी की है। विपक्ष भी मोटे तौर पर निर्णय के खिलाफ नहीं, बल्कि जनता में मची अफरा तफरी को मुद्दा बना कर मोर्चा संभाले हुए है। भाजपाइयों का बैंकों के बाहर जनसेवा करने का भी मतलब ये है कि सरकार की नाकामी की भरपाई उन्हें करनी पड़ रही है। यानि कि वे भी कहीं न कहीं मन ही मन यह तो स्वीकार कर ही रहे होंगे कि मोदी के इस देशहितकारी कड़े कदम के साइड इफैक्ट पार्टी को नुकसान न पहुंचा दें।
खैर, हो सकता है कि लेखक को लग रहा हो कि विपक्ष के हमलों का बरबस मुकाबला कर रही भाजपा कहीं कमजोर न पड़ जाए। उन्हें लग रहा है कि पचास दिन का वादा पूरा नहीं हो पाएगा। ऐसे में मोदी को पुरजोर समर्थन करना जरूरी है।
हो सकता है कि राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा में भी कोई अंतर्विरोध चल रहा हो, जिसकी अब तक कोई भनक नहीं पड़ी है, मगर यदि एक सच्चे मोदी भक्त को पूर्वाभास युक्त चिंता सता रही है तो उसे तनिक गंभीरता से लिया जाना चाहिए।
आगे क्या होगा, अभी से कुछ कहना व्यर्थ है, मगर अपुन को केवल एक बात समझ में आती है कि नोटबंदी का निर्णय भले ही देशहितकारी राजनीतिक कदम हो, मगर मोदी के आर्थिक मामलों के सलाहकारों ने जाने-अनजाने चूक की है। या तो उन्हें खुद ही अंदाजा नहीं था कि हालात इतने खराब हो सकते हैं या फिर अंदाजा होने के बाद भी मोदी के इच्छित फैसले पर चुपचाप सहमति दे दी। और उनकी चूक का खामियाजा आज पूरा देश भुगत रहा है।
-तेजवानी गिरधर
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मंगलवार, नवंबर 01, 2016

