तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

सोमवार, सितंबर 03, 2012

नरेन्द्र मोदी को झटका दिया सुशील कुमार मोदी ने

घोटालों से घिरी कांग्रेसनीत सरकार की विदाई की उम्मीद में एनडीए में प्रधानमंत्री पद को छिड़ा घमासान थमने का नाम नहीं ले रहा है। एक ओर जहां भाजपा में लाल कृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली को पीछे छोड़ते हुए गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी काफी आगे निकलते नजर आ रहे हैं तो दूसरी उनकी टांग खिंचाई भी शुरू हो गई है। पहले तो एनडीए के प्रमुख घटक जनता दल यूनाइटेड के नेता व बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने खुल कर मोदी का विरोध कर दिया, वहीं अब भाजपा के वरिष्ठ नेता व बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने यह कह कि नितीश कुमार भी पीएम मटेरियल हैं, एक नए विवाद को जन्म दे दिया है। एक अर्थ में यह नरेन्द्र मोदी के लिए एक झटका ही है कि खुद उनकी ही पार्टी का नेता नीतिश का नाम ले रहा है। इससे पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघ चालक मोहन भागवत ने भी नितीश की तारीफ कर भाजपा व मोदी को सकते में ला दिया था।
बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी के ताजा बयान के कई अर्थ निकाले जा रहे हैं। एक तो ये कि कहीं बिहार के ताजा राजनीतिक समीकरणों में वे जनतादल यूनाइटेड में जाने की तो नहीं सोच रहे। दूसरा ये कि उन्होंने भले ही नितीश कुमार का नाम उछाल कर उनका दिल जीतने की कोशिश की हो, मगर साथ यह कह कर कि स्थिर सरकार के लिए बड़ी पार्टी का नेता ही पीएम पद का उम्मीदवार होना चाहिए, भाजपा में अपना स्थान सुरक्षित करने की कोशिश की है। हालांकि यह बात खुद नीतिश भी कह चुके हैं कि भाजपा को गैर सांप्रदायिक चेहरे को आगे लाना होगा। उनके बयान से साफ है कि वे अपने आपको छोटे दल का होने के कारण प्रधानमंत्री पद का दावेदार नहीं मानते। इसके बावजूद यदि सुशील कुमार मोदी उन्हें पीएम मटेरियल मान रहे हैं तो इसके क्या मायने हैं। कहीं ये नितीश व सुशील की मिलीभगत तो नहीं।
सुशील कुमार मोदी का बयान इस कारण भी महत्वपूर्ण है कि केन्द्र की यूपीए सरकार की ओर से बिहार को दो केंद्रीय विश्वविद्यालय और प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के लिए ढाई हजार करोड़ रुपये का पैकेज दिए  जाने के बाद इस बात के कयास लगाए जा रहे हैं कि यूपीए नीतीश कुमार को लुभाने की कोशिश कर रहा है। इस पर मोदी ने यह भी स्पष्ट किया है कि नीतीश का यूपीए में जाने का कोई सवाल ही नहीं है। मोदी ने कहा कि भाजपा जानती है कि नीतीश कुमार धुर कांग्रेस विरोधी हैं। हमारे गठजोड़ बहुत मजबूत हैं। नीतीश का कांग्रेस के डूबते जहाज में सवार होने का कोई चांस ही नहीं है। कहीं ऐसा तो नहीं कि नितीश के यूपीए की ओर आकर्षित होने की आशंका के बीच मोदी ने उन्हें पीएम मटेरियल बता कर लुभाने का फंडा तो अपनाया हो।
जो भी हो, नरेन्द्र मोदी जहां तेजी से उभर कर सामने आ रहे हैं, वहीं नितीश कुमार कछुआ चाल से आगे सरक रहे हैं। राजनीतिक पर्यवेक्षक इस बात की संभावना से इंकार नहीं करते कि परिस्थिति विशेष में भाजपा को नितीश के नाम पर सहमत देनी पड़ सकती है।
-तेजवानी गिरधर
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रविवार, सितंबर 02, 2012

