तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

शनिवार, मार्च 08, 2025

खूबसूरत चीज का देख कर थुथकारा क्यों करते हैं?

दोस्तो, नमस्कार। आपने देखा होगा कि जब भी हम किसी व्यक्ति अथवा वस्तु को देख कर उसकी तारीफ करते हैं तो सलाह दी जाती है कि थुथकारा कर दो, जमीन पर थूक दो, अन्यथा नजर लग जाएगी। हम यह तथ्य जानते हुए स्वयं भी ऐसा करते हैं। कई बार ऐसा भी पाया होगा कि जब हम किसी बच्चे की खूबसूरती का जिक्र करते हैं तो अंगुली को जीभ से स्पर्ष करके बच्चे के गाल या हाथ पर स्पर्ष करते हैं। इसी प्रकार जब हम मानते हैं कि अमुक आदमी की नजर लगी है तो उसका जूठा पानी पिलाने की सलाह दी जाती है। उसमें भी मूल रूप से थूक की ही भूमिका होती है। 

सवाल यह है कि इसके पीछे कौन सा साइंस है? थूक का नजर से क्या संबंध है? ऐसा प्रतीत होता है कि थूक लगाने या जूठा पानी पीने से दो षरीरों की कीमिया समान हो जाती है। तो जिस तारीफ की वजह से नजर लगी है, उसकी सघनता डाइल्यूट हो जाती है। दोनों षरीरों का गुणधर्म एक जैसा हो जाता है। इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि यूं तो किसी का जूठा खाने या पीने से मना किया जाता है, लेकिन आपको इस मान्यता का भी ख्याल होगा कि हम किसी का जूठा पानी पीते हैं तो उसके गुण हमारे भीतर आ जाते हैं। कई बार आपने देखा होगा कि अमुक व्यक्ति की किसी आदत पर हम कहा करते हैं कि आपने किस जूठा खाया है। जैसे कोई वाचाल है तो कहते हैं न कि इसका अन्न प्राषन्न संस्कार वाचाल मौसी ने किया था। कई समाजों में ऐसी प्रथा है कि नवजात बच्चे को पहला स्वाद किसी बुजुर्ग के जरिये कराया जाता है। वह जौ व गुड चबा कर उसका मामूली सा अंष बच्चे की जीभ पर रखा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इससे उसमें बुजुर्ग के गुण प्रवेष कर जाएंगे।

नजर उतारने का एक और तरीका भी अपनाया जाता है। कुछ जानकार सलाह देते हैं कि जब आपको लगे कि किसी व्यक्ति विशेष की नजर लगी है तो आप उससे अपने बच्चे के सिर पर हाथ फिरवा कर भी नजर उतार सकते हैं।

गुरुवार, मार्च 06, 2025

गणेशजी को जबरन मनाने का अनोखा तरीका

दोस्तों, लोग भगवान को, देवता को, अपने इष्ट को मनाने के लिए इस हद तक जा सकते हैं कि आप कल्पना भी नहीं कर सकते। साधना और तपस्या तक तो ठीक है, मगर वे अनोखे तरीके अपनाने तक से नहीं चूकते। गणेशजी को ऐसे ही जबरन व अजीबोगरीब तरीके को देख कर मैं भोंचक्क रह गया। 