... तो फिर खत्म कीजिए अदालतें, पुलिस को ही दे दीजिए सजा ए मौत का अधिकार

भोपाल एनकाउंटर अगर असली है... तो पुलिस वालों को सौ-सौ सलाम...और अगर फर्जी है तब तो उनको ...लाखों सलाम..!! ये एक पोस्ट है, जो फेसबुक और वाट्स ऐप पर धड़ल्ले से चल रही है।
कदाचित तथाकथित देशभक्त ही ऐसी पोस्ट को आगे से आगे बढ़ा रहे हैं। अंदाजा लगाया जा सकता है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष देश में हम किस दौर से गुजर रहे हैं। क्या धर्मांध लोग इतने ताकतवर और बेखौफ हो गए हैं कि वे चाहे जो जहर देश में फैलाएं, उन पर कोई कानून लागू नहीं होता और उनका कुछ भी नहीं बिगडऩे वाला।
इस पोस्ट का सीधा सा मतलब है कि एनकाउंटर अगर फर्जी है तो लाखों सलाम इसलिए क्योंकि मरने वाले कथित रूप से सिमी के आतंकी थे। समझा जा सकता है कि किस प्रकार का मन और मानसिकता ऐसा कह रही है? मगर सवाल ये उठता है कि क्या ऐसा कह कर आप कानून को ठेंगा नहीं दिखा रहे? क्या सत्ता पा कर आप इतने निरंकुश हो गए हैं कि कुछ भी मनमानी करेंगे और गुर्राएंगे अलग? क्या धार्मिक तुष्टिकरण के लिए आप पुलिस को ही अधिकार दिए दे रहे हैं कि वो ही तय करे कि कौन आतंकी है और मृत्युदंड भी वही दे दे, तो फिर न्यायपालिका क्यों बना रखी है? काहे को वे जेल में बंद थे और उन पर मुकदमा चल रहा था? क्यों नहीं पकड़े जाते ही पुलिस ले उनको गोली मार दी? बेशक हम लोकतांत्रिक देश हैं और अभिव्यक्ति की हमें पूरी आजादी है, मगर क्या ऐसी विचारधारा को पूरे तंत्र को तहस नहस करने की छूट दे दी जानी चाहिए?
हर बार की तरह यह मुद्दा भी राजनीति की भेंट चढ़ गया है। जिसके मूल में कहीं न कहीं हिंदू-मुस्लिम मौजूद है। अफसोसनाक बात ये है कि जिस पत्रकार जमात से निष्पक्षता की उम्मीद की जानी चाहिए, उसी के कुछ लोग एनकाउंटर को फर्जी मानने के बावजूद ये लिखने-कहने से नहीं चूक रहे कि मारे जाने वाले सिमी के ही तो आतंकी थे। उनको एनकाउंटर में मार डाला तो उनके प्रति सहानुभूति कैसी? यानि कि आप चुप रहिये, सरकार को निरंकुश कर दीजिए और अगर किसी गलत कृत्य पर सवाल खड़ा करेंगे तो आप को भी सिमी के साथ खड़ा  कर दिया जाएगा।
इसी सिलसिले में एक अतिवादी पंक्ति देखिए-आतंक को कुचलने के लिए अब उनकी मौत पर सवाल उठना बंद होने चाहिए। भले ही मौत कैसे भी, कहीं भी, कभी भी हो। भई वाह।
बेशक मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की इस बात में कुछ तथ्य जान पड़ता है कि देश की राजनीति इतनी घटिया हो गई है कि देश के लिए जान गंवाने वालों की चिंता नहीं होती, बल्कि देश को नुकसान पहुंचाने वालों की हिमायत की जाती है। बिलकुल सही है कि आज उन कथित आतंकियों के हाथों मारे गए पुलिस कर्मी की चर्चा नहीं हो रही, बल्कि कथित एनकाउंटर में मारे गए कथित आतंकियों पर बहस हो रही है, मगर इसका अर्थ कहीं ये तो नहीं कि ऐसा कहते हुए हम न्यायपालिका को दरकिनार कर खुद ही कथित आतंकियों को मार डालने की पैरवी कर रहे हैं?
किसी ने लिखा है कि दिग्विजय सिंह, लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव, अरविंद केजरीवाल, वृंदा करात, ममता बनर्जी, असदुद्दीन ओवैसी जैसे नेताओं को ये समझना चाहिए कि कट्टरवादियों की हिमायत करेंगे तो देश की एकता व अखंडता खतरे में पड़ जाएगी। अब इस देश में सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के सूफीवाद से ही अमन चैन कायम हो सकता है। कदाचित उन्हें यह ख्याल नहीं कि अतिवादी तो ख्वाजा साहब को भी नफरत की नजर से देखते हैं, क्योंकि आखिरकार सूफीवाद इस्लाम की ही एक शाखा है। बहरहाल, यानि कि ये जनाब भी कथित आतंकियों को मार डालने का अधिकार सीधे पुलिस को देना चाहते हैं। और अगर आप फर्जी एनकाउंटर पर सवाल उठाएंगे तो आपको देशद्रोही ठहरा दिए जाएंगे।

एक पोस्ट और देखिए:-
गब्बर - कितने आदमी थे?
सांभा - सरदार पूरे 8 थे और सभी अल्लाह को प्यारे हो गये।
गब्बर - हा हा हा, बहुत नाइंसाफी है, एक भी जिन्दा नहीं छोड़ा रोने के लिये।
सांभा - नहीं सरदार...रोने के लिये तो आम आदमी पार्टी...कांग्रेस का पूरा झुंड है..।
क्या इस पोस्ट में विशुद्ध राजनीति की बू नहीं आ रही? क्या यह एक मानसिकता विशेष वाली पार्टी की भावना को उजागर नहीं कर रही? यानि कि फर्जी एनकाउंटर पर सवाल मत उठाओ, उठाओगे तो इसी प्रकार के तंज कसे जाएंगे।

एक और बानगी लीजिए:-
मध्य प्रदेश एटीएस ने सिर्फ 8 घंटे के अंदर आठों को मार गिराया गया।
एटीएस को दस में से दस नंबर।
आरोप है कि फरारी और एनकाउंटर की पूरी कहानी ही फर्जी है। अगर सचमुच ऐसा हुआ है और इस तरह टपकाया है तो शिवराज सरकार, एपी पुलिस और एमपी की एटीएस को 100 में से 200 नंबर।
देश की जेलों में बंद सभी आतंकियों को ऐसा ईच टपकाना मांगता।

जिस तरह के लोग ये पोस्ट कर रहे हैं, क्या वे देश की न्यायपालिका के वजूद को ही समाप्त कर सारे अधिकार सरकार और पुलिस को देने को नहीं उकसा रहे? अगर ऐसी ही सोच है तो कानून और संविधान को ताक पर रख दीजिए और पुलिस को कथित आतंकियों को सीधे मृत्युदंड देने का कानूनन अधिकार दे दीजिए। कम से कम तब फिर इस प्रकार के फर्जी एनकाउंटर पर कोई सवाल तो नहीं उठाएगा।

