तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

सोमवार, जुलाई 07, 2025

कामुक लोगों की उम्र अधिक क्यों होती है?

दोस्तो, नमस्कार। आम तौर पर वासना व कामुकता को अच्छा नहीं माना जाता। सारे विद्वान वासना से निवृत्ति का उपदेष देते हैं। लेकिन कुछ जानकार बताते हैं कि कामुकता बरकरार रहे तो उम्र बढ जाती है, षरीर स्वस्थ रहता है। इसी सिलसिले में किसी ने रूहानी अंदाज में कहा है कि बढती उम्र में भी करते रहिए इष्क, चेहरे का नूर बरकरार रहेगा।

वस्तुतः भारतीय दर्शन, विशेषतः जैन, बौद्ध और वेदांत परंपरा में वासना को एक बंधन माना गया है। यह आत्मा को संसार में बाँधने वाला तत्व है, जिससे मुक्त होना मोक्ष का मार्ग माना जाता है। ब्रह्मचर्य को मानसिक व शारीरिक बल का स्रोत माना गया है। दूसरी ओर आधुनिक विज्ञान और मनोविज्ञान की मान्यता है कि कामेच्छा एक प्राकृतिक जैविक प्रवृत्ति है। नियमित और संतुलित यौन जीवन मानसिक तनाव को घटाता है, इम्यून सिस्टम मजबूत करता है और हृदय स्वास्थ्य में सहायक होता है। अभिनिवेश यानि (जीने की इच्छा) को प्रेम और आकर्षण भी पोषण देते हैं, जिससे उम्र लंबी हो सकती है। कामुकता केवल शारीरिक इच्छा नहीं है, बल्कि यह मानव की जैविक, हार्मोनल, मानसिक और सामाजिक प्रवृत्तियों का समुच्चय है। यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जो मानव प्रजनन, संबंध निर्माण, और मानसिक संतुलन से जुड़ी है। विज्ञान के अनुसार, नियमित, सुरक्षित और संतुलित यौन क्रिया से शरीर पर कई सकारात्मक प्रभाव होते हैं। यौन क्रिया से डोपामीन, ऑक्सीटोसिन और एंडोर्फिन जैसे हैप्पी हार्मोन्स बढ़ते हैं। ये हार्मोन तनाव कम करते हैं, नींद सुधारते हैं और त्वचा में चमक लाते हैं। नियमित सेक्स से हृदय गति संतुलित होती है। अध्ययन में पाया गया है कि सप्ताह में 1-2 बार यौन संबंध रखने वालों में इम्यून सिस्टम अधिक मजबूत होता है। ब्रिटेन में हुए एक अध्ययन में पाया गया कि जिन पुरुषों ने नियमित सेक्स किया, उनकी मृत्यु दर कम थी। यह संभवतः मानसिक संतुलन, हार्मोनल स्वास्थ्य और शारीरिक सक्रियता के कारण होता है। कामुकता तनाव और अवसाद को कम करने में सहायक है। इसी प्रकार एक सर्वे में यह भी पाया गया है कि ब्रह्चारी भले ही योग के जरिए आध्यात्मिक षिखर पर पहुंच जाएं, मगर उन की उम्र कम होती है। वजह हार्मोनल असंतुलन। वैसे वैज्ञानिक चेतावनी भी है कि अत्यधिक वासना या आकर्षण की लत एक मानसिक समस्या है। संतुलन जरूरी है। सेक्स का अतिरेक अगर विवेक खो दे, तो तनाव, अपराधबोध, या शारीरिक थकान ला सकता है। कुल मिला कर कामुकता एक जैविक शक्ति है, जिसका संतुलित उपयोग जीवन को लंबा, सुंदर और स्वस्थ बना सकता है। लेकिन यदि यह व्यक्ति पर हावी हो जाए, तो उसका नुकसान भी हो सकता है।

https://youtu.be/0hYwmKux_jc

https://ajmernama.com/thirdeye/434054/

रविवार, जुलाई 06, 2025

आधे मार्ग पर शव की दिशा क्यों बदल दी जाती है?

दोस्तो, नमस्कार। अगर आप किसी की षव यात्रा में गए हों, तो आपको पता होगा कि षवयात्रा के आधे मार्ग में षव की दिषा बदल दी जाती है। षव की दिषा बदलने के लिए ष्मषान के पास बाकयदा चबूतरा बनाया जाता है, जिसे मारवाड में आधेठो कहा जाता है। क्या कभी विचार किया है कि ऐसा क्यों?