हाल ही तीर्थराज पुश्कर के निकट श्रीभट बावडी गणेष जी के मंदिर के दर्षन का सौभाग्य मिला। मंदिर में स्थित गणेष जी की मूर्ति के पास दीवार पर सिंदूर से स्वस्तिक का निषान उलटा अंकित हो रखा था। अज्ञान की वजह से कई लोग अपने घर के बाहर अथवा कॉपी-किताब पर स्वस्तिक का चिन्ह उलटा अंकित कर देते हैं। इस पर जानकार लोग उन्हें टोकते हैं कि स्वस्तिक का निषान सीधा बनाइये। सीधा अर्थात क्लॉक वाइज। वह प्रगति का सूचक भी है। यदि एंटी क्लॉक वाइज बनाएंगे तो मान्यता है कि अवगति होगी। आपको ख्याल में होगा कि वास्तु षास्त्र के अनुसार मकान में सीढियां भी क्लॉक वाइज बनाई जाती हैं। एंटी क्लॉक वाइज सीढी अनिश्ट की सूचक मानी जाती है। खैर, लेकिन एक जाने-माने मंदिर में, जिसके प्रति हजारों श्रद्धालुओं की आस्था हो, स्वस्तिक उलटा अर्थात एंटी क्लॉक वाइज बना हो तो चौंकना स्वाभाविक है। किसी व्यक्ति का इतना इतना दुस्साहस कैसे हो सकता है। मैं तो उसका फोटो तक लेने का साहस नहीं जुटा पाया। मैंने मंदिर के पुजारी से पूछा कि यह क्या है? स्वस्तिक का उलटा निषान? इस पर पुजारी ने बताया कि यह किसी ऐसे व्यक्ति की हरकत है, जिसे किसी तांत्रिक ने यह सलाह दी होगी कि यदि गणेष जी आपकी गुहार न सुन रहे हों तो स्वस्तिक उलटा अंकित कर दीजिए। इससे गणेष जी का ध्यान जल्द आकर्शित होगा। उन्हें आपकी अर्जी मंजूर करनी ही होगी। कमाल है। अपने इश्ट को मनाने के लिए लोग किस हद तक चले जाते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि यह एक तरह का हठयोग है, जिसमें बंदा रब से हठपूर्वक मांगता है। कई सवाली भी अपनी मांग के लिए अड जाते हैं और बताते हैं कि यदि आस्था बहुत मजबूत हो तो उसकी मांग पूरी होती भी है।

https://www.youtube.com/watch?v=FbJ-hnwP4RU

बुधवार, मार्च 05, 2025

भोजन करते वक्त उसका अंश गिरने का क्या मतलब है?

क्या भोजन करते समय उसका अंश यानि थोड़ा सा हिस्सा गिर जाने का भी कोई अर्थ हो सकता है? यह सवाल मेरे मन में तब उठा, जब एक बार भोजन करते वक्त सब्जी का छोटा सा अंष मेरी षर्ट पर गिरा तो मेरी ताई ने बताया कि ऐसा हमारे यहां पुरखों से होता आया है। हालांकि वे यह नहीं बता पाई कि ऐसा होता क्यों है या इसका क्या अर्थ है। मैने बहुत खोजा। कई विद्वानों से पूछा। हालांकि ठीक ठीक संतुश्टिपूर्ण जवाब तो नहीं मिला, लेकिन भिन्न भिन्न धारणाएं सामने आईं।

एक मान्यता है कि भोजन का गिरना इस बात का संकेत है कि घर में समृद्धि रहेगी और भोजन की कभी कमी नहीं होगी। एक धारणा यह है कि यदि भोजन खाते समय कुछ गिर जाए, तो यह संकेत हो सकता है कि घर में कोई अतिथि आने वाला है। कुछ परंपराओं में भोजन को ईश्वर का प्रसाद माना जाता है और उसका गिरना इस बात का संकेत हो सकता है कि किसी और पशु-पक्षी या जरूरतमंद को भी इसका भाग मिलना चाहिए था, जो कि हमने नहीं दिया। कुछ लोग इसे अशुभ भी मानते हैं, खासकर यदि भोजन बार-बार गिर रहा हो, तो इसे अनिष्टकारी संकेत के रूप में देखा जा सकता है।

ये सब धारणाएं हैं, इनका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। वैज्ञानिक आधार केवल इतना है कि हम भोजन करते वक्त असावधानी बरतते हैं या जल्दबाजी करते हैं, इस कारण ऐसा घटित होता है।