इस पोस्ट का आखिरी हिस्सा देखिए:-
कांग्रेस देश की नब्ज पकडऩे में चूक रही है। उसे समझना चाहिए कि आज देश में जो माहौल है, उसमें यदि यह एक असली एनकाउंटर था तो बीजेपी को 100 पैसा फायदा होगा, पर अगर वाकई ये फर्जी था और आतंकियों को जान बूझ के मार दिया गया तो ये मान लीजिए की भाजपा को 200 पैसे फायदा होगा।
यानि कि जो कुछ हो रहा है, वो केवल और केवल वोट की खातिर हो रहा है। अगर आरोप ये है कि कांग्रेस मुस्लिम तुष्टिकरण कर रही है तो आरोप लगाने वाले को भी यह सोच लेना चाहिए कि वे भी इस आरोप नहीं बच पाएंगे कि चूंकि हिंदू बहुसंख्यक है, इस कारण आप भी तो वोट की खातिर हिंदू तुष्टिकरण के लिए ऐसा कर रहे हैं।
खैर, इस मुहिम से किसको कितना फायदा होगा, ये तो पता नहीं, मगर इतना तय है कि इन दिनों जो कुछ हो रहा है, वह मात्र और मात्र हिंदू और मुसलमान के बीच नफरत की खाई को और चौड़ा कर देने वाला है। उसका अंजाम खुदा जाने।
-तेजवानी गिरधर
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गुरुवार, अक्टूबर 27, 2016

