उत्तरप्रदेश में मुख्यमंत्री के रूप में किसी का चेहरा सामने रखने की बजाय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम पर चुनाव लडऩे से मिली बंपर कामयाबी के बाद भाजपा में इस बात पर गंभीरता से विचार हो रहा बताया कि राजस्थान में भी आगामी विधानसभा चुनाव मोदी के नाम पर लड़ा जाए।
यह लगभग सर्वविदित हो चुका है कि मोदी और राजस्थान की मौजूदा मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे के बीच ट्यूनिंग ठीक नहीं है और इसी वजह से यह चर्चा कई बार सामने आई है कि मोदी उनके स्थान पर किसी और को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं, बस उन्हें पलटने का मौका नहीं मिला या फिर साहस नहीं हुआ। इस सिलसिले वरिष्ठ भाजपा नेता व मोदी के विश्वासपात्र ओम प्रकाश माथुर का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। सांसद भूपेन्द्र सिंह यादव भी लाइन में हैं। हाल ही उत्तरप्रदेश के चुनाव परिणाम के बाद भी इस आशय की चर्चा शुरू हुई है। विचार इस बात पर हो रहा है कि ओम प्रकाश माथुर अथवा किसी और को मुख्यमंत्री बनाया जाए अथवा नहीं। चुनावी रणनीति के रूप में अभी से यह तैयारी कर ली जाए कि आगामी चुनाव मोदी के नाम पर लड़ा जाए या नहीं। इस सिलसिले में वसुंधरा राजे का वह बयान भी जेहन में रखना होगा कि अगला चुनाव उन्हीं के नेतृत्व में लड़ा जाएगा, जो कि उन्होंने सरकार के तीन साल पूरे होने पर दिया था। ज्ञातव्य है कि इसका विरोध घनश्याम तिवाड़ी ने किया था। राजनीतिक पंडित वसुंधरा के बयान के निहतार्थ खोजने में लग गए थे।
बहरहाल, यह आम धारणा है कि चूंकि वसुंधरा राजे के चेहरे में वह आकर्षण नहीं रह गया है, जिसके दम पर पिछली बार कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया था। हालांकि इस पर भी विवाद था कि वह मोदी लहर थी या वसुंधरा का जलवा। भाजपा भी जानती है कि इस बार वसुंधरा के चेहरे पर चुनाव लडऩे पर अपेक्षित परिणाम आना संदिग्ध है, इस कारण मुख्यमंत्री बदलने की चर्चा हुई, मगर समस्या ये रही कि उनसे बेहतर चेहरा पार्टी के पास है नहीं। इसी बीच उत्तर प्रदेश के चुनाव हो गए। इसके परिणामों ने पार्टी में यह आम राय कायम होने लगी है कि मोदी के नाम में अब भी जादू है, लिहाजा वसुंधरा राजे की जगह किसी और का चेहरा सामने लाने की बजाय मोदी के नाम पर ही चुनाव लड़ा जाए। इससे एक लाभ ये हो सकता है कि मुख्यमंत्री पद की दौड़ वाले दावेदारों के बीच खींचतान समाप्त हो जाएगी और पार्टी एकजुट रहेगी। दूसरा ये भी ख्याल है कि जैसे पिछली बार जीत का श्रेय वसुंधरा राजे के लेेने पर तनिक विवाद हुआ था, वह नहीं होगा। उससे भी बड़ी बात ये कि जब मोदी के नाम पर जीत हासिल कर ली जाएगी तो मोदी को अपनी पसंद का मुख्यमंत्री बनाने में आसानी रहेगी।
वैसे राजनीति के जानकारों का मानना है कि केवल मोदी के नाम पर चुनाव लडऩे से पहले पार्टी उत्तर प्रदेश व राजस्थान के राजनीतिक समीकरणों की तुलना जरूर करेगी। उसकी वजह ये है कि उत्तर प्रदेश में तो भाजपा को बीस साल की एंटी इन्कंबेंसी का लाभ मिला, जब कि राजस्थान में तो भाजपा का राज और यहां उसके खिलाफ एंटी इन्कंबेंसी का फैक्टर काम करेगा। एक सोच ये भी है कि मोदी का नाम आने पर एंटी इन्कंबेंसी का फैक्टर गौण हो जाए।
