तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

गुरुवार, अक्तूबर 03, 2024

जेनेरिक दवाओं की गुणवत्ता पर अब भी संशय क्यों?

राजस्थान में निःशुल्क जेनेरिक दवा योजना के प्रणेता डॉ समित शर्मा ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजी की जयंती पर 13 वर्ष पूर्व राजस्थान राज्य के समस्त राजकीय चिकित्सा संस्थानो में आने वाले प्रत्येक रोगी के लिए जेनेरिक मेडिसिन के ड्रीम प्रोजेक्ट के तहत ’निशुल्क दवा योजना’ आरंभ करने के बारे में अपने फेसबुक अकाउंट पर उद्गार व्यक्त किए हैं। उन्होंने लिखा है कि राजस्थान मेडिकल सर्विसेज कॉरपोरेशन एवं चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग की कर्तव्यनिष्ठ और समर्पित टीम ने अनेक बाधाओं और चुनौतियां से लड़ते हुए इसे धरातल पर उतारा, उस विजयी टीम का भी बहुत-बहुत आभार। इतने वर्षों से हमारे सेवाभावी चिकित्सक बंधु, फार्मासिस्ट, नर्सिंग कर्मी आदि अनवरत अनेक रोगियों के दुख, दर्द और कष्टों को दूर करने व उनकी जान बचाने का पुण्य कार्य इसके माध्यम से कर है। उन सब की मेहनत और कर्तव्य निष्ठा को कोटि-कोटि प्रणाम।

बेशक डॉ शर्मा के प्रयासों से मेडिसिन के क्षेत्र में युगांतरकारी परिवर्तन किया जा सका है। वे कोटि कोटि साधुवाद के पात्र हैं। लाभान्वितों की संख्या भी निरंतर बढ रही है, मगर आज भी जेनेरिक दवाओं पर पूर्ण विश्वास कायम नहीं किया जा सका है। आज भी यह धारणा समाप्त नहीं की जा सकी है कि जेनेरिक दवाएं गुणवत्ता की दृश्टि से कमतर हैं। अतः इस महत्वाकांक्षी व बहुउपयोगी योजना की पूर्ण सफलता के लिए गुणवत्ता कायम रखने के कडे उपाय किए जाने चाहिए। 


जेनेरिक दवाओं की गुणवत्ता पर अब भी संशय क्यों?

राजस्थान में निःशुल्क जेनेरिक दवा योजना के प्रणेता डॉ समित शर्मा ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजी की जयंती पर 13 वर्ष पूर्व राजस्थान राज्य के समस्त राजकीय चिकित्सा संस्थानो में आने वाले प्रत्येक रोगी के लिए जेनेरिक मेडिसिन के ड्रीम प्रोजेक्ट के तहत ’निशुल्क दवा योजना’ आरंभ करने के बारे में अपने फेसबुक अकाउंट पर उद्गार व्यक्त किए हैं। उन्होंने लिखा है कि राजस्थान मेडिकल सर्विसेज कॉरपोरेशन एवं चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग की कर्तव्यनिष्ठ और समर्पित टीम ने अनेक बाधाओं और चुनौतियां से लड़ते हुए इसे धरातल पर उतारा, उस विजयी टीम का भी बहुत-बहुत आभार। इतने वर्षों से हमारे सेवाभावी चिकित्सक बंधु, फार्मासिस्ट, नर्सिंग कर्मी आदि अनवरत अनेक रोगियों के दुख, दर्द और कष्टों को दूर करने व उनकी जान बचाने का पुण्य कार्य इसके माध्यम से कर है। उन सब की मेहनत और कर्तव्य निष्ठा को कोटि-कोटि प्रणाम।

बेशक डॉ शर्मा के प्रयासों से मेडिसिन के क्षेत्र में युगांतरकारी परिवर्तन किया जा सका है। वे कोटि कोटि साधुवाद के पात्र हैं। लाभान्वितों की संख्या भी निरंतर बढ रही है, मगर आज भी जेनेरिक दवाओं पर पूर्ण विश्वास कायम नहीं किया जा सका है। आज भी यह धारणा समाप्त नहीं की जा सकी है कि जेनेरिक दवाएं गुणवत्ता की दृश्टि से कमतर हैं। अतः इस महत्वाकांक्षी व बहुउपयोगी योजना की पूर्ण सफलता के लिए गुणवत्ता कायम रखने के कडे उपाय किए जाने चाहिए। 


रिटायर्ड कर्मचारी की उम्र कम हो जाती है?