मंगलवार, मार्च 04, 2025

वे ताजिंदगी आइने में चेहरा नहीं देखते


दोस्तों, बताते हैं कि तिब्बत में एक साधना पद्धति ऐसी भी है, जिसमें लोग ताजिंदगी आइने में अपना चेहरा नहीं देखते। यहां तक कि पानी या तेल की सतह पर भी नजर नहीं डालते कि कहीं उसमें चेहरा न दिखाई दे जाए। विद्वान मानते हैं कि उसके पीछे उनका गहन दर्षन है। वो यह है इस पद्धति में मोक्ष के लिए दुनिया में रहते हुए भी दुनिया के प्रति अनासक्ति की साधना की जाती है। मानसिक स्तर पर दुनिया से संबंध विच्छेद का प्रयास किया जाए। उनका मानना है कि अगर हमें यह पता हो कि हम कैसे दिखते हैं, हमारा चेहरा कैसा है तो उससे भी अटैचमेंट हो सकता है। दुनिया से विरक्त होने में पर्याप्त सफलता मिल भी जाए तो भी आखिर में अपने चेहरे से लगाव बाधक बन सकता है। अपना चेहरा ही मोक्ष में रुकावट बन जाता है। इसके लिए वे पूरी जिंदगी आइने में अपना चेहरा नहीं देखते। है न विलक्षण साधना पद्धति।


सोमवार, मार्च 03, 2025

कौन अधिक खूबसूरत आदमी अथवा औरत?


यही सही है कि आदमी को औरत खूबसूरत दिखती है और औरत को आदमी खूबसूरत नजर आता है, मगर यह आम धारणा है कि निरपेक्ष रूप से देखा जाए तो औरत आदमी की तुलना में अधिक खूबसूरत होती है। मगर पाकिस्तान के मुफ्ती तारीक मसूद कहते हैं कि आदमी में नूर ज्यादा होता है। बेषक खुदा ने औरत को हुस्न दिया है, मगर आदमी को जो जमाल दिया है, उसका दर्जा उंचा है।

कुछ लोग कह सकते हैं कि इस मान्यता के पीछे मौलिक रूप से पुरूशवादी मानसिकता है। चूंकि प्रकृति में पुरूश अधिक मुखर है, इस कारण उसकी धारणा सही प्रतीत होती है। आप देखिए ने औरत की खूबसूरती की बाकायदा नुमाइष होती है। नाइट क्लब्स में औरत का प्रदर्षन हाता है। मजबूरी में या स्वैच्छा से, वह इसके लिए राजी भी है। फैषन षो होते हैं। हालांकि अब पुरूश भी भागीदारी कर रहा है। हो सकता है औरत की मानसिकता इससे भिन्न हो। वह पुरूश को अधिक खूबसूरत करार दे सकती है। दूसरी ओर पाकिस्तान के मुफ्ती तारीक मसूद अपने बयान में इससे इतर राय रखते हैं। वे कहते हैं कि औरत आदमी को और आदमी औरत को खूबसूरत कहेगा ही, लेकिन अगर गैर इंसान अर्थात अन्य मखलूकात से पूछेंगे और अगर वह बता सकता हो तो यही कहेगा कि इंसान में आदमी ज्यादा खूबसूरत होता है। उसकी वजह ये है कि आदमी में जमाल होता है। आदमी में नूर ज्यादा होता है। बेषक खुदा ने औरत को हुस्न दिया है, मगर आदमी को जो जमाल दिया है, उसका दर्जा उंचा है।

दिलचस्प बात है कि ने इंसान के अतिरिक्त अन्य सभी जीव जंतुओं में मादा की बजाय नर को अधिक खूबसूरत बनाया है। आप देखिए कि मोरनी की तुलना में मोर, मुर्गी की तुलना में मुर्गा, घोडी की तुलना में घोडा, बकरी की तुलना में बकरा, षेरनी की तुलना में षेर अधिक खूबसूरत होता है। 

ऐसे में सवाल उठता है कि जब सारी मखलूक में मादा की तुलना में नर ज्यादा खूबसूरत होता है तो इंसान में यह नियम लागू क्यों नहीं होना चाहिए? 

https://www.youtube.com/watch?v=bWqOZEiE_R8&t=26s

महिलाएं अंतिम संस्कार में शामिल क्यों नहीं होती?

