तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

सोमवार, अक्टूबर 21, 2013

नरेन्द्र मोदी की हवा है या ये केवल हौवा है?

पिछले कुछ माह से जिस प्रकार भाजपा ने गुजरात के मुख्यमंत्री को देश के भावी प्रधानमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट किया है और सोशल मीडिया पर जिस तरह से धुंआधार अभियान चलाया जा रहा है, उससे यह तो तय है कि मुद्दा आधारित राजनीति करने वाली भाजपा उनकी हवा चला कर अपनी नैया पर लगाना चाहती है, मगर क्या वाकई उनकी हवा चल पड़ी है या वे केवल हौवा मात्र हैं, इस पर सवाल उठने लगे हैं।
जहां तक खुद भाजपा का सवाल है, उसे तो मोदी हवा क्या कांग्रेस और गांधी परिवार के खिलाफ आंधी ही नजर आ रही है। हर भाजपाई सिर्फ यही सोच कर खुशफहमी में जी रहा है कि इस बार मोदी उनको वैतरणी पार लगा देंगे। इसके लिए सोशल मीडिया पर बाकायदा योजनाबद्ध तरीके से प्रोफेशनल अनेकानेक तरीके से मोदी को राजनीति का नया भगवान स्थापित कर रहे हैं। मोदी के विकास का मॉडल भी धरातल पर उतना वास्तविक नहीं है, जितना की मीडिया और सोशल नेटवर्किंग साइट्स ने खड़ा किया है। इसका बाद में खुलासा भी हुआ। पता लगा कि ट्विटर पर उनकी जितनी फेन्स फॉलोइंग है, उसमें तकरीबन आधे फाल्स हैं। फेसबुक पर ही देख लीजिए। मोदी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार बताने वाली पोस्ट बाकायदा योजनाबद्ध तरीके से डाली जाती रही हैं। गौर से देखें तो साफ नजर आता है कि इसके लिए कोई प्रोफेशनल्स बैठाए गए हैं, जिनका कि काम पूरे दिन केवल मोदी को ही प्रोजेक्ट करना है। बाकी कसर भेड़चाल ने पूरी कर दी। हां, इतना जरूर है कि चूंकि भाजपा के पास कोई दमदार चेहरा नहीं है, इस कारण मोदी की थोड़ी सी भी चमक भाजपा कार्यकर्ताओं को कुछ ज्यादा की चमकदार नजर आने लगती है। शाइनिंग इंडिया व लोह पुरुष लाल कृष्ण आडवाणी का बूम फेल हो जाने के बाद यूं भी भाजपाइयों को किसी नए आइकन की जरूरत थी, जिसे कि मोदी के जरिए पूरा करने की कोशिश की जा रही है।
सच तो ये है कि हॉट इश्यू को और अधिक हॉट करने को आतुर इलैक्ट्रानिक मीडिया भी जम कर मजे ले रहा है। भले ही निचले स्तर पर भाजपा के कार्यकर्ता को मोदी में ही पार्टी के तारणहार के दर्शन हो रहे हों, मगर सच ये है कि उन्हें भाजपा नेतृत्व ने जितना प्रोजेक्ट नहीं किया, उससे कहीं गुना अधिक मीडिया ने शोर मचाया है। यह कहना तो उचित नहीं होगा कि वह सोची-समझी चाल के तहत मोदी का साथ दे रहा है, मगर इतना तय है कि उसकी बाजारवादी प्रवृत्ति और टीआरपी बढ़ाने की मुहिम के चलते मोदी एक बम का रूप लेते नजर आ रहे हैं। इस बम में कितना दम है, यह तो आगे आने वाला वक्त ही बताएगा, मगर इसे समझना होगा कि क्या वाकई इस तरह के प्रोजेक्शन इससे पहले धरातल पर खरे उतरे हैं या नहीं। आपको याद होगा कि यह वही मीडिया है, जिसने अन्ना हजारे और बाबा रामदेव में हवा भर कर आसमान की ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया था, मगर जल्द ही हवा निकल गई और वे धरातल पर आ गिरे। दिलचस्प बात ये है कि इन दोनों को अवतार बनाने वाले इसी मीडिया ने ही बाद में उनके कपड़े भी उतारने शुरू कर दिए। इससे इलैक्ट्रोनिक मीडिया की फितरत साफ समझ में आती है।