इसे तफसील से समझने की कोषिष करते हैं। जब घर से षव यात्रा निकाली जाती है तो षव के पैर आगे और सिर पीछे रखा जाता है। मान्यता है कि प्राणी जब ष्मषान स्थल की ओर जा रहा है तो उसके लिए पैर आगे होने चाहिए, मानो वह चल कर जा रहा हो। आधे मार्ग पर उसकी दिषा बदल जाती है और षव का सिर आगे व पैर रखे जाते हैं, यानि उसने संसार का परित्याग कर दिया है। यह संकेत माना जाता है कि मृत व्यक्ति अब वापस लौट कर नहीं आएगा। यह जीवन से मृत्यु की यात्रा का प्रतीकात्मक विभाजन है। कुछ मान्यताओं में कहा जाता है कि आधे रास्ते तक मृतक का मुख घर की ओर रहता है, क्योंकि अभी वह अपने घर-परिवार से जुड़ा माना जाता है। आधे रास्ते पर दिशा बदलने से संकेत होता है कि अब उसका संबंध भूलोक से पूरी तरह समाप्त हो गया। इसके पीछे मनोवैज्ञानिक कारण भी बताया जाता है, वह यह कि परिजन को यह भाव दिया जाए कि अब लौटने की कोई आशा शेष नहीं है। एक धारणा यह है कि प्राणी का मुख मोड़ दो ताकि आत्मा आसक्ति के कारण पीछे मुड ़कर घर न देखे।


https://ajmernama.com/thirdeye/434014/

https://youtu.be/2ks97Nb6nnU


मंगलवार, जुलाई 01, 2025

ज्योतिष में विदेश यात्रा के योग पर सवाल

दोस्तो, नमस्कार। ज्योतिश विद्या में कुंडली या हस्तरेखा का अध्ययन कर विदेष यात्रा का योग बताया जाता है। सवाल यह है कि विदेष किसे कहा जाता है? पुराने जमाने में एक षहर से दूसरे षहर जाने को भी विदेष कहा जाता था, जबकि अब एक देष से दूसरे देष जाने को। ऐसे में विदेष यात्रा के योग का क्या अर्थ निकाला जाए? वास्तव में “विदेश” शब्द का अर्थ समय और संदर्भ के अनुसार बदलता रहा है। भारत में जब संचार और आवागमन सीमित था, तब अपने नगर या सीमित भूभाग से बाहर जाना ही विदेश जाना कहलाता था। उदाहरण के लिए, किसी गांव या राज्य की सीमा पार करके दूसरे क्षेत्र में जाना “विदेश यात्रा” कही जाती थी। धर्मशास्त्रों और पुराणों में भी “विदेश” शब्द का प्रयोग “अपना देश छोड़ कर परदेश में जाना” (भौगोलिक या सांस्कृतिक दृष्टि से) के अर्थ में हुआ। समुद्र पार जाना तो म्लेच्छ भूमि मानी जाती थी और वह विशेष अशुद्धि का कारण समझी जाती थी। इसलिए ज्योतिष के शास्त्रों में विदेशगमन का महत्त्व काफी बड़ा माना जाता था। अब “विदेश” से आशय एक देश से बाहर किसी दूसरे संप्रभु देश में जाना होता है। यानी भारत से अमेरिका, इंग्लैंड, कनाडा या खाड़ी देशों में जाना। नगर या राज्य के भीतर यात्रा को यात्रा या प्रवास कहते हैं, “विदेश यात्रा” नहीं। जब पारंपरिक ज्योतिष ग्रंथ “विदेश यात्रा” का योग बताते हैं, तो उनका आशय मूलतः व्यक्ति के जन्म स्थान से दूर, परदेश में लंबा प्रवास होता है। यह परदेश देश के भीतर भी हो सकता है, पर आज की व्यावहारिक भाषा में इसे अंतरराष्ट्रीय यात्रा ही माना जाता है।

कुल जमा यही समझ में आता है कि घर से दूरस्थ स्थान पर जाने को विदेष यात्रा कहा जाता है, पहले वह एक षहर से दूसरे षहर के लिए माना जाता था, जबकि अब दूसरे देष के लिए। इसमें किलोमीटर में दूरी का जिक्र नहीं किया जा सकता।


https://youtu.be/ATg4GOEfpV0

https://ajmernama.com/thirdeye/433754/

रविवार, जून 29, 2025

मुख पर रुमाल क्यों रखता है दूल्हा?

