तीसरी आंख

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रविवार, अक्तूबर 02, 2011

भाजपा में मचा प्रधानमंत्री पद के लिए घमासान

घोटालों से घिरी कांग्रेस नीत सरकार के फिर सत्ता में नहीं आने की धारणा के बीच भाजपा में प्रधानमंत्री पद के लिए घमासान शुरू हो गया है। पार्टी को लग रहा है कि इस बार उसे उत्तर भारत के कांग्रेस प्रभावित क्षेत्रों में अच्छी सफलता हासिल होगी। भले ही वह अकेले अपने दम पर सरकार न बना पाए, मगर भाजपा नीत एनडीए तो सत्ता में आ ही जाएगा। जाहिर तौर पर भाजपा सबसे बड़ा विपक्षी दल होगा, लिहाजा उसी का नेता प्रधानमंत्री पद पर काबिज हो जाएगा।
हालांकि अब तक लोकसभा में विपक्ष की नेता श्रीमती सुषमा स्वराज और राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली के बीच ही इस पद को लेकर प्रतिस्पद्र्धा चल रही थी, मगर अब कुछ और दावेदार भी सामने आने लगे हैं। गुजरात में लगातार दो बार सरकार बनाने में कामयाब रहे नरेन्द्र मोदी ने गुजरात दंगों से जुड़े एक मामले में उच्चतम न्यायायल के निर्देश को अपनी जीत के रूप में प्रचारित कर अपनी छवि धोने की खातिर जनता के नाम खुले पत्र में शांति और सद्भावना के लिए तीन दिवसीय उपवास की घोषणा कर दी। उसी दौरान अमेरिकी कांग्रेस की रिसर्च रिपोर्ट में उनकी तारीफ करते हुए ऐसा माहौल बना दिया कि अगले आम चुनाव में प्रधानमंत्री पद का मुकाबला मोदी और राहुल गांधी के बीच हो सकता है। इससे मोदी का हौसला और बढ़ गया और 'शांति और साम्प्रदायिक सद्भावÓ के लिए तीन दिन के उपवास के माध्यम से राष्ट्रीय स्तर पर अपनी छवि बदल कर सर्वमान्य नेता बनने का प्रयास किया।
यूं तो मोदी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार खुसफुसाहट में माना जाता रहा है, लेकिन सबसे बड़ी बाधा यही रही कि उनका चेहरा सर्वमान्य नहीं है। उनके नाम पर राजग के अन्य घटक सहमत होने की संभावना शून्य ही मानी जाती रही है। यह सही है कि मोदी का उपवास जिस प्रकार का था, वह हाल ही अन्ना हजारे की ओर से किए गए उपवास के तुरंत बाद हुआ, इस कारण लोगों ने उसकी तुलना जाहिर तौर पर उससे करते हुए उसे नाटकबाजी ही करार दिया। कांग्रेस ने तो मोदी के इस उपवास को फाइव स्टार उपवास की संज्ञा देते हुए कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि इससे उन पर लगे सांप्रदायिकता के आरोप समाप्त नहीं हो जाएंगे। कांग्रेस नेता शंकर सिंह वाघेला ने समानांतर उपवास करके मोदी के लोकप्रियता को बढऩे से रोकने का प्रयास किया। मीडिया तक यही सवाल करता रहा कि इससे मोदी को चेहरा धुल पाएगा या नहीं। रही सही कसर मोदी ने मुस्लिम धार्मिक नेताओं की टोपी ग्रहण करने से इंकार करके पूरी कर दी। कुल मिला कर मोदी विकास के नाम पर जिस तरह का सर्वसम्मत चेहरा हासिल करना चाहते थे, वह पूरा नहीं हो पाया। उनके उपवास कार्यक्रम में पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल आसानी से आ गये और तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता ने भी मोदी के आग्रह पर अपने दो पार्टी नेताओं को वहां भेज दिया। शिवसेना और मनसे ने भी अपने नेताओं को भेजा, लेकिन जद-यू इससे दूर रहा। राजग संयोजक शरद यादव ने तो मोदी के उपवास का उपहास तक किया। ्रबावजूद इसके मोदी का यह कदम भाजपा के प्रधानमंत्री पद के दावेदारों पर भारी पड़ गया। वे एकाएक एक प्रबल दावेदार बन कर उभर आए। कम से कम हिंदू वोट बटोरने के मामले में तो उनका नाम सबसे ऊपर माना जाने लगा है। जाहिर तौर पर इससे सुषमा स्वराज व जेटली को तकलीफ हुई होगी। वे ही क्यों पिछले चुनाव में प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में पेश किए गए आडवाणी तक को तकलीफ हुई। उन्होंने भी रथयात्रा की घोषणा कर रखी है। हालांकि उसमें मोदी के फच्चर डालने से आडवाणी को दिक्कत आ गई है। खुद पार्टी अध्यक्ष निनित गडकरी को ही यह सफाई देनी पड़ गई कि आडवाणी की यात्रा प्रधानमंत्री पद की दावेदारी के रूप में नहीं है। आडवाणी के अतिरिक्त पूर्व पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह भी उत्तर प्रदेश में रथयात्रा के माध्यम से आगे निकलने की कोशिश कर रहे हैं। इन सबके अतिरिक्त सुनने में यह भी आ रहा है कि पार्टी अध्यक्ष गडकरी भी गुपचुप तैयारी कर रहे हैं। वे लोकसभा चुनाव नागपुर से लडऩा चाहते हैं और मौका पडऩे पर खुल कर दावा पेश कर देंगे।
कुल मिला कर भाजपा में प्रधानमंत्री पद के लिए घमासान शुरू हो गया है। हालांकि मोदी व आडवाणी का जनाधार अन्य नेताओं के मुकाबले अधिक है, लेकिन दोनों पर कट्टरपंथी माना जाता है, इस कारण राजग के घटक दल उनके नाम पर सहमति नहीं देंगे। सुषमा व जेटली अलबत्ता कुछ साफ सुथरे हैं, मगर उनकी ताकत कुछ खास नहीं। सुषमा स्वराज फिलहाल चुप हैं, क्योंकि वे जानती हैं कि अकेले भाजपा के दम पर तो सरकार बनेगी नहीं, और अन्य दलों का सहयोग लेना ही होगा। ऐसे में मोदी की तुलना में उनको पसंद किया जाएगा। रहा सवाल जेटली का तो वे भी गुटबाजी को आधार बना कर मौका पडऩे पर यकायक आगे आने का फिराक में हैं। इसी प्रकार जहां तक राजनाथ सिंह के नाम का सवाल है तो यह उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों पर निर्भर करता है। यदि भाजपा का प्रदर्शन अच्छा रहा तो निश्चित रूप से उनकी दावेदारी मजबूत होगी।
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