तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

सोमवार, मई 20, 2013

कटारिया के फंसने से भाजपा की जान सांसत में


सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ मामले में सीबीआई ने भले ही राजस्थान के पूर्व गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया को आरोपी बना कर अपनी अब तक की कार्यवाही को आगे बढ़ाया हो, मगर इसके राजनीतिक निहितार्थ ये ही हैं कि इससे मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहीं प्रदेश भाजपा अध्यक्ष श्रीमती वसुंधरा राजे को बड़ा झटका लगा है। भले ही भाजपा कटारिया के फंसने को राजनीतिक दुश्मनी करार दे, मगर सच वह भी जानती है कि ऐन चुनाव से पहले उनका एक महत्वपूर्ण विकिट गिर गया है। वसुंधरा के साथ कंधे से कंधा मिला कर चल रहे कटारिया के उलझने की वजह से उनकी कथित रूप से बड़ी तेजी व उत्साह के साल चल रही सुराज संकल्प यात्रा में भी विघ्न आएगा ही। संभव है कटारिया की गिरफ्तारी होने पर उन्हें नया नेता प्रतिपक्ष चुनना पड़े और उसके साथ वसुंधरा की कैसी पटेगी कुछ कहा नहीं जा सकता। वैसे वसुंधरा मन ही मन इस बात से खुश जरूर हो रही होंगी कि उनको सबसे ज्यादा परेशान करने वाले कटारिया मुसीबत में हैं, मगर पार्टी के नाते उनके लिए एक बड़ा सकंट हो गया है। वसुंधरा के लिए अभी इसका मतलब उतना नहीं है कि उनका कोई प्रतिद्वंद्वी कमजोर हो, बल्कि इसका है कि वे किसी भी प्रकार सत्ता में आ जाएं, प्रतिद्वंद्वियों से तो तालमेल बैठा ही लेंगे।
ज्ञातव्य है कि वर्ष 2005 में गुजरात पुलिस ने मुठभेड़ में सोहराबुद्दीन को मार गिराने का दावा किया था। इस मुठभेड़ को सोहराबुद्दीन के परिवार जनों ने फर्जी मुठभेड़ बताया। इसके बाद सोहराबुद्दीन का साथी तुलसी प्रजापति भी पुलिस मुठभेड़ में मारा गया। इस मामले में उदयपुर के पूर्व एसपी दिनेश एमएन सहित चार पुलिस अफसर जेल में हैं। कुछ समय पहले ही सीबीआई ने गुलाबचंद कटारिया को गांधी नगर बुला कर उनसे लंबी पूछताछ की थी। बाद में चूंकि इस मामले की कार्यवाही धीरे चल रही थी, इस कारण लोग इसे लगभग भूल चुके थे, मगर राजनीति के जानकार समझ रहे थे कि कटारिया की मामले में संलिप्तता के कुछ सूत्र पकड़ में आते ही उन्हें लपेट दिया जाएगा। आखिर वही हुआ।
मसले का एक पहुल ये भी है कि हालांकि कटारिया वसुंधरा से समझौता करके उनके साथ सुराज संकल्प यात्रा में सहयोग कर रहे हैं, मगर जितनी जद्दोजहद के बाद कटारिया व संघ लॉबी समझौते के राजी हुई है, उसकी वजह से पड़ी खटास कम से कम कार्यकर्ताओं में देखी ही जाती है। उदयपुर संभाग में अब भी कार्यकर्ता कटारिया व विधायक किरण माहेश्वरी खेमे में बंटे हुए हैं। स्वाभाविक है ताजा घटनाक्रम से किरण माहेश्वरी लॉबी भी उत्साहित हो कर हावी होने की कोशिश करेगी।
हां, एक बात जरूर है कि ताजा चुनावी माहौल में आरोप-प्रत्यारोप के दौर में कटारिया प्रकरण से गरमी और बढ़ेगी और भाजपा को यह कहने का मौका मिल जाएगा कि कांग्रेस हार की आशंका से बौखलाहट के चलते बदले की भावना से सीबीआई का दुरुपयोग करवा रही है। भले ही सीबीआई स्वतंत्र रूप से काम कर रही हो, मगर संभव है चुनावी माहौल में इस नए मोड़ पर भाजपा को जनता की संदेवना का लाभ मिल जाए।
-तेजवानी गिरधर

भाजपा अमित शाह के जरिए यूपी में खेलेगी हिंदू कार्ड


गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के खासमखास और प्रखर हिंदूवादी चेहरे गुजरात के पूर्व गृह मंत्री अमित शाह को उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाए जाने के साथ यह स्पष्ट हो गया है कि इस बार भाजपा वहां हिंदूवादी कार्ड खेलेगी। कहने की जरूरत नहीं है कि शाह वहां मोदी के ही दूत बन कर काम करेंगे, जिसका सीधा-सीधा मतलब ये है कि इस बार वहां हिंदू वोटों को लामबंद करने की कोशिश की जाएगी। भाजपा के लिए इससे बड़ा आखिरी विकल्प हो भी नहीं सकता था।
यूं उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने वहां फायर ब्रांड हिंदूवादी नेता व मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती को तैनात किया था, मगर तब उसका उसका मूल मकसद जातिवाद में बुरी तरह से जकड़े उत्तरप्रदेश में लोधी वोटों में सेंध मारी जाए, मगर वे कामयाब नहीं हो पाईं। पूर्व भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी के इस फैसले की पार्टी में आलोचना भी हुई, मगर संघ के दबाव  में मामला दफन कर दिया गया।
समझा जाता है कि इस बारे में भाजपा अध्यक्ष राजनाथ की सोच है कि जिस तरह मोदी एक बड़े नेता के रूप में उभरे हैं और हिंदुओं के अतिरिक्त मुस्लिमों पर भी उन्होंने अपनी पकड़ साबित की है, उनकी छत्रछाया में काम करने वाले अमित शाह वहां के समीकरणों को भाजपा के पक्ष में ला सकते हैं। वे मोदी फैक्टर को आजमाने की पृष्ठभूमि भी तैयार करेंगे। उल्लेखनीय है कि उत्तरप्रदेश में भाजपा की जाजम बिछाने के लिए मोदी को वहां से चुनाव लड़ाने के कयास लगाए जाते रहे हैं। हालांकि यह भी एक प्रयोग मात्र है, मगर इसके कामयाब होने की संभावना काफी नजर आती है। वैसे भी भाजपा में उत्तरप्रदेश पृष्ठभूमि के दमदार नेता वहां खारिज हो चुके हैं, ऐसे में अमित शाह वाला प्रयोग कदाचित कामयाब हो सकता है। ज्ञातव्य है कि  भाजपा आलाकमान से नाराजगी के चलते पिछले विधानसभा चुनाव में मोदी प्रचार के लिए भी यूपी नहीं गए थे। इसके पक्ष में एक तर्क ये भी दिया जाता था कि मोदी के वहां जाने से मुस्लिम वोटों का धु्रवीकरण हो सकता है, जो भाजपा के लिए नुकसानदेह होता। लेकिन अब स्थितियां बदली हैं और मोदी का जादू वहां चल सकता है। और इसका फायदा भाजपा को लोकसभा चुनाव में हो सकता है।
-तेजवानी गिरधर