तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

गुरुवार, अक्तूबर 18, 2012

इतनी जल्दी हवा कैसे निकल गई खेमका की?


कांग्रेस सुप्रीमो श्रीमती सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा के मामले में मीडिया के केमरों की चकाचौंध से चुंधियाए वरिष्ठ आईएएस डॉ. अशोक खेमका अपने एक दुस्साहस और बेबाक बयान की वजह से रातों-रात हीरो तो बन गए, मगर जैसे ही उन्होंने धरातल को देखा तो उनकी हवा निकल गई। मुख्यमंत्री की घुड़की और अपने खिलाफ तीन सीनियर अफसरों की जांच कमेटी बैठने के बाद वे घबरा गए और मुख्य सचिव पी.के.चौधरी से मिलने के बाद उन्होंने कहा है कि उन्हें बीस साल की नौकरी में हुए चालीसवें तबादले पर अब कोई ऐतराज नहीं है। सवाल ये उठता है कि जिन खेमका पर अरविंद केजरीवाल की छाया आ जाने का आभार हुआ था, वे यकायक पलटी कैसे खा गए?
कानाफूसी है कि तबादला आदेश मिलने के बाद जोश में आ कर उन्होंने वाड्रा-डीएलएफ डील को रद्द तो कर दिया, मगर बाद में उन्हें ख्याल आया कि वे ऐसा नहीं कर सकते थे। तबादला आदेश मिलने के बाद व रिलीव होने से ठीक पहले इतना महत्वपूर्ण आदेश जारी करना जाहिर करता है कि उन्होंने ऐसा दुर्भावना से किया, जिसकी जांच पर वे फंस जाते, सो बेकफुट पर आना ही मुनासिब समझा।
लोग समझ रहे थे कि खेमका बड़े दिलेर अफसर हैं, पर वे असल में थे डरपोक। इस बारे जर्नलिस्ट कम्युनिटी डॉट कॉम में पत्रकार सतीश त्यागी के हवाले से छपा है कि कई साल पहले वे विश्वविद्यालय में रजिस्ट्रार पद पर तैनात थे और तब कुलपति ओ पी कौशिक थे, जिन्होंने खेमका के सारे खम निकल कर सीधा कर दिया था। घायल खेमका ने किसी मित्र के माध्यम से मुझसे संपर्क साधा। उन दिनों मैं अमर उजाला अखबार में था और विश्वविद्यालय मेरी बीट में था। खेमका ने दो घंटे मुझसे कौशिक के खिलाफ जहर उगला लेकिन जब अगले दिन खबर पढ़ी तो शेर से गीदड़ हो गए। कहने लगे कि आखिरकार वीसी मेरे बॉस हैं। उन्होंने मेरे खिलाफ संपादक को पत्र भी लिखा था। इस बार मुझे लगा था कि शायद खेमका शेर हो गए होंगे लेकिन मैं गलत निकला।
मान के चलिए कि खेमका के खिलाफ अब सरकार की जांच कमेटी कुछ नहीं करेगी और वाड्रा के जमीन की जमाबंदी खारिज करने वाला उनका आर्डर पलटता है तो वे भी खामोश रहेंगे। कोर्ट वोर्ट कतई नहीं जाएंगे। उन्हें उनके ताबड़तोड़ तबादलों से सहानुभूति रखने वाली इंडिया अगेंस्ट करप्शन से जुड़ी एक्टिविस्ट डा. नूतन ठाकुर की हाईकोर्ट में उस याचिका या उस के निर्णय से भी कोई लेना देना नहीं है, जिस में प्रशासनिक अधिकारियों के तबादलों बारे कोई नियमावली व मर्यादाएं तय करने का अनुरोध किया गया है। ये तो वही बात हुई न कि मुद्दई सुस्त, गवाह चुस्त।

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