बहरहाल, इतना तय है कि राजस्थान में पार्टी नई रणनीति के तहत ही चुनाव मैदान में उतरेगी।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
8094767000
यह लगभग सर्वविदित हो चुका है कि मोदी और राजस्थान की मौजूदा मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे के बीच ट्यूनिंग ठीक नहीं है और इसी वजह से यह चर्चा कई बार सामने आई है कि मोदी उनके स्थान पर किसी और को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं, बस उन्हें पलटने का मौका नहीं मिला या फिर साहस नहीं हुआ। इस सिलसिले वरिष्ठ भाजपा नेता व मोदी के विश्वासपात्र ओम प्रकाश माथुर का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। सांसद भूपेन्द्र सिंह यादव भी लाइन में हैं। हाल ही उत्तरप्रदेश के चुनाव परिणाम के बाद भी इस आशय की चर्चा शुरू हुई है। विचार इस बात पर हो रहा है कि ओम प्रकाश माथुर अथवा किसी और को मुख्यमंत्री बनाया जाए अथवा नहीं। चुनावी रणनीति के रूप में अभी से यह तैयारी कर ली जाए कि आगामी चुनाव मोदी के नाम पर लड़ा जाए या नहीं। इस सिलसिले में वसुंधरा राजे का वह बयान भी जेहन में रखना होगा कि अगला चुनाव उन्हीं के नेतृत्व में लड़ा जाएगा, जो कि उन्होंने सरकार के तीन साल पूरे होने पर दिया था। ज्ञातव्य है कि इसका विरोध घनश्याम तिवाड़ी ने किया था। राजनीतिक पंडित वसुंधरा के बयान के निहतार्थ खोजने में लग गए थे।
बहरहाल, यह आम धारणा है कि चूंकि वसुंधरा राजे के चेहरे में वह आकर्षण नहीं रह गया है, जिसके दम पर पिछली बार कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया था। हालांकि इस पर भी विवाद था कि वह मोदी लहर थी या वसुंधरा का जलवा। भाजपा भी जानती है कि इस बार वसुंधरा के चेहरे पर चुनाव लडऩे पर अपेक्षित परिणाम आना संदिग्ध है, इस कारण मुख्यमंत्री बदलने की चर्चा हुई, मगर समस्या ये रही कि उनसे बेहतर चेहरा पार्टी के पास है नहीं। इसी बीच उत्तर प्रदेश के चुनाव हो गए। इसके परिणामों ने पार्टी में यह आम राय कायम होने लगी है कि मोदी के नाम में अब भी जादू है, लिहाजा वसुंधरा राजे की जगह किसी और का चेहरा सामने लाने की बजाय मोदी के नाम पर ही चुनाव लड़ा जाए। इससे एक लाभ ये हो सकता है कि मुख्यमंत्री पद की दौड़ वाले दावेदारों के बीच खींचतान समाप्त हो जाएगी और पार्टी एकजुट रहेगी। दूसरा ये भी ख्याल है कि जैसे पिछली बार जीत का श्रेय वसुंधरा राजे के लेेने पर तनिक विवाद हुआ था, वह नहीं होगा। उससे भी बड़ी बात ये कि जब मोदी के नाम पर जीत हासिल कर ली जाएगी तो मोदी को अपनी पसंद का मुख्यमंत्री बनाने में आसानी रहेगी।
वैसे राजनीति के जानकारों का मानना है कि केवल मोदी के नाम पर चुनाव लडऩे से पहले पार्टी उत्तर प्रदेश व राजस्थान के राजनीतिक समीकरणों की तुलना जरूर करेगी। उसकी वजह ये है कि उत्तर प्रदेश में तो भाजपा को बीस साल की एंटी इन्कंबेंसी का लाभ मिला, जब कि राजस्थान में तो भाजपा का राज और यहां उसके खिलाफ एंटी इन्कंबेंसी का फैक्टर काम करेगा। एक सोच ये भी है कि मोदी का नाम आने पर एंटी इन्कंबेंसी का फैक्टर गौण हो जाए।
बहरहाल, इतना तय है कि राजस्थान में पार्टी नई रणनीति के तहत ही चुनाव मैदान में उतरेगी।
-तेजवानी गिरधर
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