तीसरी आंख

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शुक्रवार, मार्च 16, 2012

मैथ्यू साहब, केवल खबरों का खंडन ही होगा, कार्यवाही कौन करेगा?


मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के निर्देश पर हाल ही राजस्थान सरकार के मुख्य सचिव सी. के. मैथ्यू ने अब सभी विभागों को नकारात्मक खबरों का नियमित रूप से खंडन जारी करने के निर्देश दिए हैं। इसके लिए सभी विभागों में विभागाध्यक्ष अथवा वरिष्ठतम उप शासन सचिव को नोडल अधिकारी बनाया जा रहा है। सरकार का मानना है कि राज्य सरकार की रीति-नीति और कार्यक्रमों के क्रियान्वयन के संबंध में नकारात्मक समाचार छपने से जनता में सरकार के बारे में गलत संदेश जाता है। साथ ही लोगों में भ्रम की स्थिति भी बनती है।
निश्चित रूप से यह जायज है कि यदि कोई समाचार गलत छपा है तो संबंधित पक्ष को उसका खंडन करना चाहिए अथवा अपना पक्ष रखना चाहिए। इससे कम से कम आम जनता दोनों पक्षों के तथ्य जानकार निर्णय तो कर सकेगी कि क्या सही है और क्या गलत। सरकार ने भले ही इसे अपनी छवि को सुधारने की गरज से लागू किया हो, मगर है यह स्वागत योग्य कदम। मगर अहम सवाल ये है कि सरकार को यदि अपने खिलाफ छप रही गलत या नकारात्मक खबरों से परेशानी है तो इस बात की चिंता क्यों नहीं कि आम जनता की समस्याओं से जुड़ी खबरों पर भी कार्यवाही उतनी ही मुस्तैदी से की जानी चाहिए। उसकी नजर इस बात पर तो है कि नकारात्मक खबर का खंडन करना है, मगर इस पर नहीं कि आखिर वह क्यों छपी है और उसका समाधान भी किया जाना चाहिए। सरकार ने नकारात्मक खबरों से निपटने के लिए जो कदम उठाया है, उसकी उसने कितनी पुख्ता व्यवस्था की है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मुख्य सचिव मैथ्यू ने जो परिपत्र जारी किया है, उसके तहत सभी विभागों को नकारात्मक समाचार के बारे में वस्तुस्थिति (खंडन) सीधे ही सूचना एवं जन संपर्क विभाग की वेबसाइट पर अपलोड करने होंगे। खबरों की जानकारी रोजाना सुबह 11 बजे तक सीएमओ, मुख्य सचिव अथवा डीपीआर की ओर से मोबाइल, एसएमएस अथवा टेलीफोन से संबंधित अतिरिक्त मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव, विभागाध्यक्ष को दी जाएगी। दोपहर 12 बजे तक संबंधित विभागों को खबरों की कटिंग फैक्स अथवा ई-मेल से भेजी जाएंगी। संबंधित विभाग को शाम 4 बजे तक उस खबर से संबंधित वस्तुस्थिति और तथ्यात्मक टिप्पणी से ऑनलाइन न्यूज मॉनिटरिंग सिस्टम पर अपलोड करनी होगी। है न तगड़ी व्यवस्था। मगर अफसोस कि मुख्य सचिव को इस बात का ख्याल नहीं आया कि जो भी समाचार सरकार या सरकारी विभाग के खिलाफ छपते हैं, वे कोई हवाई तो होते नहीं हैं। यदि वाकई वे हवाई हैं तो उनका खंडन जायज है। मगर अमूमन समाचार वास्तविक समस्याओं से संबंधित होते हैं। वे छापे ही इस कारण जाते हैं कि सरकार का ध्यान उस ओर जाए, मगर उन पर कार्यवाही में सरकार कितनी गंभीरता दिखाती है, सब जानते हैं। बेहतर होता कि मैथ्यू साहब यह आदेश भी साथ ही जारी करते कि जनता की समस्याओं से संबंधित समाचार पर तुरंत कार्यवाही की जानी चाहिए और उससे उच्चाधिकारी को अवगत भी कराना चाहिए।
आपको ख्याल होगा कि एक जमाना था, जब किसी समाचार पत्र में कोई छोटी सी खबर भी छपती थी तो तुरंत कार्यवाही होती थी, मगर आज अखबार वाले पूरा पेज का पेज भी छाप देते हैं, मगर प्रशासन के कान पर जूं तक नहीं रेंगती। यह आम रवैया सा बन गया कि किसी भी खबर पर अधिकारी वर्ग की यही प्रतिक्रिया होती है कि खबरें तो यूं ही छपती ही रहती हैं। और यही वजह है कि समाचारों का अवलोकन करने के लिए सूचना केन्द्र से कटिंग का पुलिंदा जिला कलेक्टर के पास नियमित रूप से जाता है, मगर वह या तो खुलता ही नहीं और खुलता भी तो उस पर कोई कार्यवाही नहीं की जाती। कई बार तो अधिकारी किसी सरकारी खबर पर अपनी प्रतिक्रिया मांगने पर भी नहीं देते। मोबाइल फोन स्विच ऑफ कर देते हैं या फिर नो कमेंट कह कर फोन रख देते हैं। इसी कारण एक पक्षीय समाचार छप जाता है। हकीकत तो यह है कि पत्रकार दूसरे पक्ष को भी पूरा तवज्जो देते हैं। उन्हें इसी की शिक्षा दी गई है कि एकपक्षीय समाचार न छापे जाएं। फिर भी दोष अखबार वालों को दिया जाता है कि सरकार के खिलाफ खबरें छापते हैं। मैथ्यू साहब को इस पर भी गौर करना चाहिए कि अखबार वाले तो चला कर सरकार का पक्ष जानना चाहते हैं, आपके अधिकारी ही तवज्जो नहीं देते। अगर वे ऐसा करते तो इस प्रकार के आदेश ही जारी नहीं करने पड़ते कि खबर छपने के बाद उसका खंडन किया जाए। नकारात्मक खबर के साथ ही सरकार का भी पक्ष छप जाता। मगर चूंकि सरकार ने इस पर कभी गौर नहीं किया, इस कारण नौबत यहां तक आ गई है कि उसे खंडन करने की व्यवस्था कायम करनी पड़ रही है।
-तेजवानी गिरधर
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