तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

मंगलवार, नवंबर 18, 2014

वसुंधरा का तख्ता पलट टला, मगर खतरा बरकरार

हालांकि लंबे इंतजार व जद्दोजहद के बाद राज्य की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे अपने मंत्रीमंडल का विस्तार तो कर पाईं और इसके साथ ही उनके तख्तापटल की आशंकाएं टल गईं, मगर राजनीतिक हलकों में अब भी यही राय है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उन्हें ज्यादा समय तक मुख्यमंत्री बने नहीं रहने देंगे। पिं्रट व इलैक्ट्रॉनिक मीडिया पर हालांकि बहुत कुछ खुल कर सामने नहीं आ पाया, मगर इन दिनों सर्वाधिक सक्रिय सोशल मीडिया पर तो साफ तौर पर ये खबरें चल रही थीं कि जल्द ही पूर्व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ओम प्रकाश माथुर राज्य के मुख्यमंत्री बना दिए जाएंगे।
असल में जिस प्रकार राज्य मंत्रीमंडल के विस्तार में बाधाएं आईं, जिसकी वजह से भाजपा को उपचुनाव में झटका भी झेलना पड़ा, उसी से लग गया था कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व वसुंधरा राजे के बीच सब कुछ ठीकठाक नहीं है। मंत्रीमंडल विस्तार के लिए वसुंधरा राजे को कई बार दिल्ली जाना पड़ा, मगर तकरीबन दस माह बाद जा कर उन्हें सफलता हासिल हो पाई। हालांकि मंत्रीमंडल को संतुलित किया गया है, मगर अब भी माना जाता है कि संघ लॉबी के घनश्याम तिवाड़ी व नरपत सिंह राजवी सरीखे कुछ प्रमुख नेता समायोजित नहीं हो पाए हैं, इस कारण मनमुटाव की फांस बरकरार है। यह तब और अधिक दुखदायी हो गई, जब पिछले दिनों वसुंधरा ने यह कह दिया कि इतना प्रचंड बहुमत किसी एक व्यक्ति का कमाल नहीं, बल्कि कार्यकर्ताओं की मेहनत व जनता का आशीर्वाद है। इसको लेकर खूब खबरबाजी हुई। बताया जाता है कि इसको लेकर मोदी की नाराजगी और बढ़ गई है। वसुंधरा के इस बयान को सीधे तौर पर मोदी पर निशाना करने के रूप में देखा गया। जाहिर तौर पर वसुंधरा विरोधी लॉबी ने इसका फायदा उठाने की कोशिश की होगी। ऐसे में माना यही जा रहा है कि वसुंधरा राजे सुरक्षित तो कत्तई नहीं है। आम धारणा यही बनती जा रही है कि मोदी को जैसे ही मौका मिलेगा, वे वसुंधरा को निपटा देंगे। कुछ लोग मानते हैं कि ऐसा वे दो-तीन माह में कर लेंगे, जबकि कुछ का मानना है कि स्थानीय निकाय चुनाव में उनको परफोरमेंस दिखाने के लिए कम से कम एक साल और मौका दिया जाएगा। बताया जाता है कि ओम प्रकाश माथुर को उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाए जाने के बाद वसुंधरा को कुछ राहत मिली है। वैसे भी ये माना जा रहा था कि माथुर को भले ही ऊपर से थोपने की कोशिश की जाए, मगर विधायकों की आमराय उनके पक्ष में बनाना कठिन होगा। माना जाता है कि वे एक अच्छे रणनीतिकार व संगठनकर्ता तो हैं, प्रशासनिक तौर पर उतने कुशल नहीं, जितना एक मुख्यमंत्री को होना चाहिए। इसी वजह से बीच में गृहमंत्री गुलाब चंद कटारिया का भी नाम सामने आया था।
कुल मिला कर माना यही जा रहा है कि वसुंधरा विरोधी लॉबी अभी तक सक्रिय है और वह घात लगा कर बैठी है कि कब उन्हें कमजोर साबित किया जाए। हाईकमान की भी उन पर पैनी नजर है। ऐसे में वसुंधरा को बहुत सुरक्षित नहीं माना जा सकता।
-तेजवानी गिरधर

गुरुवार, नवंबर 13, 2014

क्या प्रो. जाट को मंत्री बनने के लिए पाला बदलना पड़ा?

