शास्त्रों व पुराणों में कई ऋषियों के हजारों साल तक जीने के प्रसंग आते हैं। शास्त्रानुसार यह भी स्थापित तथ्य है कि हनुमानजी चिरंजीवी हैं। बताते हैं कि सीता माता ने हनुमानजी को लंका की अशोक वाटिका में राम का संदेश सुनने के बाद आशीर्वाद दिया था कि वे अजर-अमर रहेंगे। यानि कि वे चिरयुवा भी हैं। मान्यता है कि जहां भी भक्ति-भाव से भगवान राम की पूजा-अर्चना होती है, हनुमानजी वहां विद्यमान होते हैं। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा को चिरकाल तक पृथ्वी पर भटकते रहने का श्राप दिया था। वे आज भी पृथ्वी पर अपनी मुक्ति के लिए भटक रहे हैं। इसी प्रकार ऋषि मार्कण्डेय, भगवान वेद व्यास, भगवान परशुराम, राजा बलि, विभीषण और कृपाचार्य भी चिरंजीवी माने जाते हैं।
बहरहाल, अब मौलिक सवाल पर आते हैं। एक ओर हम ये मानते हैं कि भगवान अच्छे लोगों को अपने पास जल्दी बुला लेते हैं तो दूसरी ओर चिरायु होने को अच्छा माना जाता है। है न अजीबोगरीब विरोधाभास।
ऐसा प्रतीत होता है कि केवल मन की संतुष्टि के लिए ऐसा कहा जाता है कि अच्छे लोगों के परिजन को सांत्वना देने के लिए यह कहा जाता है कि भगवान अच्छे लोगों को जल्द बुला लेता है। सच तो ये है कि मृत्यु का अच्छे या बुरे होने से कोई ताल्लुक नहीं है।
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