प्रदेश में भाजपा शासन के तीन नकारा सालों और प्रदेश कांगे्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट की कड़ी मेहनत की वजह से जो आम धारणा सी बन गई थी कि इस बार सरकार कांग्रेस की बनेगी, उस पर संशय के बादल मंडराने लगे हैं। अगर कांग्रेस बहुमत में आई तो मुख्यमंत्री कौन होगा, अकेले इस सवाल ने यह सवाल पैदा कर दिया है कि क्या कांग्रेस एकजुट हो कर चुनाव लड़ भी पाएगी?
चूंकि मृतप्राय: कांग्रेस को फिर से जिंदा करने में सचिन की अहम भूमिका है और प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते चुनाव उनके ही नेतृत्व में लड़ा जाना है, इस कारण यह आमराय मानी जाती थी कि बहुमत मिलने पर वे ही मुख्यमंत्री बनेंगे, मगर इस बीच पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के समर्थकों ने ऐसा माहौल पैदा कर दिया कि गहलोत भी मुख्यमंत्री पद के दावेदार होंगे तो असंमजस पैदा होना ही था। हालांकि दोनों नेताओं ने कभी इस प्रकार का दावा नहीं किया कि वे मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं, वे तो यही कहते रहे हैं कि फैसला हाईकमान को करना है कि मुख्यमंत्री कौन होगा, या किसी को मुख्यमंत्री के दावेदार के रूप में प्रोजेक्ट किया भी जाएगा या नहीं, यह भी हाईकमान ही तय करेगा, मगर दूसरी श्रेणी के नेता और कार्यकर्ताओं की खींचतान के चलते यह संदेश जाने लगा है कि कांग्रेस एकजुट नहीं है।
वस्तुत: पिछले कुछ वर्षों का अनुभव ये रहा है कि राज्य की जनता ने बारी-बारी से दोनों दलों को सत्ता सौंपी है, इस कारण यह राय बन गई कि इस बार कांग्रेस सत्ता में आ सकती है। यह राय इसलिए और मजबूत हो गई, क्यों कि इस बार वसुंधरा सरकार का अब तक कार्यकाल जनता के लिए सुखद नहीं रहा है। जिस उम्मीद में भाजपा को बंपर समर्थन दिया, उसके अनुरूप अपेक्षाएं पूरी नहीं हुईं। यहां तक कि वसुंधरा के इस कार्यकाल में पिछले कार्यकाल की तुलना में राजनीतिक व प्रशासनिक निर्णयों में मजबूती कम दिखाई दी। यह बात भाजपा के लोग भी जानते हैं, इस कारण वे भी लगभग ये मान बैठे हैं कि जनता इस बार पलटी खिला देगी। इस धारणा की वजह से कांग्रेसी भी मान बैठे हैं कि अब उनकी ही सरकार आने वाली है। पायलट ने भी कांग्रेस में जान फूंकी है। भाजपा हाईकमान को भी यह आशंका है कि इस बार कांग्रेस बाजी न मार जाए। समझा जा सकता है जिस पार्टी की केन्द्र में बहुमत वाली सरकार हो और राज्य में भी तगड़े बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज हो, वह अगर सचिन पायलट को भाजपा में आने का लालच देती है तो इसका अर्थ ये है कि उसे अपने बूते चुनाव जीतने का भरोसा नहीं है।
तस्वीर का दूसरा रुख ये है कि कांग्रेस में एकजुटता की कमी के चलते वह धारणा धुंधली होती दिखाई दे रही है कि कांग्रेस सत्ता में लौटेगी। कांग्रेस के राजस्थान प्रभारी अविनाश पांडे व पूर्व मुख्यमंत्री गहलोत तक यह बयान दे चुके हैं कि कांग्रेस कार्यकर्ता यह मान कर न बैठ जाएं कि अगली सरकार कांग्रेस की होगी।
बात अगर कांग्रेस कार्यकर्ता की मन:स्थिति की करें तो वह इस बात को लेकर असमंजस में है कि अगर सरकार बनी तो मुख्यमंत्री कौन होगा? ऐसा असमंजस निचले स्तर पर नहीं, बल्कि से ऊपर से आया है। पूर्व प्रभारी कामथ कहते रहे कि अगला चुनाव सचिन के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा तो नए प्रभारी पांडे कहते हैं कि मुख्यमंत्री के रूप में कोई प्रोजेक्ट नहीं होगा और चुनाव सामूहिक नेतृत्व में लड़ा जाएगा। इस प्रकार के डिप्लामेटिक बयानों का राज क्या है, ये तो हाईकमान ही जाने, मगर समझा जा सकता है कि इसका असर कार्यकर्ता पर क्या पड़ता होगा? हालांकि कांग्रेस में एकजुटता की कमी तो नजर आ रही है, मगर कार्यकर्ता हताश हुआ है, ऐसा नहीं है। यदि उसके मन में यह बात बैठ गई कि एकजुट हो कर मेहनत नहीं की तो सत्ता का सपना सपना ही रह जाएगा तो संभव है, वह एकजुट हो जाए। लेकिन फिलहाल इस प्रकार की खुसरफुसर शुरू हो गई है कि कांग्रेस का सत्ता में लौटना आसान नहीं है। विशेष रूप से इस वजह से कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह जिस रणनीति के तहत अपना जाल फैलाने वाले हैं, उसे देखते हुए यह लगता है कि संघर्ष जबदस्त होने वाला है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