एक सर्वे के मुताबिक जो कर्मचारी अस्सी साल जी सकता था, रिटायर होने के कारण सत्तर साल में ही मर जाता है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार कर्मचारी रिटायरमेंट के बाद काम के अभाव में धीरे धीरे अकर्मण्य होने लगता है, जिससे उसका मानसिक स्वास्थ्य बिगडने लगता है। उसका प्रभाव शारीरिक स्वास्थ्य पर भी पडता है और उसे बीमारियां घेरने लगती हैं। वस्तुतः सरकार की ओर से रिटायरमेंट की तय आयु के बाद भी अनेक कर्मचारी काम करने में सक्षम होते हैं। हठात उनसे काम छीन लिया जाता है। जैसा जिसका ओहदा व वर्चस्व होता है, वह खो जाता है, इस कारण उसकी आत्मशक्ति क्षीण होने लगती है। बेशक बेरोजगारी के दौर में नई पीढी को रोजगार देने के लिए कर्मचारियों को रिटायर करना भी जरूरी है, मगर उसकी वजह से जो कर्मचारी अभी सक्षम हैं, उनकी शक्ति को यूं ही व्यर्थ गंवाना भी उचित प्रतीत नहीं होता। ऐसे में होना यह चाहिए कि जिन कर्मचारियों की उत्पादकता व उपयोगिता शेष है, उसका उपयोग करने के उपाय किए जाने चाहिए। कदाचित उनकी उत्पादकता कम हो सकती है, मगर उनके अनुभव का लाभ लिया जाना चाहिए। नई पीढी की कर्मशीलता का उपयोग भी जरूरी है, इसके लिए रोजगार के नए उपाय तलाशे जाने चाहिए।


बुधवार, अक्तूबर 02, 2024

आदमी के स्तन क्यों होते हैं?

क्या आपके दिमाग में कभी यह सवाल आया है कि आदमी के स्तन क्यों होते हैं? उनका क्या उपयोग है? चलो, औरतों को तो इसलिए होते हैं कि क्योंकि जब वह बच्चे को जन्म देती है तो उसके पोषण के लिए प्रकृति उनमें दूध उत्पन्न करती है, मगर आदमी के स्तन तो किसी भी काम के नहीं। आदमी का एक यही अंग ऐसा है, जिसका ताजिंदगी कोई उपयोग नहीं होता। आम तौर पर आदमी में ये अविकसित व सुप्त अवस्था में ही होते हैं। किसी-किसी के बड़े भी हो जाते हैं, मगर उनका कोई उपयोग नहीं। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि प्रकृति ने आदमी को स्तन क्यों दिए? आइये, इस सवाल का जवाब तलाषने की कोषिष करते हैंः-

आदमी को स्तन क्यों होते हैं, इस सवाल का जवाब पाने के लिए बहुत प्रयास किए, मगर फिलवक्त तक सटीक उत्तर नहीं मिल पाया है। हां, इतना जरूर समझ आया है कि यह इस बात का प्रतीक हैं कि आदमी में कुछ मात्रा में स्त्रैण हार्माेन भी होते हैं। होंगे ही, क्योंकि मनुष्य की उत्पत्ति स्त्री व पुरुष के मिलन से होती है और हर एक में दोनों के गुणसूत्र विद्यमान होते हैं। बस प्रतिशत का ही फर्क होता है, जिसकी वजह से कोई मेल तो कोई फीमेल पैदा होता है।

