तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

सोमवार, अगस्त 26, 2024

चक्की उलटी घुमाने पर लौट आता है खोया आदमी?


हमारे यहां दैनिक जीवन में कई प्रकार के टोटके प्रचलन में हैं। उनमें से एक दिलचस्प और उपयोगी टोटका आपकी नजर पेश है। यदि परिवार का कोई सदस्य खो जाए अथवा नाराज हो कर घर छोड़ कर चला जाए और उसका कोई पता न लग रहा हो तो उसे वापस बुलाने के लिए एक टोटका किया जाता है। किया ये जाता है कि घर में रखी आटे की चक्की, जिसे मारवाड़ी में घटूला व सिंधी में झंड कहा जाता है, उसे उलटा घुमाया जाता है। सलाह दी जाती है कि परिवार के जिस भी व्यक्ति को समय मिले, वह चक्की को कुछ समय तक उलटा घुमाता रहे। ऐसा बार-बार किया जाए। ऐसा करने पर घर से गया हुआ व्यक्ति लौट कर आ जाता है। इस टोटके का भेद समझने की कोशिश की जाए तो यही प्रतीत होता है, जैसे ही चक्की को उलटा घुमाते हैं तो वहां निर्मित विपरीत शक्ति घर से गए हुए व्यक्ति को अपनी ओर खींचती है। उसके मन में घर लौटने की भावना उत्पन्न करती है। खिंचाव अधिक होने पर वह लौट ही आता है। असल में चक्की चक्र का ही एक रूप है। चक्र को बायें से दांये घुमाया जाता है, जो कि प्रगति का द्योतक है। घड़ी की सुइयां भी दाहिनी ओर घूमती हैं। दाहिनी ओर घूमने को अंग्रेजी में क्लॉक वाइज कहा जाता है। प्रसंगवष बता दें कि मंदिर में स्थापित मूर्ति अथवा किसी पेड़ की परिक्रमा क्लॉक वाइज की जाती है। आपको जानकारी होगी कि स्वस्तिक का निशान भी क्लॉक वाइज बनाया जाता है। यहां तक कि घर की सीढिय़ां भी क्लॉक वाइज बनाई जाती हैं। ऐसा पाया गया है कि जिन घरों में सीढिय़ां एंटी क्लॉक वाइज बनी होती हैं, वहां कई तरह की परेशानियां होती हैं। 

बुधवार, अगस्त 21, 2024

सुकून संन्यास में भी नहीं है?

कुछ विद्वानों को आपने यह कहते सुना होगा कि वानप्रस्थ व संन्यास आश्रम में जितनी तपस्या है, उससे कहीं अधिक तपस्या गृहस्थ में है। असल तपस्या गृहस्थ में ही है। वह इसलिए कि संसार में बहुत संघर्श है, समस्याएं हैं, अहम का टकराव है, वर्चस्व की होडा होडी है। तलवार की धार पर चलने के समान है गृहस्थ। अर्थात यहां संतुलन के साथ सफल होने में बहुत तप करना होता है। इस धारणा से ऐसा प्रतीत होता है कि वानप्रस्थ व संन्यास आश्रम में बहुत आनंद है, बहुत सुकून है, अध्यात्मिक दुनिया चिंता से रहित है। वस्तुतः ऐसा है नहीं। रूहानी दुनिया में भौतिक सुख सुविधाओं के अभाव की वजह से जो कष्ट हैं, जो तप है, उससे कहीं अधिक तप है, विभिन्न षक्तियों के बीच सामंजस्य बैठाना। वहां भी तथाकथित दिव्य षक्तियां एक दूसरे को दबाने की कोषिष करती हैं। आसुरी षक्तियों से तो मुकाबला करना होता ही है, दैवीय षक्तियों के बीच भी कडी प्रतिस्पर्धा है। संन्यासी का भी एक तरह का साम्राज्य होता है। जिसके जितने अधिक षिश्य, अनुयायी, वह उतना ही बडा संन्यासी। वहां बस नाते रिष्तेदार नहीं, मगर उससे अधिक भीड होती है षिश्यों की, अनुयाइयों की। अहम और भी घनीभूत हो जाता है। गृहस्थ की तरह ही अहम की एशणा है। तभी तो कभी कोई ऋशि घोर तपस्या करता है तो इंद्र को अपना आसन हिलता नजर आता है और वे उसकी तपस्या को भंग करने की कोषिष करते हैं।


सोमवार, अगस्त 19, 2024

श्रीकृष्ण भी तो अपने क्लोन बनाते थे


आजकल ह्यूमन क्लोनिंग अर्थात मानव प्रतिरूपण की बहुत चर्चा है। यानि किसी भी मानव का प्रतिरूप बनाया जा सकता है। इसकी उपयोगिता और दुरूपयोग पर बहस छिडी हुई है। नैतिकता-अनैतिकता पर सवाल उठ रहे हैं।

ऐसा नहीं है कि वर्तमान विज्ञान ने ही इसका अविश्कार किया है। हमारी सनातन संस्कृति में भी इसका स्पश्ट उल्लेख है। हिन्दू पौराणिक कथाओं में रक्तबीज एक असुर था, जिसने शुम्भ-निशुम्भ के साथ मिल कर देवी दुर्गा और काली देवी के साथ युद्ध किया। वह एक ऐसा दैत्य था, जिसे भगवान शिव से वरदान प्राप्त था कि जब जब उसके रक्त की बूंद धरती पर गिरेगी तब तब हर बूंद से एक नया रक्तबीज जन्म ले लेगा, जो बल, शरीर और रूप से मुख्य रक्तबीज के समान ही होगा। यानि रक्त बीज एक तरह का क्लोन था। बस फर्क ये है कि उसके निर्माण की विधा वर्तमान विज्ञान से भिन्न थी। आपने यह भी सुना पढा होगा कि भगवान श्रीकृश्ण एक साथ अनेक गोपियों के साथ रासलीला करते थे तो प्रत्येक गोपी के साथ होते थे। हर गोपी को लगता था कि श्रीकृश्ण उसके साथ हैं। वह क्या था? कहीं वह प्रतिरूपण की विधा तो नहीं? यानि श्रीकृश्ण एक साथ अपने अनेक क्लोन बनाने में समर्थ थे। भगवान श्रीकश्ण का अनेक गोपियों के साथ एक ही समय में अलग अलग रास करना उनकी क्लोनिंग ही तो रही होगी।