मोदी के गले की हड्डी हैं वसुंधरा

राजनीति के जानकार मानते हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भाजपा में एक तानाशाह के रूप में स्थापित हैं। वजह साफ है कि अकेले उनके नाम पर ही भाजपा पहली बार पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज हुई है। उन्हें राज्य स्तर पर क्षत्रपों की मौजूदगी कत्तई पसंद नहीं। विशेष रूप से राजस्थान की बात करें तो यह सब जानते हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को मुख्यमंत्री वसुंधरा कत्तई पसंद नहीं हैं, उनका बस चले तो वे उन्हें एक झटके में हटा दें, मगर उनकी सबसे बड़ी परेशानी ये है कि उनके पास उनका विकल्प भी नहीं है। उनकी इसी उधेड़बुन के चलते राजस्थान में उहापोह के हालात हैं। वसुंधरा राजे का दूसरा कार्यकाल निस्तेज सा बीता जा रहा है। उपलब्धि शून्य। महारानी में पहले जैसी चमक भी नजर नहीं आ रही। और इसी वजह से कांग्रेस में ऊर्जा का संचार हो रहा है। हालांकि चुनाव अभी दूर हैं, मगर मौजूदा हालात को देखते हुए भाजपाइयों को भी यही लगता है कि शायद इस बार जीत के दीदार नहीं हो पाएंगे। आखिरी वक्त मोदी कोई बड़ा दाव खेल जाएं तो कुछ कह नहीं सकते।
अत्यंत विश्वसनीय सूत्रों से जानकारी मिल रही है कि वसुंधरा राजे को अपदस्त करने का ताना-बाना बुना जा रहा है, मगर ऐसा कदम उठाने का साहस भी नहीं हो रहा, क्योंकि वह आत्मघाती भी हो सकता है। यूं वसुंधरा राजे इतनी कमजोर भी नहीं कि उन्हें आसानी से हटाया जा सके। वे व्यक्ति नहीं, एक पार्टी हैं। पार्टी में ही विधायकों का एक बड़ा समूह उनका दीवाना है। वे विधायक वसुंधरा के कहने पर कुछ भी करने को तैयार हैं। कई बार ये अफवाह उठी है कि अगर उनके साथ छेडख़ानी की गई तो वे अलग पार्टी भी बना सकती हैं। अपनी ताकत का अहसास वे पहले भी भाजपा आलाकमान को करवा चुकी हैं। भारी दबाव बना कर उन्हें नेता प्रतिपक्ष पद से हटा तो दिया गया, मगर किसी और को यह पद नहीं दिया जा सका। आखिरकार न केवल उन्हें मान मनुहार कर नेता प्रतिपक्ष बनने को राजी किया गया, अपितु उनके नेतृत्व में ही चुनाव लडऩे का भी ऐलान किया गया। तब और अब में फर्क सिर्फ ये है कि तब भाजपा केन्द्र में सत्ता में नहीं थी और अभी पूरी मजबूती के साथ सत्ता पर काबिज है। तब राजनाथ सिंह जैसे संजीदा नेता के हाथ में भाजपा की कमान थी, अब तेजतर्रार नरेन्द्र मोदी के खास सिपहसालार चतुर-चालाक अमित शाह बागडोर संभाले हुए हैं। फिर भी साहस नहीं जुटा पा रहे। बीच बीच में खबरें आती हैं कि उन्हें हटा कर ओम प्रकाश माथुर या भूपेन्द्र यादव को मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है, मगर हर बार खबर अफवाह ही साबित होती है। यानि कि किसी न किसी वजह से मामला टल जाता है।
असल में मोदी की वजह से ही इस बार वसुंधरा वैसा नहीं कर पा रहीं, जैसा वे करने का मानस रखती हैं, या जो वादे करके उन्होंने बहुमत हासिल किया था। कार्यकर्ता निराश हैं। सरकार के कामकाज में कहीं भी सुराज संकल्प नजर नहीं आता। शासन-प्रशासन एक ढर्रे पर चल रहा है। कहीं से लगता ही नहीं कि सरकार जनता के लिए कुछ अतिरिक्त भी करना चाहती है। खासकर तब जब कि प्रदेश में भाजपा प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता पर सवार है। जनता में भी यह संदेश साफ जा चुका है कि इस बार के कार्यकाल में गिनाने लायक कुछ नहीं। यानि कि इस बार वसुंधरा के चेहरे पर चुनाव जीतना कठिन होगा। मगर दिक्कत ये है कि उनसे बेहतर, बेहतर क्या उनके समकक्ष भी कोई चेहरा भाजपा के पास नहीं, जिसको आगे रख कर चुनाव जीता जा सके। अजीब गुत्थी है। पहले जैसी लहर भी नहीं चलने वाली नहीं है, क्योंकि मोदी का जादू शनै: शनै: ढ़लता जा रहा है। हां, इतना जरूर सही है कि भाजपा-भाजपा-भाजपा की जगह मोदी-मोदी-मोदी करने की वजह से पार्टी पूरी तरह से मोदी के नाम पर ही टिकी हुई है। उनकी चमक के आवरण में राज्य सरकार की उपलब्धि शून्यता को ढंका जा रहा है। मगर एक सच ये भी है कि जिस तरह से पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत का श्रेय मोदी को दिया गया, ठीक उसी तरह यदि इस बार भाजपा हारती है तो उसकी एक मात्र वजह मोदी ही होंगे, क्योंकि उन्होंने वसुंधरा राजे को इस लायक ही नहीं छोड़ा कि वे स्वछंद रूप से काम कर सकें।
ऐसे में कांग्रेस यदि अगली बार सत्ता पर काबिज होने की सपना देख रही है तो वह जायज ही लगता है। इस वजह से भी कि जब से सचिन पायलट को प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपी गई है, वे लगातार सक्रिय रह कर कांग्रेस में जान फूंक रहे हैं। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस जिस तरह से चौखाने चित हुई थी, उससे काफी उबर कर आ चुकी है। हां, ये जरूर है कि पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के व्यक्तिगत समर्थक उन्हें जिंदा रखे हुए हैं, जो फूट का संकेत है। चुनाव में बुरी तरह से हार का ठीकरा उन पर ही फूटा है, मगर आज भी उनकी छवि कमजोर नहीं हुई है। स्वाभाविक रूप से लंबे समय तक प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और दो बार मुख्यमंत्री रहने के दौरान उनसे निजी रूप से उपकृत हुए नेता उनके मुरीद है। मगर लगता यही है कि कांग्रेस आलाकमान नए जोश के प्रतीक सचिन को ही आगे लाना चाहता है। हां, गहलोत के सम्मान का भी ध्यान रखा जा रहा है। संभव है उन्हें उनके हिसाब की सीटें दे कर राजी कर लिया जाए। मुख्यमंत्री के रूप में सचिन को ही प्रोजेक्ट किया जाएगा। नहीं भी किया जाएगा तो बहुमत मिलने पर उन्हें ही मुख्यमंत्री बनाया जाएगा और गहलोत को अंतत: केन्द्र में शिफ्ट किया जाएगा।
-तेजवानी गिरधर
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रविवार, सितंबर 18, 2016