खैर, स्तन भले ही दूध की ग्रंथी है, मगर कहीं न कहीं इसका नस-नाडिय़ों के संतुलन से भी संबंध है। जब धरण टल जाती है तो नाड़ी वैद्य एक डोरी लेकर नाभि से पहले एक स्तन की दूरी नापता है और फिर दूसरे की। यदि दोनों की दूरी समान हो तो वह यही बताता है कि धरण नहीं टली है, पेट में दर्द किसी और वजह से है। यदि दूरी में फर्क आता है तो वह कहता है कि धरण टल गई है और झटके दे कर नाडिय़ों को संतुलित करता है। इसका मतलब ये हुआ कि जैसे नाभि पूरे शरीर की नस-नाडिय़ों का केन्द्र स्थान है, वैसे ही स्तन के बिंदु भी कहीं न कहीं नाडिय़ों के संतुलन का हिस्सा हैं।

दूसरी बात ये कि भले ही आदमी के स्तनों में दूध उत्पन्न नहीं होता, मगर हैं तो वे स्तन ही। भले ही सुप्त अवस्था में हों। यह नजरिया तब बना, जब ओशो के एक प्रवचन में यह सुना कि स्वामी रामकृष्ण परमहंस काली माता की भक्ति में इतने लीन हो गए कि जीवन के आखिरी दौर में उनका शरीर स्त्रैण हो गया। उनके स्तन अप्रत्याशित रूप से बढ़ गए व उनमें से दूध टपकने लगा। इसके यही मायने हैं कि पुरुष के शरीर में जो स्तन हैं, वे वाकई स्तन ही हैं, तभी तो स्वामी रामकृष्ण के स्तनों में से दूध आने लगा। 

चूंकि आदमी के स्तन प्रतीकात्मक हैं, इस कारण यदि किसी के स्तन बढ़ जाते हैं तो उसके लिए शर्मिंदगी का कारण बन जाते हैं। विज्ञान की भाषा में बात करें तो असल में यह एक बीमारी है, इसको गाइनेकॉमस्टिया कहते हैं। टेस्टोस्टेरोन या एस्ट्रोजन हार्माेन के असंतुलन के कारण पुरुषों के स्तन बढ़ते हैं।। वैज्ञानिक शोध में यह भी सामने आया है कि लैवेंडर और चाय के पौधों के तेल के कारण युवकों के स्तन असामान्य रूप से बढ़ जाते हैं। इन तेलों में आठ ऐसे केमिकल होते हैं, जो हमारे हार्माेन्स पर प्रभाव डालते हैं। ज्ञाातव्य है कि लैवेंडर और टी ट्री पौधों से जुड़े तेल कई उत्पादों में पाए जाते हैं। साबुन, लोशन, शैम्पू और बाल संवारने वाले उत्पादों में इन तेलों का इस्तेमाल किया जाता है। ऐसा भी पाया गया है कि जिन लोगों ने इन तेलों का इस्तेमाल बंद किया तो उन्हें बढ़ते स्तन को काबू में करने में मदद मिली है।

जानकारी के अनुसार पुरुषों के स्तन बढऩे के मामले बढऩे लगे हैं। उसकी वजह हार्माेनल चैंजेज के साथ जिम जाने वालों में स्टेरॉयड का प्रयोग करने व लाइफ स्टाइल से जुड़े मामले इसके लिए जिम्मेदार हैं।

आखिर में एक रोचक बात। हालांकि ये अपवाद मात्र है, मगर है दिलचस्प। यह एक सामान्य सी बात है कि जो युवती गर्भ धारण करती है तो उसका जी मिचलाने लगता है। यदि यही समस्या पिता बनने वाले युवक के साथ भी हो तो चौंकना स्वाभाविक है। एक खबर के मुताबिक 29 साल के हैरिस ऐशबे की मंगेतर को उनका पहला बच्चा होने वाला था। हैरिस का भी जी मिचलाने लगा। उसके स्तन बढऩे लगे। डॉक्टरों ने बताया कि वह एक तरह के मेडिकल कंडिशन का शिकार हो गया है, जिसे कौवेड सिंड्रोम कहते हैं।