माया व बजरंगी को सजा से मोदी को होगा फायदा

इस शीर्षक को पढ़ का आप चौंकेंगे कि ऐसा कैसे हो सकता है कि गुजरात के नरोडा पाटिया नरसंहार के लिए नरेन्द्र मोदी सरकार में मंत्री रहीं माया कोडनानी और बजरंग दल नेता बाबू बजरंगी को दोषी करार दिए जाने से मोदी को फायदा कैसे हो सकता है, उन्हें तो नुकसान होना चाहिए।
यह सही है कि गुजरात विधानसभा चुनाव नजदीक हैं। ऐसे में कोर्ट के फैसले के बहाने कांग्रेस को मोदी पर हमला करने का मौका मिल गया है कि वे घोर सांप्रदायिक हैं। सबसे पहला हमला कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने ही किया। वे पहले से हमले करते रहे हैं। अन्य कांग्रेसी नेताओं की भी बाछें खिली हुई हैं कि कोर्ट के फैसले से उनका आरोप पुष्ट होता है कि उनकी शह पर ही गुजरात में नरसंहार हुआ। मगर यह उनकी खुशफहमी ही साबित होगी। इसकी एक खास वजह है। वो यह कि सांप्रदायिक होने के आरोप से अगर यह सोचा जाता है कि इससे मुसलमान उनके और खिलाफ हो जाएंगे, तो वह तो पहले से ही खिलाफ हैं। उनका वोट तो मोदी को वैसे ही नहीं मिलने वाला है। मुसलमान वोट तो जितना है, उतना ही रहेगा, उलटे कांग्रेसियों के ज्यादा चिल्लाने से सांप्रदायिक व घोर हिंदूवादी होने के आरोप से हिंदू और अधिक लामबंद हो जाएगा। मोदी का जनाधार और मजबूत हो जाएगा। असल में गुजरात में हिंदुओं का एक बड़ा तबका मोदी को इस अर्थ में भगवान मानता है कि उन्होंने मुसलमानों की आए दिन की दादागिरी हरदम के लिए खत्म कर दी। उन्होंने मुसलमानों को इतना कुचल दिया कि अब उनके खिलाफ बोलने की उनमें हिम्मत ही नहीं रही। उलटे डर कर उनके पक्ष में भी बोलने लगे हैं, भले ही मन ही मन नफरत करते हों।
कुल मिला कर कोर्ट के ताजा फैसले से गुजरात में भाजपा को लाभ ही होता नजर आता है। इतिहास भी इसकी पुष्टि करता है। यह सर्वविदित है कि सन् 2002 में मानवाधिकार आयोग, अल्पसंख्यक आयोग और महिला आयोग की रिपोर्ट आई थी और दंगों के लिए मोदी सरकार को दोषी ठहाराया गया था। ब्रिटिश रिपोर्ट भी यही आई कि मोदी सरकार ने दंगाइयों की मदद की। उसी साल गुजरात में चुनाव हुए और ये रिपोर्टें कांगे्रस की ओर से मुद्दे के रूप में इस्तेमाल की गईं। नतीजा ये रहा कि भाजपा 182 में 117 सीटों पर विजयी हो गई। इसी प्रकार 2007 में सुप्रीम कोर्ट की ओर नियुक्त सक्सैना कमेटी में मोदी सरकार के बारे में तीखी टिप्पणियां की गईं। तहलका के स्टिंग ऑपरेशन ने भी खुलासा किया कि दंगों में गुजरात सरकार की गहरी भूमिका थी। उसी साल चुनाव हुए। कांग्रेस ने फिर पुराना मुद्दा उठाया और नतीजा ये रहा कि भाजपा को 182 में से 126 सीटें मिलीं। स्पष्ट है कि जब जब मोदी पर सांपद्रायिक होने का आरोप लगाते हुए कांग्रेसी उबले, गुजरात का हिंदू और अधिक लामबंद हो गया। इन दो चुनाव परिणामों की रोशनी में अनुमान यही बनता है कि अगर कांग्रेस ने माया कोडनानी का मामला जोर-शोर से उठाया तो न केवल पूरा सिंधी समुदाय, अपितु हिंदुओं का एक बड़ा तबका लामबंद हो जाएगा। हां, ये बात दीगर है कि एंटी कंबेंसी अथवा भाजपा की अंदरूनी लड़ाई कम नहीं हुई तो मोदी को कुछ परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।
इस मसले को यदि राष्ट्रीय पटल पर देखें तो भाजपा के कट्टर हिंदूवादी तबके में मोदी और अधिक मजबूत हो कर उभरेंगे। वह मुहिम पहले से चल भी रही है। मोदी हिंदुओं के सरताज के रूप में उभरते जा रहे हैं। घोर हिंदूवादी ताकतें पहले से मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट कर रही हैं। मोदी को अगर नुकसान होने की आशंका है तो वह यह कि उनकी एनडीए का सर्वसम्मत प्रधानमंत्री बनने की दिशा में चल रही मुहिम कमजोर पड़ सकती है। वजह साफ है। अकेले भाजपा के नेतृत्व में तो अगली सरकार बनने नहीं जा रही। बनेगी भी तो एनडीए के अन्य दलों की मदद से। उनमें से बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार पहले ही यह मुद्दा उठा चुके हैं कि उन्हें प्रधानमंत्री पद के लिए कोई भी सांप्रदायिक चेहरा स्वीकार्य नहीं होगा। कांग्रेसी मोदी पर जितना हमला बोलेंगे, नितीश और अधिक मुखर होने की कोशिश करेंगे। मगर यह मुखरता चुनाव के वक्त मिलने वाली सीटों पर निर्भर करेगी। अगर भाजपा पहले से ज्यादा ताकतवर बन कर उभरती है तो नितीश कुमार जैसों के विरोध के सुर कमजोर भी पड़ सकते हैं।
कुल मिला कर माया कोडनानी व बाबू बजरंगी का मसला भाजपा को गुजरात में तो फायदा दिलाता लग रहा है, राष्ट्रीय पटल पर मोदी के लिए जरूर कुछ किंतु लिए हुए है।
-तेजवानी गिरधर

