कभी पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुधंरा राजे के धुर विरोधी रहे वरिष्ठ भाजपा नेता कैलाश मेघवाल ने दैनिक भास्कर के वरिष्ठ संवाददाता त्रिभुवन को एक साक्षात्कार में कहा है कि वसुंधरा राजे का मूड और माइंड अब बदल गया है, उन्होंने अनुभवों से बहुत कुछ सीखा है, जबकि असलियत ये है कि मूड व मांइड तो मेघवाल का बदला है, सुर भी बदला है, अपना वजूद बचाने की खातिर। आपको याद होगा, ये वही मेघवाल हैं, जिन्होंने सर्वाधिक मुखर हो कर श्रीमती राजे का विरोध किया और अगर ये कहा जाए कि वसुंधरा विरोधी मुहिम के सूत्रधार ही मेघवाल ही थे तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को अगर वसुंधरा पर हमले का मौका मिला तो असल में वह मेघवाल ने ही दिया था। उन्होंने उन्हीं के आरोपों को आधार बना कर वसुंधरा पर हमले किए थे और आज भी करते रहते हैं।
असल में मेघवाल उन चंद नेताओं में शुमार रहे हैं, जिनकी कोशिश थी कि वसुंधरा राजस्थान में पैर नहीं जमा पाएं। और इसके लिए उन्होंने पार्टी लाइन से हट कर नागाई की। पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत ने भी अपने दामाद नरपत सिंह राजवी की खातिर वसुंधरा विरोधी रुख अख्तियार किया था, यह बात अलग है कि उन्हें इसमें कामयाबी हासिल नहीं हो पाई। वसुंधरा का इतना खौफ हुआ करता था कि भाजपा के अधिसंख्य नेता उन दिनों शेखावत से मिलने तक से डरते थे। नतीजतन राजस्थान का एक ही सिंह अपने राज्य में ही बेगाना सा हो गया था। लगभग यही स्थिति मेघवाल की भी हुई। वे हाशिये पर चले गए। अपना अस्तित्व समाप्त होता देख शातिर दिमाग खांटी नेता मेघवाल ने अपना मूड, माइंड व सुर बदल लिया है। उन्होंने भी अनुभव से सीख लिया है कि वसुंधरा को नेता माने बिना कोई चारा नहीं है। कुछ समय पहले सीएम इन वेटिंग के सवाल पर न सूत, न कपास और जुलाहों में ल_म ल_ा कहने वाले मेघवाल के श्रीमुख से ही निकल रहा है कि आगामी चुनाव में वसुंधरा के चेहरे और नाम का भरपूर फायदा पार्टी को मिलेगा। बड़ी दिलचस्प बात ये है कि वे खुद ही कह रहे हैं कि वसुंधरा अपने विरोधियों को परास्त करने और अपने आपको मुख्यमंत्री पद का स्वाभाविक दावेदार बनाने में सबल और सक्षम साबित हुई हैं। वसुंधरा ही मुख्यमंत्री होंगी। यानि राजनीति में जिंदा रहने के लिए वे साफ तौर पर सरंडर कर चुके हैं। उन्हें कपासन से टिकट चाहिए, इसी कारण वसुंधरा के यहां धोक देने पहुंच गए।
रहा सवाल हाशिये पर जा चुके मेघवाल की वर्तमान में प्रासंगिकता का तो इसमें कोई दोराय नहीं कि पार्टी को आज भी उनकी जरूरत महसूस हो रही है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब वे वसुंधरा से मिले तो इस मुलाकात की बाकायदा विज्ञप्ति जारी की गई, जिसमें बताया गया कि आगामी विधानसभा चुनाव वसुन्धरा के नेतृत्व में लड़ेंगे। वसुन्धरा ही भाजपा की सरकार में मुख्यमंत्री होंगी। असल में मेघवाल को इतनी तवज्जो इस कारण दी गई क्योंकि वे अनुसूचित जाति के उन पुराने नेताओं में शुमार हैं, जिनकी कि आज भी जमीन पर पकड़ है। वैसे भी वे उस जमाने के भाजपा नेता हैं, जब अनुसूचित जाति पर भाजपा की कुछ खास पकड़ नहीं हुआ करती थी। अब तो भाजपा में अनुसूचित जाति के अनेक नेता पैदा हो चुके हैं।