दोस्तो, नमस्कार। आपने देखा होगा कि अमूमन दूल्हा अपने मुख पर रूमाल रखता है। विषेश रूप से वह अगर हंसे तो दिखाई न दे। दूल्हे के हंसने को अभद्रता माना जाता है। कुछ लोग दूल्हे के हंसने को अनिश्टकारी भी मानते हैं। यह प्रथा विशेषतः सिंधी, गुजराती, राजस्थानी व अन्य हिन्दू समुदायों में देखी जाती है। क्या आपने कभी सोचा है कि इसकी वजह क्या है? असल में भारतीय विवाह परंपराओं में दूल्हे को भगवान विष्णु का रूप माना जाता है, और इसी भावना से जुड़ी हुई है यह प्रथा कि दूल्हा अपने मुख पर रूमाल या वस्त्र रखता है। ताकि भगवान की पवित्रता व गरिमा कायम रहे। कई लोग दूल्हे का दर्षन करते वक्त सोचते हैं कि उन्हें भगवान विश्णु का दर्षन हो रहे हैं। यह दूल्हे के संयमी, विचारशील और मर्यादित होने का प्रतीक भी है। यह दर्शाता है कि विवाह एक देवकार्य है, और दूल्हा इस भूमिका को आदर और मर्यादा के साथ निभा रहा है। एक वजह बुरी नजर से बचाव की भी हो सकती है। विवाह की विशेष रस्म “मुख-दिखाई” के समय ही पहली बार दुल्हन दूल्हे का चेहरा देखती है, तब तक दूल्हा मुख पर रूमाल रखता है।


https://youtu.be/IYipNONlUmA

https://ajmernama.com/thirdeye/433611/


जीव-जंतुओं को कैसी दिखाई देती है दुनिया?

दोस्तो, नमस्कार। कभी कभी कौतुहल होता है कि यह जगत जैसा हमें दिखाई देता है, क्या अन्य जीव-जंतुओं को भी वैसा ही दिखाई देता है? इस पर विज्ञान का मत है कि हर प्राणी को दुनिया अलग दिखाई देती है। इसका कारण यह है कि अलग-अलग जीवों की इन्द्रियाँ, दिमाग की संरचना और क्षमता अलग-अलग होती हैं। हम मनुष्य तीन रंगों (लाल, हरा, नीला) को देखने वाले ट्राइकोमैटिक दृष्टि वाले हैं। जबकि कुत्ते सिर्फ दो रंग (पीला और नीला) देख पाते हैं, बाकी रंग उन्हें धुंधले या ग्रे लगते हैं। इसी प्रकार मधुमक्खियाँ अल्ट्रावायलेट किरणें देख सकती हैं, जो हमें बिल्कुल भी नजर नहीं आतीं। उनके लिए फूल अलग चमकते हैं। सांप कुछ खास स्थितियों में इन्फ्रारेड किरणों से गर्मी भी देख सकते हैं। चमगादड़ इकोलोकेशन से देखता है यानी आवाज की गूंज से आकार-आकार पहचानता है। डॉल्फिन भी अल्ट्रासोनिक ध्वनियों से “दुनिया” का बोध करती हैं। हाथी धरती में कंपन सुनकर कई किलोमीटर दूर का आभास कर सकते हैं। कुत्तों की सूंघने की क्षमता हमसे हजारों गुना तेज होती है। उनके लिए गंधों की एक पूरी अलग “दुनिया” है। सांप अपनी जीभ से हवा में मौजूद कणों को पकड़कर “सूंघते” हैं। यानि हर जीव-जंतु की अपनी अनोखी इन्द्रिय-दृष्टि और अनुभूति होती है। इसलिए उनका “जगत” वैसा नहीं जैसा हमें दिखाई या सुनाई देता है। दुनिया वही है, लेकिन हर प्राणी का अनुभव अलग।

 https://youtu.be/KsahY8fxF5E
https://ajmernama.com/thirdeye/433599/

मंगलवार, जून 24, 2025

दूल्हे का चेहरा सेहरे से क्यों ढंका जाता था?