भक्त होना बुरा नहीं, मगर अंधभक्ति, लानत है

कोई किसी का भक्त हो, तो इसमें कोई बुराई नहीं। भक्ति निजी आस्था का मामला है, उस पर सवाल खड़ा करना ही गलत है, मगर अफसोस तब होता है कि जब कुछ अंध भक्त अपने भगवान के तनिक विपरीत मगर सच्ची टिप्पणी को भी बर्दाश्त नहीं कर पाते और लगते हैं अनर्गल प्रलाप करने। घटिया टिप्पणियां करते हैं। लानत है ऐसे लोगों पर।
दरअसल प्रकरण ये है कि मैने अपने फेसबुक अकाउंट पर एक विडियो शेयर किया, जिसमें इंडिया टीवी के आप की अदालत शो में तत्कालीन मुख्यमंत्री गुजरात और पीएम इन वेटिंग नरेन्द्र मोदी बड़े ही आत्मविश्वास के साथ कह रहे हैं कि पाक को पाक की भाषा में जवाब देना चाहिए। मैने इस वीडियो के साथ सिर्फ एक पंक्ति लिखी कि ये वे ही मोदी जी हैं, जो पाक को पाक की भाषा में जवाब देने का उपदेश दे रहे हैं, मगर तब वे विपक्ष में थे। इस पर कुछ मोदी भक्त उबल पड़े। लगे मोदी जी के पक्ष में दलील देने। यहां तक कि मेरी अब तक बेदाग रही पत्रकारिता पर सवाल उठाने लगे। मुझे अफसोस हुआ कि मैं कैसे दोस्तों के साथ घिरा हुआ हूं कि उन्हें मोदी जी की अंधभक्ति में सच नजर ही नहीं आता। भला मेरी पत्रकारिता का मोदी जी के दोहरेपन का क्या संबंध?
असल में उरी में हुई आतंकी वारदात की जब पूरा देश निंदा व आलोचना कर रहा है, गुस्से से भरा है और जवाबी कार्यवाही की अपेक्षा में है, तब मोदी जी के चंद अंधभक्त सच्चाई से आंख फेर कर लगे हैं मोदी जी के गुणगान करने में। वस्तुत: ये मुद्दा बहस का है ही नहीं। यदि मोदी जी ने कांग्रेस की कायरतापूर्ण नीति पर हमला करते हुए ये दंभ भरा उपदेश दिया है कि पाक को पाक की भाषा में जवाब देना चाहिए, और ऐसे ही बयानों के दम पर सत्ता हासिल की है तो आज के हालात में उनके इस बयान को याद किया ही जाएगा। उसे स्वीकार करना ही चाहिए। कुछ मोदी भक्त स्वीकार भी कर रहे हैं, मगर कुछ मोदी जी के खिलाफ एक भी शब्द सुनना नहीं चाहते। उलटा, बेसिरपैर की टिप्पणियां कर रहे हैं। मेरी पोस्ट को छोड भी दीजिए, मगर आप सोशल मीडिया पर ऐसी सैकडों पोस्ट देख सकते हैं, जिसमें मोदी जी के भक्त किस प्रकार बकवास कर रहे हैं।
अरे भाई, अगर आपने विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस को कोई उपदेश दिया है और उसी देशभक्ति के नाम पर वोट बटोरे हैं तो आज सत्ता में रहते आपको स्वयं भी उस उपदेश पर चल कर दिखाना ही होगा। पाक को करारा जवाब देना ही होगा। वरना आपको लोग लफ्फाज कहेंगे।
सच तो ये है कि यह विषय भाजपा, कांग्रेस का है ही नहीं। पाकिस्तान यदि बदमाशी कर रहा है तो उसे सबक सिखाया ही जाना चाहिए। इस मुद्दे पर पूरा देश प्रधानमंत्री के साथ खड़ा है। निजी तौर पर किसी को मोदी जी नापसंद भी हो सकते हैं, मगर वे देश के प्रधानमंत्री हैं और बहादुरी का दावा करके बने हैं तो उसी बहादुरी का परिचय देने का यह उचित वक्त है। वैचारिक भिन्नता अलग बात है, मगर देश की खातिर तो सब एक ही हैं।
लीजिए, वह वीडियो भी देख लीजिए, इस लिंक पर:-
https://youtu.be/pxTzEu7Y9ME

-तेजवानी गिरधर
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8094767000

बुधवार, अगस्त 24, 2016

राम्या देशद्रोही कैसे हो गई?