हालांकि ना-नुकर करते-करते अब भाजपा ने औपचारिक रूप से मोदी को प्रधानमंत्री पद के लिए अपना दावेदार घोषित कर दिया है, इससे पहले का सच ये है कि प्रधानमंत्री पद के दावेदारों ने कभी अपनी ओर से यह नहीं कहा कि मोदी भी दावेदार हैं। वे कहने भी क्यों लगे। मीडिया ने ही उनके मुंह में जबरन मोदी का नाम ठूंसा। मीडिया ही सवाल खड़े करता था कि क्या मोदी प्रधानमंत्री पद के दावेदार हैं तो भाजपा नेताओं को मजबूरी में यह कहना ही पड़ता था कि हां, वे प्रधानमंत्री पद के योग्य हैं। इक्का-दुक्का को छोड़ कर अधिसंख्य भाजपा नेताओं ने कभी ये नहीं कहा कि मोदी ही प्रधानमंत्री पद के दावेदार हो सकते हैं। वे यही कहते रहे कि भाजपा में मोदी सहित एकाधिक योग्य दावेदार हो सकते हैं। और इसी को मीडिया ने यह कह कर प्रचारित किया कि मोदी प्रबल दावेदार हैं।
मोदी को भाजपा का आइकन बनाने में मीडिया की कितनी बड़ी भूमिका है, इसका अंदाजा आप इसी बात ये लगा सकते हैं कि हाल ही एक टीवी चैनल पर लाइव बहस में एक वरिष्ठ पत्रकार ने मोदी को अपरिहार्य आंधी कह कर इतनी सुंदर और अलंकार युक्त व्याख्या की, जितनी कि पैनल डिस्कशन में मौजूद भाजपा नेता भी नहीं कर पाए। आखिर एंकर को कहना पड़ा कि आपने तो भाजपाइयों को ही पीछ़े छोड़ दिया। इतना शानदार प्रोजेक्शन तो भाजपाई भी नहीं कर पाए।
कुल मिला कर आज हालत ये हो गई है कि मोदी भाजपा नेतृत्व और संघ के लिए अपरिहार्य हो चुके हैं। व्यक्ति गौण व विचारधारा अहम के सिद्धांत वाली पार्टी तक में एक व्यक्ति इतना हावी हो गया है, उसके अलावा कोई और दावेदार नजर ही नहीं आता। संघ के दबाव में फिर से हार्ड कोर हिंदूवाद की ओर लौटती भाजपा को भी उनमें अपना भविष्य नजर आने लगा है। कांग्रेस को भी मोदी की हवा चलती हुई दिखाई देती है, भले ही वह हवाबाजी का प्रतिफल हो।
यदि इस पर गौर करें कि कहीं यह हवा हौवा मात्र तो नहीं है तो इसमें तनिक सच्चाई नजर आती है। अर्थात जितनी हवा है, उससे कहीं गुना अधिक हौवा है। इसका सबूत देते हैं ये तथ्य। आपको याद होगा कि पिछले दिनों कुछ बड़े मीडिया हाउसेस ने सर्वे कराया, जिसमें कांग्रेस और भाजपा को मिलने वाली लोकसभा सीटों में सिर्फ 15 से 20 सीट का फासला है। कांग्रेस के मुकाबले भाजपा को महज 20 ज्यादा! ये उन लोगों के मुंह पर तमाचा है, जो पूरे देश में मोदी की लहर बहने का दावा करते हैं। तमाम सर्वे बता रहे हैं कि देश की दो बड़ी पार्टियां कांग्रेस और बीजेपी 150 सीट भी नहीं ले पाएंगी। यानी कुल 543 सीटों में से भाजपा 150 (लगभग एक चौथाई) का आंकडा भी ना छू पाए तो ये किस लहर और किस लोकप्रियता के दावे की बात हो रही है? सर्वे के मुताबिक देश का महज 25 प्रतिशत जनमानस मोदी की भाजपा को वोट दिखाई देता दे रहा है, और मीडिया इसे पूरे देश की सोच घोषित करता रहा है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

शुक्रवार, अक्टूबर 11, 2013

राजस्थान में भाजपा की जीत नहीं अब सुनिश्चित