8094767000
चूंकि मृतप्राय: कांग्रेस को फिर से जिंदा करने में सचिन की अहम भूमिका है और प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते चुनाव उनके ही नेतृत्व में लड़ा जाना है, इस कारण यह आमराय मानी जाती थी कि बहुमत मिलने पर वे ही मुख्यमंत्री बनेंगे, मगर इस बीच पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के समर्थकों ने ऐसा माहौल पैदा कर दिया कि गहलोत भी मुख्यमंत्री पद के दावेदार होंगे तो असंमजस पैदा होना ही था। हालांकि दोनों नेताओं ने कभी इस प्रकार का दावा नहीं किया कि वे मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं, वे तो यही कहते रहे हैं कि फैसला हाईकमान को करना है कि मुख्यमंत्री कौन होगा, या किसी को मुख्यमंत्री के दावेदार के रूप में प्रोजेक्ट किया भी जाएगा या नहीं, यह भी हाईकमान ही तय करेगा, मगर दूसरी श्रेणी के नेता और कार्यकर्ताओं की खींचतान के चलते यह संदेश जाने लगा है कि कांग्रेस एकजुट नहीं है।
वस्तुत: पिछले कुछ वर्षों का अनुभव ये रहा है कि राज्य की जनता ने बारी-बारी से दोनों दलों को सत्ता सौंपी है, इस कारण यह राय बन गई कि इस बार कांग्रेस सत्ता में आ सकती है। यह राय इसलिए और मजबूत हो गई, क्यों कि इस बार वसुंधरा सरकार का अब तक कार्यकाल जनता के लिए सुखद नहीं रहा है। जिस उम्मीद में भाजपा को बंपर समर्थन दिया, उसके अनुरूप अपेक्षाएं पूरी नहीं हुईं। यहां तक कि वसुंधरा के इस कार्यकाल में पिछले कार्यकाल की तुलना में राजनीतिक व प्रशासनिक निर्णयों में मजबूती कम दिखाई दी। यह बात भाजपा के लोग भी जानते हैं, इस कारण वे भी लगभग ये मान बैठे हैं कि जनता इस बार पलटी खिला देगी। इस धारणा की वजह से कांग्रेसी भी मान बैठे हैं कि अब उनकी ही सरकार आने वाली है। पायलट ने भी कांग्रेस में जान फूंकी है। भाजपा हाईकमान को भी यह आशंका है कि इस बार कांग्रेस बाजी न मार जाए। समझा जा सकता है जिस पार्टी की केन्द्र में बहुमत वाली सरकार हो और राज्य में भी तगड़े बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज हो, वह अगर सचिन पायलट को भाजपा में आने का लालच देती है तो इसका अर्थ ये है कि उसे अपने बूते चुनाव जीतने का भरोसा नहीं है।
तस्वीर का दूसरा रुख ये है कि कांग्रेस में एकजुटता की कमी के चलते वह धारणा धुंधली होती दिखाई दे रही है कि कांग्रेस सत्ता में लौटेगी। कांग्रेस के राजस्थान प्रभारी अविनाश पांडे व पूर्व मुख्यमंत्री गहलोत तक यह बयान दे चुके हैं कि कांग्रेस कार्यकर्ता यह मान कर न बैठ जाएं कि अगली सरकार कांग्रेस की होगी।
बात अगर कांग्रेस कार्यकर्ता की मन:स्थिति की करें तो वह इस बात को लेकर असमंजस में है कि अगर सरकार बनी तो मुख्यमंत्री कौन होगा? ऐसा असमंजस निचले स्तर पर नहीं, बल्कि से ऊपर से आया है। पूर्व प्रभारी कामथ कहते रहे कि अगला चुनाव सचिन के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा तो नए प्रभारी पांडे कहते हैं कि मुख्यमंत्री के रूप में कोई प्रोजेक्ट नहीं होगा और चुनाव सामूहिक नेतृत्व में लड़ा जाएगा। इस प्रकार के डिप्लामेटिक बयानों का राज क्या है, ये तो हाईकमान ही जाने, मगर समझा जा सकता है कि इसका असर कार्यकर्ता पर क्या पड़ता होगा? हालांकि कांग्रेस में एकजुटता की कमी तो नजर आ रही है, मगर कार्यकर्ता हताश हुआ है, ऐसा नहीं है। यदि उसके मन में यह बात बैठ गई कि एकजुट हो कर मेहनत नहीं की तो सत्ता का सपना सपना ही रह जाएगा तो संभव है, वह एकजुट हो जाए। लेकिन फिलहाल इस प्रकार की खुसरफुसर शुरू हो गई है कि कांग्रेस का सत्ता में लौटना आसान नहीं है। विशेष रूप से इस वजह से कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह जिस रणनीति के तहत अपना जाल फैलाने वाले हैं, उसे देखते हुए यह लगता है कि संघर्ष जबदस्त होने वाला है।
-तेजवानी गिरधर
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