मंगलवार, अगस्त 28, 2012

सिर चढ़ कर बोल रहा है मोदी का जादू


मौजूदा हिंदूवादी युवा पीढ़ी गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की कितनी दीवानी है, इसका नजारा सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर देखा जा सकता है। विशेष रूप से फेसबुक पर तो हालत ये है कि रोजाना सैकड़ों टिप्पणियां व फोटो मोदी को सपोर्ट करने के लिए डाले जा रहे हैं। ऐसी दीवानगी इससे पहले कभी किसी और भाजपा नेता के प्रति नहीं देखी गई। हालांकि पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी भी किसी जमाने में कट्टरपंथियों की पसंद रहे हैं, मगर मोदी जितने नहीं। कदाचित इसकी वजह ये भी हो सकती है कि आडवाणी जिस समय उरूज पर थे, तब सोशल नेटवर्किंक साइट्स इतनी प्रचलन में नहीं थी।
बहरहाल, हाल ही फेसबुक पर अजमेर निवासी अंशुल चौधरी की एक पोस्ट यहां प्रस्तुत है, जो कि खुद ही बयां कर देगी कि मोदी एक वर्ग विशेष के महानायक बन चुके हैं। प्रधानमंत्री बनेंगे या नहीं, ये तो वक्त ही बताएगा, मगर वे उस वर्ग के दिलों के राजा तो अभी से हैं। पेश है वह नोट:-
मेरे पास मोदी को वोट देने के लाख कारण हैं, लेकिन वोट न देने का सिर्फ
एक कारण होगा- मोदी का प्रधानमंत्री के दावेदार के रूप मे सामने न
आना।
भाइयों, अभी से लोग मजमा लगा कर बरामदे में पड़ा तख्त तोडऩे पर उतारू हो गए हैं और मुझे मोदी को वोट क्यों दोगे का तर्क पूछते हैं, कुछ दिनों में आपको भी इसी तरह के सवालों से दो-चार होना पड़ेगा... इसके लिए अभी से तैयारी कर लें और हो सके तो दूसरों को भी बता दें-
1- यदि भारतीय हूं तो भी मैं मोदी को ही वोट दूंगा क्योंकि मोदी सबसे बड़े राष्ट्रवादी हैं और उनके नाम में एक भी गद्दारी का केस नहीं है।
2- यदि मैं हिंदू हूं तो मैं मोदी को ही वोट दूंगा क्योंकि उन्होंने हिंदू सहित हर धर्म की रक्षा का संकल्प लिया है और करके दिखा रहे हैं।
3-यदि मैं पिछड़ी जाति से हूं तो भी मैं मोदी को ही वोट दूंगा क्योंकि मोदी पिछड़ी जाति से हैं, तो ख्याल तो रखेंगे।
4-यदि मैं गरीब हूं तो भी मोदी को वोट दूंगा क्योंकि मोदी राज में सबको रोजगार मिलता है। सरकार गरीबों के लिए घर दे रही है।
5- यदि मैं व्यापारी हूं तो भी मोदी को वोट दूंगा क्योंकि मोदी राज में बिना गुंडागर्दी के अपना व्यापार खूब फलेगा। गुजरात जैसा पूरा भारत बनने से तो व्यापर में बहुत मजा आयेगा। मोदी तो टैक्स कम करने की भी बात कर रहे हैं।
6- यदि ब्राह्मण, ठाकुर या कोई और सवर्ण जाति से हूं तो भी मैं मोदी को वोट करूंगा क्योंकि मोदी जातिवादी नहीं हैं।
7-यदि मै गांव का हूं तो मैं मोदी को वोट जरूर दूंगा क्योंकि मोदी के राज में 24 घंटे बिजली मिलती है और हर गांव में उपलब्ध है, हर गांव में पक्की सड़क है। हर गांव में पानी का नल है। यहां तक कि हर गांव में इंटरनेट की सुविधा भी उपलब्ध है। खेती के लिए नर्मदा के पानी का जाल बिछा है। मोदी के यहां किसान आत्महत्या नहीं करते हैं।
8- यदि मैं बेरोजगार हूं तो मोदी को अवश्य वोट दूंगा क्योंकि मोदी के राज में सिर्फ 1 प्रतिशत बेरोजगारी है, जिसे अगले 3 साल में जीरो कर दिया जायेगा। मोदी जी तो भारत से 150 लाख अकेले सिर्फ टीचर ही पैदा करना चाहते हैं। बाकि की योजना तो बाद की बात है। वे कहते हैं की इतने रोजगार पैदा करो की अमेरिका वाले भारत में वीजा के लिए लाइन में खड़े हों।
9- यदि मैं मुस्लिम हूं तो भी मोदी को ही वोट करूंगा क्योंकि पिछले 10 साल में गुजरात में एक भी दंगा नहीं हुआ और न ही कभी कफ्र्यू लगा और पूरे भारत में सबसे ज्यादा विकास दर गुजरात की है।
10-यदि मैं ड्राइवर हूं तो भी मोदी को ही वोट दूंगा क्योंकि गुजरात में मोदी जी ने जो सड़क बनवाई है, वह कोई नहीं कर पाया और वहां कोई भी असुरक्षा वाली बात नहीं है।
11- यदि मैं विधवा हूं तो भी मोदी को वोट इसलिए दूंगी की मोदी के राज में औरतें सबसे सुरक्षित हैं।
12- यदि मैं अनाथ रहा हूं तो भी मोदी को ही वोट दूंगा क्योंकि अविवाहित, कर्मनिष्ठ, ईमानदार, समर्पित और कुशल प्रशाशक मोदी हमारे अभिभावक सिद्ध होंगे।
13- यदि मैं साधू-संत हूं तो भी मोदी को ही वोट दूंगा क्योंकि मोदी संतों को प्रिय हैं क्योंकि वे गौ-सेवक हैं। गाय काटने-मारने पर 7 साल की सजा देते हैं और दुग्ध-उत्पाद के लिए बहुत कुछ कर रहे हैं।
अब सिर्फ एक ही विकल्प- मोदी...
मोदी लाओ देश बचाओ।
-तेजवानी गिरधर