कोई छह माह पहले तक कायम यह धारणा अब कमजोर होने लगी है कि इस बार राजस्थान की सत्ता पर भाजपा काबिज होने ही जा रही है। बेशक पूरे चार साल तक राज्य से बाहर रही प्रदेश भाजपा अध्यक्ष श्रीमती वसुंधरा राजे ने सुराज संकल्प यात्रा निकाल कर पार्टी को सक्रिय किया है, मगर इसी बीच मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कई जनकल्याणकारी योजनाओं की झड़ी लगा कर माहौल बदल दिया है। अब मुकाबला कांटे का माना जा रहा है, जो कि पहले पूरी तरह से भाजपा के पक्ष में माना जा रहा था।
असल में आज से छह माह पहले तक जनता को ऐसा लग रहा था कि भाजपा बढ़त की स्थिति में हैं और आगामी सरकार भाजपा की ही बनेगी। भाजपाइयों को भी पूरा यकीन था कि अब वे सत्ता का काबिज होने ही जा रहे हैं। वस्तुत: इसकी एक वजह ये भी थी कि भ्रष्टाचार और महंगाई के कारण देशभर में यह माहौल बना कि कांग्रेस तो गई रसातल में। उसका प्रतिबिंब राजस्थान में भी दिखाई देने लगा। भाजपाई भी अति उत्साहित थे कि अब तो हम आ ही रहे हैं। रहा सवाल राज्य सरकार के कामकाज का तो वह था तो अच्छा, मगर उसका प्रोजेक्शन कमजोर था। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को भी उम्मीद थी कि उन्होंने पिछले चार साल में जो जनहितकारी काम किए हैं, उसकी वजह से जनता उनके साथ रहेगी, मगर सर्वे से यह सामने आया कि आम जन तक कांग्रेस सरकार के कामकाज का प्रचार ठीक से नहीं हुआ है। इस पर खुद गहलोत ने कांग्रेस संदेश यात्रा निकालने का जिम्मा उठाया। इसी दौरान विभिन्न योजनाओं के कारण स्वाभाविक रूप से विभिन्न वर्गों को मिल रहे आर्थिक लाभ से माहौल बदला है। हालांकि इससे चिढ़ कर वसुंधरा ने यह आरोप लगाना शुरू किया कि सरकार खजाना लुटा रही है, मगर उनके पास इसका कोई जवाब नहीं है कि यह खजाना आखिरकार गरीब जनता के लिए ही तो उपयोग में आ रहा है। कुछ मिला कर अब माहौल साफ होने लगा है कि कांग्रेस सरकार से जनता उतनी नाखुश नहीं है, जितना की प्रचार किया गया था। अब तो मीडिया के सर्वे भी कहने लगे हैं कि राजस्थान में कांग्रेस व भाजपा टक्कर में हैं।
पिछले कुछ माह में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की ओर से की गई मशक्कत के बाद बदले माहौल से कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को अब जा कर उम्मीद जागी है कि इस बार राजस्थान में फिर से कांग्रेस की सरकार बनाई जा सकती है, इसी कारण उन्होंने यहां पर विशेष ध्यान देना शुरू कर दिया है। इसी सिलसिले में उनके निर्देशन में बनी चुनाव अभियान समिति और घोषणा पत्र समिति को पूरी तरह से संतुलित बनाया गया। डेमेज कंट्रोल में कुछ कामयाबी भी हासिल हुई है, इसका एक संकेत देखिए कि जेल में बंद पूर्व जलदाय मंत्री महिपाल मदेरणा की पुत्री दिव्या मदेरणा तक का सुर बदल गया है, जो कि अब तक सरकार को लगातार घेरती रही थीं।
उधर वसुंधरा राजे ने टिकट दावेदारों के बलबूते सुराज यात्रा में शक्ति प्रदर्शन तो कर लिया, मगर अब ये ही टिकट दावेदार उनके लिए सिरदर्द साबित होने वाले हैं और वे उनकी जीत की गणित को भी गड़बड़ा सकते हैं। टिकट दावेदारों ने वसुंधरा में चाहे भीड़ जुटाना हो या अखबारों में लाखों रुपए के विज्ञापन देने की बात हो, सारी ताकत लगा और उसके बदले अब वे भी टिकट की उम्मीद तो रखते ही हैं, यह अलग बात है कि वसुंधरा ने यह स्पष्ट कर दिया कि योग्य उम्मीदवारों को टिकट मिलेगा मगर हर दावेदार अपने योग्य मानते हुए अपनी टिकट पक्की मान रहा है। हर सीट पर दावेदारों की लंबी लिस्ट है। भाजपा में पहली बार टिकट को लेकर दिखा माहौल भाजपा के लिए खतरे का संकेत दे रहा है। यदि भाजपा ने 2009 की तरह टिकट बंटवारे में पैराशूट उम्मीदवारों को उतारा तो जीत की उम्मीद पर पानी फिर सकता है।
