तीसरी आंख

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रविवार, जनवरी 22, 2017

सुमेधानंद क्या, वसुंधरा तक लाचार हैं संघ के आगे?

सीकर से भाजपा के सांसद सुमेधानन्द सरस्वती का एक कथित ऑडियो सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर वायरल हुआ है, जिसमें सांसद सुमेधानन्द सरस्वती संघ के आगे लाचार होते सुनाई दे रहे हैं। इतना ही नहीं, ऑडियो में सांसद ने यहां तक कह डाला कि संघ के आगे तो राज्य की मुख्यमंत्री तक भी नतमस्तक है। यह ऑडियो में एक कॉलेज लेक्चरर श्रीधर शर्मा और सांसद सुमेधानन्द सरस्वती के बीच हुई बातचीत का बताया जा रहा है, जिसमें श्रीधर शर्मा अपने स्थानांतरण को लेकर सांसद से बात करते हुए सुनाई दे रहे हैं।
ऑडियो की सच्चाई क्या है अथवा क्या वह सुमेधानंद की ही आवाज है, इस पर न जाते हुए विषय वस्तु को देखें तो वह ठीक ही प्रतीत होती है। सुमेधानंद क्या, वसुंधरा राजे तक संघ के आगे नतमस्तक हैं। दिलचस्प बात ये है कि सुमेधानंद न केवल अपनी लाचारी बताई, अपितु वसुंधरा की स्थिति का भी बयान कर दिया। संयोग से चंद दिन पहले ही यह सुस्थापित हो गया था कि वसुंधरा का रिमोट कंट्रोल भी संघ के ही हाथ है। किसी समय राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से संबंधों को सिरे से नकारने वाली भाजपा को संघ ही संचालित करता है, इसका ताजा उदाहरण अजमेर में देखने को मिला। भले ही आधिकारिक तौर पर न तो भाजपा ने कुछ कहा, न ही संघ की ओर से कोई बयान आया, मगर सारे अखबार इसी बात से अटे पड़े थे कि संघ के यहां हुए कैंप में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया ने हाजिरी दी। यहां आ कर उन्हें सरकार के तीन साल के कामकाज का ब्यौरा दिया। इतना ही नहीं उन्हें यहां सरकार की खामियों को भी गिनाया गया। यानि की यह पूरी तौर से साफ हो गया कि संघ इतनी बड़ी ताकत है, जिसके आगे एक राज्य के मुख्यमंत्री को भी पेश होना पड़ता है। निश्चित रूप से इससे मुख्यमंत्री पद की गरिमा गिरी है, भाजपा व संघ चाहे इसे स्वीकार करें या नहीं।
चलो, ये संघ और भाजपा के आपसी संबंधों और समझ का मामला है, उनका आतंरिक मामला है, मगर क्या इस घटना से मुख्यमंत्री जैसे गरिमा वाले पद की संघ के आगे कितनी बिसात है, यह उजागर नहीं हुआ है? संघ चाहता तो जयपुर में ही किसी गुप्त स्थान पर वसुंधरा राजे को बुला कर उनसे सरकार की परफोरमेंस पूछ सकता था। गोपनीय स्थान पर दिशा-निर्देश दे सकता था। क्या उसके लिए अजमेर में आयोजित हुए कैंप में बुलाना जरूरी था।? संघ और भाजपा के पास सफाई देने को हालांकि कुछ है नहीं, मगर ये कह सकते हैं कि कौन कहता है कि मुख्यमंत्री की हाजिरी लगवाई गई। मगर जब पूरा मीडिया एक स्वर से यह कह रहा था कि मुख्यमंत्री को जवाब तलब किया गया, तो क्या उनकी ओर से उसका खंडन नहीं किया जाना चाहिए था। कहीं ऐसा तो नहीं कि ऐसा जानबूझकर किया गया, ताकि भाजपा नेताओं व कार्यकर्ताओं में यह संदेश जाए कि संघ ही उनका आला कमान है। हालांकि भाजपा नेता व कार्यकर्ता तो अच्छी तरह से जानते हैं कि किस प्रकार संघ का पार्टी में दखल है, मगर यही तथ्य जब सार्वजनिक होता है तो यह सवाल उठना लाजिमी है कि संघ को भाजपा का रिमोट कंट्रोल कहे जाने पर दोनों को क्यों ऐतराज होता है?
अजमेर में हुई इस घटना का एक पहलू ये भी है कि जब से केन्द्र में भाजपा की स्पष्ट बहुमत वाली सरकार आई है, संघ पर शिंकजा और कस गया है। किसी जमाने में सीधे हाई कमान से टक्कर लेने वाली वसुंधरा राजे अब कितनी कमजोर हैं, यह साफ परिलक्षित होता है। और यही वजह है कि जैसा कार्यकाल पिछला रहा, उसकी तुलना में मौजूदा कार्यकाल कमतर माना जा रहा है। सच तो ये है कि सरकार में राजनीतिक नियुक्तियों को लेकर संघ का इतना दखल है कि तीन साल बीत जाने के बाद भी कई महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्यिां अटकी हुई हैं। ऐसे में भला सरकार का परफोरमेंस कैसे बेहतर रह सकता है, यह अपने आप स्पष्ट हो जाता है।
बात अगर सुमेधानंद के वायलर हुए ऑडियो की करें तो उससे यह तक उजागर हो रहा है कि राजनीतिक नियुक्तियां क्या, पोस्टिंग तक में संघ की चलती है। ऑडियो की बातचीत में श्रीधर शर्मा ने सांसद को अपनी पीड़ा सुनाई तो सांसद ने कहा कि संघ जिसको चाहता है, वहीं मनमाफिक पोस्टिंग मिलती है, बिना संघ के इस जमाने में स्थानांतरण और मनमाफिक पोस्टिंग नहीं ली जा सकती।
-तेजवानी गिरधर
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