कन्नड़ अभिनेत्री और कांग्रेस की पूर्व विधायक राम्या के मात्र इतना कहने पर कि पाकिस्तान जहन्नुम नहीं है, उसे देशद्रोही करार देना हद्द दर्जे की गंदी राजनीति व असहिष्णुता की इंतहा है। इस मामले में होना जाना कुछ नहीं है, ये महज शब्द जुगाली है। कुछ लोगों को अपनी देश भक्ति स्थापित करने का मौका मिल जाएगा तो किसी को देशद्रोही करार दिया जाएगा, मगर हम राजनीति की कैसी नौटंकी के दौर में जी रहे हैं, उसे देख-सुन कर आत्म ग्लानि होती है। राजनीति तो राजनीति, इलैक्ट्रॉनिक मीडिया व सोशल मीडिया पर भी सोम्या के बयान को पाकिस्तान प्रेम की संज्ञा दी जाती है तो साफ नजर आता है कि वह भी प्रयोजन विशेष के लिए काम कर रहे हैं। एक जगह तो यह तक लिखा गया कि राम्या ने कन्नड़ फिल्मों में जिस तरह से अपने शरीर का प्रदर्शन किया है, क्या वैसा प्रदर्शन पाकिस्तान की फिल्मों में कर सकती हैं? अफसोस, अगर किसी की आप से मतभिन्नता है तो आप उसके कपड़े तक उतारने को उतारू हो जाएंगे। लानत है ऐसी सोच पर।
इस मसले की बारीक बात ये है कि राम्या ने ऐसे वक्त में यह बयान दिया, जबकि देश के रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर कह चुके थे कि पाकिस्तान तो नरक है। बस यहीं से विवाद शुरू होता है। बेशक पाकिस्तान हमारा दुश्मन पड़ौसी है, इस कारण उसे गाली देना सुखद लगता है, देशप्रेम नजर आता है, ऐसे में अगर आप ये कहेंगे कि वह जहन्नुम नहीं तो वह देशद्रोहिता की श्रेणी में गिना जाता है। मगर इस किस्म की देशद्रोहिता तब कहां चली जाती है, जबकि हमारे ही प्रधानमंत्री व पर्रिकर की पार्टी के नेता नरेन्द्र मोदी अफगानिस्तान से लौटते समय बिना निर्धारित कार्यक्रम के लाहौर जाकर वहां के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की माता के पैर छू आते हैं। अगर पाकिस्तान नरक है तो मोदी को वहां नहीं जाना चाहिए था। साम्या ने तो केवल इतना भर कहा है कि पाकिस्तान नरक नहीं है, उसमें वह देशद्रोही कैसे हो गईï? अगर आप पाकिस्तान से संबंध सुधारने की खातिर बिना किसी सरकारी कार्यक्रम के शिष्टाचार के नाते नवाज शरीफ से प्यार की पीगें बढ़ाते हैं तो वह स्वीकार्य ही नहीं स्वागत योग्य है, क्योंकि वे आपकी पार्टी के नेता हैं और अगर आपकी विरोधी पार्टी की नेता ये कहे कि पाकिस्तान नरक नहीं है तो वह देशद्रोही हो गई?
मुद्दा ये है कि अगर आप वाकई अपने राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करते हुए पाकिस्तान को नरक बता रहे हैं तो उससे सारे संबंध विच्छेद क्यों नहीं कर लेते? क्यों द्विपक्षीय वार्ताओं के दौर चलाते हैं? और अगर आपका बयान एक निजी राय है तथा कोई अगर उससे अपनी असहमति जताता है तो वह उसका अभिव्यक्ति का वैयक्तिक अधिकार है। आप उसे छीन नहीं सकते हैं, बेशक चूंकि आप सत्ता में हैं तो उसे दंडित करवा सकते हैं, जलील कर सकते हैं।
वस्तुत: यह वक्त वक्त का फेर है। पाकिस्तान से हमारे रिश्ते बदलते रहे हैं। कभी बनते दिखाई देते हैं तो कभी पटरी से पूरी तरह से उतरते नजर आते हैं। कभी दोस्ती की प्रक्रिया शुरू होती है तो कभी एक दूसरे के देश को गाली देकर दोनों देशों के नेता अपनी अपनी जनता के सामने अपनी देशभक्ति स्थापित करना चाहते हैं। इसमें स्थायी कुछ भी नहीं है। इसका ज्वलंत उदाहरण ये है कि दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक आदान प्रदान के करार के तहत कभी पाकिस्तान के जायरीन अजमेर दरगाह शरीफ की जियारत करने आते हैं तो आपकी विचारधारा के नेता सरकारी जलसा करके उनका इस्तकबाल करते हैं और कभी घटना विशेष के कारण संबंधों में तनिक खटास होती है तो आप उनके अजमेर आने का विरोध करने लगते हैं।
कुल जमा बात ये है कि ताजा मसला न तो देश प्रेम का है और न ही देशद्रोह का, यह केवल और केवल राजनीतिक स्टंट है।
-तेजवानी गिरधर
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8094767000

