खांटी कांग्रेसी नेता रहे नटवर सिंह ने अपनी किताब के जरिए जिस प्रकार सोनिया-राहुल की निजी जानकारियां सार्वजनिक की हैं, उससे यकायक यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि क्या राजनीति में इस प्रकार विमुख होने के बाद किसी की निजी जिंदगी का खुलासा किया जाना उचित है, जिससे आपके अंतरंग संबंध रहे हों? क्या इसे सामान्य नैतिकता की सीमा लांघने के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए? जिस परिवार के रहमो-करम पर आप इतनी ऊंचाइयां छू पाए, उससे अलग होने के बाद सारी मर्यादाएं ताक पर रख देनी चाहिए?
हो सकता है कि नटवर सिंह को लग रहा हो कि उन्होंने कोई बड़ा मीर मार लिया है, मगर इससे राजनीतिक लोगों का चरित्र किस हद तक गिर सकता है, उसका तो अनुमान होता ही है। ऐसा करके वे भले ही कांग्रेस विरोधियों की नजर में चढ़ गए हों, और उसका ईनाम भी पा जाएं, मगर आमजन की नजर में वे उच्च राजनीतिक नेता होते हुए भी निम्न स्तरीय हरकत करने वाले माने जाएंगे। असल में नटवर सिंह ने कोई नई खोज नहीं की है, जिसके लिए खुद की पीठ थपथपाएं। यदि उन्हें सोनिया के बारे में इतनी अंतरंग जानकारी है तो वह इसीलिए ना कि वे उनके करीब थे, वरना उन्हें कैसे पता लगा कि राहुल ने सोनिया के प्रधानमंत्री बनने पर उनकी हत्या किए जाने की आशंका के चलते प्रधानमंत्री पद न ग्रहण करने की जिद की थी। स्वाभाविक रूप से घनिष्ठ संबंधों के चलते इस विषय पर सोनिया व राहुल ने उनके चर्चा की थी। उन्हें ये अनुमान थोड़े ही रहा होगा कि भविष्य में यदि संबंध खराब होंगे तो नटवर सिंह इस तरह से पीठ में छुरा घोंपने को आतुर हो जाएंगे। अंतरंग संबंधों का एक और उदाहरण भी हमारे सामने है। फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन के बारे में सब को पता है कि उनका परिवार नेहरू परिवार के कितना करीब था। वे स्वयं भी राजीव गांधी के करीबी रहे। बाकायदा कांग्रेस के टिकट पर सांसद भी बने। मगर जब संबंध टूटे तो उसके बाद शायद ही उन्होंने निजी जिंदगी का बहुत खुलासा किया हो। जाहिर सी बात है कि वे राजनीतिक शख्स नहीं हैं, इस कारण उनका दिमाग इस ओर नहीं चला। इससे यह स्थापित होता है कि राजनीति इतनी गंदी चीज हो चली है, जिसमें किसी पर भी भरोसा नहीं किया जा सकता। नटवर सिंह के खुलासे से सोनिया-राहुल और कांग्रेस को क्या परेशानी आएगी, ये तो पता नहीं मगर फिलवक्त लोगों को चटकारे लेने का मौका तो मिल ही गया है।
सिक्के का दूसरा पहलु ये भी है कि जब भी कोई ऊंचाइयों पर पहुंचता है, और खास कर जब उसका जीवन सार्वजनिक रूप में महत्व रखता है तो उसकी हर बात में लोगों की रुचि होती ही है। नैतिक रूप से भले ही ये ठीक नहीं लगता, मगर ऊंचे लोगों की निजी बातें अमूमन जगजाहिर हो ही जाती है। और स्वाभाविक रूप से उसे उनके निजी लोग की जगजाहिर किया करते हैं।
असल में नटवर सिंह ने जानबूझ कर यह सब कुछ किया है। उनका मकसद है कि किसी भी रूप में कांग्रेस से निकाल जाने के बाद उसका बदला लिया जाए। राजनीति के जानकार इसे इस रूप में लेते हैं कि छाती पर शहीदी तमगा और विचार के तौर पर त्याग का मुकुट लगा कर ही सोनिया गांधी ने कांग्रेस को खड़ा किया, सत्ता तक पहुंचाया लेकिन नटवर सिंह ने जिस तरह राजीव गांधी की हत्या के साथ श्रीलंका को लेकर राजीव गांधी की फेल डिप्लोमेसी और सोनिया गांधी के त्याग के पीछे बेटे राहुल गांधी को मां की मौत का खौफ के होने की बात कही है, उसने गांधी परिवार के उस प्रभाव को भी खत्म नहीं तो कम तो किया ही है। अब तक इसी प्रभाव के आसरे कांग्रेस खड़ी रही है। नटवर ने कांग्रेस की उस राजीनिति में भी सेंध लगा दी है, जो बीते दस बरस से तमाम राजनीतिक दलों के नेताओं की तुलना में सोनिया गांधी को अलग खड़ा करती रही।
ऐसे में ये सवाल उठता है कि क्या नटवर के खुलासे के बाद सोनिया का आभा मंडल टूट जाएगा? क्या फिर उस पर कुछ खास फर्क नहीं पड़ेगा? यदि टूटा तो लौटेगा कैसे? क्या सोनिया के किताब लिखने से वह वापस जुड़ पाएगा? सवाल ये भी कि क्या सोनिया की राजनीतिक साख यहां खत्म होती है और अब कांग्रेस को तुरुप का पत्ता प्रियंका गांधी को चलने का वक्त आ गया है। या फिर राहुल गांधी को अब कहीं ज्यादा परिपक्व तरीके से सामने आकर उस राजनीतिक लकीर को आगे बढ़ाना होगा, जहां उनके कहने पर सोनिया गांधी पीएम नहीं बनी और राहुल के खौफ को अपनी आत्मा की आवाज के आसरे सोनिया गांधी ने त्याग की परिभाषा गढ़ी।