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के बीच के जगजाहिर संबंधों की ही वजह रही कि राजनीतिक विश्लेषक यह मान कर चल रहे थे कि अजमेर के सांसद प्रो. सांवरलाल जाट को केन्द्रीय मंत्रीमंडल में स्थान नहीं मिल पाएगा और यह उनके साथ सबसे बड़ा धोखा होगा। राज्य में किसी केबीनेट मंत्री को लोकसभा चुनाव लड़ाया जाए तो इसका मतलब यही माना जाना चाहिए कि अगर वह जीता और पार्टी की सरकार बनी तो केन्द्रीय मंत्रीमंडल में उसका स्थान पक्का होगा, मगर प्रो. जाट के साथ ऐसा होता नजर नहीं आ रहा था। बेशक उनकी पैरवी मुख्यमंत्री वसुंधरा कर रही थीं, मगर चूंकि मोदी व उनके बीच ट्यूनिंग को ठीक माना जा रहा, इस कारण कम से कम राजनीति के जानकार तो यही मान कर चल रहे थे कि प्रो. जाट शायद ही मंत्री बन पाएं। कदाचित इसका अहसास खुद प्रो. जाट को भी रहा होगा। उनके लिए अफसोसनाक बात ये भी थी जो नसीराबाद सीट उन्होंने छोड़ी उसके लिए उनके पुत्र को पार्टी ने टिकट नहीं दिया। ऐसे में अगर उन्हें मंत्री नहीं बनाया जाता तो समझा जा सकता है कि जाती तौर पर उनके साथ क्या बीतती। सो बताते हैं कि उन्होंने अकेले वसुंधरा के भरोसे रहना उचित नहीं समझा। मोदी के करीबी भाजपा नेता ओम प्रकाश माथुर के लगातार संपर्क में रहे। यह बात राजनीति के जानकारों की जानकारी में भी थी। मगर इसका जिक्र मीडिया में कहीं नहीं आया। जैसे ही प्रो. जाट को मंत्री बनाया गया तो पत्रकारों ने खुलासा किया कि वे माथुर के संपर्क में भी थे।
बात अगर राजनीतिक समीकरणों की करें तो यह सब को पता है कि माथुर व वसुंधरा के बीच कैसे संबंध हैं। एक बारगी तो यह अफवाह तक फैल गई थी कि वसुंधरा को हटा कर माथुर को मुख्यमंत्री बनाया जा रहा है। अब समझा सकता है कि प्रो. जाट ने वसुंधरा के खासमखास होने के बाद भी माथुर से करीबी क्यों बढ़ाई। संभव है उन्हें लग रहा हो कि अकेले वसुंधरा उन्हें मंत्री नहीं बनवा पाएंगी। ऐसे में केवल वसुंधरा के भरोसे रह कर भला अपना राजनीतिक कैरियर काहे को खराब करते। जो भी हो माथुर से नजदीकी और मंत्री बनने में माथुर का हाथ होने की कानाफूसी का कुछ लोग ये भी अर्थ लगा रहे हैं कि प्रो. जाट ने ऐन वक्त पर पाला बदल लिया। कुछ लोग इसका ये भी अर्थ लगा रहे हैं कि वसुंधरा ने यह जानते हुए कि अकेले उनके दम पर वे मंत्री नहीं बन पाएंगे, खुद ही जाट से कहा होगा कि वे दूसरे चैनल पर भी काम करें। हालांकि अभी ये पक्का नहीं कहा जा सकता कि उन्होंने पाला बदल लिया है, मगर यदि उनको मंत्री बनवाने में माथुर का हाथ रहा है, तो समझा जा सकता है कि अब मोदी व वसुंधरा में से कौन उनके लिए अहम रहेगा। वैसे भी केन्द्र में काम करना है तो मोदी के प्रति स्वामी भक्ति उन्हें दिखानी ही होगी।
-तेजवानी गिरधर