सोमवार, अगस्त 27, 2012

केजरीवाल ने कर दी भाजपा की बोलती बंद


समाजसेवी अन्ना हजारे के खास सिपहसालार अरविंद केजरीवाल ने देश की राजधानी दिल्ली सहित अनेक शहरों में विरोध प्रदर्शन करवा कर जहां कांग्रेस सरकार पर एक और हमला बोला, वहीं प्रमुख विपक्षी दल भाजपा के मुंह पर भी कालिख पोत दी। आंदोलन को अब क्रांति की संज्ञा देने वाले केजरीवाल को कितनी कामयाबी मिलेगी, यह तो वक्त ही बताएगा, मगर उन्होंने विदाई की दहलीज पर खड़ी कांग्रेस को तो एक धक्का और दिया ही, भाजपा के आगमन पर भी ब्रेक लगाने की कोशिश की है। कहते हैं न कि जहां सत्यानाश, वहां सवा सत्यानाश, कांग्रेस को इस मुहिम से उतना नुकसान नहीं हुआ, जितना भाजपा को। कांग्रेस तो पहले से बदनाम है, भाजपा भी बदनाम हो गई। कांग्रेस की कमीज पर पहले से अनेक दाग थे, एक ओर दाग लगने से कोई खास फर्क नहीं पड़ा, मगर भाजपा की सफेद झग कमीज पर लगा दाग अलग से ही चमक रहा है। कोयला घोटाले में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की संलिप्ता के आरोपों के बहाने कांग्रेस सरकार को गिराने की कगार तक पहुंचाने को आतुर भाजपा की धार अब भोंटी हो गई है। वह इस वजह से भी कि जिस पार्टी के अध्यक्ष नितिन गडकरी को चोर की उपमा दी गई हो, वह पलट कर एक शब्द भी नहीं बोल पाई। ऐसे में यकायक वह विडंबना भी ख्याल में आ जाती है कि जिस भाजपा की पीठ पर सवार हो टीम अन्ना ने अपना कद ऊंचा किया, मौका पड़ते ही उसे भी धक्का दे दिया। केजरीवाल का यह वार कितना गहरा हुआ है, यह तो आगामी चुनाव में ही पता लगेगा, मगर इससे यह तो साबित हो ही केजरीवाल बड़े ही शातिर खिलाड़ी हैं।
अन्ना की गैर मौजूदगी और प्रमुख सहयोगी किरण बेदी की मतभिन्नता के बीच टीम केजरीवाल के नाम से शुरू हुई इस क्रांति की समीक्षा में यह साफ तौर पर उभर कर आया है कि इससे कांग्रेस को फौरी मगर बड़ी राहत मिली है। जिस तरह से तकरीबन दस घंटे तक दिल्ली में प्रदर्शनकारियों के प्रति नरम रुख के कारण नौटंकी का लाइव शो हो रहा था, उससे पूरे देश में  यह संदेश चला गया है कि कांग्रेस तो भ्रष्ट है ही, कांग्रेस को लगातार बदनाम करने वाली भाजपा के हाथ भी भ्रष्टाचार से रंगे हुए हैं। कांग्रेस यही तो चाहती थी। कदाचित इसी वजह से प्रदर्शनकारियों को मामूली रोक टोक के बीच अति सुरक्षा वाले प्रधानमंत्री आवास सहित सोनिया गांधी व नितिन गडकरी के निवास पर प्रदर्शन करने की खुली छूट दे दी गई। बाद में दिखावे के लिए  हल्का लाठीचार्ज करके पुलिस को भी अपनी इज्जत बचाने का मौका दे दिया। सरकार की कुटिल चतुराई उजागर करने के लिए क्या यह प्रमाण काफी नहीं है कि जिन आंदोलकारी नेताओं अरविंद केजरीवाल, कुमार विश्वास, मनीष, गोपाल राज व संजय सिंह को सुबह ही पकड़ लिया गया था, उन्हें मामूली जद्दोजहद के बाद छोड़ दिया गया ताकि वे जंतर मंतर पर अपने समर्थकों के साथ गुरिल्ला युद्ध के लिए तैयार कर सकें। इतना ही नहीं कूच करने पर आंदोलनकारियों को रोकने का प्रयास तक नहीं किया गया। जबकि सच्चाई ये है कि मीडिया बार-बार जिस पुलिस को लाचार करार दे रही थी, वह चाहती तो उनको छठी का दूध याद दिला देती। साफ है कि यह सब सोची समझी रणनीति के तहत हो रहा था। भले ही इसे सरकार व केजरीवाल की मिलीभगत का संज्ञा नहीं दी जा सके, मगर जो नूरा कुश्ती हुई, उससे दोनों ही अपने-अपने मकसद में कामयाब हो गए। कांग्रेस इस बात से संतुष्ट है कि उसके साथ भाजपा भी बदनाम हो गई व अब उसके शब्द बाणों में वह तरारा नहीं रहेगा, वहीं केजरीवाल इस बात से कि पिछले नाकाम अनशन से हुई किरकिरी से हताश कार्यकर्ताओं में नए जोश का संचार हो गया। साथ ही आगामी आम चुनाव में राजनीतिक विकल्प देने का प्लेटफार्म तैयार हो गया।
हालांकि भाजपा के कोयला घोटाले में संलिप्त होने के सबूत कांग्रेस के पास भी हैं, मगर उसने संसद में बहस का न्यौता देकर उन्हें दबा रखा था। वह जानती थी कि अगर वह उस सच को उजागर करेगी तो उसका उतना असर नहीं होगा, क्योंकि खुद उसके हाथ भी कालिख से पुते हुए हैं। वैसे भी युद्ध में पहले जिसने वार किया हो, उसी की जीत नजर आती है, जवाब में किया गया वार सुरक्षा की श्रेणी में ही गिना जाता है। यही सच टीम केजरीवाल उजागर करेगी तो लोग ज्यादा विश्वास करेंगे। ठीक वैसा ही हुआ।
ऐसा नहीं है कि केजरीवाल ने इसमें पाया ही पाया है, कुछ खोया भी है। और यही वजह है कि चौपालों व पान की थडिय़ों पर उनकी समालोचना भी हो रही है। लोग पूछ रहे हैं कि संसद का अधिवेशन चलने के दौरान रविवार का ही दिन प्रदर्शन के लिए क्यों चुना? क्या इसके लिए सरकार से कोई टाईअप किया गया था? तय रणनीति से हट कर सुबह छह बजे ही धरना देने क्यों पहुंच गए? इस रणनीति का मीडिया को पता कैसे लगा? कहीं प्रदर्शन का असल मकसद प्रचार मात्र पाना था? पुलिस के नरम रुख के लिए हालांकि वही जिम्मेदार है, मगर इससे मिलीभगत की बू तो आती ही है, वरना कार्यकर्ता सारे सुरक्षा घेरे तोडऩे की हिमाकत कैसे कर गए?
लब्बोलुआब, इलैक्ट्रॉनिक मीडिया के सहारे हुए इस नाटक ने लोगों को नई बहस में उलझा दिया है।
-तेजवानी गिरधर
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tejwanig@gmail.com