समझा जाता है कि समीकरणों में आए बदलाव के बाद मेघवाल टिकट भी हासिल करने में कामयाब होंगे और अपना स्थान फिर बनाने में भी।
-तेजवानी गिरधर
असल में मेघवाल उन चंद नेताओं में शुमार रहे हैं, जिनकी कोशिश थी कि वसुंधरा राजस्थान में पैर नहीं जमा पाएं। और इसके लिए उन्होंने पार्टी लाइन से हट कर नागाई की। पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत ने भी अपने दामाद नरपत सिंह राजवी की खातिर वसुंधरा विरोधी रुख अख्तियार किया था, यह बात अलग है कि उन्हें इसमें कामयाबी हासिल नहीं हो पाई। वसुंधरा का इतना खौफ हुआ करता था कि भाजपा के अधिसंख्य नेता उन दिनों शेखावत से मिलने तक से डरते थे। नतीजतन राजस्थान का एक ही सिंह अपने राज्य में ही बेगाना सा हो गया था। लगभग यही स्थिति मेघवाल की भी हुई। वे हाशिये पर चले गए। अपना अस्तित्व समाप्त होता देख शातिर दिमाग खांटी नेता मेघवाल ने अपना मूड, माइंड व सुर बदल लिया है। उन्होंने भी अनुभव से सीख लिया है कि वसुंधरा को नेता माने बिना कोई चारा नहीं है। कुछ समय पहले सीएम इन वेटिंग के सवाल पर न सूत, न कपास और जुलाहों में ल_म ल_ा कहने वाले मेघवाल के श्रीमुख से ही निकल रहा है कि आगामी चुनाव में वसुंधरा के चेहरे और नाम का भरपूर फायदा पार्टी को मिलेगा। बड़ी दिलचस्प बात ये है कि वे खुद ही कह रहे हैं कि वसुंधरा अपने विरोधियों को परास्त करने और अपने आपको मुख्यमंत्री पद का स्वाभाविक दावेदार बनाने में सबल और सक्षम साबित हुई हैं। वसुंधरा ही मुख्यमंत्री होंगी। यानि राजनीति में जिंदा रहने के लिए वे साफ तौर पर सरंडर कर चुके हैं। उन्हें कपासन से टिकट चाहिए, इसी कारण वसुंधरा के यहां धोक देने पहुंच गए।
रहा सवाल हाशिये पर जा चुके मेघवाल की वर्तमान में प्रासंगिकता का तो इसमें कोई दोराय नहीं कि पार्टी को आज भी उनकी जरूरत महसूस हो रही है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब वे वसुंधरा से मिले तो इस मुलाकात की बाकायदा विज्ञप्ति जारी की गई, जिसमें बताया गया कि आगामी विधानसभा चुनाव वसुन्धरा के नेतृत्व में लड़ेंगे। वसुन्धरा ही भाजपा की सरकार में मुख्यमंत्री होंगी। असल में मेघवाल को इतनी तवज्जो इस कारण दी गई क्योंकि वे अनुसूचित जाति के उन पुराने नेताओं में शुमार हैं, जिनकी कि आज भी जमीन पर पकड़ है। वैसे भी वे उस जमाने के भाजपा नेता हैं, जब अनुसूचित जाति पर भाजपा की कुछ खास पकड़ नहीं हुआ करती थी। अब तो भाजपा में अनुसूचित जाति के अनेक नेता पैदा हो चुके हैं।
समझा जाता है कि समीकरणों में आए बदलाव के बाद मेघवाल टिकट भी हासिल करने में कामयाब होंगे और अपना स्थान फिर बनाने में भी।
-तेजवानी गिरधर
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