मंगलवार, अगस्त 23, 2016

भगवान श्रीकृष्ण पर अभद्र टिप्पणियों से आहत व आक्रोषित हैं धर्म प्रेमी

यह एक विंडबना ही कही जाएगी कि जहां एक ओर हिंदू समाज में भगवान श्रीकृष्ण को सर्वगुण संपन्न, चौसठ कला प्रवीण और योगीराज माना जाता है, वहीं दूसरी ओर उनकी जन्माष्ठमी के मौके पर कई छिछोरे उनके बारे में अनर्गल टिप्पणियां और चुटकलेबाजी करते हैं। इसको लेकर धर्मप्रमियों कड़ा को ऐतराज है। एक तरफ मनचले सोशल मीडिया पर उनको लेकर चुटकले शाया कर रहे हैं, तो दूसरी ओर कुछ लोग प्रतिकार में चेतावनी और सुझाव दे रहे हैं कि भगवान श्रीकृष्ण के बारे में अनर्गल टिप्पणियां न करें।
ये बात समझ से बाहर है कि हिंदू समाज में अपने ही आदर्शों व देवी-देवताओं की खिल्ली कैसे उड़ाई जाती है? एक ओर अपने आपको महान सनातन संस्कृति के वाहक मानते हैं तो दूसरी और संस्कारविहीन होते जा रहे हैं। एक ओर देवी-देवताओं के विशेष दिनों, यथा गणेश चतुर्थी, नवरात्री, महाशिवरात्री, श्रीकृष्ण जन्माष्ठमी इत्यादि पर आयोजनों की संख्या निरंतर बढ़ रही है। ऐसा प्रतीत होता है कि लोगों में धार्मिक भावना बढ़ती जा रही है। हर साल गरबों की संख्या बढ़ती जा रही है, नवरात्री पर मूर्ति विसर्जन के आयोजन दिन प्रति दिन बढ़ते जा रहे हैं, गणपति उत्सव के समापन पर गली गली से गणपति विसर्जन की यात्राएं निकलती हैं, शिव रात्री पर शिव मंदिरों पर भीड़ बढ़ती जा रही है। दूसरी ओर धर्म व नैतिकता का निरंतर हृास होता जा रहा है। साथ ही धार्मिक आयोजनों के नाम पर उद्दंडता का तांडव भी देखा जा सकता है। कानफोड़ डीजे की धुन पर नशे में मचलते युवकों को गुलाल में भूत बना देख कर अफसोस होता है। ये कैसा विरोधाभास है? ये कैसी धार्मिकता है? ये कैसी आस्था है? आखिर ऐसा हो क्यों रहा है? समझ से परे है। स्वाभाविक रूप से इसकी पीड़ा हर धार्मिक व्यक्ति को है, जिसका इजहार दिन दिनों सोशल मीडिया में खूब हो रहा है।
एक बानगी देखिए:-
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी आने वाली है...
एक मैसेज अभी सोशल मीडिया में चल रहा है, जिसमें प्रभु श्रीकृष्ण को टपोरी, लफड़ेबाज, मर्डरर, तड़ीपार इत्यादि कहा गया है।
अपने देवताओं को टपोरी बिलकुल भी ना कहें।
कृष्ण जी ने नाग देवता को नहीं बल्कि लोगों के प्राण लेने वाले उस दुष्ट हत्यारे कालिया नाग का मर्दन किया था, जिसके भय से लोगों ने यमुना नदी में जाना बन्द कर दिया था।
कंकड़ मार कर लड़कियां नहीं छेड़ते थे, अपितु दुष्ट कंस के यहां होने वाली मक्खन की जबरन वसूली को अपने तरीके से रोकते थे और स्थानीय निवासियों का पोषण करते थे। और दुष्ट चाहे अपना सगा ही क्यों न हो, पर यदि वो समाज को कष्ट पहुंचाने वाला हो तो उसको भी समाप्त करने में संकोच नहीं करना चाहिए, यह भगवान कृष्ण से सीखा है।
उनके 16000 लफड़े नहीं थे, नरकासुर की कैद से छुड़ाई गई स्त्रियां थीं, जिन्हें सम्भवत: समाज स्वीकार नहीं कर रहा था, उन्हें पत्नी का सम्मानजनक दर्जा दिया। वो भोगी नहीं योगी थे।
इसलिए उन्हें भगवान मानते हैं।
कृपया भविष्य में कभी भी किसी हिन्दू देवी देवता के लिये कोई अपमानजनक बात न तो प्रसारित करें और न ही करने दें। यदि यह संदेश किसी और ने आपको भेजा है तो उसे भी रोकें।
एक और बानगी देखिए, जिसमें एक कविता के माध्यम से श्रीकृष्ण के बारे में भद्दे संदेशों पर अफसोस जताया गया है:-
योगेश्वर श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर कुछ बेहद भद्दे सन्देश प्राप्त हुए, कृष्ण भगवान को लेकर, उन संदेशों को जवाब देती ये कविता

द्वारका के राजा सुनो , हम आज बड़े शर्मिंदा हैं,
भेड़चाल की रीत देखो आज तलक भी जिन्दा हैं