रविवार, अगस्त 26, 2012

टीम केजरीवाल को मिला अन्ना का आशीर्वाद


कोयला घोटाले को लेकर रविवार को देश की राजधानी दिल्ली में हुए आईएसी के प्रदर्शन को भले ही टीम केजरीवाल का आंदोलन माना जा रहा हो, जो कि वाकई उनके ही नेतृत्व में हुआ और अन्ना हजारे कहीं नजर नहीं आए, मगर उसे उनका आशीर्वाद जरूर हासिल हुआ। अन्ना हजारे ने बाकायदा अपने ब्लॉग अन्ना हजारे सेज पर सभी क्रांतिकारियों को बधाई दी है।
असल में कोयला घोटाले के मामले में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह व भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी के निवासों पर प्रदर्शन की घोषणा से लेकर रविवार को हुए प्रदर्शन तक अन्ना हजारे की चर्चा कहीं पर भी नहीं थी। ऐसा माना जा रहा था कि टीम अन्ना भंग करने के बाद अन्ना हजारे मायूस हो कर एकांतवास में चले गए हैं। प्रदर्शन में अन्ना हजारे की भूमिका नगण्य होने का प्रमाण यही है कि प्रदर्शनकारियों के सिर पर मैं अन्ना हूं वाली टोपियां नदारद थीं। कुछ कार्यकर्ताओं ने तो मैं केजरीवाल हूं वाली टोपी लगा रखी थी। दिन भर इलैक्ट्रॉनिक मीडिया भी इसका बार-बार उल्लेख कर रहा था कि अन्ना हजारे का कहीं अता-पता नहीं है। मगर शाम होते-होते अन्ना हजारे से रहा नहीं गया। प्रदर्शन के कामयाब होने पर उन्होंने ब्लॉग लिख ही डाला।
आइये, देखते हैं कि उन्होंने अपने ब्लॉग पर क्या लिखा है:-
सभी क्रांतिकारियों को बधाई
दिनांक 26 अगस्त 2012 दिल्ली में जो अहिंसक मार्ग से आंदोलन हुआ उस आंदोलन में जो जो आंदोलनकारी शामिल हुए उन सबको मैं बधई देता हूं, उनका अभिनंदन करता हूं। पुलिस वाले मार पिटाई करते रहे लेकिन किसी भी आंदोलनकारी ने हाथ नहीं उठाया, पानी के बौछार से मारा, अश्रधुर छोड़ा लेकिन सब सहन करते आंदोलन किया यह बात बहुत ही महत्वपूर्ण लगी।
आंदोलनकारी अपने लिए, अपने परिवार के लिए अपने संस्था के लिए क्या मांग रहे है? आंदोलनकारी इतना ही मांग रहे थे कि कोयला घोटाला के बारे में संसद में छ: दिन से चर्चा नहीं हो रही, यह जनता का पैसा आप बर्बाद क्यों कर रहे हैं। कोयले घोटाले में कांग्रेस क्या और बीजेपी क्या दोनों पक्ष और पार्टी के लोक जिम्मेदार हैं। जनता की दिशाभूल करने के लिए संसद में तू-तू मैं-मैं हो रही है। आंदोलनकारियों का कहना है कि देश के आजादी के लिए लाखों शहीदों ने अपनी कुर्बानी दी है, हसते हसते फांसी पर चले गए उनका देश और देश की जनात की खुशहाली के बारे में बहुत बड़ा सपना था। आज राजनीति के कई लोगों ने सत्ता से पैसा और पैसे से सत्ता इसी सोच में उनका सपना मिट्टी में मिला दिया। वह सपना पूरा करने का इन आंदोलनकारियों की कोशिश है। हम पुलिस के डंडे खायेंगे इतना ही नहीं गोली भी खायेंगे लेकिन उन शहीदों का सपना पूरा करने की कोशिश करेंगे। मैं जब टीवी देख रहा था कि आंदोलनकारी पुलिस के सामने खड़ा है और पुलिस उसको एक जानवर की तरह डंडे से पीट रही थी लेकिन किसी भी आंदोलनकारी ने अपना हाथ नहीं उठाया। उस  दृश्य  को देखकर मुझे उन नव जवानों पर बड़ा गर्व महसूस हो रहा था और अनुभव कर रहा था कि देश में परिवर्तन का समय आ गया है। ऐसे परिवर्तन लाने के लिए यही रास्ता है, जो यह युवक कर रहे थे।
आजादी की दूसरी लड़ाई में सफल होना है तो मार खाना पड़ेगा, लाठी खानी पड़ेगी। समय आ गया तो गोली भी खानी पड़ेगी। अब संपूर्ण परिवर्तन के लिए आजादी की दूसरी लड़ाई की शुरूआत हो गई  है। उसका प्रदर्शन आंदोलनकारी युवकों ने किया है। इस प्रदर्शन से देश के युवकों को एक नई दिशा मिलेगी, नई प्रेरणा मिलेगी और दिल्ली की अहिंसक मार्ग से शुरू हुई आजादी की दूसरी लड़ाई की चिंगारी अब देश में फैल जाएगी और संपूर्ण परिवर्तन के तरफ यह  आंदोलन जाएगा। मैं फिर से युवकों को आह्वान करता हूं कि राष्ट्रीय संपत्ती हमारी संपत्ती है, उसका कोई भी नुकसान ना हो रास्ते स गुजरने वाले सभी भाई बहन हमारे भाई बहन है, उनको तकलीफ ना हो, तकलीफ हमने सहन करनी है, आत्मकलेश हमने सहन करना है और उनकी वेदना ये जनता को होनी है। जैसे आज पुलिस वाले आंदोलनकारियों के पिट रहे थे लेकिन वेदना देश की जनता को हो रही थी।
आज के दिल्ली के आंदोलन का आदर्श देश के युवाओं को लेना है और आगे कोई भी हिंसा ना करते हुए अहिंसा के मार्ग से आंदोलन करना है। मुझे विश्वास हो रहा है कि आजादी की दूसरी लड़ाई में हम कामयाब हो जाएंगे। सभी आंदोलनकारियों का फिर से धन्यवाद।
भवदीय,
कि. बा. उपनाम अण्णा हजारे