दोस्तो, नमस्कार। सिंधी समुदाय में परंपरा रही है कि षादी में दूल्हे का चेहरा सेहरे से ढंका जाता था। मेरे पिताजी व चाचाजी की षादी हुई, तो उनका चेहरा भी फूलों की माला बना हुआ सेहरा बांधा गया था। आजकल वह परंपरा समाप्त प्रायः हो गई है। सवाल उठता है पुराने समय में सेहरा बांधने की वजह क्या थी? जानकार बताते हैं कि इसके अनेक कारण थे। एक तो सेहरा इसलिए बांधा जाता था कि दूल्हे का चेहरा नजर न आए, ताकि बुरी नजर से बच जाए। शादी जैसे शुभ अवसर पर ईर्श्या या नकारात्मक ऊर्जा से बचाने के लिए यह परंपरा प्रचलित थी। इसके अतिरिक्त सेहरा दूल्हे के लिए एक तरह की विनम्रता और लज्जा का प्रतीक माना जाता था। विवाह को एक पवित्र संस्कार माना जाता है, जिसमें दूल्हा स्वयं को सरल और संयमित रूप में प्रस्तुत करता है। एक बात और। कुछ मान्यताओं के अनुसार, शादी के समय दूल्हा और दुल्हन एक-दूसरे को पहले नहीं देखते। सेहरे के कारण दूल्हे का चेहरा ढंका रहता है, और मुख-दिखाई की एक खास रस्म के दौरान ही दुल्हन को उसका चेहरा दिखाया जाता है। सेहरा फूलों या मोतियों से सजाया जाता है, जिससे दूल्हे का स्वरूप और अधिक शुभ व राजसी दिखाई दे। यह विवाह की भव्यता को भी दर्शाता है। कुल जमा सिंधी समुदाय में सेहरे से दूल्हे के चेहरे को ढकने की परंपरा केवल सौंदर्य या आडंबर का हिस्सा नहीं थी, बल्कि यह परंपरा, सुरक्षा और आध्यात्मिकता का मिश्रण थी।


https://youtu.be/qJNtL0vxL_k


https://ajmernama.com/thirdeye/433358/

मंगलवार, जून 17, 2025

भारत ने तो बहुत पहले ही बना लिया था मानव क्लोन

दोस्तो, नमस्कार। जिस मानव क्लोन को बनाने की वर्तमान में चर्चाएं हैं, ऐसे मानव क्लोन का इतिहास त्रेता युग से भी अधिक पुराना है। यह दावा रहा है प्रज्ञा ज्योतिष शोध संस्थान के संचालक पं. पंतराम शर्मा का। कुछ साल पहले उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा था कि ऐसे विस्मयकारी प्रयोग हमें वैदिक वांगमय में अनेकं बार सुनने अथवा पढ़ने को मिलते हैं। 

प्रज्ञा ज्योतिष शोध संस्थान के संचालक पं. पंतराम शर्मा का मानना है कि स्मरण विज्ञान व श्रुति परम्परा (ओरल ट्रेडिशन) के धीरे-धीरे निष्प्रभावी होने के कारण हम भूल गए कि क्लोनिंग और अंतरिक्ष युद्ध जैसे चौंकाने वाले विषय कभी भारतीय वेद, पुराण और इतिहास में व्यवहारिक प्रयोग में थे। क्लोनिंग (रक्त बीज) से उत्पन्न सैनिक पूर्ण कुशलता से युद्ध लड़ा करते थे। यहां तक की उनके पराक्रम और शौर्य का देवगण भी लोहा मानते

