आपने देखा होगा कि देवी-देवताओं से इतर जितने भी महामानव हुए हैं, जिन्हें कि हम भगवान मानते हैं, उनके चित्रों व मूर्तियों में चेहरों पर दाढ़ी-मूंछ नहीं होती। इसमें भी किंचित अपवाद हो सकता है, मगर क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों है? भगवान कहे जाने वाले राम, कृश्ण, महावीर व बुद्ध के दाढी मूंछ क्यों नहीं होती? आइये, समझने की कोषिष करते हैं कि आखिर ऐसा क्यों है-
भगवान के दाढी मूंछ क्यों नहीं होती, इस गुत्थी को समझने से पहले भगवान शब्द पर आते हैं। इसकी अलग-अलग तरह से व्याख्या हुई है। जैसे जिसके पास धन है, उसे धनवान कहते हैं, उसी प्रकार जिसके पास भग है, वह भगवान है। भग अर्थात योनि। अर्थात प्रकृति। जो आदि शक्ति भगवति से युक्त है, वह भगवान है। वह पूर्ण है। हमारी संस्कृति में अर्धनारीश्वर का जिक्र आता है। उसका मतलब है, जो पुरुष व नारी के समान भाग से मिल कर बना है।
एक व्याख्या ये है कि साकार भगवान, निराकार ईश्वर का ही अवतार है, जैसे श्रीराम व श्रीकृष्ण। इसी प्रकार महावीर व बुद्ध को भी भगवान की श्रेणी में गिना जाता है। वो इसलिए कि महावीर ने केवल्य ज्ञान अर्जित किया और बुद्ध ने बुद्धत्व। इन दोनों के बारे में मान्यता है कि वे मोक्ष को प्राप्त हो गए। वे पूर्णता को प्राप्त हो गए। जन्म-मरण के चक्र से मुक्त।
अब तथ्य की बात, जिसे कि विज्ञान भी मानता है। वो यह कि हर मनुष्य, चाहे वह नर हो या नारी, वह पुरुष व स्त्री, दोनों के ही गुणों से युक्त होता है, क्योंकि उसकी संरचना ही स्त्री व पुरुष के संयोग से हुई है। अंतर सिर्फ गुणसूत्रों का है। अगर पुरुष के गुणसूत्र अधिक हैं तो वह पुरुष के रूप में पैदा होता है और अगर स्त्री के गुणसूत्र अधिक हैं तो उसका जन्म नारी रूप में होता है। हर पुरुष में नारी के भी गुण होते हैं और हर स्त्री में पुरुषों के भी गुण होते हैं। आपने देखा होगा कि कुछ स्त्रियों में जन्म के बाद किन्हीं करणों से पुरुषों के गुण ज्यादा हो जाते हैं तो वह पुरुषों की तरह व्यवहार करती हैं। इसी प्रकार जिन पुरुषों में स्त्रियोचित गुण विकसित हो जाते हैं तो वे स्त्रैण कहलाते हैं। स्त्रैणता का सबसे अनूठा उदाहरण स्वामी रामकृष्ण परमहंस को माना जाता है। वे देवी के उपासक थे। वे देवी में इतने लीन हो गए कि उनका शरीर भी स्त्रैण हाने लगा। बताते हैं कि जीवन के आखिरी वर्षों में उनके स्तन उभरने लगे थे। जहां तक प्राकृतिक विकृति का सवाल है गुण सूत्रों के असंतुलन के परिणाम स्वरूप मनुष्य किन्नर रूप में जन्म लेता है। हालांकि किन्नरों में भी नर-मादा का विभेद है, लेकिन आम तौर पर आपने देखा होगा कि किन्नर की आवाज पुरुषों की तरह मोटी होती है, मगर चेहरे पर दाढ़ी-मूंछ नहीं आती। व्यवहार पुरुषों की तरह, मगर चाल-ढ़ाल स्त्रियों की तरह।
यह भी एक तथ्य है कि पुरुषों के चेहरे पर दाढ़ी व मूंछ के रूप में बाल होते हैं, जबकि स्त्रियों में ऐसा नहीं होता। कई बार ऐसा पाया गया है कि जो भी स्त्री पुरुषोचित व्यवहार करती है तो उसके भी पुरुषों की तरह चेहरे पर बाल आने लगते हैं। ऐसे भी प्रमाण हैं कि बहुत अधिक उम्र होने पर महिलाओं में गुण सूत्रों का, हारमोन्स का असंतुलन होता है और उनके दाढ़ी-मूंछ आने लगती है।
अब बात मुद्दे की। कोई भी पुरुष पूर्णता को उपलब्ध होता है, अर्थात भगवान की श्रेणी में आता है, तब उसमें पुरुष व स्त्री के गुण समान होते हैं। इसी कारण उसके चेहरे पर बाल नहीं होते। आपने भगवान राम, भगवान कृष्ण, भगवान महावीर, भगवान बुद्ध के जितने भी चित्र या मूर्तियां देखी होंगी, उनमें उनके दाढ़ी-मूंछ नजर नहीं आई होगी। वजह क्या है? क्या वे रोजाना शेव करते थे? इसका जिक्र शास्त्रों में तो कहीं पर भी नहीं है। अर्थात उनके चेहरे पर बाल आते ही नहीं थे? और वजह थी पूर्ण अवस्था। जितना पुरुष, उतनी ही स्त्री। हालांकि यह भी पक्का नहीं है कि वस्तुस्थिति क्या रही होगी, मगर कुछ तथ्यों के आधार पर ऋषि-मुनियों ने जैसा वर्णन किया, उसी के अनुरूप चित्र व मूर्तियां बना दी गईं।
ऐसी भी मान्यता है कि भगवान सदा किशोर और अमूर्त है। किशोरावस्था दाढ़ी पैदा होने से पहले की अवस्था है। भरपूर यौवन, प्रखर ओज। इसी आधार पर हमने भगवान की परिकल्पना किशोर के रूप में की। किशोरावस्था को ध्यान में रख कर ही मन्दिरों में मूर्तियां रची गईं। यही वजह है कि उनके चेहरे पर दाढ़ी-मूंछ नहीं दर्शाई गई है।
प्रसंगवश आखिर में भगवान की भिन्न-भिन्न व्याख्याओं पर आते हैं। भगवान शब्द में युक्त भग का अर्थ कामना व भाग्य भी होता है। भग से तात्पर्य प्रकृति या भौतिक संसार से है, अर्थात जो सभी भौतिक आनंदों, कामनाओं और भाग्य को धारणा करने वाला गर्भ है, वह भगवान है। राम व कृष्ण को हम अवतार की श्रेणी में मानते हैं, मगर चूंकि उन्होंने शरीर धारण किया है, इस कारण इस भौतिक संसार से बंधे हुए हैं। उनके जीवन में भी वैसे ही सुख-दुख आए, जैसे कि सामान्य मानव के आते हैं। भगवान का अर्थ जितेंद्रिय भी माना जाता है। इंद्रियों को जीतने वाला। जिसने पांचों इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर ली है तथा जिसकी पंच तत्वों पर पकड़ है, उसे भगवान कहते हैं। जैसे महावीर व बुद्ध। जितेन्द्रिय यानि वह जो पूर्णता को, मोक्ष को प्राप्त हो चुका है और जो जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो गया हो, वही भगवान है। एक और व्याख्या में बताया गया है कि भग यानि ऐश्वर्य, धर्म, यश, लक्ष्मी, ज्ञान और वैराग्य, ये छह गुण अपनी समग्रता में जिसमें हों, उसे भगवान कहते हैं।
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