इस लिंक पर क्लिक करके आप ब्लॉग भी देख सकते हैं
अन्ना हजारे सेज

-तेजवानी गिरधर

बुधवार, अगस्त 22, 2012

पाक से आने वाले हिंदुओं का स्वागत, मगर जरा संभल कर

इन दिनों पाकिस्तान में हिंदुओं पर अत्याचार और वहां से भाग कर भारत आने का मुद्दा गरमाया हुआ है। भारत आए हिंदुओं की दास्तां सुनें तो वाकई दिल दहल जाता है कि पाकिस्तान में किन हालात में हिंदू जी रहे हैं। ऐसे में दिल ओ दिमाग यही कहता है कि भारत में शरण को आने वाले हिंदुओं का स्वागत किया ही जाना चाहिए। मगर साथ ही धरातल का सच यह भी इशारा करता है कि सहानुभूति की आड़ में कहीं हमारे साथ धोखा तो नहीं हो जाएगा? कहीं यह भारत में घुसपैठ का नया तरीका तो नहीं, जो बाद में देश की सुरक्षा में नई सेंध बन जाए?
वस्तुत: पाकिस्तान के अल्पसंख्यक हिंदुओं की समस्या ने पिछले सितंबर से जोर पकड़ा है। तीस दिन का धार्मिक वीजा लेकर यहां आने वाले हिंदू भारत आकर बता रहे हैं कि पाकिस्तान में हिंदुओं के साथ अमानवीय अत्याचारों की हद पार की जा रही है। कहीं सरेआम लूटा जा रहा है तो कहीं किसी हिंदू लड़कियों के साथ बलात्संग, कहीं जबरन धर्म परिवर्तन तो कहीं जबरन निकाह जैसे आम बात हो गई है। जाहिर है उनकी बातें सुन कर कठोर से कठोर दिल वाले को भी दया आ जाए। ऐसे में इन हिंदुओं के प्रति सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार किये जाने की पैरवी की जाती है।
लेकिन सिक्के का दूसरे पर नजर डालें तो वह और भी भयावह लगता है। इस प्रकार झुंड के झुंड भारत आ रहे पाकिस्तानी हिंदुओं पर शक करने वाले कहते हैं कि पाकिस्तान और भारत के कटु रिश्तों को देखते हुए भारत को ऐसे मामले में सतर्क रहना होगा। पाकिस्तानी हिंदुओं की स्थिति बेशक मार्मिक है, लेकिन यहां आ रहे लोग हिंदू ही हैं, इस बात की कोई गारंटी नहीं है। कई जानकार और रक्षा विशेषज्ञ इस आवाजाही को घुसपैठ का एक तरीका मान रहे हैं। उनके अनुसार पीडि़तों की आड़ में पाकिस्तान इन हिंदुओं के रूप में अपने आतंकी भी भारत में भेज रहा है, जो देश की सुरक्षा में एक बड़ा सेंध साबित होने वाले हैं।
मौजूदा समस्या के सिलसिले में इस पर चर्चा करना प्रासंगिक ही होगा कि भारत में घुसपैठ की समस्या बहुत पुरानी है। आज तक उसका पक्का आंकड़ा नहीं मिल पाया है। सरकार और विपक्ष इस पर अपनी चिंता जाहिर करते रहे हैं। बावजूद इसके पाकिस्तानियों के अतिरिक्त बांग्लादेशियों की घुसपैठ आज तक नहीं रोकी जा सकी है। भाजपा ने तो हाल ही असम संकट उभरने पर घुसपैठ के खिलाफ जागृति अभियान भी छेड़ दिया है। अवैध रूप से घुसपैठ से इतर वैध तरीके से हो रही घुसपैठ भी कम चिंताजनक नहीं है।
सरकारी आंकड़े ही बताते हैं कि पिछले तीन साल में डेढ़ लाख से ज्यादा पाकिस्तानी नागरिक वैध वीजा पर भारत पहुंचे। गृह राज्यमंत्री एम रामचंद्रन ने गत दिनों लोकसभा को बताया कि वर्ष 2009 में 53 हजार 137, 2010 में 51 हजार 739 और 2011 में 48 हजार 640 पाकिस्तानी भारत आए थे। पाकिस्तानी नागरिकों की वीजा अवधि बढ़ाने के आंकड़ों का केंद्रीय लेखा-जोखा नहीं रखा गया था। नतीजतन इसका पक्का आंकड़ा नहीं है कि कितने वापस लौटे ही नहीं। सूत्रों के अनुसार हिंदूवादी संगठन आरएसएस के गढ़ नागपुर में ही तकरीबन दो हजार से अधिक पाकिस्तानी नागरिक अपने विजिटिंग वीजा की समयावधि पूरी होने के बावजूद नागपुर में रह रहे हैं। तकरीबन 9 हजार 705 पाकिस्तानी नागरिकों को भारत में नागपुर आने के लिए विजिटिंग वीजा प्राप्त हुआ था। यह वीजा 30, 45, 60, और 90 दिनों का था। करीब 2 हजार 46 पाकिस्तानी नागरिक यहां लंबी अवधि का वीजा लेकर आए थे और इनमें से 533 ने भारतीय नागरिकता प्राप्त कर ली थी। मगर इनमें से करीब 2013 पाकिस्तानी नागरिक वीजा अवधि समाप्ति के बावजूद अपने देश लौटे ही नहीं हैं। पुलिस ने स्वीकार किया कि 1994 से यहां रह रहे पाकिस्तानी नागरिकों के नाम और पते की जानकारी नहीं है।
सूत्रों के अनुसार राजस्थान में पिछले पांच साल में करीब 23 हजार पाक नागरिक आए थे। इनमें से 4,624 लोग वीजा अवधि खत्म होने के बाद भी नहीं लौटे। 4,273 लोग पुलिस की जानकारी में आ गए। इन्होंने वीजा अवधि बढ़ाने के लिए आवेदन कर रखा है, जबकि चार अन्य की मौत हो गई है। चौंकाने वाला तथ्य ये है कि इनमें से 347 पाक नागरिकों का अता-पता नहीं है। खुफिया एजेंसियों को आशंका है कि इनमें से कुछ यहां आईएसआई के लिए बतौर रेजीडेंट एजेंट काम कर रहे हैं। एडीजी इंटेलीजेंस दलपत सिंह दिनकर का कहना है कि पिछले चार साल में चार हजार से भी अधिक लोगों ने पाक लौटने से मना किया है। उनमें से अधिकांश ने शपथ-पत्र देकर पाक में प्रताडि़त किए जाने आरोप लगाए हैं।
पिछले दिनों जब पाक कमिश्नर सलमान बशीर अजमेर में पाक राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी की ओर से दरगाह शरीफ में 5 करोड़ 47 लाख 48 हजार 905 रुपये का नजराना देने आए तो उनसे पाकिस्तानियों के यहां आ कर गायब होने बाबत मीडिया ने सवाल किया, इस पर उनके पास कोई वाजिब जवाब नहीं था और यह कह कर टाल दिया कि पाकिस्तान आने वाले भारतीय भी तो वहां गायब हो रहे हैं। उनकी संख्या यहां गायब होने वालों से भी ज्यादा है। ऐसे में यह कहना ठीक नहीं है कि उन्हें कोई भेज रहा है। उनके जवाब से स्पष्ट है कि पाकिस्तान भलीभांति जानता है कि हकीकत क्या है, मगर बहानेबाजी कर रहा है। इसी बहानेबाजी के पीछे पाकिस्तान की कुत्सित चाल का संदेह होता है।
लब्बोलुआब, बेशक हमें शरणार्थी बन कर आ रहे हिंदुओं के प्रति पूरी संवेदना बरती जानी चाहिए, मगर देश की अस्मिता के साथ खिलवाड़ की कीमत पर नहीं।
-तेजवानी गिरधर