हालांकि परिजन के निधन पर विशेष परिस्थितियों में महिलाएं शवयात्रा और अंतिम संस्कार के दौरान श्मशान स्थल पर मौजूद रहती हैं, मगर आमतौर पर केवल पुरुष ही अंत्येष्टि में शामिल होते हैं। महिलाओं के लिए श्मशान स्थल वर्जित होने के पीछे जरूर कोई कारण होंगे। आइये, उन्हें समझने की कोशिश करते हैं। ऐसी मान्यता है कि पुरूशों की तुलना में महिलाएं कोमल हृदय होती हैं। यद्यपि निकट संबंधी के निधन पर पुरूश भी रोते हैं, लेकिन व्यवहार में पाया गया है कि महिलाएं अधिक विलाप करती हैं। अंतिम संस्कार का प्रयोजन ही यह होता है कि मृत आत्मा का षरीर के अतिरिक्त इस जगत से संबंध विच्छेद हो जाए, कपाल क्रिया उसका ही हिस्सा है, लेकिन महिलाओं के रोने की अवस्था में संबध विच्छेद की प्रक्रिया में बाधा आ सकती है। ऐसा माना जाता है कि ष्मषान स्थल पर अषांत मृत आत्माएं विचरण करती रहती हैं, जो कोमल मन वाली महिलाओं में प्रवेष कर सकती हैं। अंतिम संस्कार के दौरान घर सूना न रहे, इसलिए भी महिलाओं को घर पर रहने की सलाह दी जाती है। बदले हालात में अब भाइयों के अभाव में बहिनें अपने माता पिता के निधन पर अर्थी को कंधा देने लगी है, जिसे नारी सषक्तिकरण के रूप में देखा जाता हे, मगर आज भी आम तौर पर महिलाएं अंतिम संस्कार में नहीं जातीं। यह परंपरा पुरूश प्रधान समाज की द्योतक है। महिलाओं ने भी इस व्यवस्था को स्वीकार कर रखा है। हालांकि महिलाओं के ष्मषान स्थल पर जाने पर कोई रोक नहीं है।


https://www.youtube.com/watch?v=mtuY661u6MA


शनिवार, मार्च 01, 2025

सूफी चक्कर नृत्य क्यों करते हैं?

आपने देखा होगा कि बच्चों को खेलते खेलते अपने स्थान पर खडे हो कर चक्कर लगाने की इच्छा होती है। लेकिन हम उसे यह कह कर रोक देते हैं कि आपको चक्कर आ जाएगा। और यह सही भी है। नृत्य के दौरान भी चक्कर लगाया जाता है, लेकिन उतनी ही देर, जब तक चक्कर न आने लग जाए। आपने भी कभी चक्कर लगा कर देखा होगा। चार पांच बार चक्कर लगाने के बाद जैसे ही आप रूकते हैं, सिर घूमने लगता है, सिर चकराने लगता है। आप आंख बंद कर लेते हैं। लेकिन धीरे धीरे चक्कर कम होते होते आप स्थिर हो जाते हैं। निर्विचार होने लगते हैं क्योंकि आप एक केन्द्र पर स्थित हो जाते हैं। बस इसी क्षण ध्यान की हल्की सी झलक दिखाई देती है। इसी सूत्र को गहराई से जान कर सूफियों ने चक्कर नृत्य को इजाद किया। 

आपने देखा होगा कि एक तो वे आंखें बंद रखते हैं। इससे सिर कम चकराता है। यह ठीक वैसा ही है, जैसे घाणी के बैल कर आंखों पर पट्टी बांध दी जाती है, ताकि उसे चक्कर न आएं। दूसरा ये कि सूफी हाथ फैला कर रखते हैं, ताकि षरीर का संतुलन बना रहे। साथ ही ऐसा संगीत बजाया जाता है, जिसे सुनने से षक्ति मिलती है। उर्जा मिलती है। वस्तुतः इसके लिए अभ्यास करना होता है। अभ्यास से चक्कर लगाने का समय बढाया जाता है। जितने अधिक चक्कर लगाए जाते हैं, स्थिर होने पर उसी के अनुपात में ध्यान बना रहता है।