व्हाट्स एप के नाम पे देखो मची कैसी नौटंकी है,
मजाक आपका बनता है, ये बात बड़ी कलंकी है

दो कोड़ी के लोग यहां तुम्हें तड़ीपार बतलाते हैं,
अनजाने में ही सही, पर कितना पाप कर जाते हैं

जिनके मन में भरी हवस हो, महारास क्या जानेंगे,
कांटें भरे हो जिनके दिल, नरम घास क्या जानेंगे

जिनको खुद का पता नहीं, वो तेरा कैरेक्टर ढीला बोलेंगे,
जो खुद मन के काले हैं, वो तुझे रंगीला बोलेंगे

कालिया नाग भी ले अवतार तुझसे तरने आते थे,
तेरे जन्म पे स्वत: ही जेल के ताले खुल जाते थे

तूने प्रेम का बीज बोया गोकुल की हर गलियों में,
मुस्कान बिखेरी तूने कान्हा, सृष्टि की हर कलियों में

दुनिया का मालिक है तू, तुझे डॉन ये कहते हैं,
जाने क्यों तेरे भक्त सब सुन कर भी चुप रहते हैं

गोकुल की मुरली को छोड़, द्वारकाधीश का रूप धरो,
हुई शिशुपाल की सौ गाली पूरी, अब उसका संहार करो

रविवार, जुलाई 24, 2016

क्या अर्जुनराम मेघवाल आगे चल कर वसुंधरा के लिए परेशानी बनेंगे?

राज्य विधानसभा में तगड़े बहुमत और विपक्षी कांग्रेस के पस्त होने के नाते बहुत मजबूत मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे यूं तो बहुत मजबूत मुख्यमंत्री हैं, मगर हाल ही जिस प्रकार केन्द्र में मंत्रीमंडल विस्तार में राजस्थान के चार सांसदों को मंत्री बनाया गया है, उससे यह संकेत मिलते हैं कि उनके और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बीच ट्यूनिंग और बिगड़ गई है। ज्ञातव्य है कि मोदी ने वसुंधरा राजे की पसंद के अब तक मंत्री रहे निहाल चंद मेघवाल और प्रो. सांवर लाल जाट को हटा कर उनके विरोधी माने जाने वाले अर्जुन राम मेघवाल, पी पी चौधरी, सी आर चौधरी और विजय गोयल को मंत्री बना दिया है। इस बड़े परिवर्तन की सियासी गलियारे में बहुत अधिक चर्चा है। चर्चा इस वजह से भी वसुंधरा की सिफारिश के बाद भी उनके पुत्र दुष्यंत को मंत्रीमंडल में स्थान नहीं दिया गया है।
हालांकि अर्जुन राम मेघवाल को सियासी मैदान में लाने वाली वसुंधरा राजे ही हैं, मगर अब उनको विरोधी लॉबी में गिना जाने लगा है। कुछ लोगों का मानना है कि वसुंधरा राजे को घेरने के लिए मेघवाल को आगे चल कर और मजबूत किया जाएगा। मेघवाल के जातीय समर्थक तो उन्हें अभी से आगामी मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करने में लग गए हैं।
राजनीति जानकारों का मानना है कि इस बार बहुत अधिक विधायकों के साथ सत्ता पर काबिज होने के बाद भी वे उतनी मजबूत नहीं हैं, जितनी कि पिछली बार कम विधायकों के बाद भी रहीं। पिछले कार्यकाल में उन्होंने जिस प्रकार एक दमदार मुख्यमंत्री के रूप में काम किया, वैसा इस बार नजर नहीं आ रहा। उनकी हालत ये है कि जिन कैलाश मेघवाल ने उन पर आरोप लगाए, उन्हीं को राजी करने के लिए विधानसभा अध्यक्ष बनाना पड़ा। इसी प्रकार घनश्याम तिवाड़ी खुल कर विरोध में खड़े हैं और उन्होंने कथित रूप गैर राजनीतिक संगठन खड़ा कर दिया है, फिर भी उनके खिलाफ कार्यवाही नहीं हो पा रही। केन्द्रीय संगठन में लिए ओम माथुर का भी उनसे कितना छत्तीस का आंकड़ा है, इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि हाल ही जब वे अजमेर आए तो वसुंधरा के डर से केवल उनकी ही लॉबी के नेताओं ने उनकी आवभगत की। कुल मिला कर राज्य में विरोधी लॉबी के सक्रिय रहते और मोदी की तनिक टेढ़ी नजर के कारण वसुंधरा पहले जैसी सहज नहीं हैं।
-तेजवानी गिरधर
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