-तेजवानी गिरधर
हो सकता है कि नटवर सिंह को लग रहा हो कि उन्होंने कोई बड़ा मीर मार लिया है, मगर इससे राजनीतिक लोगों का चरित्र किस हद तक गिर सकता है, उसका तो अनुमान होता ही है। ऐसा करके वे भले ही कांग्रेस विरोधियों की नजर में चढ़ गए हों, और उसका ईनाम भी पा जाएं, मगर आमजन की नजर में वे उच्च राजनीतिक नेता होते हुए भी निम्न स्तरीय हरकत करने वाले माने जाएंगे। असल में नटवर सिंह ने कोई नई खोज नहीं की है, जिसके लिए खुद की पीठ थपथपाएं। यदि उन्हें सोनिया के बारे में इतनी अंतरंग जानकारी है तो वह इसीलिए ना कि वे उनके करीब थे, वरना उन्हें कैसे पता लगा कि राहुल ने सोनिया के प्रधानमंत्री बनने पर उनकी हत्या किए जाने की आशंका के चलते प्रधानमंत्री पद न ग्रहण करने की जिद की थी। स्वाभाविक रूप से घनिष्ठ संबंधों के चलते इस विषय पर सोनिया व राहुल ने उनके चर्चा की थी। उन्हें ये अनुमान थोड़े ही रहा होगा कि भविष्य में यदि संबंध खराब होंगे तो नटवर सिंह इस तरह से पीठ में छुरा घोंपने को आतुर हो जाएंगे। अंतरंग संबंधों का एक और उदाहरण भी हमारे सामने है। फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन के बारे में सब को पता है कि उनका परिवार नेहरू परिवार के कितना करीब था। वे स्वयं भी राजीव गांधी के करीबी रहे। बाकायदा कांग्रेस के टिकट पर सांसद भी बने। मगर जब संबंध टूटे तो उसके बाद शायद ही उन्होंने निजी जिंदगी का बहुत खुलासा किया हो। जाहिर सी बात है कि वे राजनीतिक शख्स नहीं हैं, इस कारण उनका दिमाग इस ओर नहीं चला। इससे यह स्थापित होता है कि राजनीति इतनी गंदी चीज हो चली है, जिसमें किसी पर भी भरोसा नहीं किया जा सकता। नटवर सिंह के खुलासे से सोनिया-राहुल और कांग्रेस को क्या परेशानी आएगी, ये तो पता नहीं मगर फिलवक्त लोगों को चटकारे लेने का मौका तो मिल ही गया है।
सिक्के का दूसरा पहलु ये भी है कि जब भी कोई ऊंचाइयों पर पहुंचता है, और खास कर जब उसका जीवन सार्वजनिक रूप में महत्व रखता है तो उसकी हर बात में लोगों की रुचि होती ही है। नैतिक रूप से भले ही ये ठीक नहीं लगता, मगर ऊंचे लोगों की निजी बातें अमूमन जगजाहिर हो ही जाती है। और स्वाभाविक रूप से उसे उनके निजी लोग की जगजाहिर किया करते हैं।
असल में नटवर सिंह ने जानबूझ कर यह सब कुछ किया है। उनका मकसद है कि किसी भी रूप में कांग्रेस से निकाल जाने के बाद उसका बदला लिया जाए। राजनीति के जानकार इसे इस रूप में लेते हैं कि छाती पर शहीदी तमगा और विचार के तौर पर त्याग का मुकुट लगा कर ही सोनिया गांधी ने कांग्रेस को खड़ा किया, सत्ता तक पहुंचाया लेकिन नटवर सिंह ने जिस तरह राजीव गांधी की हत्या के साथ श्रीलंका को लेकर राजीव गांधी की फेल डिप्लोमेसी और सोनिया गांधी के त्याग के पीछे बेटे राहुल गांधी को मां की मौत का खौफ के होने की बात कही है, उसने गांधी परिवार के उस प्रभाव को भी खत्म नहीं तो कम तो किया ही है। अब तक इसी प्रभाव के आसरे कांग्रेस खड़ी रही है। नटवर ने कांग्रेस की उस राजीनिति में भी सेंध लगा दी है, जो बीते दस बरस से तमाम राजनीतिक दलों के नेताओं की तुलना में सोनिया गांधी को अलग खड़ा करती रही।
ऐसे में ये सवाल उठता है कि क्या नटवर के खुलासे के बाद सोनिया का आभा मंडल टूट जाएगा? क्या फिर उस पर कुछ खास फर्क नहीं पड़ेगा? यदि टूटा तो लौटेगा कैसे? क्या सोनिया के किताब लिखने से वह वापस जुड़ पाएगा? सवाल ये भी कि क्या सोनिया की राजनीतिक साख यहां खत्म होती है और अब कांग्रेस को तुरुप का पत्ता प्रियंका गांधी को चलने का वक्त आ गया है। या फिर राहुल गांधी को अब कहीं ज्यादा परिपक्व तरीके से सामने आकर उस राजनीतिक लकीर को आगे बढ़ाना होगा, जहां उनके कहने पर सोनिया गांधी पीएम नहीं बनी और राहुल के खौफ को अपनी आत्मा की आवाज के आसरे सोनिया गांधी ने त्याग की परिभाषा गढ़ी।
-तेजवानी गिरधर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें