तीसरी आंख

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शुक्रवार, जनवरी 20, 2017

बिहार चुनाव से सबक नहीं लिया संघ ने?

घोड़ी चढऩे के दिन तेज जुलाब नहीं लेना चाहिये, क्या इतनी सी बात वैद्य जी को नहीं पता? 
ऐसा प्रतीत होता है कि बिहार चुनाव के परिणाम से संघ ने सबक नहीं लिया है। तब संघ प्रमुख मोहन भागवत ने ऐन चुनाव प्रचार के दौरान अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति के आरक्षण को खत्म करने का सुझाव दे कर भाजपा के लिए एक मुसीबत पैदा कर दी थी। हालांकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भरपूर कोशिश की कि इस बयान से होने वाले नुकसान को रोका जाए और आरक्षण की जबरदस्त पैरवी की, मगर संघ का बयान आम जनता में इतना गहरे पैठ गया कि उसे विरोधियों ने भी जम कर भुनाया और भाजपा चारों खाने चित हो गई।
अब एक बार फिर वही स्थिति संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख मनमोहन वैद्य ने पैदा कर दी है। उत्तर प्रदेश जैसे सर्वाधिक राजनीतिक महत्वाकांक्षी राज्य सहित पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों की घोषणा के बाद गरम हुए राजनीतिक माहौल के बीच उन्होंने जयपुर में लिटरेचर फेस्टिवल में भाषण देते हुए कहा कि आरक्षण को खत्म करना चाहिए और इसकी जगह ऐसी व्यवस्था लाने की जरूरत है, जिसमें सबको समान अवसर और शिक्षा मिले। वैद्य ने कहा कि अगर लंबे समय तक आरक्षण जारी रहा तो यह अलगाववाद की तरफ ले जाएगा। उन्होंने कहा कि किसी भी राष्ट्र में हमेशा के लिए ऐसे आरक्षण की व्यवस्था का होना अच्छी बात नहीं है। सबको समान अवसर और शिक्षा मिले।
जैसे ही उनका बयान आया तो आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने पहले की तरह ही इसे तुरंत लपक लिया और वैद्य की टिप्पणी पर कड़ी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि आरक्षण का अधिकार छीनना किसी के बस का नहीं है। लालू ने कहा कि लगता है बीजेपी ने बिहार चुनाव से कोई सबक नहीं लिया है। लालू प्रसाद यादव ने एक के बाद एक कई ट्वीट कर संघ और पीएम मोदी पर हमला बोला। आरजेडी सुप्रीमो ने कहा कि आरक्षण संविधान प्रदत्त अधिकार है।इसे छीनने की बात करने वालों को औकात में लाना मेरे वर्गों को आता है।
सवाल उठता है कि संघ की ओर से ऐन चुनाव के वक्त ऐसी हरकत क्यों कर की गई? क्या वैद्य के मुंह से ऐसा बयान प्रसंगवश निकल गया या फिर यह सोची समझी रणनीति का हिस्सा है? क्या उन्हें इस बात अंदाजा नहीं कि इस प्रकार का बयान पांच राज्यों, विशेष रूप से उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनाव में भाजपा को कितना नुकसान पहुंचा सकता है? यहां उल्लेखनीय है कि दिल्ली और बिहार में बुरी तरह से हारने के बाद भाजपा के लिए उत्तरप्रदेश का चुनाव भाजपा के लिए अत्यंत ही महत्वपूर्ण है, जो न केवल मोदी ब्रांड को बरकरार रखने के लिए जरूरी है, अपितु आगे चल कर राज्यसभा में पार्टी की स्थिति मजबूत करने के लिए भी अहम है। बावजूद इसके संघ ने ठीक चुनाव से पहले यह बयान जारी कर दिया। उनके इस बयान के बाद भाजपा के कर्ताधर्ताओं ने जहां अपना सिर धुन लिया होगा, वहीं सोशल मीडिया पर इसका जम कर उपहास किया जा रहा है। एक सज्जन ने लिखा है कि घोड़ी चढऩे के दिन तेज जुलाब नहीं लेना चाहिये, क्या इतनी सी बात वैद्य जी को नहीं पता? बड़े आए राजवैद्य। एक और टिप्पणी में उन्होंने लिखा कि ये जमाल घोटा चुनाव के ठीक पहले लेना किस वेद में लिखा है? समझा जा सकता है कि ये संघ के प्रचार प्रमुख पर कितना बड़ा तंज है। आम आदमी भी समझ सकता है कि संघ ने चलते रस्ते भाजपा के लिए कितनी बड़ी मुसीबत पैदा कर दी है। ऐसे में सवाल उठता है कि बौद्धिक देने में सिद्धहस्त संघ के जिम्मेदार पदाधिकारी ने ये हरकत क्यों की? राजनीतिक पंडित भी माथापच्ची कर रहे होंगे कि आखिर यह संघ के किस एजेंडे का हिस्सा है?
-तेजवानी गिरधर
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