विकीपीडिया के अनुसार सूफी चक्कर शारीरिक रूप से सक्रिय ध्यान का एक रूप है, जो कुछ सूफी समूहों के बीच उत्पन्न हुआ है और जो अभी भी मेवलेवी आदेश के सूफी दरवेशों और अन्य आदेशों जैसे रिफाई-मारुफी द्वारा अभ्यास किया जाता है।

जानकारी के अनुसार चक्करदार दरवेशों की स्थापना रहस्यवादी कवि रूमी ने 13वीं शताब्दी में की थी। प्रारंभ में सूफी बिरादरी को संगठित किया गया था, जहां सदस्यों ने एक शेख या गुरु के साथ विश्वास स्थापित करने के लिए सेवा में निर्धारित अनुशासनों का पालन किया था। ऐसी बिरादरी के सदस्य को फारसी दरवेश कहा जाता है। ये तुर्क धार्मिक जीवन की एक इस्लामी अभिव्यक्ति के आयोजन के लिए जिम्मेदार थे, जो अक्सर स्वतंत्र संतों द्वारा स्थापित किया गया था। एक दरवेश कई अनुष्ठानों का अभ्यास करता है, जिनमें से प्राथमिक है जिक्र, अल्लाह को याद करना। 

एक तथ्य यह भी है कि घूमते हुए उसकी भुजाएं खुली हैं उसका दाहिना हाथ आकाश की ओर निर्देशित है, जो ईश्वर का उपकार प्राप्त करने के लिए तैयार है उसका बायाँ हाथ, जिस पर उसकी आँखें टिकी हैं, पृथ्वी की ओर मुड़ा हुआ है। वह भगवान के आध्यात्मिक उपहार को उन लोगों तक पहुँचाता है जो उसको देख रहे हैं। एक लंबी आस्तीन वाली जैकेट, एक बेल्ट, और एक काला ओवरकोट या खिरका जिसे भंवर शुरू होने से पहले हटा दिया जाता है। जैसा कि अनुष्ठान नृत्य शुरू होता है, दरवेश सिर के चारों ओर लिपटी एक पगड़ी के अलावा एक फेल्ट टोपी, एक सिक्का पहनता है, जो मेवलेवी आदेश का एक ट्रेडमार्क है। 

शेख नाचने की जगह के सबसे सम्मानित कोने में खड़ा होता है, और दरवेश तीन बार उसके पास से गुजरते हैं, हर बार अभिवादन का आदान-प्रदान करते हैं, जब तक कि परिक्रमा शुरू नहीं हो जाती। रोटेशन स्वयं बाएं पैर पर होता है, रोटेशन का केंद्र बाएं पैर की गेंद होती है और पैर की पूरी सतह फर्श के संपर्क में रहती है। रोटेशन के लिए प्रेरणा दाहिने पैर द्वारा प्रदान की जाती है, पूर्ण 360-डिग्री कदम में। यदि एक दरवेश बहुत अधिक मुग्ध हो जाता है, तो एक अन्य सूफी, जो व्यवस्थित प्रदर्शन का प्रभारी होता है, धीरे-धीरे अपने आंदोलन को रोकने के लिए अपनी फ्रॉक को छूएगा। दरवेशों का नृत्य इस्लाम में रहस्यमय जीवन की सबसे प्रभावशाली विशेषताओं में से एक है , और इसके साथ संगीत अति सुंदर है, जो पैगंबर के सम्मान में महान भजन नात-ए शरीफ से शुरू होता है और तुर्की में गाए जाने वाले छोटे, उत्साही गीतों के साथ समाप्त होता है। 

https://www.youtube.com/watch?v=XZxcXCZlldg