तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

सोमवार, जुलाई 09, 2018

ऐन चुनाव से पहले तिवाड़ी ने दिया भाजपा को झटका

-तेजवानी गिरधर-
यूं तो भाजपा के वरिष्ठ नेता घनश्याम तिवाड़ी पिछले काफी समय से पार्टी के अंदर व बाहर, विधानसभा के भीतर भी और जनता के समक्ष भी राज्य की मौजूदा भाजपा सरकार, विशेष रूप से मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे पर हमले बोलते रहे हैं, मगर अब ऐन चुनाव से ठीक पांच माह पहले ने पार्टी को तिलांजलि दे कर उन्होंने बड़ा झटका दिया है। इस पूरे प्रकरण में सर्वाधिक गौरतलब बात ये है कि तिवाड़ी लगातार सरकार की रीति-नीति पर प्रहार करते रहे, मगर भाजपा हाईकमान उनके खिलाफ कार्यवाही करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। मात्र अनुशासन समिति में जवाब-तलब होते रहे, मगर वह वसुंधरा के धुर विरोधी नेता के खिलाफ कदम उठाने से बचता रहा। अब जब कि तिवाड़ी पार्टी छोड़ कर नई पार्टी भारत वाहिनी का गठन कर सभी दो सौ विधानसभा सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े करने की घोषणा कर चुके हैं, भले ही भाजपा की ओर से यह कहा जा रहा हो कि उसको कोई नुकसान नहीं होगा, मगर इसके साथ सवाल ये भी उठता है कि अगर तिवाड़ी इतने ही अप्रभावी नेता हैं तो लगातार अनुशासन तोडऩे के बाद भी उनके विरुद्ध कार्यवाही करने से क्यों बचा गया?
असल में तिवाड़ी भाजपा के भीतर ही उस वर्ग के प्रतिनिधि थे, जो मूलत: संघ पोषित रहा है और जिसके कई नेताओं को वसुंधरा राजे बर्फ में दफ्न कर चुकी हैं। सच तो ये है कि संघ पृष्ठभूमि के कई प्रभावशाली नेता या तो काल कलवित हो गए या फिर महारानी शरणम् गच्छामी हो गए। कुछ ऐसे भी हैं, जो विरोधी तो हैं, मगर उनमें तिवाड़ी जैसा माद्दा नहीं और चुपचाप टाइम पास कर रहे हैं। तिवाड़ी उस सांचे या कहिये कि उस मिट्टी के आखिरी बड़े नेता बचे थे, जिन्होंने पार्टी के भीतर रह कर भी लगातार वसुंधरा का विरोध जारी रखा। वसुंधरा का आभा मंडल इतना प्रखर है कि उनका विरोध नक्कार खाने में तूती की सी आवाज बन कर रह गया। वे चाहते थे कि वसुंधरा उन्हें बाहर निकालें ताकि वे अपनी शहादत को भुना सकें, मगर वसुंधरा ने उन्हें ये मौका नहीं दिया। आखिर तिवाड़ी को खुद को ही पार्टी छोडऩे को मजबूर होना पड़ा। जाहिर तौर पर यह शह और मात का खेल है। इसमें कौन जीता व कौन हारा, यह तय करना अभी संभव नहीं, विशेष रूप से विधानसभा चुनाव से पहले, मगर इतना तय है कि उनके लगातार विरोध प्रदर्शन के चलते न केवल वसुंधरा की कलई उतरी, अपितु उनकी पूरी लॉबी, जो कि सरकार चला रही है, उसके नकारा होने को रेखांकित हुई है। जातीय समीकरण अथवा अन्य जोड़-बाकी-गुणा-भाग के लिहाज से तिवाड़ी का ताजा कदम क्या गुल खिलाएगा, ये तो वक्त ही बताएगा, मगर उन्होंने जिस आवाज की दुंदुभी बजाई है, वह सरकार के खिलाफ काम