रविवार, अगस्त 19, 2012

अब जायज लग रहा है सोशल मीडिया पर लगाम कसना

उत्तर पूर्व के लोगों को धमकाने पर चेती सरकार, फेसबुक यूजर्स में भी आई जागृति
आज जब सोशल मीडिया के दुरुपयोग की वजह से उत्तर पूर्व के लोगों का देश के विभिन्न प्रांतों से बड़े पैमाने पर पलायन हो रहा है और सरकार की ओर से सुरक्षा की बार-बार घोषणा का भी असर नहीं हो रहा तो लग रहा है कि वाकई सोशल मीडिया पर नियंत्रण की मांग जायज है। इससे पूर्व केन्द्रीय दूरसंचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री कपिल सिब्बल ने जैसे ही यह कहा थ कि उनका मंत्रालय इंटरनेट में लोगों की छवि खराब करने वाली सामग्री पर रोक लगाने की व्यवस्था विकसित कर रहा है और सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट्स से आपत्तिजनक सामग्री को हटाने के लिए एक नियामक व्यवस्था बना रहा है तो बवाल हो गया था। अभिव्यक्ति की आजादी के पैरोकार बुद्धिजीवी इसे अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश के रूप में परिभाषित करने लगे, वहीं मौके का फायदा उठा कर विपक्ष ने इसे आपातकाल का आगाज बताना शुरू कर दिया था। अंकुश लगाए जाने का संकेत देने वाले केन्द्रीय मंत्री कपिल सिब्बल को सोशल मीडिया पर जम कर गालियां बकी जा रही थीं कि वे नेहरू-गांधी परिवार के तलुए चाट रहे हैं। सिब्बल के बयान को तुरंत इसी अर्थ में लिया गया कि वे सोनिया व मनमोहन सिंह के बारे में आपत्तिजनक सामग्री हटाने के मकसद से ऐसा कर रहे हैं। एक न्यूज चैनल ने तो बाकायदा न्यूज फ्लैश में इसे ही हाइलाइट करना शुरू कर दिया, हालांकि दो मिनट बाद ही उसने संशोधन किया कि सिब्बल ने दोनों का नाम लेकर आपत्तिजनक सामग्री हटाने की बात नहीं कही है। हालांकि सच यही था कि नेहरू-गांधी परिवार पर अन्ना हजारे व बाबा रामदेव के समर्थकों सहित हिंदूवादी संगठन अभद्र और अश्लील टिप्पणियां कर रहे थे और अब भी कर रहे हैं, इसी वजह से अंकुश लगाए जाने का ख्याल आया था। यह बात दीगर है कि बीमार मानसिकता के लोग अन्ना व बाबा को भी नहीं छोड़ रहे। सांप्रदायिक विद्वेष फैलाने वाली सामग्री के साथ अश्लील फोटो भी खूब पसरी हुई है।
असल में ऐसा प्रतीत होता है कि सोशल मीडिया के मामले में हम अभी वयस्क हुए नहीं हैं। हालांकि इसका सदुपयोग करने वाले भी कम नहीं हैं, मगर अधिसंख्य यूजर्स इसका दुरुपयोग कर रहे हैं। केवल राजनीतिक टिप्पणियां ही नहीं, बल्कि अश्लील सामग्री भी जम कर परोसी जा रही है। लोग बाबा रामदेव और अन्ना तक को नहीं छोड़ रहे। लोगों को लग रहा है कि जो बातें प्रिंट व इलैक्ट्रॉनिक मीडिया पर आचार संहिता की वजह से नहीं आ पा रही, सोशल मीडिया पर बड़ी आसानी से शेयर की जा सकती है। और शौक शौक में लोग इसके मजे ले रहे हैं। साथ ही असामाजिक तत्व अपने कुत्सित मकसद से उसका जम कर दुरुपयोग कर रहे हैं।
आपको याद होगा कि चंद माह पहले ही भीलवाड़ा में भी एक धर्म विशेष के बारे में घटिया टिप्पणी की वजह से सांप्रदायिक तनाव उत्पन्न हो गया था। मगर चूंकि कोई बड़ी वारदात नहीं हुई, इस कारण न तो सरकार चेती न ही इंटरनेट कंपनियां। उलटे अभिव्यक्ति की आजादी की पैरवी करने वाले हावी हो रहे थे कि सरकार केवल नेहरू-गांधी परिवार को बचाने के लिए ही अंकुश की बातें कर रही है। आज जब इसी सोशल मीडिया का उत्तर पूर्व के लोगों को धमकाने के लिए किया जा रहा है और वे अखंड भारत में अपने राज्य की ओर पलायन करने को मजबूर हैं तो राजनीतिक दलों को भी लग रहा है कि इस पर अंकुश लगाया जाना चाहिए। समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता रामगोपाल यादव सहित अन्य ने तो बाकायदा संसद में मांग उठाई। सरकार ने भी इंटरनेट कंपनियों को नफरत फैलाने वाली सामग्री हटाने को कहा है। गृह मंत्रालय ने फेसबुक, ऑरकुट व ट्विटर जैसे सोशल साइट पर भी नजर रखने को कहा है। कुछ जागरूक फेसबुक यूजर्स भी दुरुपयोग नहीं करने की अपील कर रहे हैं।