जहां तक सुराज संकल्प यात्रा के दौरान कांग्रेस सरकार पर हमले का सवाल है, भले ही वसुंधरा ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को अब तक का सबसे भ्रष्ट मुख्यमंत्री बताया हो, मगर धरातल पर वे इसे साबित करने में नाकाम रही हैं। उनके अधिसंख्य आरोप नुक्ताचीनी टाइप और रूटीन के हैं। कम से कम इतने तो दमदार नहीं कि सरकार की चूलें हिल जाएं। यानि उनका आम जन पर कोई गहरा असर नहीं है। उनके आरोपों की धार तो तेज रही, मगर उसकी मार उतनी नजर नहीं आई। जुमले उनके तगड़े थे, मगर वे केवल भाषणों में ही सुहावने नजर आए, धरातल पर उसकी गंभीरता कम रही। खुद भाजपाई भी मानने लगे हैं कि इस बार वसुंधरा की यात्रा पहले जैसी कामयाब नहीं रही है। कारण स्पष्ट है। वे खुद अपनी पार्टी में दोफाड़ का कारण बनी रहीं। चार साल तक राज्य से गायब रह कर चुनावी साल में यकायक सक्रिय होने के कांग्रेस के आरोप का आज तक कोई सटीक जवाब नहीं दे पाई हैं।
अगर मोदी फैक्टर की बात करें तो वह अपना असर जरूर दिखाएगा, मगर धरातल की सच्चाई वैसी नहीं जैसी दिखाई देती है। आपको याद होगा कि हाल में कुछ बड़े मीडिया हाउसेस ने सर्वे कराया। सर्वे के मुताबिक कांग्रेस और भाजपा को मिलने वाली (लोकसभा) सीटों में सिर्फ 15 से 20 सीट का फासला है। भाजपा को महज 20 ज़्यादा। ये उन लोगों के मुंह पर तमाचा है, जो पूरे देश में मोदी की लहर बहने का दावा करते हैं। तमाम सर्वे बता रहे हैं कि देश की दो बड़ी पार्टियां (कांग्रेस और बीजेपी) 150 सीट भी नहीं ला पाएंगी। साथ ही गैर कांग्रेसी-गैर भाजपाई कुनबा 200 के आंकड़े को भी बमुश्किल छू पायेगा। यानी कुल 543 सीटों में से भाजपा 150 (लगभग एक चौथाई) का आंकडा भी ना छू पाए तो ये किस लहर और किस लोकप्रियता के दावे की बात हो रही है?
सीएनएन, आईबीएन सीएनडीएस के लोकसभा चुनाव के लिए किए सर्वे के मुताबिक राजस्थान में कांग्रेस के तीन प्रतिशत वोट घटने वाले है, जबकि 2009 के चुनाव में कांग्रेस को 47 प्रतिशत वोट मिले थे। इस तरह आगामी चुनाव में कांग्रेस को 44 प्रतिशत वोट मिल पाएंगे। वहीं भाजपा का सात प्रतिशत मतों का इजाफा होने से 37 प्रतिशत से बढ़कर कांग्रेस के बराबर रहेगी। इससे यह संकेत मिलते है कि मौटे तौर पर विधानसभा चुनाव में भाजपा व कांग्रेस में कड़ी टक्कर होने वाली है। इसमें साइलेंट फैक्टर ये है कि इस प्रकार के सर्वे आमतौर पर शहरी होते हैं, जहां भाजपा का प्रभाव अधिक है, जबकि गांवों में आज भी कांग्रेस की पकड़ ज्यादा है।
ऐसे में अगर ये कहा जाए कि भाजपा की जीत सुनिश्चित नहीं तो, कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। हालांकि इन सबके बावजूद चुनाव परिणाम इस मुख्य फैक्टर पर निर्भर करेंगे कि दोनों दलों में से कौन ज्यादा सही उम्मीदवारों को टिकट बांटता है।
-तेजवानी गिरधर, 7742067000
tejwanig@gmail.com