कर रही एंटी इन्कंबेंसी को और हवा देगी। तिवाड़ी ने जो मुहिम चलाई, उसका लाभ उनको अथवा उनकी पार्टी को कितना मिलेगा, कहा नहीं जा सकता, मगर इतना तय है कि उन्होंने कांग्रेस का काम और आसान कर दिया है। कांग्रेस के विरोध प्रदर्शन को राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता कहा जा सकता है, मगर चूंकि भाजपा के अंदर का ही खांटी नेता भी अगर वे ही मुद्दे उठा रहा है, तो इससे कांग्रेस के तर्कों पर ठप्पा लग गया है।
प्रसंगवश, यह चर्चा करना प्रासंगिक ही रहेगा कि भाजपा मूलत: दो किस्म की धाराओं की संयुक्त पार्टी है। विशेष रूप से राजस्थान में। इसमें एक धारा सीधे संघ की तथाकथित मर्यादित आचरण वाली है तो दूसरी वसुंधरा के शक्ति केन्द्र के साथ चल रही है, जहां साम-दाम-दंड-भेद जायज हैं। हालांकि पार्टी का मातृ संगठन संघ ही है, जिसकी भीतरी ताकत हिंदूवाद से पोषित होती है, मगर वसुंधरा के इर्द-गिर्द ऐसा जमावड़ा है, जिसका संघ से सीधा नाता नहीं है, या कहिये कि उस जमात ने पेंट के नीचे चड्डी नहीं पहन रखी है। संघ निष्ठों को यही तकलीफ है कि पार्टी उनके दम पर ही सत्ता में है, मगर उसमें सत्ता का मजा अधिसंख्य वे ही ले रहे हैं, जिन्होंने लालच में आ कर बाद में चड्डी पहनना शुरू किया है। कुल मिला कर पार्टी की कमान भले ही संघ के हाथ में है, जो कहने भर को है, मगर खुद संघ को भी वसुंधरा के साथ तालमेल करके चलना पड़ रहा है। जब से देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व भाजपा अध्यक्ष अमित शाह बने हैं, तब से वसुंधरा नामक शक्ति केन्द्र को ध्वस्त करने की ख्वाहिश तो रही है, मगर उसमें अब तक कामयाबी नहीं मिल पाई है।
हालांकि यह कहना अभी जल्दबाजी होगा कि तिवाड़ी को ताकत सीधे संघ से ही मिल रही है या फिर संघ ही इस साजिश का सूत्रधार है, मगर इतना तय है कि तिवाड़ी उसी जनमानस को अपने साथ जोडऩे की कोशिश कर रहे हैं, जो संघ के नजदीक है। ऐसे में जो विश्लेषक उन्हें मात्र ब्राह्मण नेता मान कर राजनीतिक समीकरणों का आकलन कर रहे हैं, वे जरूर त्रुटि कर रहे हैं। वे सिर्फ ये देेख रहे हैं कि प्रदेश में 9 विधानसभा सीटें ब्राह्मण बाहुल्य वाली हैं और 18 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर सर्वाधिक वोटरों की संख्या में ब्राह्मण वोटर नंबर 2 या 3 पर है, इन पर तिवाड़ी कितना असर डालेंगे? कुछ अंश में यह फैक्टर काम करेगा, मगर एक फैक्टर और भी दमदार काम करेगा। वो यह कि एंटी इन्कंबेंसी देखते हुए बड़ी संख्या में मौजूदा भाजपा विधायकों के टिकट काटे जाएंगे। ऐसे में पार्टी में भितरघात की स्थिति का फायदा तिवाड़ी की नई पार्टी को मिल सकता है। निश्चित रूप से वे जो भी वोट तोड़ेंगे, वे भाजपा के खाते से छिटकेंगे। भले ही तिवाड़ी की पार्टी का एक भी विधायक न जीत पाए, मगर भाजपा को तकरीबन 25 सीटों पर बड़ा नुकसान दे जाएंगे।