सवाल ये उठता है कि आखिर ऐसा होता क्यों है? वस्तुत: रोंगटे खड़े होने का सीधा संबंध हमारे स्नायु तंत्र है। जब भी हम किसी घटना की वजह से अति संवेदित होते हैं तो उसका सीधा असर स्नायु तंत्र पर पड़ता है। अर्थात जो व्यक्ति जितना संवेदनशील होगा, उसका स्नायु तंत्र भी उतना ही सक्रिय होगा। अचानक किसी कारण से भयभीत होने, संगीत के सुर गहरे तक छू जाने, यकायक खुशी मिलने, किसी वजह से अचानक उत्साहित होने पर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। यानि कि संवेदना की अतिरेक अवस्था में स्नायु तंत्र प्रभावित होता है और त्वचा की निचली सतह में हलचल होती है। विज्ञान की भाषा में समझें तो स्नायु तंत्र सक्रिय होने पर त्वचा के नीचे हेयर फॉलिकल्स पर असर पड़ता ओर उनमें संकुचन होता है। ऐसा होते ही बाल खड़े हो जाते हैं। इसको पाइलोरेक्शन कहा जाता है।
जरा और गहरे से समझने की कोशिश करते हैं। यकायक खतरा या भय महसूस होता है तो हमारा स्नायु तंत्र उससे निपटने के लिए तैयार हो जाता है। इस दौरान दिल की धड़कन बढ़ जाती है, पसीना आता है और रोंगटे खड़े हो जाते हैं। भीतर का मौलिक मानव जाग जाता है। कुछ जानकारों का मानना है कि रोंगटे इसलिए खड़े होते हैं, ताकि हम संभावित खतरे के सामने बड़े नजर आएं।
ये ठीक उस बिल्ली की तरह होता है, जो भय या गुस्से की अवस्था में बड़ी नजर आती है, क्योंकि उसके पूरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
संगीत सुनने के दौरान उसकी विशेष स्वर लहरी अथवा शब्दावली दिल को छू जाती है तो रोम-रोम खड़ा हो जाता है। इसे शरीर विज्ञानियों ने इस तरह से अभिव्यक्त किया है। वे कहते हैं कि दिमाग के दो भाग होते हैं। पहला इमोशनल और दूसरा कॉग्निटिव। इमोशनल भाग अपेक्षाकृत अधिक तेजी से प्रतिक्रिया देता है। वो किसी संगीत को शोर समझता है और रोंगटे खड़े कर सकता है, जबकि कॉग्निटिव भाग संगीत में मौजूद ध्वनि और संगीत को समझ कर हमें अच्छा महसूस कराता है। इस दौरान ऐड्रेनलिन हॉर्माेन के रिलीज होने के कारण आंसू भी आ जाते हैं।
अचानक ठंड लगने पर रोंगटे खड़े होने के बारे में बताया गया है कि इसका मूल उद्देश्य शरीर को गर्म रखने में मदद करना होता है। जब आपको ठंड लगती है तो रोम छिद्रों के आसपास की मांसपेशियों में संकुचन होता है और रोम खड़े हो जाते हैं। स्नायु तंत्र के सक्रिय होते ही ठंड से मुकाबले के लिए गरमाहट पैदा हो जाती है।
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