तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

बुधवार, मार्च 12, 2025

क्या कर्ण पिशाचिनी सिद्ध होती है?

इन दिनों छत्तीसगढ के छतरपुर स्थित बागेश्वर धाम सरकार के धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री व पंडोखर सरकार धाम खूब चर्चा में हैं। अंधविश्वास निर्मूलन समिति के श्यााम मानव ने उनको दिव्य शक्तियों को साबित करने की चुनौती दी है। चुनौती स्वीकार भी हो गई है। परीक्षण कब होगा पता नहीं, मगर इस प्रकरण से मुझे एक प्रसंग ख्याल में आ गया।

उससे तो यह संकेत मिलता है कि ऐसी षक्तियां हैं तो सही, जिनको भले ही वैज्ञानिक तरीके से सिद्ध न किया जा सके। हुआ यूं कि मैं एक ज्यातिर्विद के पास गया भविश्य जानने। गया क्या, सच तो यह है कि ले जाया गया। मेरे वरिश्ठ मित्र की इच्छा थी कि आपके भविश्य के बारे में जानकारी ली जाए। वहां जाने पर ज्योतिशी जी ने कहा कि आपकी कुंडली त्रुटिपूर्ण है, क्योंकि इसमें दिया गया जन्म समय गलत है। पहले आप अमुक ज्योतिशी के पास जाइये। वे आपको आपका वास्तविक जन्म समय बता देंगे। उसी के आधार पर कुंडली बना कर सही फलित बनाया जा सकता है। हम उन के पास गए। उन्होंने पूछा कि क्या कुंडली लाए हो तो मैंने अपने बेग में कुंडली निकाल कर दे दी। उन्होंने कुंडली को देखे बिना ही साइड में रख दिया। फिर लगे केलकूलेट पर कोई गणना करने। उन्होंने जन्म समय तो बताया ही, साथ ही जैसे ही मेरे पिताजी व दादाजी का नाम बताया तो मैं हतप्रभ रह गया। जन्म समय तो संभव है, गलत भी हो, मगर उन्हें मेरे पिताजी व दादाजी का नाम कैसे पता लगा, यह वाकई सोचनीय रहा। बाद में मैने कुछ अन्य से राय ली तो उन्होंने बताया कि ज्योतिशी जी ने कर्ण पिषाचिनी सिद्ध कर रखी होगी, जो कि सामने बैठे व्यक्ति के भूतकाल के बारे में कान में सब कुछ बता सकती है। सच क्या है, मुझे नहीं पता, मगर जरूर को ऐसी विद्या है, जो भूतकाल का ज्ञान करवा सकती है। मेरी इस धारणा को अंधविष्वास इसलिए नहीं कहा जा सकता, क्योंकि मैने जो देखा, उस पर अविष्वास करने का आधार है ही नहीं। यहां यह स्पश्ट कर दूं कि मै जिन वरिश्ठ मित्र के साथ गया था, उनको मेरे पिताजी व दादाजी के नाम के बारे में कोई जानकारी नहीं थी, अन्यथा यह संदेह किया जा सकता था कि उन्होंने ज्योतिशी जी को पहले से बता दिया होगा। 


https://youtu.be/gU07osN9qf8

रामभक्त पवनपुत्र हनुमान जी देवता नहीं

आम तौर पर हम रामभक्त पवनपुत्र हनुमानजी को देवताओं में ही शामिल मानते हैं, लेकिन यह कम लोगों को जानकारी है कि वे देवता नहीं हैं। वे न नाग योनि से हैं न पितर योनि से, न किन्नर हैं, न यक्ष। उनकी अलग ही योनि है। और वह है किंपुरुष। हालांकि वे ब्रह्मा, विष्णु, महेश नहीं हैं, मगर उनके जितनी सामर्थ्य रखते हैं। वे अपनी इच्छा से अपने में किसी भी देवता को प्रकट कर सकते हैं।

कहते हैं कि श्रीराम के अपने निजधाम प्रस्थान करने के बाद हनुमानजी और अन्य वानर किंपुरुष नामक देश को प्रस्थान कर गए। वे मयासुर द्वारा निर्मित द्विविध नामक विमान में बैठ कर किंपुरुष नामक लोक में चले गए। किंपुरुष लोक स्वर्ग लोग के समकक्ष है। षास्त्रों के अनुसार यह किन्नर, वानर, यक्ष, यज्ञभुज् आदि जीवों का निवास स्थान है। योधेय, ईश्वास, अर्षि्टषेण, प्रहर्तू आदि वानरों के साथ हनुमानजी इस लोग में प्रभु रामकी भक्ति, कीर्तन और पूजा में लीन रहते हैं।

जम्बूद्वीप के नौ खंडों में से एक किंपुरुष भी था। नेपाल और तिब्बत के बीच हिमालयी क्षेत्र में कहीं पर किंपुरुष की स्थिति बताई गई है। हालांकि पुराणों अनुसार किंपुरुष हिमालय पर्वत के उत्तर भाग का नाम है। यहां किन्नर नामक मानव जाति निवास करती थी। बताते हैं कि इस स्थान पर मानव की आदिम जातियां निवास करती थीं। यहीं पर एक पर्वत है जिसका नाम गंधमादन कहा गया है। श्रीमद्भागवत के अनुसार हनुमानजी कलियुग में गंधमादन पर्वत पर निवास करते हैं। ज्ञातव्य है कि पांडव अपने अज्ञातवास के समय हिमवंत पार करके गंधमादन के पास पहुंचे थे। यह कथा भी प्रचलित है कि एक बार भीम सहस्रदल कमल लेने के लिए गंधमादन पर्वत के वन में पहुंच गए थे, जहां उनकी मुलाकात हनुमान जी से हुई। हनुमान जी लेटे हुए थे। भीम ने उनसे रास्ते से अपनी पूंछ हटाने को कहा, इस पर हनुमानजी ने भीम का घमंड चूर कर दिया था।

गंधमादन में ऋषि, सिद्ध, चारण, विद्याधर, देवता, गंधर्व, अप्सराएं और किन्नर निवास करते हैं। सुमेरू पर्वत की चारों दिशाओं में स्थित गजदंत पर्वतों में से एक को उस काल में गंधमादन पर्वत कहा जाता था। गंधमादन सुगंधित वनों के लिए प्रसिद्ध था।

https://www.youtube.com/watch?v=W14P9d-Hcfs&t=26s