आपको याद होगा कि पूर्व में जब सोशल मीडिया पर लगाम कसने की खबर आई तो उस पर देशभर के बुद्धिजीवियों में जम कर बहस छिड़ गई थी। लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की दुहाई देते हुए जहां कई लोग इसे संविधान की मूल भावना के विपरीत और तानाशाही की संज्ञा दे रहे थे, वहीं कुछ लोग अभिव्यक्ति की आजादी के बहाने चाहे जिस का चरित्र हनन करने और अश्लीलता की हदें पार किए जाने पर नियंत्रण पर जोर दे रहे थे।
वस्तुत: पिछले कुछ सालों में हमारे देश में इंटरनेट व सोशल नेटवर्किंग साइट्स का चलन बढ़ रहा है। आम तौर पर प्रिंट और इलैक्ट्रॉनिक मीडिया पर जो सामग्री प्रतिबंधित है अथवा शिष्टाचार के नाते नहीं दिखाई जाती, वह इन साइट्स पर धड़ल्ले से उजागर हो रही है। किसी भी प्रकार का नियंत्रण न होने के कारण जायज-नाजायज आईडी के जरिए जिसके मन जो कुछ आता है, वह इन साइट्स पर जारी कर अपनी कुंठा शांत कर रहा है। अश्लील चित्र और वीडियो तो चलन में हैं ही, धार्मिक उन्माद फैलाने वाली सामग्री भी पसरती जा रही है।
जहां तक अभिव्यक्ति की आजादी का सवाल है, मोटे तौर पर यह सही है कि ऐसे नियंत्रण से लोकतंत्र प्रभावित होगा। इसकी आड़ में सरकार अपने खिलाफ चला जा रहे अभियान को कुचलने की कोशिश कर सकती है, जो कि लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए घातक होगा। लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या अभिव्यक्ति की आजादी के मायने यह है कि फेसबुक, ट्विटर, गूगल, याहू और यू-ट्यूब जैसी वेबसाइट्स पर लोगों की धार्मिक भावनाओं, विचारों और व्यक्तिगत भावना से खेलने तथा अश्लील तस्वीरें पोस्ट करने की छूट दे दी जाए? व्यक्ति विशेष के प्रति अमर्यादित टिप्पणियां और अश्लील फोटो जारी करने दिए जाएं? किसी के खिलाफ भड़ास निकालने की खुली आजादी दे दी जाए? सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर इन दिनों जो कुछ हो रहा है, क्या उसे अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर स्वीकार कर लिया जाये?
राजनीतिक दृष्टिकोण से हट कर भी बात करें तो यह सवाल तो उठता ही है कि क्या हमारा सामाजिक परिवेश और संस्कृति ऐसी अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर आ रही अपसंस्कृति को स्वीकार करने को राजी है? माना कि इंटरनेट के जरिए सोशल नेटवर्किंग के फैलते जाल में दुनिया सिमटती जा रही है और इसके अनेक फायदे भी हैं, मगर यह भी कम सच नहीं है कि इसका नशा बच्चे, बूढ़े और खासकर युवाओं के ऊपर इस कदर चढ़ चुका है कि वह मर्यादाओं की सीमाएं लांघने लगा है। अश्लीलता व अपराध का बढ़ता मायाजाल अपसंस्कृति को खुलेआम बढ़ावा दे रहा है। जवान तो क्या, बूढ़े भी पोर्न मसाले के दीवाने होने लगे हैं। इतना ही नहीं फर्जी आर्थिक आकर्षण के जरिए धोखाधड़ी का गोरखधंधा भी खूब फल-फूल रहा है। साइबर क्राइम होने की खबरें हम आए दिन देख-सुन रहे हैं। जिन देशों के लोग इंटरनेट का उपयोग अरसे से कर रहे हैं, वे तो अलबत्ता सावधान हैं, मगर हम भारतीय मानसिक रूप से इतने सशक्त नहीं हैं। ऐसे में हमें सतर्क रहना होगा। सोशल नेटवर्किंग की  सकारात्मकता के बीच ज्यादा प्रतिशत में बढ़ रही नकारात्मकता से कैसे निपटा जाए, इस पर गौर करना होगा।
-तेजवानी गिरधर