तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

रविवार, जून 29, 2025

मुख पर रुमाल क्यों रखता है दूल्हा?

दोस्तो, नमस्कार। आपने देखा होगा कि अमूमन दूल्हा अपने मुख पर रूमाल रखता है। विषेश रूप से वह अगर हंसे तो दिखाई न दे। दूल्हे के हंसने को अभद्रता माना जाता है। कुछ लोग दूल्हे के हंसने को अनिश्टकारी भी मानते हैं। यह प्रथा विशेषतः सिंधी, गुजराती, राजस्थानी व अन्य हिन्दू समुदायों में देखी जाती है। क्या आपने कभी सोचा है कि इसकी वजह क्या है? असल में भारतीय विवाह परंपराओं में दूल्हे को भगवान विष्णु का रूप माना जाता है, और इसी भावना से जुड़ी हुई है यह प्रथा कि दूल्हा अपने मुख पर रूमाल या वस्त्र रखता है। ताकि भगवान की पवित्रता व गरिमा कायम रहे। कई लोग दूल्हे का दर्षन करते वक्त सोचते हैं कि उन्हें भगवान विश्णु का दर्षन हो रहे हैं। यह दूल्हे के संयमी, विचारशील और मर्यादित होने का प्रतीक भी है। यह दर्शाता है कि विवाह एक देवकार्य है, और दूल्हा इस भूमिका को आदर और मर्यादा के साथ निभा रहा है। एक वजह बुरी नजर से बचाव की भी हो सकती है। विवाह की विशेष रस्म “मुख-दिखाई” के समय ही पहली बार दुल्हन दूल्हे का चेहरा देखती है, तब तक दूल्हा मुख पर रूमाल रखता है।


https://youtu.be/IYipNONlUmA

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जीव-जंतुओं को कैसी दिखाई देती है दुनिया?

दोस्तो, नमस्कार। कभी कभी कौतुहल होता है कि यह जगत जैसा हमें दिखाई देता है, क्या अन्य जीव-जंतुओं को भी वैसा ही दिखाई देता है? इस पर विज्ञान का मत है कि हर प्राणी को दुनिया अलग दिखाई देती है। इसका कारण यह है कि अलग-अलग जीवों की इन्द्रियाँ, दिमाग की संरचना और क्षमता अलग-अलग होती हैं। हम मनुष्य तीन रंगों (लाल, हरा, नीला) को देखने वाले ट्राइकोमैटिक दृष्टि वाले हैं। जबकि कुत्ते सिर्फ दो रंग (पीला और नीला) देख पाते हैं, बाकी रंग उन्हें धुंधले या ग्रे लगते हैं। इसी प्रकार मधुमक्खियाँ अल्ट्रावायलेट किरणें देख सकती हैं, जो हमें बिल्कुल भी नजर नहीं आतीं। उनके लिए फूल अलग चमकते हैं। सांप कुछ खास स्थितियों में इन्फ्रारेड किरणों से गर्मी भी देख सकते हैं। चमगादड़ इकोलोकेशन से देखता है यानी आवाज की गूंज से आकार-आकार पहचानता है। डॉल्फिन भी अल्ट्रासोनिक ध्वनियों से “दुनिया” का बोध करती हैं। हाथी धरती में कंपन सुनकर कई किलोमीटर दूर का आभास कर सकते हैं। कुत्तों की सूंघने की क्षमता हमसे हजारों गुना तेज होती है। उनके लिए गंधों की एक पूरी अलग “दुनिया” है। सांप अपनी जीभ से हवा में मौजूद कणों को पकड़कर “सूंघते” हैं। यानि हर जीव-जंतु की अपनी अनोखी इन्द्रिय-दृष्टि और अनुभूति होती है। इसलिए उनका “जगत” वैसा नहीं जैसा हमें दिखाई या सुनाई देता है। दुनिया वही है, लेकिन हर प्राणी का अनुभव अलग।

 https://youtu.be/KsahY8fxF5E
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