तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

गुरुवार, मार्च 02, 2017

सत्ता पक्ष के विधायकों का गुस्सा, यानि जनाक्रोष की घंटी

किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में सभी को संतुष्ट नहीं किया जा सकता। इस कारण कोई भी सरकार कितना भी जनहित का ध्यान रखे, असंतोष बना ही रहता है। रहा सवाल विपक्ष का तो वह उद्देश्य विशेष से भी विरोध कर सकता है, जो जनाक्रोष मान लिया जाता है, लेकिन अगर सत्ता पक्ष ही विपक्ष की भूमिका अदा करने लगे तो यह शर्तिया मान लिया जाना चाहिए कि जनता में वाकई असंतोष है। राजस्थान विधानसभा सत्र में प्रश्नकाल के दौरान सत्ता पक्ष के ही विधायकों का मंत्रियों का घेरना इसका ताजा उदाहरण है।
असल में सत्ता पक्ष के विधायक आम तौर पर अनुशासन के कारण चुप रहते हैं। यदि कोई विशेष अपेक्षा है भी तो संबंधित मंत्री से व्यक्तिगत रूप से मिल कर उसका समाधान करवा लेते हैं। चूंकि विपक्ष का तो धर्म ही है सरकार को घेरना तो वे हंगामा करते ही हैं। लेकिन जब सत्ता पक्ष के विधायक पार्टी की नैतिक लाइन तोड़ कर सरकार पर आक्रमण करते हैं, इसका अर्थ ये है कि जनता में इतना गुस्सा है कि उन्हें बोलना पड़ ही रहा है। आखिरकार जिस क्षेत्र से चुन कर आते हैं, वहां की जनता के प्रति जवाबदेह होते हैं। आगामी चुनाव में दो साल से भी कम समय रह गया है। ऐसे में विधायक अपने अपने क्षेत्र में सक्रिय हो गए हैं। जाहिर तौर पर जनआंकांक्षाएं उनकी नजर में आ रही हैं। जनता में पेठ रखने के लिए वे विधानसभा में सक्रिय दिखाई देना चाहते हैं। वे जानते हैं कि अगर जनता की आवाज नहीं उठाई तो चुनाव में जनता उलाहना देगी कि आपने हमारी फिक्र क्यों नहीं की। एक ओर पार्टी लाइन है तो दूसरी ओर जनता में दुबारा जाने पर होने वाली परेशानी। स्वाभाविक रूप से उन्हें जनता की अपेक्षाओं को तवज्जो देनी पड़ रही है। इसका परिणाम ये है कि जनता का गुस्सा वे विधानसभा में निकाल रहे हैं। प्रश्रकाल में भाजपा के ही विधायकों का अपने मंत्रियों से सवाल जवाब करना इस बात का सबूत है कि वे मजबूर हैं कि जनता की आवाज बन कर सामने आएं। इसका यह सीधा सा अर्थ है कि जनता में सरकार के प्रति असंतोष है। इसे मुख्यमंत्री व भाजपा संगठन को समझना होगा। बेशक अपने ही विधायकों के इस रवैये से सरकार को तकलीफ हो रही होगी, मगर उसे यह भी समझना होगा कि वे खतरे की घंटी बजा रहे हैं। अगर सरकार ने अपने कामकाज को नहीं सुधारा तो भाजपा को आगामी चुनाव में दिक्कत पेश आ सकती है।
इस विषय का एक पहलु ये है कि चूंकि वर्तमान में राजस्थान विधानसभा में कांग्रेस के विधायकों की संख्या बहुत कम है, इस कारण उनकी आवाज में वह दम नहीं आ पाता, जो कि होना चाहिए। दूसरी ओर चूंकि इस बार भाजपा बंपर बहुमत के साथ विधानसभा में मौजूद है, इस कारण उन्हीं में से कुछ का रवैया ऐसा होने लगा है, मानो वे विपक्ष की भूमिका में हैं। उसकी एक खास वजह है। वो ये कि किसी भी मुख्यमंत्री के लिए इतने सारे पार्टी विधायकों को संतुष्ट रख पाना नितांत मुश्किल है। जैसे हर प्रभावशाली विधायक मंत्री बनना चाहता है, मगर चूंकि मंत्रीमंडल में सदस्यों की संख्या अनुपात के हिसाब से तय है, ऐसे में मंत्री नहीं बन पाए ऐसे विधायक नाराज चलते हैं। इसके अतिरिक्त हर विधायक को बजट अथवा राजनीतिक नियुक्ति के मामले में संतुष्ट नहीं किया जा सकता, ऐसे में वंचित विधायक भी रुष्ठ रहते हैं। वर्तमान में विधानसभा में कमोबेश स्थिति यही है। मुख्यमंत्री अनेक राजनीतिक नियुक्तियां तीन साल बाद भी नहीं कर पाई हैं, जिनमें विधायकों की सिफारिशें लगी हुई हैं। वे सभी विधायक नाराज हैं।
-तेजवानी गिरधर

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