थे। श्री शर्मा के अनुसार मानव क्लोनिंग के विषय में वेद, पुराण व इतिहास में बहुत कुछ कहा गया है। हां, स्मरण विज्ञान के लुप्त प्रायः हो जाने और वर्तमान भौतिक विज्ञान की प्रचण्ड आंधी ने स्मृतियों के सारांश पर धूल की अनेक परतें अवश्य जमा दी है। दुर्गा सप्तसती में वर्णित रक्त बीज वध नामक अध्याय का विवरण युद्ध क्षेत्र में क्लोनिंग से असुर सैनिकों की उत्पत्ति पर प्रकाश डालता है। हरिवंश पुराण के पंचम अध्याय में भी मानव क्लोनिंग का रोचक प्रसंग है, जिसमें राजा वेन के अनाचार से कुद्ध होकर महर्षियों ने वेन की दाहिनी भुजा का मंथन कर महान् सदाचारी महिपाल राजा पृथु को उत्पन्न किया। हरिवंश पुराणा में ही एक और उदाहरण देखने को मिलता है जिसमें एक अविवाहित ऋषि ने अपनी वंशवृद्धि की इच्छा से जंघा को चीरकर रक्त निकाला और स्वगुण स्वरूप पुत्र की उत्पत्ति की। ब्रह्मचारी हनुमान के पसीने से मकरध्वज की उत्पत्ति भी विचारणीय है। इन धारणाओं के चलते वर्तमान जैव वैज्ञानिकों द्वारा प्रचारित चिकित्सकीय क्लोनिंग प्रौद्योगिकी पर दृष्टिपात करें तो डॉली नामक भेड़ को क्लोनिंग के जरिए पैदा करने वाले ब्रिटिश वैज्ञानिक प्रो. ईयन विल्मट ने दावा किया कि वे कुछ अनुसंधान के बाद पूर्णतः विकसित मानव कोशिका से दूसरा मानव बना सकते हैं। इसी प्रकार जैव नीति शास्त्र विषय पर इन्डो-जर्मन कार्य शिविर में नीतिपरक चर्चा के दौरान बाखूम विश्वविद्यालय के आणविक जीव विज्ञानी प्रो. स्ट्रेफेर ने जैव नीति शास्त्र पर दार्शनिकों के साथ मिलकर निरंतर विचार- विनिमय की बात पर बल दिया। उन्होंने कहा कि रक्तबीज (क्लोनिंग) क उपयोग ठीक उसी तरह है, जिस प्रकार शूरवीर यौद्धा शस्त्रों का उपयोग आतंकवाद को नष्ट करने के लिए करता है तथा तमोगुणी असुर अपने शस्त्र बल का प्रयोग जन समूह को आतंकित करने के लिए करता है। भारतीय चिंतन में नीति और ज्ञान-विज्ञान की कहीं कमी नहीं है। कमी है सिर्फ स्मरण शास्त्र को लुप्त होने से बचाने की। वर्तमान सरकार द्वारा शिक्षा में स्थापित किए गए नये आयाम यदि निरंतर क्रमोन्नत होते रहे तो हमारे प्राचीन ज्ञान-विज्ञान की पश्चिमी वैज्ञानिकों का मुंह नहीं ताकना पड़ेगा।

इस मसले का एक पहुल यह है कि मानव क्लोनिंग तकनीकी रूप से सिद्धांत में संभव मानी जाती है, लेकिन वर्तमान में यह कानूनी, नैतिक और वैज्ञानिक सीमाओं के कारण व्यवहार में नहीं की जाती। क्लोनिंग का मतलब है किसी जीव का सटीक आनुवंशिक प्रतिरूप बनाना। 1996 में डॉली नाम की भेड़ को क्लोन किया गया था, जिससे यह साबित हुआ कि स्तनधारियों की क्लोनिंग संभव है। उसी तकनीक से, मानव कोशिकाओं की क्लोनिंग (जैसे स्टेम सेल थेरपी के लिए) प्रयोगशालाओं में की गई है, लेकिन पूरा मानव नहीं। क्लोनिंग से जन्मे जानवरों में अक्सर बीमारियां, असामान्यताएं, और कम जीवनकाल देखा गया है। तो इंसानों में ये खतरे और भी गंभीर हो सकते हैं।

ज्ञातव्य है कि लगभग हर देश में मानव क्लोनिंग पर रोक है, जैसे भारत, अमेरिका, यूरोप आदि में। संयुक्त राष्ट्र ने भी 2005 में इसके विरोध में प्रस्ताव पारित किया।

ज्ञातव्य है कि थेरेप्यूटिक क्लोनिंग को कुछ सीमित रूप से स्वीकार किया गया है, ताकि कैंसर, अल्जाइमर, पार्किंसंस जैसी बीमारियों का इलाज खोजा जा सके। लेकिन प्रजनन के लिए मानव क्लोनिंग पर सख्त प्रतिबंध है।

सैद्धांतिक रूप से मानव क्लोनिंग संभव हो सकती है, लेकिन आज की स्थिति में यह व्यावहारिक, नैतिक और कानूनी रूप से अस्वीकार्य है। भविष्य में विज्ञान और समाज की सोच में बदलाव के अनुसार इसमें परिवर्तन हो सकता है, लेकिन फिलहाल यह केवल विज्ञान कथा जैसा ही है।


https://youtu.be/nSF12IxYApE

https://ajmernama.com/thirdeye/433050/